Wednesday, 2 July 2014

आधा सही,आधा गलत फैसला




Central Administrative Tribunal ने NVS आयुक्त को आदेश जारी किया है कि वह अनुपमा झा,जवाहर नवोदय विद्यालय,समस्तीपुर के Store Keeper (LDC) के  तबादला आदेश के फैसला पर पुर्नविचार करे।चिरंजीवी राय,समस्तीपुर नवोदय का आदतन  अपराधी प्राचार्य ने NVS पटना के महाभ्रष्ट उपायुक्त मानस रंजन चक्रवती के साथ सांठगाठ करके अनुपमा झा का तबादला आदेश 27 दिसंबर 2013 को जारी करवा दिया था जिसे NVS मुख्यालय ने जून  2014 तक के लिए रोक दिया था।अनुपमा झा से मेरी बात हुई और मैंने बार बार हाईकोर्ट जाने का सुझाव दिया।मैंने हाईकोर्ट के एक अधिवक्ता से उनकी बात भी करवायी।फिर अंत में अनुपमा झा हाईकोर्ट के जगह Central Administrative Tribunal गई।

Central Administrative Tribunal एक संवैधानिक संस्था है जिसका गठन अनुच्छेद 323A के तहत केन्द्रीय कर्मियों का नौकरी संबंधित शिकायतों का सुनवाई करने के लिए किया गया है।लेकिन एक संवैधानिक संस्था होने के बावजूद खुद अपने विवेकाधिकार द्वारा फैसला देने के बजाय मामला को NVS आयुक्त के विवेकाधिकार पर छोड़ दिया।चिरंजीवी राय पर तबादला करवाने के साथ साथ अनुपमा झा को मानसिक रुप से प्रताड़ित करने और 3 महीना का जबरन वेतन रोक देने का आरोप भी है।उसके बावजूद tribunal ने अपने विवेकाधिकार पर फैसला देने के बजाय NVS आयुक्त के विवेकाधिकार पर फैसला छोड़ दिया।

R.K.Jain ,एक वरिष्ठ अधिवक्ता और EXCISE AND CUSTOMS BAR ASSOCIATION का अध्यक्ष हैं जिन्होंने मुझे पत्र भेजकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कुल 19 ऐसे फैसले के बारे में बताए हैं जिसमें कोर्ट ने ये आदेश दिया है कि यदि Tribunal कोई error order पास करती है तो उस Order में संशोधन करने के लिए फिर से आवेदन दायर किया जा सकता है।इस Tribunal ने NVS आयुक्त के विवेकाधिकार पर फैसला छोड़कर Error order पास किया है,और यदि NVS आयुक्त तबादला आदेश खारिज नहीं करते हैं तो फिर से Tribunal में ये आवेदन दायर किया जा सकता है कि Tribunal अपने आदेश  में संशोधन करते हुए खुद अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करके फैसला दे।R.K.Jain के इस पत्र को मैंने अनुपमा झा को भेजा है और उन्हें सारी प्रावधानों की जानकारी दी है।

यदि tribunal के जगह पर NVS आयुक्त  के फैसला के विरुध्द हाईकोर्ट में अपील की जाती है तो पूसा थाना के दारोगा   के विरुध्द  IPC का धारा 166A के तहत मुकदमा दर्ज करने का आग्रह हाईकोर्ट से किया जाएगा।अनुपमा झा का आरोप के अनुसार IPC का धारा 509 के तहत चिरंजीवी राय के विरुध्द मामला दर्ज होना चाहिए लेकिन दारोगा ने चिरंजीवी राय से सांठगाठ  करके मामला दर्ज नहीं किया जो धारा 166A के तहत दो साल तक की सजा का दंडनीय अपराध है।दारोगा प्राचार्य कक्ष जाकर चिरंजीवी राय के सामने कुछ लड़के,लड़कियों और शिक्षकों का बयान लिया जिसने ये बताया कि अनुपमा झा समय पर कार्यालय नहीं आती और सामान देने से मना करती है।लेकिन ये लोग चिरंजीवी राय  के सामने दवाब में ऐसा बोल रहे थे जिन्हें प्राचार्य कक्ष के बाहर कुछ चमचे शिक्षकों द्वारा सिखाया जा रहा था।जब अनुपमा झा का चिरंजीवी राय से विवाद है,फिर वह चिरंजीवी राय के अधीन रहते हुए भी उसके मिलीभगत के बगैर ऐसा कैसे कर सकती है?वैसे भी चिरंजीवी राय पर अनुपमा झा ने जो आरोप लगाया वो एक अलग मामला है जिसका डरपोक छात्रों,शिक्षकों के आरोप से कोई संबंध नहीं है,इसलिए दारोगा द्वारा चिरंजीवी राय के विरुध्द मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए था।
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