Friday, 17 October 2014

Corrupt Media makes nation fool

मीडिया लोगों को हमेशा मूर्ख बनाने में लगी रहती है।बलात्कार का कथित प्रयास करने के एक अभियुक्त के विरुध्द जब पंचायत ने एक लाख जुर्माना लगाया तो मीडिया में रिपोर्ट छपती है कि पंचायत ने इज्जत की बोली एक लाख में लगा दिया।इज्जत की बोली नहीं,जुर्माना लगी है।पंचायत तो जुर्माना ही लगा सकती है,वह जेल में नहीं डाल सकती।लड़की के परिजन को पंचायत लगवाना ही नहीं चाहिए था।लड़की के परिजन को ये मालूम है कि पंचायत का काम जुर्माना लगाने भर सीमित है फिर लड़की के परिजन ने पंचायत लगवाया क्यों?फिर इज्जत की बोली किसने लगायी?लड़की के परिजन ने या पंचायत ने?लड़की के परिजन ने इज्जत की बोली लगाई।लड़की के परिजन थाना तब पहुँचे जब अभियुक्त ने पंचायत में जुर्माना देना स्वीकार करने के बाद जुर्माना देने से मना कर दिया।मतलब अभियुक्त जुर्माना दे देता तो लड़की के परिजन थाना नहीं पहुँचते।मतलब एक लाख रुपये में इज्जत की बोली लग जाती।लेकिन मीडिया को लड़की के परिजन का गलती नहीं दिखता।मीडिया का जनता को बेवकूफ बनाने में सबसे ज्यादा योगदान है।और मीडिया ये फैसला क्यों सुनाने लगती है कि सही में बलात्कार/बलात्कार का प्रयास हुआ है,जबकि ज्यादातर केस फर्जी होता है।

मैं मानता हूँ कि पंचायत का दायित्व था कि वह इस मामला को थाना को अग्रसारित कर दे।लेकिन इसका मतलब ये नहीं हुआ कि लड़की के परिजन की गलती नहीं है।लड़की के परिजन को पंचायत करवाने के बजाय थाना जाना चाहिए था।ये लड़की के परिजन को मालूम रही होगी कि पंचायत मामला को थाना अग्रसारित करने के बजाय जुर्माना लगाएगी।उसके बावजूद परिजन ने पंचायत करवाया।यदि लड़की के परिजन इस उम्मीद के साथ पंचायत करवाए थे कि पंचायत मामला को थाना अग्रसारित करेगी,फिर परिजन ने जुर्माना का राशि लेना स्वीकार क्यों किया और मामला को अग्रसारित करने के लिए पंचायत को क्यों नहीं कहा?यहाँ बात लड़की के परिजन के MOTIVE की हो रही है।लड़की के परिजन का MOTIVE सिर्फ इतना था कि जुर्माना का रुपया मिल जाए और बात को दबा दिया जाए।अभियुक्त द्वारा पंचायत में स्वीकार करने के बाद जुर्माना देसे से मना करने के बाद लड़की के परिजन ने फिर से पंचायत लगवाने के बजाय थाना में शिकायत कर दिया।फिर से पंचायत लगाने के बाद पंचायत यदि मामला को थाना अग्रसारित नहीं करती तब माना जाता कि पंचायत की गलती है।

I missed this aspect that Police is corrupt,dull and lazy and sometimes also misbehaves against informant and its parents etc but ultimately they reached to the Police.If they had no belief on police,then they could take decision to hold Panchayat but when they failed to collect money of Rs 1 Lakh,then they reached to police.But if money would be provided,then they wouldn't approach before the police.What was the motive,now please conclude.If they had no belief on police,then how they reached ultimately to the police? They could reach directly before the court and the court had to listen..

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