I have gone through some important case laws while discussing with a person on certain issues.These case laws relate to legal remedies against unfair investigation by Police or other Agency,unjustified changing of Investigating Agency etc.
1.Sakiri Basu vs State of Uttarpradesh & Ors-AIR 2007 SC 2739
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट के मजिस्ट्रेट के पास CrPC की धारा 156(3) के तहत यह शक्ति है कि वो पुलिस या जाँच एजेंसी के जाँच पर निगरानी रखे,जाँच को सही ढंग से संचालित करने के लिए निदेशित करे।
यदि आपको लगता है कि पुलिस या अन्य जाँच एजेंसी जाँच करने में पक्षपात कर रही है और आपके साक्ष्य और बिंदुओं को विवेचना में शामिल नहीं कर रही है तो आप जाँच की निगरानी करने और विवेचना में आपके साक्ष्य और बिन्दुओं को शामिल करवाने के लिए सीधे हाई कोर्ट जाने के बजाय सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के अनुसार आप मजिस्ट्रेट के पास आवेदन दायर कर सकते हैं।
2.Sharafat Alias Bhure vs The Station Officer-1999 CriLJ 283(AL)-
इस केस में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि "जहाँ मामले का विवेचना पुलिस ने किया था और पुलिस ने आरोप-पत्र(Charge-sheet)भी दायर कर दिया था और तत्पश्चात राज्य सरकार ने CB-CID द्वारा विवेचना करने का निर्देश दे दिया था,इससे तथ्यतः पुलिस द्वारा किया गया विवेचना अवैध नहीं हो जायेगा।"
इस फैसला का सार यही है कि भले ही जाँच दूसरे एजेंसी को दे दिया जाए लेकिन पुलिस या पहले वाली एजेंसी द्वारा किया गया जाँच रिपोर्ट यदि तथ्यात्मक,साक्ष्यात्मक और विश्वसनीय हो तो कोर्ट अपनी कार्यवाही में पुलिस या पहले वाली जाँच एजेंसी की जाँच रिपोर्ट का भी उपयोग कर सकती है।यदि सरकार ने किसी को बचाने या फसाने के नियत से जाँच एजेंसी बदल दी हो तो आप हाई कोर्ट के इस फैसला का प्रयोग करके मजिस्ट्रेट कोर्ट और ट्रायल कोर्ट के सामने पुलिस या पहले वाली एजेंसी की जाँच रिपोर्ट को तथ्यात्मक,साक्ष्यात्मक और विश्वसनीय बताकर कोर्ट पर बदलकर जिस जाँच एजेंसी को जाँच दिया गया उसके जाँच रिपोर्ट के बजाय पुलिस या पहले वाली जाँच एजेंसी की जाँच रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई करने के लिए दवाब बना सकते हैं।
3.Bhopal vs State of UP,1997 CrLJ 2363(AL),decided by the Allahabad High Court and B Premanand vs Union Of India,1996 CrLJ 466 (MP),Decided by the Madhya Pradesh High Court-इन दोनों फैसले का सार यही है कि यदि मामला गंभीर किस्म का हो और जाँच में पक्षपात होने का Justified कारण हो तभी सरकार द्वारा जाँच एजेंसी बदला जा सकता है।यदि मामला गंभीर किस्म का नहीं है और पुलिस जाँच या पहले वाली जाँच एजेंसी के जाँच में पक्षपात होने का Justified कारण नहीं है तो जाँच एजेंसी बदलना त्रुटिपूर्ण है।हाई कोर्ट्स के इन दो फैसले और यदि अन्य ऐसे फैसले भी उपलब्ध हो तो इन फैसलों के आधार पर जाँच एजेंसी बदले जाने के आदेश की हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
4.Scope of Section 173(8) CrPC-धारा 173(8) चार्जशीट दायर करने के बाद उसी जाँच अधिकारी द्वारा Further Investigation से सम्बंधित है,ना कि Reinvestigation और Fresh Investigation से।इसलिए CrPC की धारा 173(8) का प्रयोग करके जाँच एजेंसी नहीं बदला जा सकता है।ऐसा फैसला सुप्रीम कोर्ट ने भी State of Punjab vs CBI,AIR 2011 SC 2962 में दिया है।
हालाँकि पुलिस द्वारा चार्ज-शीट दायर करने के बाद सरकार द्वारा जाँच एजेंसी बदले जाने को ऐसी स्थिति में कोर्ट ने सही बताया है,जहाँ पर जाँच एजेंसी CrPC की धारा 173(8) का प्रयोग करने के बजाय अन्य विधिक शक्ति का प्रयोग करते हुए बदला गया और जाँच एजेंसी बदलना युक्तियुक्त था।मतलब मामला गंभीर किस्म का था और जाँच में पक्षपात होने का Justified कारण था।
Sharafat Alias Bhure vs The Station Officer-1999 CriLJ 283(AL), State of Punjab vs CBI,AIR 2011 SC 2962 ,Punjab and Haryana Bar Association vs State of Punjab,AIR 1994 SC 1023,सुप्रीम कोर्ट के इन तीन फैसलें में चार्ज-शीट दायर करने के बाद जाँच एजेंसी बदले जाना युक्तियुक्त होने के कारण सही बताया गया है।
यदि हाई कोर्ट द्वारा द्वारा दूसरे जाँच एजेंसी द्वारा Further Investigation करने को सही बताया जाए तो यह त्रुटिपूर्ण है क्योंकि दूसरी जाँच एजेंसी Reinvestigation या Fresh Investigation कर सकती है लेकिन Further Investigation नहीं।Further Investigation वही कर सकता है जिन्होंने चार्जशीट दायर किया है।
हालाँकि जब चार्जशीट दायर करने के बाद निचली कोर्ट ने संज्ञान (Cognizance) भी ले लिया हो तो क्या सरकार द्वारा जाँच एजेंसी बदला जा सकता है,ये एक Substantial Question of Law है,जिसपर बहस की जरुरत है।इसमें कोई दो राय नहीं है कि निचली कोर्ट द्वारा संज्ञान लेने के बाद भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा संज्ञान को ख़ारिज करके जाँच एजेंसी बदला जा सकता है लेकिन जब सरकार के पास कोर्ट के संज्ञान को खारिज करने का शक्ति नहीं है तो क्या संज्ञान के बाद सरकार द्वारा जाँच एजेंसी बदला जा सकता है।इस विषय पर शायद ही कोई निर्णय किसी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की आयी है।हालाँकि मैं इस विषय पर विशेष शोध करने के बाद ही अंतिम राय दे पाऊंगा।