Tuesday, 13 January 2015

भूमि अधिग्रहण संशोधन अध्यादेश,2014 असंवैधानिक है।

भूमि अधिग्रहण संशोधन अध्यादेश,2014 संविधान का अनुच्छेद 123 का विपरीत होने के कारण असंवैधानिक है।अनुच्छेद 123 के अनुसार अध्यादेश ऐसी परिस्थिति में ही लायी जा सकती है जब कोई शीघ्र कार्रवाई की जरुरत हो।अनुच्छेद 123 का विश्लेषण किया जाए तो अध्यादेश के प्रस्तावना में ये लिखा होना चाहिए कि ऐसी कौन-सी परिस्थिति आ गई जिसके विरुध्द शीघ्र कार्रवाई की जरुरत है।मतलब इस अध्यादेश में ये बताना पड़ेगा कि ऐसी कौन सी परिस्थिति आ गई जिसके कारण पाँच उद्देश्य से भूमि अधिग्रहण के लिए 70 प्रतिशत(सार्वजनिक प्रोजेक्ट में) या 80 प्रतिशत(सार्वजनिक-निजी प्रोजेक्ट में) भूस्वामी की सहमति के प्रावधान को शीघ्र हटाने की जरुरत पड़ गई,वगैरह,वगैरह।

बीमा संशोधन विधेयक और कोयला खनन संशोधन विधेयक इस शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में पारित नहीं हो सका इसलिए ये माना जा सकता है कि अध्यादेश के जरिये इन दो कानूनों में संशोधन की सरकार के लिए शीघ्र जरुरत थी लेकिन भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक को तो संसद के किसी सदन में पेश भी नहीं किया गया,लेकिन सत्र समाप्ति के तुरंत बाद अध्यादेश को लाया जा रहा है,इससे जाहिर होता है कि इसमें संशोधन की शीघ्र जरुरत नहीं थी।



आरटीआई लगाने के बाद रेलवे बोर्ड ने अपने वेबसाइट पर किया किराया-नियम को अपडेट


आरटीआई आवेदन भेजकर 5 और 10 के गुणज के रूप में रेल किराया निर्धारण का नियम मेरे द्वारा जुलाई 2014 में पूछा गया था ,जिसका जवाब नहीं दिया गयाIरेलवे बोर्ड को दोबारा आवेदन भेजा गया जिसके बाद रेलवे बोर्ड द्वारा मुझे सर्कुलर और किराया-तालिका भेजा गया जिसमे बताया गया है कि Second Class Ordinary Sub-Urban रेलगाड़ी को छोड़कर अन्य सभी किस्म के रेलगाड़ी के किराया का निर्धारण 5 के अगले गुणज के रूप में करने का नियम 22 जनवरी 2013 से देशभर में प्रभावी है जिसे 20 मई 2014 से Revised करने के बाद पुनः प्रभावी किया गयाI
वस्तुतः मुझे संदेह थी कि सभी किस्म के रेलगाड़ी के किराया का निर्धारण 5 और 10 के गुणज में जो संख्या सबसे सन्निकट है के रूप में होना है लेकिन रेलगाड़ी के किराया का निर्धारण 5 के अगले गुणज के रूप में करके रेलवे बोर्ड जबरन वसूली कर रही हैI
हालाँकि इस आरटीआई लगाने के बाद www.indianrail.gov.in पर रेल किराया चेक करने पर रेल किराया के साथ साथ आप नोट में लिखे इस लाइन को भी देख सकते है:-
"NOTE : * Total Amount will be rounded off to the next higher multiple of Rs. 5."
आरटीआई लगाने से पहले नोट में ये लाइन लिखी हुई नहीं थी ,जिसके कारण कुछ मित्रो की बात सुनने के आधार पर संदेह हुईI अब मेरा संदेह भी दूर हो गया और नोट में नियम बताने से अब अन्य लोगो को भी संदेह नहीं रहेगीI
नियम को हरेक जगह प्रकाशित किया जाना चाहिएI नियम को प्रकाशित नहीं करना विभागीय लापरवाही और लोगो को परेशान करने का जरिया हैंI
सर्कुलर का प्रथम पृष्ठ प्रस्तुत्त है-


Saturday, 10 January 2015

अंततः राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को झुकना पड़ा





यह संभवतः पहला केस है जिसमें मानवाधिकार आयोग ने तीन बार बहाना बनाकर शिकायत को निष्तारित कर दिया और चौथी बार संबंधित विभाग को कार्रवाई के लिए शिकायत को भेजना पड़ा।समस्तीपुर नवोदय के प्राचार्य द्वारा वहाँ के छात्र/छात्राओं से जबरन वसूली के विरुध्द दायर कराए गए शिकायत को पहली बार(फाइल नं 3683/4/30/2014) आयोग ने ये कहकर निष्तारित कर गया कि आवेदन का सिर्फ छायाप्रति भेजा गया।जिसके विरुध्द मैंने शिकायत दर्ज कराया कि आवेदन की मूल प्रति दस जगह एक साथ सभी को संबोधित करते हुए भेजी गई और कहीं भी छायाप्रति नहीं भेजी गई।जिसपर दूसरी बार(केस नं 3862/4/30/2014) सुनवाई करते हुए आयोग द्वारा ये कहकर केस बंद कर दिया गया कि मामला मानवाधिकार हनन का नहीं है।इसके विरुध्द शिकायत दर्ज कराया कि जबरन वसूली आर्थिक व मानसिक प्रताड़ना होने के कारण अनुच्छेद 21 का हनन है और गरिमा,स्वतंत्रता आदि का हनन करने के कारण मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(d) के तहत मानवाधिकार का भी हनन है जिसपर तीसरी बार(फाइल नं 4193/4/30/2014) सुनवाई करते हुए आयोग ने पुनः ये कहकर केस बंद कर दिया कि मामला मानवाधिकार हनन का नहीं है।
संभवतः इस आवेदन को ही आयोग द्वारा पुनः सुनवाई के लिए फाइल नं 4563/4/30/2014 के माध्यम से निबंधित किया गया।इस बार आयोग ने शिकायत को संबंधित विभाग को 8 सप्ताह के भीतर आवश्यक कार्रवाई कर कृत कार्रवाई से आवेदक को सूचित करने का आदेश देते हुए अग्रसारित कर दिया।मतलब आयोग ने मान लिया कि मामला मानवाधिकार हनन का है।
www.nhrc.nic.in पर फाइल नं 4563/4/30/2014 डालकर स्टेटस चेक करने पर सिर्फ इतना पता चल पाया है कि शिकायत को संबंधित विभाग को भेजा गया है।शिकायत को संभवतः केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय भेजा गया होगा।आयोग का पत्र प्राप्त होने के बाद ही पता चल पाएगा कि किसे भेजा गया है।जिसे भी भेजा गया हो लेकिन ये लोग जांच करते ही नहीं या जांच करते भी हैं तो जांच रिपोर्ट प्रीफिक्स होता है।हालांकि यदि विद्यालय के छात्र/छात्राओं से बाहर का कोई अधिकारी आकर पूछताछ करे तो जरुर बयान दे कि रुपये वसूला गया है। विद्यालय के कुछ विद्यार्थियों द्वारा सूचना देने के बाद ही शिकायत दायर कराया गया था।मेरे लिए ये एक अच्छा अनुभव रहा कि अंततः आयोग को मानना पड़ा कि मामला मानवाधिकार हनन का है।

Two new legal issues on misuse of RTI Act



Postal Department has refused to provide the waiting list of PA/SA result to Gaurav Gupta and non-disclosing of waiting list proves that ineligible candidates are enlisted in the waiting list through back door.
u/s 7(1) of the RTI Act,PIO has to explain such reason of rejecting request which has been provided u/s 8 and 9 of the act for rejecting request.But,no such reason has been explained in the present matter.
What information can't be disclosed is already mentioned in the RTI Act,2005.u/s 8(1) of the act,there are ten grounds of not-disclosing but in these grounds,waiting list of a result has not been kept to not disclose.u/s 9 of the act,information relating to the infringement of copyrights of an individual can't be disclosed.Information relating to the Official Secrets Act,1923 can't be disclosed u/s 22 and information excepting violation of human rights and corruption relating to intelligence and security organization specified in second schedule of the act can't be disclosed u/s 24 of the act.





ब्रजभूषण दूबेजी के सूचना आवेदन पर आयुक्त,वाराणसी का रवैया एक नया आरटीआई मामला है।यदि लोक सूचना अधिकारी इस तरह से घुमाकर आवेदक को परेशान करे तो इसके विरुध्द सूचना का अधिकार कानून,2005 में प्रावधान नहीं है।लेकिन यहाँ लोक सूचना अधिकारी यानि आयुक्त द्वारा की गई हस्तांतरण पर प्रश्न उठाया जा सकता है।आयुक्त को निर्विवाद रुप से ये मालूम था कि वरुणा व असि नदी गाजीपुर में नहीं बहने के कारण ये मामला गाजीपुर के जिलाधिकारी के क्षेत्राधिकार का नहीं है।इसलिए सूचना का अधिकार कानून की धारा 6(3) के तहत इस आवेदन को जिलाधिकारी को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता था।आवेदन को जबरन या गलत जगह हस्तांतरित कर अधिनियम की धारा 7(1) के तहत सूचना देने के लिए निर्धारित 30 दिन (या हस्तांतरण की दशा में 30 दिन में धारा 6(3) के अनुसार 5 दिन जोड़कर) में सूचना नहीं देकर विलंब किया गया जिसे अधिनियम की धारा 7(2) के तहत सूचना देने से मना करना माना जाएगा।तदनुसार अधिनियम की धारा 19(1) के तहत प्रथम अपील या धारा 18(1) के तहत सूचना आयोग में सीधे शिकायत दायर कराया जा सकता है।हालांकि इस मामले में कानूनी विश्लेषण की आवश्यकता है इसलिए सूचना आयोग जाना बेहतर है।



IISERs का एडमिशन घोटाला






Joint Admission Committee(JAC),IISERs ने RTI Act के तहत IISERs में नामांकन के लिए तोनों चैनल किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना,JEE(ADVANCED) 2014 और स्टेट व सेन्ट्रल बोर्ड के माध्यम से वर्ष 2014 में चयनित अभ्यर्थियों का मेरिट लिस्ट और Aptitude test का रिजल्ट लिस्ट बिना कारण बताए देने से मना कर दिया है।इससे पूर्व IISER,भोपाल ये कहकर सूचना देने से मना कर दिया था कि सूचना उसके पास नहीं,JAC के पास उपलब्ध है लेकिन RTI Act का धारा 6(3) के तहत मेरा आवेदन को JAC को हस्तांतरित नहीं किया,जिसके विरुध्द केन्द्रीय सूचना आयोग में शिकायत दर्ज की गई है।

IISERs मेरिट व रिजल्ट लिस्ट सार्वजनिक नहीं करती है इसलिए जाहिर है कि Back door से अयोग्य अभ्यर्थियों का भी नामांकन होता है।RTI Act के तहत बिना कारण बताए मेरिट व रिजल्ट लिस्ट देने से मना करने के बाद अब इस घोटाला का प्रथम दृष्टया पता चलता है।इसलिए अब मैं सूचना देने से मना करने के विरुध्द केन्द्रीय सूचना आयोग और इस गड़बड़ी के विरुध्द केन्द्रीय सतर्कता आयोग में शिकायत करुँगा।


Question of Law

It has been replied that merit list/result list can't be revealed.u/s 7(1) of the RTI Act,the public information officer has to explain the such reason of rejecting request which has been provided u/s 8 and 9 of the act for the purpose of rejecting request.But,no reason has been explained in the present matter in question.
What information can't be revealed is already mentioned in the RTI Act,2005.u/s 8(1) of the act,there are ten grounds of not-revealing but in these grounds,result list and merit list has not been kept to not reveal.u/s 9 of the act,information relating to the infringement of copyrights of an individual can't be revealed.Information relating to the Official Secrets Act,1923 can't be revealed u/s 22 and information excepting violation of human rights and corruption relating to intelligence and security organization specified in second schedule of the act can't be revealed u/s 24 of the act.

Lodge case of cheating,forgery and criminal breach of trust against false profit of govt schemes

गरीब को गरीबी रेखा से उपर दिखाना और गरीबी रेखा से उपर का राशन कार्ड बनाना व अमीर को गरीबी रेखा से नीचे दिखाना और गरीबी रेखा से नीचे का राशन कार्ड बनाना।ये IPC का धारा 24 के तहत बेइमानी और धारा 25 के तहत फ्राड है।इसलिए ये धारा 415 के तहत धोखाधड़ी और धारा 463,464 के तहत फर्जीवाड़ा का परिभाषा के दायरे में आएगी और साथ ही धारा 405 के तहत आपराधिक न्यास भंग(ठगी) के दायरे में भी।लेकिन फिर भी ऐसे सर्वे कर्मियों व दलालों पर ठगी(धारा 406 और 409), फर्जीवाड़ा(धारा 465,466,468 और 471) और धोखाधड़ी(धारा 417 और 420) का मुकदमा क्यों नहीं दर्ज किया जाता?
इतनी बड़ी ठगी,धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा सबके सामने होती है लेकिन आजतक किसी पर आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं हुआ और ना ही सरकार,हाईकोर्ट,सुप्रीम कोर्ट ने कभी ऐसा मुकदमा दायर करने का आदेश दिया।इंदिरा आवास योजना का लाभ अमीरों को देना भी एक ऐसा ही ठगी, धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा है।
कुछ कानूनी पृष्ठभूमि के ऐसे मित्र भी हो सकते हैं जो दलील दे सकते हैं कि मैं जिसे ठगी,धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा बता रहा हूँ,वो IPC के अनुसार ठगी,धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा नहीं है।ऐसे मित्र इस फोटो में संबंधित धाराओं को देखे।

Abolish section 353 of the IPC

IPC का धारा 353 अंग्रेज के जमाने में बनाया गया सबसे बर्बरतम कानून में एक है लेकिन आजादी के बाद भी ये धारा बरकरार है।इस धारा के तहत लगाए जाने वाले आरोप को लोगों द्वारा सामान्य भाषा में सरकारी कामकाज में बाधा डालना कहा जाता है जिसमें किसी लोक सेवक के विरुध्द जब वह सरकारी काम कर रहा हो तो आपराधिक बल प्रयोग करने पर 2 साल की सजा का प्रावधान है और धारा गैर-जमानतीय है।
जब आप किसी लोक सेवक का विरोध करे तो वह आपको आसानी से इस आरोप में फंसा सकता है।मतलब ये धारा अंग्रेज ने इसलिए बनाया था ताकि भारतीय ब्रिटिश शासन-तंत्र के किसी कर्मचारी/अधिकारी का फंसाने के डर से विरोध ना करे।आजादी के बाद भी इस धारा को इसलिए बरकरार रखा गया ताकि आम आदमी द्वारा लोक सेवक के भ्रष्टाचार का विरोध करने पर उसे इस धारा के तहत फंसाया जा सके।
जब लोक सेवक कार्यालय में बैठकर टाइम पास करता है,लापरवाही करता है तो सरकारी कामकाज को सबसे ज्यादा बाधा पहुँचती है लेकिन इसके लिए कोई धारा नहीं है।माना कि आपराधिक बल का प्रयोग किया गया जिसके कारण दो घंटे काम में बाधा पहुँची लेकिन एक सरकारी कर्मी तो टाइम पास करके औसतन रोज 2-3 घंटे काम में बाधा डालता होगा।

4 RTIs to the PMO against delay in the Establishment of Lokpal





1.Facebook status of  1 Jan 2015-
गाजीपुर का रहने वाले फेसबुक मित्र चंदन शर्मा ने लोकपाल के गठन में विलंब के विरुध्द प्रधानमंत्री कार्यालय में दिनांक 30/12/2014 को ऑनलाइन आरटीआई आवेदन दायर किया है।इस प्रकार लोकपाल के गठन में विलंब के विरुध्द कुल चार आरटीआई आवेदन प्रधानमंत्री कार्यालय में दायर हो चुका है।1 जनवरी 2014 को लोकपाल व लोकायुक्त अधिनियम,2013 को राष्ट्रपति का मंजूरी मिल जाने के बावजूद अभी तक लोकपाल का गठन नहीं हुआ है,इसलिए प्रधानमंत्री कार्यालय के पास सवाल का जवाब नहीं है,जिसके कारण सूचना का अधिकार कानून का दुरुपयोग कर मेरा,अवनीश कुमार और गौरव गुप्ता के आवेदन को कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया है।

यदि दो सौ लोग आरटीआई आवेदन भेजे तो दो महीना के भीतर लोकपाल का गठन हो जाएगी।
अन्य मित्रों से भी आग्रह है कि वे प्रधानमंत्री कार्यालय या कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग को आरटीआई आवेदन भेजे।सूचना आवेदन का जवाब प्राप्त होने के बाद आगे की रणनीति तय की जाएगी।


2.Facebook status of  27 Dec 2014-

राजस्थान का रहने वाले फेसबुक मित्र गौरव गुप्ता ने लोकपाल के गठन में विलंब के विरुध्द प्रधानमंत्री कार्यालय में दिनांक 25/12/2014 को ऑनलाइन आरटीआई आवेदन दायर किया है।मैंने फेसबुक मित्रों से इस मामले को लेकर आरटीआई आवेदन दायर करने का आग्रह किया था जिस आग्रह को गौरव गुप्ता ने स्वीकार किया है।इस प्रकार लोकपाल के गठन में विलंब के विरुध्द कुल तीन आरटीआई आवेदन प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा जा चुका है।1 जनवरी 2014 को लोकपाल व लोकायुक्त अधिनियम,2013 को राष्ट्रपति का मंजूरी मिल जाने के बावजूद अभी तक लोकपाल का गठन नहीं हुआ है,इसलिए प्रधानमंत्री कार्यालय के पास मेरा सवाल का जवाब नहीं है,जिसके कारण सूचना का अधिकार कानून का दुरुपयोग कर मेरा आवेदन को मांगी गई सूचना से कथित तौर पर ज्यादा संबंधित कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग के सचिव को अधिनियम की धारा 6(3)(ii) के तहत हस्तांतरित कर दिया गया है।

यदि दो सौ लोग प्रधानमंत्री कार्यालय को आवेदन भेजे तो दो महीना में लोकपाल का गठन हो जाए।
गौरव गुप्ता को धन्यवाद और शुभकामनाएं।अन्य मित्रों से भी यही अपेक्षा है।
उनके द्वारा ऑनलाइन आवेदन दायर करने के बाद प्राप्त रसीद प्रस्तुत है-


किसी पक्ष के सबूत का जिक्र नहीं करने पर कड़े सजा का प्रावधान होना चाहिए




जांच रिपोर्ट/आदेश आदि में किसी पक्ष के सबूत का जिक्र नहीं करने पर कड़े सजा का प्रावधान होना चाहिए जिसके लिए IPC में एक नया धारा जोड़ा जाना चाहिए।
आजतक चिरंजीवी राय,समस्तीपुर नवोदय के प्राचार्य के विरुध्द मैंने जो भी सबूत,जहाँ भी प्रस्तुत किया,उसका जिक्र जांच रिपोर्ट/आदेश में अधिकारियों द्वारा किया ही नहीं गया।
उदाहरणतः जब मैंने चिरंजीवी राय से फोन करके पूछा(जिसका Recording है) कि मेरे खिलाफ दलसिंहसराय SDM के समक्ष कब शिकायत दर्ज की गई।तो वह मुझे गलियाता है कि इतना जूता मारेंगे ना,साले तू,फोन करके पूछने का हिम्मत कैसे करता है रे।अन्य कई रिकाडिंग में वह उसके ऑफिस आकर पता करने बोलता है।
NVS में उसका शिकायत करने के बाद जब वह मुझे बाहर करना चाह रहा था तो मैं उसे एक रिकाडिंग में बोल रहा हूँ कि आपके विरुध्द शिकायत करने के कारण आप मुझे TC नहीं दे सकते तो वह बार बार बोल रहा है कि तुमसे फोन पर बात नहीं करेंगे।जो भी कहना है,ऑफिस में आकर कहिए।
इस तरह से चिरंजीवी राय द्वारा मुझे गलियाना,उसकी घबराहट प्रमाणित करता है कि वह गलत किया।
मेरे खिलाफ शिकायत उसके द्वारा बैक डेट में मुझे मौखिक रुप से फंसाकर बाहर करने के बाद बनाया गया जब मैंने उसके विरुध्द मानवाधिकार आयोग में केस कर दिया क्योंकि वह मेरे विरुध्द शिकायत-पत्र को दिखाकर फैसला को मेरे खिलाफ करना चाहता था।
मेरे विरुध्द बनाए गए शिकायत-पत्र के बारे में मुझे आकर पता करने बोल रहा है।मतलब शिकायत-पत्र में दर्ज तारीख मेरा TC निर्गत होने के तारीख से पहले का होने के बावजूद मुझे मालूम नहीं हैं।मतलब मेरा TC निर्गत होने के बाद TC निर्गत होने से पहले की तारीख में शिकायत को बैक डेट में बनाया गया।
वह मुझे बोल रहा है कि मैं उससे ऑफिस आकर पूछूँ कि उसका शिकायत करने के कारण वह मुझे क्यों TC दे रहा है।मतलब वो TC दे रहा है,ये प्रमाणित है भले ही अब वह बोल रहा हो कि उसने मुझे बाहर नहीं किया।
इस तरह के सैकड़ों दस्तावेजी सबूत मेरे पास उपलब्ध है जिसका जिक्र सबूत जमा करने के बावजूद ना ही मानवाधिकार आयोग ने अपने आदेश में किया,ना ही अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने अपने जांच रिपोर्ट में किया और ना ही NVS का एक सहायक आयुक्त एके तिवारी जो जांच करने विद्यालय गया थे,ने मुझसे सबूत मांगा।
यदि सबूत का जिक्र नहीं करने पर सजा का प्रावधान रहता तो शायद मुझे न्याय मिल जाता।

मनरेगा में घोटाला का खुलासा





कल्याणपुर प्रखंड अन्तर्गत पुरुषोतमपुर पंचायत के तत्कालीन मुखिया का दस पारिवारिक रिश्तेदार मनरेगा का मजदूर है जबकि इनकी आर्थिक स्थिति ठीक है।मुखिया का पुत्र,पुत्री,भाई,भाभी,समधिन,दामाद सभी के नाम पर मास्टर रोल बनाकर मजदूरी का अवैध निष्कासन किया गया है।मजदूरों का एक मास्टर रोल पर मौजूद हस्ताक्षर/ LTI उसके अन्य मास्टर रोल पर मौजूद हस्ताक्षर/LTI से आपस में भिन्न है।रामशीष,रामअसीष,रामअषीस,गुलवीया,गुलबीया,अंजुम,अनजुम,राजकुमार,रानकुमार-अलग अलग मास्टर रोल पर हस्ताक्षर में इस तरह की भिन्नता है जिससे प्रमाणित होता है कि एक ही मजदूर का एक से ज्यादा लोगों द्वारा हस्ताक्षर किया गया।आरटीआई जवाब में पौने तीन साल बीत जाने के बावजूद कार्य अपूर्ण बताया गया है।
इस पंचायत के वार्ड 2 का वार्ड सदस्य उमेश राय को मुखिया,रोजगार सेवक आदि द्वारा मनरेगा में की जाने वाली गड़बड़ी का विरोध करने के कारण योजना पंजी फाड़कर सरकारी कामकाज में बाधा डालने के फर्जी आरोप में फंसा दिया गया।इसलिए मुखिया,रोजगार सेवक आदि के गड़बड़ी के विरुध्द मिले प्रमाण का उपयोग कोर्ट में सबूत के रुप में किया जा सकेगा।
सर्वप्रथम मास्टर रोल की छायाप्रति के लिए प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी को मैंने आरटीआई आवेदन भेजवाया।सूचना नहीं देने पर प्रथम अपील दायर करवाया जिसपर निदेशक, लेखा प्रशासन एवं स्वनियोजन,जिला ग्रामीण विकास अभिकरण ने कार्यक्रम पदाधिकारी को सूचना उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।फिर कार्यक्रम पदाधिकारी के आदेश पर रोजगार सेवक द्वारा सूचना दिया गया।
इन गड़बड़ियों के विरुध्द जिला अधिकारी,पुलिस अधीक्षक,विजिलेंस,आर्थिक अपराध इकाई आदि जगह शिकायत दायर की जा रही है।