Wednesday, 9 September 2015

FEW GOOD EXPERIENCES AMONG MANY BAD EXPERIENCES




Where there is strict binding in law,perhaps no corrupt official can
dare to go against that law.In two cases relating to land,the binding
of law was such strict that only my discussion with concerned victims
led to the passing of orders.
u/s 16 of the Bihar Land Disputes Resolution Act,2009,the DCLR is
empowered to attach the standing crop over the disputed land and order
the sale of standing crop during the pendency of case before him and
the sale proceeds shall be kept in Govt account until disposal of the
case and thereafter be delivered to the parties in whose favour order
is passed,subject to order,if any,passed in appeal.
A person having money and muscle power dispossessed one Bhoodan
Raiyat from the land allottted to him.I informed that Bhoodan Raiyat
about this provision,who informed to his advocate,and the advocate
accordingly filed an application and the DCLR ordered to attach the
standing crop over the disputed land.
This happened first time in my village in any case and perhaps very
few DCLRs of Bihar might have exercised this power in very few
cases.It's due to lack of awareness and knowledge.
In another case of my village,i informed to concerned victim against
whom case was lodged before the DCLR for the declaration of the right
by the applicant who claimed on the ground of a sale deed,which has
now been void,that in view of order passed by the Patna High Court in
Maheshwar Mandal & Anr vs the State of Bihar & Ors,CWJC
No-1091/2013,reported as 2014(3) PLJR 281 that the DCLR can only hear
land related cases pertainig to any of the six Acts contained in
Schedule-1 of the Bihar Land Disputes Resolution Act,2009,and these
acts are related to land reforms.Sale deed is not the matter relating
to any of these six acts.It was informed to the advocate by that
person and the advocate discussed same before the DCLR and the DCLR
dismissed the application citing that the matter in question is beyond
the jurisdiction of his court.
In both of the cases,wrong doers might have hired the DCLR,but the
strict binding of law made the DCLR to pass the orders in the
interest of justice.

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Rahul Kumar shared Om Saini's post to the group: KNOW THE LAW,SAVE THE SOCIETY.
10 mins
My reply on query sought by him from me and one other person-
आपके सवाल का दो जवाब है।कोई एक तरीका अपनाना पड़ेगा।
1.तहसीलदार द्वारा राजस्व परिषद के आदेश के बावजूद मामले का निस्तारण नहीं करना IPC का धारा 166 और 217 के तहत दंडनीय है।यदि गलत आदेश करता है तो धारा 219 IPC के तहत दंडनीय है।सिर्फ निस्तारण में विलंब या गलत आदेश करने के आधार पर the Prevention of Corruption Act,1988 का कोई धारा लगाकर कार्रवाई नहीं किया जा सकता।इसके लिए संबंधित भ्रष्टाचार का साक्ष्य भी होना चाहिए।यदि भ्रष्टाचार का साक्ष्य नहीं है तो कार्रवाई धारा 166,167 और 219 में ही होगी और ये धारा जमानतीय और असंज्ञेय है,इसलिए कोई नागरिक धारा 43 CrPC के तहत गिरफ्तार नहीं कर सकता।धारा 166,217,219 आदि को गैर-जमानतीय और संज्ञेय बनवाना होगा।धारा 166,217,219 आदि में पुलिस FIR नहीं लेगी क्योंकि पुलिस किसी लोकसेवक ने कानून के निर्देश का अवज्ञा किया,गलत आदेश दिया,इसका निर्णय नहीं कर सकती।इसका निर्णय उस लोकसेवक के उच्चाधिकारी ही कर सकते हैं जैसे तहसीलदार के केस में राजस्व परिषद या आयुक्त या कलेक्टर।इन धाराओं में FIR और जांच कैसे की जाएगी,इसकी प्रक्रिया का वर्णन CrPC में नहीं किया गया है और ना ही उच्च न्यायालय/सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा कोई दिशानिर्देश जारी किया है कि इन धाराओं में कैसे FIR और जांच होगी।या तो CrPC में इन धाराओं में FIR और जांच करने की प्रक्रिया का वर्णन नया धारा जोड़कर करना चाहिए या ऐसा दिशानिर्देश सुप्रीम कोर्ट से जारी होना चाहिए।
2.भले ही कानूनी तौर पर उपरोक्त मामले में एक आम नागरिक धारा 43 CrPC के तहत गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत नहीं है।लेकिन हम पारा 1 में उठाए गए कानूनी सुधार की मांग को लेकर पहले प्रयत्न करे,यदि सुधार नहीं होती है तो समानांतर कार्रवाई कर गिरफ्तार करे।समानांतर जांच एजेंसी बनाकर FIR कर जांच करे और समानांतर अदालत बनाकर मुकदमा चलाए और सजा दे और समानांतर जेल बनाकर जेल भेजे।ऐसा समानांतर कार्रवाई करने पर अपने आप कानूनी सुधार करने के लिए सरकार और कोर्ट को बाध्य होना पड़ेगा।
सभी मित्र जनों से मार्गदर्शन हेतु विनम्र अपील : UP LR ACT U/S 34/35 के अंतर्गत सन् 2001 से विवादित एवं अभी तक पेंडिंग मामले में यूपी राजस्व परिषद से अंतिम फैसला आने के बाद भी नायब तहसीलदार द्वारा मामले का निस्तारण नहीं किया जा रहा है। क्या हम इस मामले में नायब तहसीलदार के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज करा सकते है और किन किन धाराओं में या अब हमें क्या करना चाहिए। Santosh Pandey Rahul Kumar
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