राजनीतिक शक्ति बनाम सामाजिक-जनतांत्रिक शक्ति
मेरा एक करीबी मित्र ने अपने गाँव के मामले में दो आरटीआई दायर किया और कुछ अन्य काम किए और अब वह स्थानीय चुनाव लड़ना चाहते हैं।मेरा एक अन्य बहुत करीबी मित्र ने अपने कॉलेज के मामले में दो आरटीआई दायर किया और कुछ अन्य काम किए और अब वह कॉलेज का चुनाव लड़ने वाले हैं।
सवाल है,क्या हम सामाजिक रुप से राजनेता से ज्यादा शक्तिशाली नहीं हो सकते?हम सामाजिक रुप से भी राजनेता से ज्यादा शक्तिशाली हो सकते हैं।हम सामाजिक प्रभाव से भी राजनीति को बदल सकते हैं।राजनीति को बदलने के लिए राजनीतिक प्रभाव को स्वीकार करना सामाजिक व जनता की शक्ति के अभाव के कारण पैदा होने वाला भ्रम है।अरविंद केजरीवाल की तरह जो भी व्यक्ति राजनीति को बदलने के लिए राजनीति में प्रवेश करना उचित समझते हैं,वे राजनीतिक शक्ति को शीर्ष और सामाजिक और जनता की शक्ति को शून्य मानते हैं।सामाजिक और जनता की शक्ति ही शीर्ष होना चाहिए।इस शक्ति को शून्य से शीर्ष बनाने का कोशिश करना चाहिए।जिस व्यक्ति में समाज व जनता की इस शक्ति को शीर्ष बनाने का हिम्मत नहीं है,वह कायर है और अपनी कायरता को छिपाने के लिए राजनीति में प्रवेश करता है।
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