परसो दिल्ली हाईकोर्ट ने गैंगरेप के झूठे आरोप में फंसाने वाली लड़की के विरुध्द फैसला दिया है कि झूठे आरोप में फंसाने वाले को सजा मिलना ही चाहिए,लेकिन लड़की पुलिस के समक्ष प्राथमिकी दर्ज करने के बाद खुद बयान से बदल गई कि उसके साथ गैंगरेप नहीं हुआ।रेप के आरोप में झूठा फंसाए गए दो ऐसे अभियुक्त को मैं सहयोग कर रहा हूँ जिसमें एक केस में लड़की समझौता करने के लिए तैयार होने के बावजूद समझौता करने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उसे किसी ने कह दिया कि समझौता करने के बाद उसपर झूठा फंसाने का मुकदमा चलेगा।एक अन्य केस में लड़की समझौता के लिए तैयार है,लेकिन ये हो सकता है कि झूठा आरोप में फंसाने का उसपर मुकदमा किए जाने के डर से मुकर जाए।जब लड़की सुलह कर ले(सुलहनामा में भी अपने बयान से मुकरना पड़ेगा) या बयान से मुकर जाए तो उस अवस्था में झूठा आरोप में फंसाने का मुकदमा नहीं चलना चाहिए।झूठा आरोप में फंसाने का मुकदमा तब चलना चाहिए जब बचाव पक्ष उसे झूठा साबित कर दे।अन्यथा झूठा फंसाने का मुकदमा चलाए जाने के डर से लड़की चाहते हुए भी ये बयान नहीं देती कि उसके साथ वैसा कांड नहीं हुआ है।परिणामस्वरुप निर्दोष अभियुक्त को सजा मिल जाती है।
सिर्फ रेप के झूठे आरोपों में ही नहीं,अन्य सभी झूठे आरोपों में भी बयान से मुकरने या सुलह करने के बाद झूठा फंसाने का मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए,बल्कि बचाव पक्ष द्वारा झूठा साबित किए जाने के बाद ये मुकदमा चलना चाहिए।ऐसा प्रावधान करने पर ज्यादातर झूठा फंसाने वाले अपने बयान से मुकर जाएंगे और निर्दोष व्यक्ति की मानवाधिकार की रक्षा हो सकेगी।केन्द्र सरकार या सुप्रीम कोर्ट को ऐसा नियम/दिशानिर्देश बनाना चाहिए।
ऐसा होने पर सही फरियादी को भी लालच देकर बदलवा दिया जाएगा,ये जरुर कुछ केस में होगा जो अपवाद ही कहलाएगा।लालच मुकदमा करने वाले को मिलती ही है,चाहे मुकदमा सही हो या गलत।जिसने सही मुकदमा दायर किया है,यदि वह समझौता कर लेता है या बयान से बदल जाता है तो इसका मतलब ये हुआ कि उसे न्याय चाहिए ही नहीं।जिसे न्याय नहीं चाहिए,उसे न्याय देने की कोई जरुरत नहीं है।जिसे न्याय चाहिए वह समझौता नहीं करेगा।सही फरियादी की संख्या काफी कम है।गलत फरियादी की संख्या काफी ज्यादा है।जो सही फरियादी झूठा आरोप में फंसाने का मुकदमा नहीं चलने का फायदा उठाकर अपना बयान बदल कर समझौता कर लेते हैं,वे न्याय चाहने वाले व्यक्ति नहीं हैं।लेकिन यदि गलत फरियादी को झूठा आरोप में फंसाने का मुकदमा उनके विरुध्द चलाए जाने का डर नहीं रहेगा तो वे बयान से बदल जाएंगे तो निर्दोष व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं होगा।जो सही फरियादी न्याय चाहते ही नहीं,उनके साथ अन्याय नहीं होता है लेकिन निर्दोष व्यक्ति के साथ अन्याय होता है।दोनों में यही फर्क है।कोर्ट झूठा फंसाए गए के साथ न्याय नहीं करती,इसलिए मेरा सुझाव सही है।
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