बिहार में नियोजित शिक्षकों द्वारा वेतनमान की मांग को लेकर विद्यालय में की जा रही तालाबंदी पर एक नियोजित शिक्षक द्वारा फेसबुक पर मुझसे मांगी गई वैचारिक व कानूनी मदद पर मेरा जवाब-
''मेरा विचार कुछ अलग है।मैं तालाबंदी,प्रदर्शन,धरना आदि पर विश्वास नहीं करता।कुछ ऐसा करे जिससे काम भी हो और हड़ताल भी।मतलब भूखे रहकर काम करे।यदि सही में मानदेय कम होने के कारण हम अपनी जरुरतों को पूरा नहीं कर सकते तो भूखे रहकर विद्यालय में पढ़ाना बेहतर है।विद्यालय में पढ़ाए भी और वही पर आमरण अनशन पर भी लगातार चौबीस घंटे बने रहे।बीच में उठकर घर या कहीं और नहीं जाना है।ये हुई विरोध का तरीका।
दूसरा,नियोजित शिक्षकों को वेतनमान मिलना तभी न्याय के हित में है जब छात्रवृति,पोशाक,मध्याह्न भोजन जैसी योजनाओं व शिक्षको को विद्यालय भवन निर्माण का ठेका देने जैसी नीति को बंद कर दिया जाए या इसका संचालन किसी दूसरे एजेंसी के द्वारा किया जाए।इन योजनाओं व ठेकाओं से ज्यादातर नियोजित शिक्षक भी जितनी उनकी मानदेय है,उतना या उससे ज्यादा गलत तरीके से आय प्राप्त कर लेते हैं व इन योजनाओं व ठेकाओं के कारण शिक्षकों द्वारा पढ़ाई कम जाती है और गलत माहौल का निर्माण ज्यादा किया जाता है।''
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