सुप्रीम कोर्ट के जज भी मौखिक रुप से सच स्वीकार लेने के बाद अपने आदेश में सच लिखने से डरते हैं।सुप्रीम कोर्ट ने RTI से UVK Degree College,मधेपुरा का प्राचार्य माधवेन्द्र झा के विरुध्द बिहार बोर्ड से मैनेज कर रिजल्ट में धांधली करने का खुलासा करने के कारण कॉलेज के व्याख्याता नागेश्वर झा के विरुध्द दर्ज रेप के केस में अग्रिम जमानत दे दी है लेकिन आरोप की सच्चाई के विरुध्द कोई अवलोकन नहीं किया।सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ये लिखा कि नागेश्वर झा का कहना है कि माधवेन्द्र झा के विरुध्द धांधली का FIR दर्ज कराने के बाद उन्हें रेप में फंसा दिया गया है।इससे पिछली तारीख में सुनवाई के दौरान तीनों जज अधिवक्ताओं द्वारा आरोप पढ़कर सुनाए जाने के बाद हँसने लगे थे क्योंकि जिस ढंग से आरोप लगाया गया है उसे देखने से ही आरोप फर्जी दिखता है।लेकिन आदेश में तीन जज Justice TS Thakur,V Gopal Gowda और R Banumathi की पीठ ने आरोप को लेकर अवलोकन नहीं किया है।चूँकि RTI से एक बड़ा खुलासा करने के कारण रेप में फंसाए जाने का मामला था,इसलिए सुप्रीम कोर्ट आरोप को लेकर अवलोकन कर अग्रिम जमानत देता तो ये एक Landmark फैसला होता जिसका दूरगामी असर होता।
इस केस का ब्यौरा है- Criminal Appeal No-1029/2015,Arising out of SLP(Criminal) No-298/2015,Nageshwar Jha vs the State of Bihar,Date of order-6/8/2015.
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मद्रास हाईकोर्ट का Adultery (जारता अथवा जार-कर्म) में रहने वाली तलाकशुदा पत्नी को पूर्व पति से भरण-पोषण हेतु भत्ता देने से मना करने वाला फैसला सही है लेकिन हाईकोर्ट की व्याख्या सही नहीं है।ये सही है कि CrPC का धारा 125 के स्पष्टीकरण के तहत पत्नी के अन्तर्गत तलाकशुदा पत्नी भी आती है,इसलिए धारा 125 का उपधारा 4 के तहत तलाकशुदा पत्नी भी पत्नी होने के नाते भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार नहीं होगी यदि वह Adultery में रहती हो।CrPC का धारा 125(4) में Adultery शब्द का उपयोग होना ही नहीं चाहिए था क्योंकि IPC का धारा 497 के तहत तलाकशुदा महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने वाले दूसरा पुरुष Adultery का दोषी नहीं हो सकता।इसलिए तलाकशुदा पत्नी का Adultery में रहना कहना ही त्रुटिपूर्ण है।इसलिए धारा 125(4) में संशोधन कर Adultery के जगह पर शारीरिक संबंध जैसे किसी दूसरे शब्द का जब तक प्रयोग नहीं किया जाता तब तक तलाकशुदा महिला को भी Adultery में रहना कहकर उसे पूर्व पति से भरण-पोषण लेने से वंचित नहीं किया जा सकता।CrPC का धारा 125(1)(a) के तहत जो पत्नी अपना भरण-पोषण करने में समर्थ है,वह भरण-पोषण हेतु भत्ता का हकदार नहीं है।ऐसी महिला को Sexual Relationship/Live-in-relationship में दूसरे पुरुष के साथ रहने के कारण भरण-पोषण करने में समर्थ माना जाना चाहिए और इस आधार पर भत्ता से वंचित किया जाना चाहिए।
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इस केस का ब्यौरा है- Criminal Appeal No-1029/2015,Arising out of SLP(Criminal) No-298/2015,Nageshwar Jha vs the State of Bihar,Date of order-6/8/2015.
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मद्रास हाईकोर्ट का Adultery (जारता अथवा जार-कर्म) में रहने वाली तलाकशुदा पत्नी को पूर्व पति से भरण-पोषण हेतु भत्ता देने से मना करने वाला फैसला सही है लेकिन हाईकोर्ट की व्याख्या सही नहीं है।ये सही है कि CrPC का धारा 125 के स्पष्टीकरण के तहत पत्नी के अन्तर्गत तलाकशुदा पत्नी भी आती है,इसलिए धारा 125 का उपधारा 4 के तहत तलाकशुदा पत्नी भी पत्नी होने के नाते भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार नहीं होगी यदि वह Adultery में रहती हो।CrPC का धारा 125(4) में Adultery शब्द का उपयोग होना ही नहीं चाहिए था क्योंकि IPC का धारा 497 के तहत तलाकशुदा महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने वाले दूसरा पुरुष Adultery का दोषी नहीं हो सकता।इसलिए तलाकशुदा पत्नी का Adultery में रहना कहना ही त्रुटिपूर्ण है।इसलिए धारा 125(4) में संशोधन कर Adultery के जगह पर शारीरिक संबंध जैसे किसी दूसरे शब्द का जब तक प्रयोग नहीं किया जाता तब तक तलाकशुदा महिला को भी Adultery में रहना कहकर उसे पूर्व पति से भरण-पोषण लेने से वंचित नहीं किया जा सकता।CrPC का धारा 125(1)(a) के तहत जो पत्नी अपना भरण-पोषण करने में समर्थ है,वह भरण-पोषण हेतु भत्ता का हकदार नहीं है।ऐसी महिला को Sexual Relationship/Live-in-relationship में दूसरे पुरुष के साथ रहने के कारण भरण-पोषण करने में समर्थ माना जाना चाहिए और इस आधार पर भत्ता से वंचित किया जाना चाहिए।
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