SALMAN KHAN'S ACQUITTAL:A LEGAL CRITICISM
मैंने सलमान खान को रिहा करने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट के जज AR Joshi द्वारा बताये गए सारे कारणों और अन्य सारे साक्ष्यों का अध्ध्यन किया।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट का कई अहम निर्णयों के विरुद्ध सलमान खान को बरी किया गया है।
1.बरी करने का एक कारण कमाल खान के बयान का अभियोजन द्वारा परीक्षण नहीं करना भी बनाया गया है।सेशन कोर्ट द्वारा कमाल खान के बयान का परीक्षण नहीं किये जाने को रिहा करने के लिए आधार बनाने के बजाय हाई कोर्ट को खुद कमाल खान के बयान का परीक्षण CrPC का धारा 391 के तहत करना चाहिए था और ऐसा निर्णय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टस द्वारा पहले ही दिया जा चुका है।अपीलीय अदालत का काम अभियोजन की खामियां गिनाना नहीं है,बल्कि अभियोजन की खामियां दूर करना है।
सन्दर्भ-1.Karnel Singh vs State Of Madhya Pradesh,1955(5) SCC 518 by the Supreme Court
2.Zahira Habibullah H Sheikh & Anr vs State Of Gujarat,2004 c CrLJ (SC) 524 by the Supreme Court
3.State of Maharashtra vs Vasant Shankar Mhasane & Anr,1993 CRI L.J. 1134 by the Bombay High Court
2.बॉम्बे हाई कोर्ट ने मृतक रविन्द्र पाटिल के बयान को Indian Evidence Act,1872 का धारा 33 के तहत इस आधार पर साक्ष्य मानने से मना किया कि जब धारा 304A IPC के तहत मजिस्ट्रेट के कोर्ट में ट्रायल चल रही थी,उस समय रविन्द्र पाटिल के बयान का Cross-Examination करने का मौका बचाव पक्ष को दिया गया लेकिन सेशन कोर्ट में धारा 304 भाग II के तहत मुकदमा चलने पर Cross-Examination करने का मौका Same Judicial Proceedings और Same Fact नहीं रहने के बावजूद नहीं मिला।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने The State vs Suraj Bali & Ors,1972 Cri L.J. 1223 के मामले में पहले मजिस्ट्रेट कोर्ट में ट्रायल और फिर सेशन ट्रायल का धारा लग जाने के कारण सेशन कोर्ट में ट्रायल चलने को Same Judicial Proceedings और Same Fact मानते हुए Indian Evidence Act का धारा 33 के तहत मृतक के बयान को साक्ष्य माना है।Bombay High Court ने सलमान खान को बचाने के लिए कानून का गलत विवेचना किया है।
3.Bombay High Court ने सूचक रविन्द्र पाटिल के बयान को इस आधार पर भी भरोसे के लायक नहीं समझा कि रविन्द्र पाटिल ने सलमान खान द्वारा शराब पीकर गाड़ी चलाने और सलमान खान को गाड़ी का गति कम करने के लिए उनके द्वारा कहे जाने का उल्लेख FIR में नहीं किया गया।
FIR कोई Encyclopedia नहीं है जिसमे एक एक विवरण रहना चाहिए।FIR में मुख्य बात जो संज्ञेय अपराध से जुड़ा हो (जैसे सलमान खान द्वारा धक्का मारना) अवश्य रहना चाहिए।Mental Trauma,Tension,Lack Of Memory,Fear,Pressure etc के कारण जरुरी नहीं है कि सूचक एक एक बात का उल्लेख FIR में करे और गवाह एक एक बात का ब्यौरा पुलिस को दे।
नीचे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टस के फैसले को देखे जिसमें कहा गया है कि FIR कोई Encyclopedia नहीं है आदि।
1.Rattan Singh vs State Of Himachal Pradesh,AIR 1997 SC 768, by the Supreme Court
2.Mani vs State of Kerala,1987 Cri L.J. 1965,by the Kerala High Court
3.Kirender Sarkar & Ors vs State of Assam,AIR 2009 SC 2513,by the Supreme Court
4.Rotash vs State of Rajasthan,(2006) 12 SCC 64,by the Supreme Court
5.Subhash Kumar vs State Of Uttarakhand,AIR 2009 SC 2490 by the Supreme Court
6.Appabhai & Ors vs State of Gujarat,AIR 1998 SC 696,by the Supreme Court
4.कोर्ट ने सूचक/अभियोजन गवाहों के बयान में Minor Omissions/ Minor Contradictions/Minor Improvements को Material Omissions/Material Contradictions/Material Improvements बना दिया।यदि रविन्द्र पाटिल ने शराब पीने और गति कम करने के बारे में FIR में नहीं बोला तो ये Material Omissions कैसे हुआ?उन्होंने धक्का मारने के बारे में तो बोला था।इसी तरह की omissions/contradictions/improvements अन्य अभियोजन साक्षियों के बयान में भी थी जो Minor ही थी।
नीचे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखे जिसमें Minor Omissions/Minor Contradictions/Minor Improvements रहने पर अभियुक्त को सजा सुनाने के बारे में कहा गया है।
1.Ashok Debbarma @ Achak Debbarma vs State Of Tripura,(2014) 4 SCR 288
2.Tahsildar Singh & Anr vs the State Of Uttarpradesh,AIR 1959 SC 1012
3.Shashidhar Purandhar Hegde & Anr vs State of Karnataka,(2004) 12 SCC 492
4.State of Uttarpradesh vs Naresh & Anr,(2011) 4 SCC 324
5.Bihari Nath Goswami vs Shiv Kumar Singh,(2004) 9 SCC 186
6.A.Shankar vs State of Karnataka,AIR 2011 SC 2302
7.Leela Ram(dead) through Duli Chand vs State Of Haryana & Anr,(1999) 9 SCC 525
8.Rammi alias Rameshwar vs State Of Madhyapradesh,(1999) 8 SCC 649
9.State Of Uttarpradesh vs Anil Singh,AIR 1988 SC 1998
10.Bhoginbhai vs State Of Gujarat,AIR 1988 SC 753
11.Mritunjay Biswas vs Pranab @ Kunti Biswas & Anr,Criminal Appeal No.378 of 2007
12.Appabhai & Ors vs State of Gujarat ,AIR 1998 SC 696
13.State of Rajasthan vs Smt Kalki & Anr,AIR 1981 SC 1390
5.FALSUS IN UNO,FALSUS IN OMNIBUS
(False in onething,false in everything)
यदि रविन्द्र पाटिल या किसी भी गवाह के बयान में Omissions/Contradictions/Improvements etc ,जो Material ना हो यानि Minor हो, को झूठ मान लिया जाये तो इस आधार पर उस गवाह का सारा बयान ही झूठा नहीं हो जाता।सिर्फ Omissions/Contradictions/Improvements के स्तर तक ही झूठ हो सकता है।Falsus in Uno,Falsus in Omnibus,इस सिद्धांत की भारतीय विधि-शास्त्र में मान्यता नहीं है,ऐसा सुप्रीम कोर्ट के निम्न निर्णयों में कहा गया है-
1.Nisar Ali vs State Of Uttarpradesh,AIR 1957 SC 366
2.Krishna Mochi vs State of Bihar,2002 CRI L.J.2645
3.Sucha Singh & Anr vs State Of Punjab,2003 CRI L.J. 3876
Bombay High Court ने साक्षियों के बयान के कुछ भाग को झूठा मानकर सारे बयान को ही खारिज कर दिया है।Supreme Court के निम्न निर्णयों में झूठ और सच को अलग अलग करके तदनुसार अभियुक्त को सजा देने के बारे में कहा गया है-
1.Sohrab S/O-Beli Nayata & Anr vs State of Madhyapradesh,(1972) 3 SCC 751
2.Ugar Ahir & Ors vs State Of Bihar,AIR 1965 SC 277
3.Zwinglee Ariel vs State Of Madhyapradesh,AIR 1954 SC 15
4.Balaka Singh & Ors vs State Of Punjab,AIR 1975 SC 1962
6.ड्राईवर अशोक सिंह के बयान को Minor Improvements/Minor Omissions नहीं माना जा सकता है बल्कि इसे Material Improvements/Material Omissions माना जाना चाहिए।जब इनसे Cross-Examination में पूछा गया कि आपने पहले ये क्यों नहीं बताया कि गाड़ी सलमान नहीं आप चला रहे थे तो इन्होंने कहा कि इससे पहले उनके पास ऐसा कहने की सूझ नहीं थी और सलमान के पिता सलीम खान ने उन्हें कोर्ट में जाकर सत्य बोलने कहा है इसलिए वो कोर्ट में बोलने आये हैं।जिसे पहले बोलने की सूझ नहीं थी और किसी के द्वारा सूझ देने पर बोल रहा हो,उसका गवाही के आधार पर संदेह कैसे किया जा सकता है कि गाड़ी सलमान नहीं चला रहे थे,ये सवाल जज AR Joshi को घेरकर जनता द्वारा उनसे पूछा जाना चाहिए।
अशोक सिंह द्वारा इतना बड़ा तथ्य को इतने दिन तक छिपाया गया और ट्रायल के आखिरी समय में कहा गया,इसलिए इसे Material Omission before Police/Material Improvement before Court माना जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के निम्न निर्णयों में Material Omissions/Material Improvements वाले साक्षी के बयान को सिरे से खारिज करने कहा गया है-
1.Shyamal Ghosh vs State Of West Bengal,2013(1) SCJ 61
2.State vs Saravanan (2008) 17 SCC 587,AIR 2009 SC 152
3.Arumugam vs State,AIR 2009 SC 331
4.Mahendra Pratap Singh vs State Of Uttarpradesh,(2009) 3 SCC(Cri) 1352
5.Dr Sunil Kumar Sambhudayal Gupta vs State of Maharashtra,(2010) 13 SCC 657
6.State of Uttarpradesh vs Naresh & Anr,(2011) 4 SCC 324
7.A Shankar vs State Of Karnataka,AIR 2011 SC 2302
8.State Of Rajasthan vs Rajendra Singh,AIR 1998 SC 2554
9.Vijay alias Chinee vs State Of Madhyapradesh,(2010) 8 SCC 191
10.Brahm Swaroop & Anr vs State Of Uttarpradesh,AIR 2011 SC 280
कोलकाता हाइकोर्ट के इस निर्णय में भी ऐसा ही कहा गया है-
11.Shyama Charan Ghosh vs State of West Bengal & Ors ,CRR No.3325 of 2007
हाइकोर्ट ने जाँच अधिकारी Inspector के उस गवाही के आधार पर भी सलमान द्वारा गाड़ी नहीं चलाने का Reasonable Doubt प्रकट किया जिसमें जाँच अधिकारी ने कहा कि उन्होंने ड्राईवर अशोक सिंह का बयान लिया लेकिन रिकॉर्ड नहीं किया।यदि अशोक सिंह ने जाँच अधिकारी के सामने सलमान के बजाय उनके द्वारा गाड़ी चलाए जाने का बयान दिया होता तो जाँच अधिकारी ने जरूर रिकॉर्ड किया होता।अशोक सिंह द्वारा Cross-Examination में दिए गए बयान से भी स्पष्ट है कि उन्होंने सलमान के बजाय उनके द्वारा गाड़ी चलाने के बारे में पहले किसी के सामने नहीं बोला है क्योंकि सलीम खान के कहने पर अब बोल रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय Zahira Habibullah H Sheikh vs State of Gujarat,2004 CrLJ 2050 (SC) के अनुसार जाँच अधिकारी धारा 161 CrPC के तहत बयान रिकॉर्ड करने के लिए बाध्य नहीं है,इसलिए बॉम्बे हाई कोर्ट ने सिर्फ सलमान खान को बचाने की नियत से एक आधार ये भी बना डाला है।
7.हाइकोर्ट द्वारा जबरदस्ती शराब वाली बिल को स्वीकार नहीं किया गया।यदि मेनेजर के बयान को मान लिया जाए कि सलमान और उनके साथी खड़े थे,फिर भी टेबल नं के अनुसार बिल रहने से ये साबित नहीं होता कि जो व्यक्ति बार में खड़े हो उनका टेबल नं वाला बिल नहीं हो सकता जैसा हाइ कोर्ट ने साबित किया है।बिल तो टेबल नं के अनुसार ही दिया जायेगा चाहे कोई व्यक्ति उस टेबल पर बैठकर पीये या दूसरे जगह खड़े होकर पीये।दिनांक 28/9/2002 को एक बजे रात में बार से जाने भर से ये नहीं कहा जा सकता कि बिल भी 28/9/2002 का ही होना चाहिए क्योकि बारह बजे से पहले यानि 27/9/2002 को भी बिल कटाया जा सकता है।जरुरी नहीं है कि बार छोड़कर जाते वक्त ही बिल कटाया जाये।ये भी हो सकता है कि सलमान और उनके साथी ने 12 बजे से पहले यानि 27/9/2002 को ही शराब आदि खरीद लिया हो और बिल कटा लिया हो और पी भी लिया हो और बातचीत करने के लिए 1 बजे तक वहाँ ठहरे हो या 1 बजे तक पी रहा हो और बात कर रहा हो लेकिन बिल 1-2 घंटा पहले ही कटा लिया हो।
8.हाइकोर्ट द्वारा ब्लड अल्कोहल टेस्ट को लेकर निकाला गया निष्कर्ष विरोधाभासी है।हाइकोर्ट ने 6 ml ब्लड सैंपल लिए जाने के बावजूद Chemical Analyser को 4 ml ब्लड सैंपल भेजे जाने पर कहा कि ब्लड सैंपल बदले जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।साथ ही ये भी कहा कि 2 दिनों तक ब्लड सैंपल को थाना में बगैर रेफ्रीजिरेटर का रूम टेम्परेचर पर रखे जाने के कारण ब्लड सैंपल का Contaminated और Fermented होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।जब ब्लड सैंपल को बदल दिए जाने के कारण ब्लड में अल्होकल पाया गया तो फिर दो दिनों तक ब्लड सैंपल रखे जाने के कारण ब्लड का Contaminated और Fermented होने के कारण अल्कोहल पाये जाने की बात कहाँ से आ गयी?आखिर हुआ क्या था?ब्लड सैंपल बदल दिया गया या ब्लड सैंपल Contaminated और Fermented हो गया?सलमान खान को बचाने की नियत से हाइकोर्ट हरेक तरह से अभियोजन के सबूतों को गलत बताने के चक्कर में विरोधाभासी निष्कर्ष निकाल दिया।
9.हाइकोर्ट ने खुद माना है कि सलमान खान की गाड़ी से धक्का लगने पर ही नुरुल्ला शरीफ की मौत हुई और चार अन्य घायल हुए।मतलब क्रेन से गाड़ी निकाले जाने के क्रम में गाड़ी फिसल जाने के कारण मौत की डिफेन्स की थ्योरी को हाइकोर्ट ने नहीं माना।फिर गाड़ी चला कौन रहा था?चाहे शराब पीकर चलाये या ना चलाये,तेज गति से चलाये या ना चलाये और गाड़ी की टायर पहले फटे या बाद में,जो गाड़ी चला रहा था वो IPC का धारा 304 भाग II ,नहीं तो कम से कम IPC का धारा 304A के तहत दोषी था जिसके तहत सजा होना चाहिए था।यदि मान लिया जाये कि टायर पहले ही फट गयी तो फटी क्यों?ऐसा टायर लगाकर रखा ही क्यों था?
ड्राईवर अशोक सिंह का बयान भरोसे के लायक नहीं है कि वो गाड़ी चला रहा था फिर भी हाइकोर्ट ने Reasonable संदेह किया कि सलमान खान गाड़ी नहीं चला रहे थे।कमाल खान भी गाड़ी में थे लेकिन उनका बयान लिया नहीं गया।तो क्या ऐसी अवस्था में किसी निर्दोष को सजा ना हो या हजार अपराधी बच जाये लेकिन किसी निर्दोष को सजा ना हो,ये मानकर सलमान खान या किसी को सजा ना दिया जाये।
भारतीय विधि-शास्त्र में अब इसकी बिल्कुल मान्यता नहीं है कि हजार अपराधी बच जाये लेकिन एक भी निर्दोष को सजा ना हो।भारतीय विधि-शास्त्र अब ये मानता है कि ना निर्दोष को सजा हो और ना ही अपराधी सजा से बच पाये।
सुप्रीम कोर्ट के निम्न फैसले में कहा गया है कि ना ही निर्दोष को सजा हो और ना ही अपराधी बच पाये-
1.Gurbachan Singh vs Satpal Singh & Ors,AIR 1990 SC 209
2.State of Uttarpradesh vs Anil Singh,AIR 1988 SC 1998
3.Inder Singh & Anr vs State(Delhi Administration),AIR 1978 SC 1091
4.Shivaji Sahebrao Bobade vs State Of Maharashtra,1974(1) SCR 489
5.State Of Uttarpradesh vs Krishna Gopal,AIR 1988 SC 2154
6.Gangadhar Behera & Ors vs State of Orissa,2002(7) Supreme 276
7.Sucha Singh & Anr vs State Of Punjab,2003 Cri L.J.3876
8.State Of Uttarpradesh vs Ram Veer Singh & Anr,2007(6) Supreme 164
Privy Council के इस निर्णय में भी ऐसा कहा गया है-
9.Per Viscount Simon in Stirland vs Director of Prosecution,1944 AC (PC) 315
10.इस केस में सलमान खान को Reasonable Doubts के बजाय Imaginary Doubts/Trivial Doubts के आधार पर बरी किया गया है।ड्राईवर अशोक सिंह द्वारा गाड़ी चलाये जाने के समर्थन में उसके बयान के सिवाय कोई दूसरा साक्ष्य नहीं है।यदि अशोक सिंह के बयान के आधार पर उसे आरोपी बनाया जाये तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 24 के तहत उसके बयान का साक्ष्य के तौर पर प्रयोग किया ही नहीं जा सकता क्योकि सलीम खान ने अशोक को बयान देने के लिए Induce किया है और ये उसके Cross-Examination में दिए बयान से भी सिद्ध होता है।यदि बगैर आरोपी बनाये हुए सिर्फ गवाह के तौर पर देखा जाये तो Indian Evidence Act,1872 की धारा 155(2) के तहत Induced Witness के कारण अशोक सिंह की गवाही ख़ारिज कर दिया जाना चाहिए था।रही बात कमाल खान का Non-Examination की तो पुलिस और Prosecution ने जानबूझकर कमाल खान का बयान दर्ज नहीं करवाया क्योकि कमाल खान को या तो सलमान खान या अशोक सिंह के खिलाफ बोलना पड़ता।ऐसी अवस्था में हाइकोर्ट को खुद CrPC का धारा 391 के तहत कमाल खान का परीक्षण करना चाहिए था।यदि कमाल खान अशोक सिंह के खिलाफ बोलते तो इसे Indian Evidence Act,1872 की धारा 155(2) के तहत Induced Witness मानकर ख़ारिज कर देना चाहिए था क्योकि यदि अशोक सिंह गाड़ी चला रहे होते तो कमाल खान ये बात काफी पहले बोल दिए होते और सलमान खान भी धारा 313 CrPC के तहत अपने बयान में ना सिर्फ अपने खिलाफ आरोप को नकारते बल्कि अशोक सिंह का नाम भी बोलते।यदि कमाल खान सलमान के खिलाफ बोलते तो इस बयान को मान लेना चाहिए था क्योकि अन्य गवाह भी सलमान का नाम बोल रहे हैं और इतने दिन तक ये सलमान का नाम बचाने की नियत से नहीं बोल पाये क्योकि दोनों बॉलीवुड में काम करते है और रिश्तेदार हैं।ये तो हुई कमाल खान का बयान लेने के बाद सलमान खान को सजा देने का सही तरीका।
लेकिन कमाल का बयान लिए बगैर भी सलमान खान को सजा दिया जा सकता था क्योकि अन्य कई सारे साक्ष्य सलमान के खिलाफ हैं।यदि अन्य सारे साक्ष्य मौजूद हो तो किसी गवाह का परीक्षण किये बगैर भी सजा दिया जा सकता है।
सन्दर्भ के तौर पर देखे 2006 AIR SCW 4186(A) और Appabhai & Ors vs State of Gujarat,AIR 1988 SC 696 में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय।
कमाल खान का परीक्षण होने पर वो क्या बोलते या क्या नहीं बोलते,ये तथ्य से परे एक Imaginary Doubt है।ऐसा नहीं है कि कमाल खान के बयान से सलमान को निर्दोष माना जा सकता था जैसा मैंने ऊपर लिखा है।इसलिए कमाल खान के बयान के आधार पर सलमान खान द्वारा गाड़ी नहीं चलाने का Reasonable Doubts नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट के इन निर्णयों में Reasonable Doubts और Imaginary Doubts/Trivial Doubts में फर्क करने कहा गया है और Reasonable Doubts होने पर Benefit of Doubt देकर बरी करने और Imaginary Doubts/Trivial Doubts होने पर सजा देने कहा गया है-
1.State of Uttarpradesh vs Krishna Gopal & Anr,AIR 1988 SC 2154
2.Gurbachan Singh vs Satpal Singh & Ors,AIR 1990 SC 209
3.Krishnan vs State,(2003) 7 SCC 56
4.Velson & Anr vs State Of Kerala,(2008) 12 SCC 241
5.Bhaskar Ramappa Madar & Ors vs State of Karnataka (2009) 11 SCC 690
6.State of Uttarpradesh vs Ashok Kumar Srivastava,AIR 1992 SC 209
7.Inder Singh & Anr vs State (Delhi Administration),AIR 1978 SC 1091
8.State Of Uttarpradesh vs Anil Singh,AIR 1988 SC 1998
9.Shivaji Sahebrao Bobade vs State of Maharashtra,1974(1) SCR 489
एक निर्णय केरल हाइकोर्ट का भी है-
10.State of Kerala vs Narayan Bhaskaran & Ors,1992 Cri L.J. 238
अतः सलमान खान को सजा होना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार अपील करे और सुप्रीम कोर्ट हाइकोर्ट के फैसला को ख़ारिज कर सलमान खान को सजा दे।
मैंने सलमान खान को रिहा करने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट के जज AR Joshi द्वारा बताये गए सारे कारणों और अन्य सारे साक्ष्यों का अध्ध्यन किया।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट का कई अहम निर्णयों के विरुद्ध सलमान खान को बरी किया गया है।
1.बरी करने का एक कारण कमाल खान के बयान का अभियोजन द्वारा परीक्षण नहीं करना भी बनाया गया है।सेशन कोर्ट द्वारा कमाल खान के बयान का परीक्षण नहीं किये जाने को रिहा करने के लिए आधार बनाने के बजाय हाई कोर्ट को खुद कमाल खान के बयान का परीक्षण CrPC का धारा 391 के तहत करना चाहिए था और ऐसा निर्णय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टस द्वारा पहले ही दिया जा चुका है।अपीलीय अदालत का काम अभियोजन की खामियां गिनाना नहीं है,बल्कि अभियोजन की खामियां दूर करना है।
सन्दर्भ-1.Karnel Singh vs State Of Madhya Pradesh,1955(5) SCC 518 by the Supreme Court
2.Zahira Habibullah H Sheikh & Anr vs State Of Gujarat,2004 c CrLJ (SC) 524 by the Supreme Court
3.State of Maharashtra vs Vasant Shankar Mhasane & Anr,1993 CRI L.J. 1134 by the Bombay High Court
2.बॉम्बे हाई कोर्ट ने मृतक रविन्द्र पाटिल के बयान को Indian Evidence Act,1872 का धारा 33 के तहत इस आधार पर साक्ष्य मानने से मना किया कि जब धारा 304A IPC के तहत मजिस्ट्रेट के कोर्ट में ट्रायल चल रही थी,उस समय रविन्द्र पाटिल के बयान का Cross-Examination करने का मौका बचाव पक्ष को दिया गया लेकिन सेशन कोर्ट में धारा 304 भाग II के तहत मुकदमा चलने पर Cross-Examination करने का मौका Same Judicial Proceedings और Same Fact नहीं रहने के बावजूद नहीं मिला।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने The State vs Suraj Bali & Ors,1972 Cri L.J. 1223 के मामले में पहले मजिस्ट्रेट कोर्ट में ट्रायल और फिर सेशन ट्रायल का धारा लग जाने के कारण सेशन कोर्ट में ट्रायल चलने को Same Judicial Proceedings और Same Fact मानते हुए Indian Evidence Act का धारा 33 के तहत मृतक के बयान को साक्ष्य माना है।Bombay High Court ने सलमान खान को बचाने के लिए कानून का गलत विवेचना किया है।
3.Bombay High Court ने सूचक रविन्द्र पाटिल के बयान को इस आधार पर भी भरोसे के लायक नहीं समझा कि रविन्द्र पाटिल ने सलमान खान द्वारा शराब पीकर गाड़ी चलाने और सलमान खान को गाड़ी का गति कम करने के लिए उनके द्वारा कहे जाने का उल्लेख FIR में नहीं किया गया।
FIR कोई Encyclopedia नहीं है जिसमे एक एक विवरण रहना चाहिए।FIR में मुख्य बात जो संज्ञेय अपराध से जुड़ा हो (जैसे सलमान खान द्वारा धक्का मारना) अवश्य रहना चाहिए।Mental Trauma,Tension,Lack Of Memory,Fear,Pressure etc के कारण जरुरी नहीं है कि सूचक एक एक बात का उल्लेख FIR में करे और गवाह एक एक बात का ब्यौरा पुलिस को दे।
नीचे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टस के फैसले को देखे जिसमें कहा गया है कि FIR कोई Encyclopedia नहीं है आदि।
1.Rattan Singh vs State Of Himachal Pradesh,AIR 1997 SC 768, by the Supreme Court
2.Mani vs State of Kerala,1987 Cri L.J. 1965,by the Kerala High Court
3.Kirender Sarkar & Ors vs State of Assam,AIR 2009 SC 2513,by the Supreme Court
4.Rotash vs State of Rajasthan,(2006) 12 SCC 64,by the Supreme Court
5.Subhash Kumar vs State Of Uttarakhand,AIR 2009 SC 2490 by the Supreme Court
6.Appabhai & Ors vs State of Gujarat,AIR 1998 SC 696,by the Supreme Court
4.कोर्ट ने सूचक/अभियोजन गवाहों के बयान में Minor Omissions/ Minor Contradictions/Minor Improvements को Material Omissions/Material Contradictions/Material Improvements बना दिया।यदि रविन्द्र पाटिल ने शराब पीने और गति कम करने के बारे में FIR में नहीं बोला तो ये Material Omissions कैसे हुआ?उन्होंने धक्का मारने के बारे में तो बोला था।इसी तरह की omissions/contradictions/improvements अन्य अभियोजन साक्षियों के बयान में भी थी जो Minor ही थी।
नीचे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखे जिसमें Minor Omissions/Minor Contradictions/Minor Improvements रहने पर अभियुक्त को सजा सुनाने के बारे में कहा गया है।
1.Ashok Debbarma @ Achak Debbarma vs State Of Tripura,(2014) 4 SCR 288
2.Tahsildar Singh & Anr vs the State Of Uttarpradesh,AIR 1959 SC 1012
3.Shashidhar Purandhar Hegde & Anr vs State of Karnataka,(2004) 12 SCC 492
4.State of Uttarpradesh vs Naresh & Anr,(2011) 4 SCC 324
5.Bihari Nath Goswami vs Shiv Kumar Singh,(2004) 9 SCC 186
6.A.Shankar vs State of Karnataka,AIR 2011 SC 2302
7.Leela Ram(dead) through Duli Chand vs State Of Haryana & Anr,(1999) 9 SCC 525
8.Rammi alias Rameshwar vs State Of Madhyapradesh,(1999) 8 SCC 649
9.State Of Uttarpradesh vs Anil Singh,AIR 1988 SC 1998
10.Bhoginbhai vs State Of Gujarat,AIR 1988 SC 753
11.Mritunjay Biswas vs Pranab @ Kunti Biswas & Anr,Criminal Appeal No.378 of 2007
12.Appabhai & Ors vs State of Gujarat ,AIR 1998 SC 696
13.State of Rajasthan vs Smt Kalki & Anr,AIR 1981 SC 1390
5.FALSUS IN UNO,FALSUS IN OMNIBUS
(False in onething,false in everything)
यदि रविन्द्र पाटिल या किसी भी गवाह के बयान में Omissions/Contradictions/Improvements etc ,जो Material ना हो यानि Minor हो, को झूठ मान लिया जाये तो इस आधार पर उस गवाह का सारा बयान ही झूठा नहीं हो जाता।सिर्फ Omissions/Contradictions/Improvements के स्तर तक ही झूठ हो सकता है।Falsus in Uno,Falsus in Omnibus,इस सिद्धांत की भारतीय विधि-शास्त्र में मान्यता नहीं है,ऐसा सुप्रीम कोर्ट के निम्न निर्णयों में कहा गया है-
1.Nisar Ali vs State Of Uttarpradesh,AIR 1957 SC 366
2.Krishna Mochi vs State of Bihar,2002 CRI L.J.2645
3.Sucha Singh & Anr vs State Of Punjab,2003 CRI L.J. 3876
Bombay High Court ने साक्षियों के बयान के कुछ भाग को झूठा मानकर सारे बयान को ही खारिज कर दिया है।Supreme Court के निम्न निर्णयों में झूठ और सच को अलग अलग करके तदनुसार अभियुक्त को सजा देने के बारे में कहा गया है-
1.Sohrab S/O-Beli Nayata & Anr vs State of Madhyapradesh,(1972) 3 SCC 751
2.Ugar Ahir & Ors vs State Of Bihar,AIR 1965 SC 277
3.Zwinglee Ariel vs State Of Madhyapradesh,AIR 1954 SC 15
4.Balaka Singh & Ors vs State Of Punjab,AIR 1975 SC 1962
6.ड्राईवर अशोक सिंह के बयान को Minor Improvements/Minor Omissions नहीं माना जा सकता है बल्कि इसे Material Improvements/Material Omissions माना जाना चाहिए।जब इनसे Cross-Examination में पूछा गया कि आपने पहले ये क्यों नहीं बताया कि गाड़ी सलमान नहीं आप चला रहे थे तो इन्होंने कहा कि इससे पहले उनके पास ऐसा कहने की सूझ नहीं थी और सलमान के पिता सलीम खान ने उन्हें कोर्ट में जाकर सत्य बोलने कहा है इसलिए वो कोर्ट में बोलने आये हैं।जिसे पहले बोलने की सूझ नहीं थी और किसी के द्वारा सूझ देने पर बोल रहा हो,उसका गवाही के आधार पर संदेह कैसे किया जा सकता है कि गाड़ी सलमान नहीं चला रहे थे,ये सवाल जज AR Joshi को घेरकर जनता द्वारा उनसे पूछा जाना चाहिए।
अशोक सिंह द्वारा इतना बड़ा तथ्य को इतने दिन तक छिपाया गया और ट्रायल के आखिरी समय में कहा गया,इसलिए इसे Material Omission before Police/Material Improvement before Court माना जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के निम्न निर्णयों में Material Omissions/Material Improvements वाले साक्षी के बयान को सिरे से खारिज करने कहा गया है-
1.Shyamal Ghosh vs State Of West Bengal,2013(1) SCJ 61
2.State vs Saravanan (2008) 17 SCC 587,AIR 2009 SC 152
3.Arumugam vs State,AIR 2009 SC 331
4.Mahendra Pratap Singh vs State Of Uttarpradesh,(2009) 3 SCC(Cri) 1352
5.Dr Sunil Kumar Sambhudayal Gupta vs State of Maharashtra,(2010) 13 SCC 657
6.State of Uttarpradesh vs Naresh & Anr,(2011) 4 SCC 324
7.A Shankar vs State Of Karnataka,AIR 2011 SC 2302
8.State Of Rajasthan vs Rajendra Singh,AIR 1998 SC 2554
9.Vijay alias Chinee vs State Of Madhyapradesh,(2010) 8 SCC 191
10.Brahm Swaroop & Anr vs State Of Uttarpradesh,AIR 2011 SC 280
कोलकाता हाइकोर्ट के इस निर्णय में भी ऐसा ही कहा गया है-
11.Shyama Charan Ghosh vs State of West Bengal & Ors ,CRR No.3325 of 2007
हाइकोर्ट ने जाँच अधिकारी Inspector के उस गवाही के आधार पर भी सलमान द्वारा गाड़ी नहीं चलाने का Reasonable Doubt प्रकट किया जिसमें जाँच अधिकारी ने कहा कि उन्होंने ड्राईवर अशोक सिंह का बयान लिया लेकिन रिकॉर्ड नहीं किया।यदि अशोक सिंह ने जाँच अधिकारी के सामने सलमान के बजाय उनके द्वारा गाड़ी चलाए जाने का बयान दिया होता तो जाँच अधिकारी ने जरूर रिकॉर्ड किया होता।अशोक सिंह द्वारा Cross-Examination में दिए गए बयान से भी स्पष्ट है कि उन्होंने सलमान के बजाय उनके द्वारा गाड़ी चलाने के बारे में पहले किसी के सामने नहीं बोला है क्योंकि सलीम खान के कहने पर अब बोल रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय Zahira Habibullah H Sheikh vs State of Gujarat,2004 CrLJ 2050 (SC) के अनुसार जाँच अधिकारी धारा 161 CrPC के तहत बयान रिकॉर्ड करने के लिए बाध्य नहीं है,इसलिए बॉम्बे हाई कोर्ट ने सिर्फ सलमान खान को बचाने की नियत से एक आधार ये भी बना डाला है।
7.हाइकोर्ट द्वारा जबरदस्ती शराब वाली बिल को स्वीकार नहीं किया गया।यदि मेनेजर के बयान को मान लिया जाए कि सलमान और उनके साथी खड़े थे,फिर भी टेबल नं के अनुसार बिल रहने से ये साबित नहीं होता कि जो व्यक्ति बार में खड़े हो उनका टेबल नं वाला बिल नहीं हो सकता जैसा हाइ कोर्ट ने साबित किया है।बिल तो टेबल नं के अनुसार ही दिया जायेगा चाहे कोई व्यक्ति उस टेबल पर बैठकर पीये या दूसरे जगह खड़े होकर पीये।दिनांक 28/9/2002 को एक बजे रात में बार से जाने भर से ये नहीं कहा जा सकता कि बिल भी 28/9/2002 का ही होना चाहिए क्योकि बारह बजे से पहले यानि 27/9/2002 को भी बिल कटाया जा सकता है।जरुरी नहीं है कि बार छोड़कर जाते वक्त ही बिल कटाया जाये।ये भी हो सकता है कि सलमान और उनके साथी ने 12 बजे से पहले यानि 27/9/2002 को ही शराब आदि खरीद लिया हो और बिल कटा लिया हो और पी भी लिया हो और बातचीत करने के लिए 1 बजे तक वहाँ ठहरे हो या 1 बजे तक पी रहा हो और बात कर रहा हो लेकिन बिल 1-2 घंटा पहले ही कटा लिया हो।
8.हाइकोर्ट द्वारा ब्लड अल्कोहल टेस्ट को लेकर निकाला गया निष्कर्ष विरोधाभासी है।हाइकोर्ट ने 6 ml ब्लड सैंपल लिए जाने के बावजूद Chemical Analyser को 4 ml ब्लड सैंपल भेजे जाने पर कहा कि ब्लड सैंपल बदले जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।साथ ही ये भी कहा कि 2 दिनों तक ब्लड सैंपल को थाना में बगैर रेफ्रीजिरेटर का रूम टेम्परेचर पर रखे जाने के कारण ब्लड सैंपल का Contaminated और Fermented होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।जब ब्लड सैंपल को बदल दिए जाने के कारण ब्लड में अल्होकल पाया गया तो फिर दो दिनों तक ब्लड सैंपल रखे जाने के कारण ब्लड का Contaminated और Fermented होने के कारण अल्कोहल पाये जाने की बात कहाँ से आ गयी?आखिर हुआ क्या था?ब्लड सैंपल बदल दिया गया या ब्लड सैंपल Contaminated और Fermented हो गया?सलमान खान को बचाने की नियत से हाइकोर्ट हरेक तरह से अभियोजन के सबूतों को गलत बताने के चक्कर में विरोधाभासी निष्कर्ष निकाल दिया।
9.हाइकोर्ट ने खुद माना है कि सलमान खान की गाड़ी से धक्का लगने पर ही नुरुल्ला शरीफ की मौत हुई और चार अन्य घायल हुए।मतलब क्रेन से गाड़ी निकाले जाने के क्रम में गाड़ी फिसल जाने के कारण मौत की डिफेन्स की थ्योरी को हाइकोर्ट ने नहीं माना।फिर गाड़ी चला कौन रहा था?चाहे शराब पीकर चलाये या ना चलाये,तेज गति से चलाये या ना चलाये और गाड़ी की टायर पहले फटे या बाद में,जो गाड़ी चला रहा था वो IPC का धारा 304 भाग II ,नहीं तो कम से कम IPC का धारा 304A के तहत दोषी था जिसके तहत सजा होना चाहिए था।यदि मान लिया जाये कि टायर पहले ही फट गयी तो फटी क्यों?ऐसा टायर लगाकर रखा ही क्यों था?
ड्राईवर अशोक सिंह का बयान भरोसे के लायक नहीं है कि वो गाड़ी चला रहा था फिर भी हाइकोर्ट ने Reasonable संदेह किया कि सलमान खान गाड़ी नहीं चला रहे थे।कमाल खान भी गाड़ी में थे लेकिन उनका बयान लिया नहीं गया।तो क्या ऐसी अवस्था में किसी निर्दोष को सजा ना हो या हजार अपराधी बच जाये लेकिन किसी निर्दोष को सजा ना हो,ये मानकर सलमान खान या किसी को सजा ना दिया जाये।
भारतीय विधि-शास्त्र में अब इसकी बिल्कुल मान्यता नहीं है कि हजार अपराधी बच जाये लेकिन एक भी निर्दोष को सजा ना हो।भारतीय विधि-शास्त्र अब ये मानता है कि ना निर्दोष को सजा हो और ना ही अपराधी सजा से बच पाये।
सुप्रीम कोर्ट के निम्न फैसले में कहा गया है कि ना ही निर्दोष को सजा हो और ना ही अपराधी बच पाये-
1.Gurbachan Singh vs Satpal Singh & Ors,AIR 1990 SC 209
2.State of Uttarpradesh vs Anil Singh,AIR 1988 SC 1998
3.Inder Singh & Anr vs State(Delhi Administration),AIR 1978 SC 1091
4.Shivaji Sahebrao Bobade vs State Of Maharashtra,1974(1) SCR 489
5.State Of Uttarpradesh vs Krishna Gopal,AIR 1988 SC 2154
6.Gangadhar Behera & Ors vs State of Orissa,2002(7) Supreme 276
7.Sucha Singh & Anr vs State Of Punjab,2003 Cri L.J.3876
8.State Of Uttarpradesh vs Ram Veer Singh & Anr,2007(6) Supreme 164
Privy Council के इस निर्णय में भी ऐसा कहा गया है-
9.Per Viscount Simon in Stirland vs Director of Prosecution,1944 AC (PC) 315
10.इस केस में सलमान खान को Reasonable Doubts के बजाय Imaginary Doubts/Trivial Doubts के आधार पर बरी किया गया है।ड्राईवर अशोक सिंह द्वारा गाड़ी चलाये जाने के समर्थन में उसके बयान के सिवाय कोई दूसरा साक्ष्य नहीं है।यदि अशोक सिंह के बयान के आधार पर उसे आरोपी बनाया जाये तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 24 के तहत उसके बयान का साक्ष्य के तौर पर प्रयोग किया ही नहीं जा सकता क्योकि सलीम खान ने अशोक को बयान देने के लिए Induce किया है और ये उसके Cross-Examination में दिए बयान से भी सिद्ध होता है।यदि बगैर आरोपी बनाये हुए सिर्फ गवाह के तौर पर देखा जाये तो Indian Evidence Act,1872 की धारा 155(2) के तहत Induced Witness के कारण अशोक सिंह की गवाही ख़ारिज कर दिया जाना चाहिए था।रही बात कमाल खान का Non-Examination की तो पुलिस और Prosecution ने जानबूझकर कमाल खान का बयान दर्ज नहीं करवाया क्योकि कमाल खान को या तो सलमान खान या अशोक सिंह के खिलाफ बोलना पड़ता।ऐसी अवस्था में हाइकोर्ट को खुद CrPC का धारा 391 के तहत कमाल खान का परीक्षण करना चाहिए था।यदि कमाल खान अशोक सिंह के खिलाफ बोलते तो इसे Indian Evidence Act,1872 की धारा 155(2) के तहत Induced Witness मानकर ख़ारिज कर देना चाहिए था क्योकि यदि अशोक सिंह गाड़ी चला रहे होते तो कमाल खान ये बात काफी पहले बोल दिए होते और सलमान खान भी धारा 313 CrPC के तहत अपने बयान में ना सिर्फ अपने खिलाफ आरोप को नकारते बल्कि अशोक सिंह का नाम भी बोलते।यदि कमाल खान सलमान के खिलाफ बोलते तो इस बयान को मान लेना चाहिए था क्योकि अन्य गवाह भी सलमान का नाम बोल रहे हैं और इतने दिन तक ये सलमान का नाम बचाने की नियत से नहीं बोल पाये क्योकि दोनों बॉलीवुड में काम करते है और रिश्तेदार हैं।ये तो हुई कमाल खान का बयान लेने के बाद सलमान खान को सजा देने का सही तरीका।
लेकिन कमाल का बयान लिए बगैर भी सलमान खान को सजा दिया जा सकता था क्योकि अन्य कई सारे साक्ष्य सलमान के खिलाफ हैं।यदि अन्य सारे साक्ष्य मौजूद हो तो किसी गवाह का परीक्षण किये बगैर भी सजा दिया जा सकता है।
सन्दर्भ के तौर पर देखे 2006 AIR SCW 4186(A) और Appabhai & Ors vs State of Gujarat,AIR 1988 SC 696 में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय।
कमाल खान का परीक्षण होने पर वो क्या बोलते या क्या नहीं बोलते,ये तथ्य से परे एक Imaginary Doubt है।ऐसा नहीं है कि कमाल खान के बयान से सलमान को निर्दोष माना जा सकता था जैसा मैंने ऊपर लिखा है।इसलिए कमाल खान के बयान के आधार पर सलमान खान द्वारा गाड़ी नहीं चलाने का Reasonable Doubts नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट के इन निर्णयों में Reasonable Doubts और Imaginary Doubts/Trivial Doubts में फर्क करने कहा गया है और Reasonable Doubts होने पर Benefit of Doubt देकर बरी करने और Imaginary Doubts/Trivial Doubts होने पर सजा देने कहा गया है-
1.State of Uttarpradesh vs Krishna Gopal & Anr,AIR 1988 SC 2154
2.Gurbachan Singh vs Satpal Singh & Ors,AIR 1990 SC 209
3.Krishnan vs State,(2003) 7 SCC 56
4.Velson & Anr vs State Of Kerala,(2008) 12 SCC 241
5.Bhaskar Ramappa Madar & Ors vs State of Karnataka (2009) 11 SCC 690
6.State of Uttarpradesh vs Ashok Kumar Srivastava,AIR 1992 SC 209
7.Inder Singh & Anr vs State (Delhi Administration),AIR 1978 SC 1091
8.State Of Uttarpradesh vs Anil Singh,AIR 1988 SC 1998
9.Shivaji Sahebrao Bobade vs State of Maharashtra,1974(1) SCR 489
एक निर्णय केरल हाइकोर्ट का भी है-
10.State of Kerala vs Narayan Bhaskaran & Ors,1992 Cri L.J. 238
अतः सलमान खान को सजा होना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार अपील करे और सुप्रीम कोर्ट हाइकोर्ट के फैसला को ख़ारिज कर सलमान खान को सजा दे।
Rahul Kumar #ManojeNathSir-Same research is required for the Bihar Electricity Theft Scam.Many substantive questions of law involve in this case.I am researching on these substantive questions of law.It is better to write something against this scam and move for any further action only after finding a lot of judgements/case laws against that order of the Patna High Court in Dadiji Steel Case.Task assigned by you is always in my mind but every day i contront with new issues approached to me by different persons and it results in delay of writing about this scam. #DubeyJi- महाराष्ट्र सरकार या मामले से सम्बंधित पीड़ितों को सुप्रीम कोर्ट में अपील करना चाहिए।कोई तीसरा व्यक्ति अपीलीय जुरिसडिक्शन वाले मामले को सुप्रीम कोर्ट को संदर्भित नहीं कर सकता है।कोई तीसरा व्यक्ति ओरिजिनल जुरिसडिक्शन वाले मामले को ही जनहित याचिका यानि रिट याचिका के माध्यम से कोर्ट को संदर्भित कर सकता है। हालाँकि इसपर विस्तृत व्याख्या की जरुरत है कि बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा सलमान खान को रिहाई वाले आदेश को ख़ारिज करने के लिए जनहित रिट याचिका के तहत Writ of Certiorari दायर किया जा सकता है या नहीं।विशेषकर उस अवस्था में जब महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं करे। ठीक इसी तरह का जनहित याचिका के तहत Writ of Certiorari सुप्रीम कोर्ट में दायर कर पटना हाई कोर्ट द्वारा बड़े बिजली चोरों को बचाने वाली आदेश को ख़ारिज किया जा सकता है या नहीं।विशेषकर उस अवस्था में जब बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए निर्धारित तीन महीने बीत जाने और सरकार को महाधिवक्ता और सम्बंधित पदाधिकारी द्वारा राय मिलने के बावजूद जानबूझकर अपील नहीं किया।इस बिजली चोरी घोटाला में ही इस सवाल को जनहित याचिका के जरिये मैं एक दिन सुप्रीम कोर्ट ले जाऊँगा। #DubeyG-ManojeNath Sir बिहार सरकार का Senior Most Retired IPS Officer हैं। #ManojeNathSir-DubeyJi गाजीपुर,उत्तरप्रदेश के जिला पंचायत सदस्य,सामाजिक कार्यकर्ता और लोकसभा चुनाव 2014 का आम आदमी पार्टी का गाजीपुर से प्रत्याशी हैं।
Rahul Kumar #ManojeNathSir-Same research is required for the Bihar Electricity Theft Scam.Many substantive questions of law involve in this case.I am researching on these substantive questions of law.It is better to write something against this scam and move for ...See More
Rahul Kumar #ManojeNathSir-Same research is required for the Bihar Electricity Theft Scam.Many substantive questions of law involve in this case.I am researching on these substantive questions of law.It is better to write something against this scam and move for any further action only after finding a lot of judgements/case laws against that order of the Patna High Court in Dadiji Steel Case.Task assigned by you is always in my mind but every day i contront with new issues approached to me by different persons and it results in delay of writing about this scam. #DubeyJi- महाराष्ट्र सरकार या मामले से सम्बंधित पीड़ितों को सुप्रीम कोर्ट में अपील करना चाहिए।कोई तीसरा व्यक्ति अपीलीय जुरिसडिक्शन वाले मामले को सुप्रीम कोर्ट को संदर्भित नहीं कर सकता है।कोई तीसरा व्यक्ति ओरिजिनल जुरिसडिक्शन वाले मामले को ही जनहित याचिका यानि रिट याचिका के माध्यम से कोर्ट को संदर्भित कर सकता है। हालाँकि इसपर विस्तृत व्याख्या की जरुरत है कि बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा सलमान खान को रिहाई वाले आदेश को ख़ारिज करने के लिए जनहित रिट याचिका के तहत Writ of Certiorari दायर किया जा सकता है या नहीं।विशेषकर उस अवस्था में जब महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं करे। ठीक इसी तरह का जनहित याचिका के तहत Writ of Certiorari सुप्रीम कोर्ट में दायर कर पटना हाई कोर्ट द्वारा बड़े बिजली चोरों को बचाने वाली आदेश को ख़ारिज किया जा सकता है या नहीं।विशेषकर उस अवस्था में जब बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए निर्धारित तीन महीने बीत जाने और सरकार को महाधिवक्ता और सम्बंधित पदाधिकारी द्वारा राय मिलने के बावजूद जानबूझकर अपील नहीं किया।इस बिजली चोरी घोटाला में ही इस सवाल को जनहित याचिका के जरिये मैं एक दिन सुप्रीम कोर्ट ले जाऊँगा। #DubeyG-ManojeNath Sir बिहार सरकार का Senior Most Retired IPS Officer हैं। #ManojeNathSir-DubeyJi गाजीपुर,उत्तरप्रदेश के जिला पंचायत सदस्य,सामाजिक कार्यकर्ता और लोकसभा चुनाव 2014 का आम आदमी पार्टी का गाजीपुर से प्रत्याशी हैं।
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