फर्जी
मुकदमा के विरुध्द सहयोग करने के लिए शायद ही कोई आगे आता है,लेकिन दिल्ली
में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता,पत्रकार और फेसबुक मित्र देवेन्द्र
भारती जी मेरा एक फेसबुक स्टेटस पढ़ने के बाद आगे आए।ये एक संस्था से जुड़े
हैं,जिससे जुड़े दिल्ली उच्च न्यायालय का एक वरिष्ठ अधिवक्ता नागेश्वर झा
(एक RTI कार्यकर्ता जिसे झूठा फंसाया गया है ) द्वारा भेजे गए फाइल का
अध्ययन कर रहे हैं और फिर इस संस्था द्वारा नागेश्वर झा को सहयोग की जाएगी।
बिहार बोर्ड के परीक्षा में होने वाली फर्जीवाड़ा का खुलासा करने के कारण माधवेन्द्र झा (यूभीके कॉलेज,मधेपुरा का प्राचार्य जिसके विरुध्द बिहार बोर्ड के साथ मिलीभगत करके गड़बड़ी करने का खुलासा हुआ ) द्वारा नागेश्वर झा को बलात्कार,बलात्कार का प्रयास,ठगी जैसे कई आरोप में फंसा दिया गया।बलात्कार और बलात्कार के प्रयास के मामले का समीक्षा करके मैं दोनों को गलत सिध्द कर चुका हूँ,प्रस्तुत है ठगी के फर्जी आरोप की समीक्षा-
Complaint Case No.1024/2013,दिनांक 23/8/2013
1.नागेश्वर झा के विरुध्द आरोप लगायी गई है कि कॉलेज द्वारा UGC प्रदत रिमेडियल कोचिंग मद से जरुरी काम के लिए उन्हें 70000 रुपये उधार दिया गया,लेकिन नागेश्वर झा ने अभी तक रुपये नहीं लौटाया।रुपये देने वाले लेखापाल का बीमार होने के कारण लेन-देन को रजिस्टर पर दर्ज करके नागेश्वर झा का हस्ताक्षर नहीं लिया जा सका।लेखापाल को ये भी लगा कि एक महीने के भीतर रुपये वापस करने का करार हुआ है,इसलिए रजिस्टर में दर्ज करने की क्या जरुरत है।
2.ये मुकदमा Non-maintainable है क्योंकि UGC द्वारा प्रदत Remedial Coaching मद एक सरकारी मद है,जिसके लेन-देन का लिखित ब्यौरा होना अनिवार्य है।किसी भी सरकारी मद की राशि के बारे में बगैर लिखित ब्यौरा का ठग लेने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि इसकी भी संभावना है कि जिसने आरोप लगाया है,उसने रुपये का खुद अवैध निकासी कर लिया हो और खुद को बचाने के लिए रुपये उधार देने का कहानी गढ़ दिया हो।किसी ने अपने घर से उधार नहीं दिया,जिसका ब्यौरा नहीं भी रहेगा तो काम चल जाएगा।लेकिन मुकदमा का Non-maintainable होने के बावजूद मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने वाद को स्वीकार करके विचारण शुरु कर दिया,जो गैर-कानूनी और असंवैधानिक है।
3.रिमेडियल कोचिंग मद रिमेडियल कोचिंग को संचालित करने के लिए दिया जाता है,फिर इस रुपया को किसी के जरुरी काम के लिए उधार कैसे दिया गया?इस मद का उपयोग किसी दूसरे कार्य के लिए करना अवैध निकासी की दायरे में आता है और जब उधार देने का कोई सबूत भी नहीं है तो इसे अवैध निकासी ही माना जाएगा।मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी,मधेपुरा को वाद स्वीकार करने के बजाय वाद दायर करने वाले के विरुध्द अवैध निकासी का मुकदमा कर देना चाहिए था।
4.जब बीमार होने के बावजूद 70000 रुपये लेखापाल उधार दे सकता है तो फिर उसका रजिस्टर में ब्यौरा दर्ज क्यों नहीं कर सकता? रजिस्टर में ब्यौरा दर्ज करना रुपये देने से ज्यादा आसान काम है।फिर लेखापाल के बारे में कहा गया है कि एक महीने में वापस कर देने का करार होने के कारण उसने ब्यौरा दर्ज करना उचित नहीं समझा।यहाँ पर ये विरोधाभास है कि आखिर बीमार होने के कारण लेखापाल ब्यौरा दर्ज नहीं कर सका या एक महीने का करार होने के कारण और विरोधाभास का मतलब होता है झूठा आरोप।
5.पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता राजीव रंजन ने लेखापाल को नागेश्वर झा द्वारा भेजे गए मानहानि नोटिस के जवाब के पारा 3 में लिखा है कि नागेश्वर झा को केश या चेक के रुप में 70000 रुपये उधार दिया गया है।अधिवक्ता अपने Client द्वारा दी गई सूचना के आधार पर जवाब भेजते हैं।मतलब उनके Client के मुताबिक उन्होंने केश या चेक के रुप में उधार दिया।मतलब Client को खुद ये मालूम नहीं है कि उन्होंने उधार केश के रुप में दिया था या चेक के रुप में।इस विरोधाभास के आधार पर आरोप को खारिज कर देना चाहिए।
बिहार बोर्ड के परीक्षा में होने वाली फर्जीवाड़ा का खुलासा करने के कारण माधवेन्द्र झा (यूभीके कॉलेज,मधेपुरा का प्राचार्य जिसके विरुध्द बिहार बोर्ड के साथ मिलीभगत करके गड़बड़ी करने का खुलासा हुआ ) द्वारा नागेश्वर झा को बलात्कार,बलात्कार का प्रयास,ठगी जैसे कई आरोप में फंसा दिया गया।बलात्कार और बलात्कार के प्रयास के मामले का समीक्षा करके मैं दोनों को गलत सिध्द कर चुका हूँ,प्रस्तुत है ठगी के फर्जी आरोप की समीक्षा-
Complaint Case No.1024/2013,दिनांक 23/8/2013
1.नागेश्वर झा के विरुध्द आरोप लगायी गई है कि कॉलेज द्वारा UGC प्रदत रिमेडियल कोचिंग मद से जरुरी काम के लिए उन्हें 70000 रुपये उधार दिया गया,लेकिन नागेश्वर झा ने अभी तक रुपये नहीं लौटाया।रुपये देने वाले लेखापाल का बीमार होने के कारण लेन-देन को रजिस्टर पर दर्ज करके नागेश्वर झा का हस्ताक्षर नहीं लिया जा सका।लेखापाल को ये भी लगा कि एक महीने के भीतर रुपये वापस करने का करार हुआ है,इसलिए रजिस्टर में दर्ज करने की क्या जरुरत है।
2.ये मुकदमा Non-maintainable है क्योंकि UGC द्वारा प्रदत Remedial Coaching मद एक सरकारी मद है,जिसके लेन-देन का लिखित ब्यौरा होना अनिवार्य है।किसी भी सरकारी मद की राशि के बारे में बगैर लिखित ब्यौरा का ठग लेने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि इसकी भी संभावना है कि जिसने आरोप लगाया है,उसने रुपये का खुद अवैध निकासी कर लिया हो और खुद को बचाने के लिए रुपये उधार देने का कहानी गढ़ दिया हो।किसी ने अपने घर से उधार नहीं दिया,जिसका ब्यौरा नहीं भी रहेगा तो काम चल जाएगा।लेकिन मुकदमा का Non-maintainable होने के बावजूद मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने वाद को स्वीकार करके विचारण शुरु कर दिया,जो गैर-कानूनी और असंवैधानिक है।
3.रिमेडियल कोचिंग मद रिमेडियल कोचिंग को संचालित करने के लिए दिया जाता है,फिर इस रुपया को किसी के जरुरी काम के लिए उधार कैसे दिया गया?इस मद का उपयोग किसी दूसरे कार्य के लिए करना अवैध निकासी की दायरे में आता है और जब उधार देने का कोई सबूत भी नहीं है तो इसे अवैध निकासी ही माना जाएगा।मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी,मधेपुरा को वाद स्वीकार करने के बजाय वाद दायर करने वाले के विरुध्द अवैध निकासी का मुकदमा कर देना चाहिए था।
4.जब बीमार होने के बावजूद 70000 रुपये लेखापाल उधार दे सकता है तो फिर उसका रजिस्टर में ब्यौरा दर्ज क्यों नहीं कर सकता? रजिस्टर में ब्यौरा दर्ज करना रुपये देने से ज्यादा आसान काम है।फिर लेखापाल के बारे में कहा गया है कि एक महीने में वापस कर देने का करार होने के कारण उसने ब्यौरा दर्ज करना उचित नहीं समझा।यहाँ पर ये विरोधाभास है कि आखिर बीमार होने के कारण लेखापाल ब्यौरा दर्ज नहीं कर सका या एक महीने का करार होने के कारण और विरोधाभास का मतलब होता है झूठा आरोप।
5.पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता राजीव रंजन ने लेखापाल को नागेश्वर झा द्वारा भेजे गए मानहानि नोटिस के जवाब के पारा 3 में लिखा है कि नागेश्वर झा को केश या चेक के रुप में 70000 रुपये उधार दिया गया है।अधिवक्ता अपने Client द्वारा दी गई सूचना के आधार पर जवाब भेजते हैं।मतलब उनके Client के मुताबिक उन्होंने केश या चेक के रुप में उधार दिया।मतलब Client को खुद ये मालूम नहीं है कि उन्होंने उधार केश के रुप में दिया था या चेक के रुप में।इस विरोधाभास के आधार पर आरोप को खारिज कर देना चाहिए।
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