Saturday, 10 January 2015

किसी पक्ष के सबूत का जिक्र नहीं करने पर कड़े सजा का प्रावधान होना चाहिए




जांच रिपोर्ट/आदेश आदि में किसी पक्ष के सबूत का जिक्र नहीं करने पर कड़े सजा का प्रावधान होना चाहिए जिसके लिए IPC में एक नया धारा जोड़ा जाना चाहिए।
आजतक चिरंजीवी राय,समस्तीपुर नवोदय के प्राचार्य के विरुध्द मैंने जो भी सबूत,जहाँ भी प्रस्तुत किया,उसका जिक्र जांच रिपोर्ट/आदेश में अधिकारियों द्वारा किया ही नहीं गया।
उदाहरणतः जब मैंने चिरंजीवी राय से फोन करके पूछा(जिसका Recording है) कि मेरे खिलाफ दलसिंहसराय SDM के समक्ष कब शिकायत दर्ज की गई।तो वह मुझे गलियाता है कि इतना जूता मारेंगे ना,साले तू,फोन करके पूछने का हिम्मत कैसे करता है रे।अन्य कई रिकाडिंग में वह उसके ऑफिस आकर पता करने बोलता है।
NVS में उसका शिकायत करने के बाद जब वह मुझे बाहर करना चाह रहा था तो मैं उसे एक रिकाडिंग में बोल रहा हूँ कि आपके विरुध्द शिकायत करने के कारण आप मुझे TC नहीं दे सकते तो वह बार बार बोल रहा है कि तुमसे फोन पर बात नहीं करेंगे।जो भी कहना है,ऑफिस में आकर कहिए।
इस तरह से चिरंजीवी राय द्वारा मुझे गलियाना,उसकी घबराहट प्रमाणित करता है कि वह गलत किया।
मेरे खिलाफ शिकायत उसके द्वारा बैक डेट में मुझे मौखिक रुप से फंसाकर बाहर करने के बाद बनाया गया जब मैंने उसके विरुध्द मानवाधिकार आयोग में केस कर दिया क्योंकि वह मेरे विरुध्द शिकायत-पत्र को दिखाकर फैसला को मेरे खिलाफ करना चाहता था।
मेरे विरुध्द बनाए गए शिकायत-पत्र के बारे में मुझे आकर पता करने बोल रहा है।मतलब शिकायत-पत्र में दर्ज तारीख मेरा TC निर्गत होने के तारीख से पहले का होने के बावजूद मुझे मालूम नहीं हैं।मतलब मेरा TC निर्गत होने के बाद TC निर्गत होने से पहले की तारीख में शिकायत को बैक डेट में बनाया गया।
वह मुझे बोल रहा है कि मैं उससे ऑफिस आकर पूछूँ कि उसका शिकायत करने के कारण वह मुझे क्यों TC दे रहा है।मतलब वो TC दे रहा है,ये प्रमाणित है भले ही अब वह बोल रहा हो कि उसने मुझे बाहर नहीं किया।
इस तरह के सैकड़ों दस्तावेजी सबूत मेरे पास उपलब्ध है जिसका जिक्र सबूत जमा करने के बावजूद ना ही मानवाधिकार आयोग ने अपने आदेश में किया,ना ही अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने अपने जांच रिपोर्ट में किया और ना ही NVS का एक सहायक आयुक्त एके तिवारी जो जांच करने विद्यालय गया थे,ने मुझसे सबूत मांगा।
यदि सबूत का जिक्र नहीं करने पर सजा का प्रावधान रहता तो शायद मुझे न्याय मिल जाता।

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