Thursday, 31 July 2014

अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी,समस्तीपुर सदर और पूसा थानाध्यक्ष के विरुध्द FIR दर्ज कर जेल भेजा जाए।





तत्कालिन पुलिस महानिरीक्षक, दरभंगा प्रक्षेत्र, श्री अरविंद पांडे  ने मेरे द्वारा चिरंजीवी राय (प्राचार्य,जवाहर नवोदय विद्यालय,बिरौली,समस्तीपुर) व अन्य के विरुध्द दायर की गई आवेदन को पुलिस अधीक्षक,समस्तीपुर को जांच के लिए भेजा  था।जांच अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ,समस्तीपुर सदर और थानाध्यक्ष पूसा के द्वारा की गई।अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी द्वारा समर्पित की गई जांच प्रतिवेदन की एक छायाप्रति सूचना का अधिकार आवेदन के द्वारा पुलिस महानिरीक्षक के आदेश के बाद अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी,समस्तीपुर सदर के कार्यालय द्वारा  भेजी गई है,जिसकी समीक्षा प्रस्तुत है-

1.दिनांक 7/4/2014 को तत्कालिन पुलिस महानिरीक्षक श्री अरविंद पांडे ने पुलिस अधीक्षक,समस्तीपुर को आदेश जारी किया कि जिन पदाधिकारियों/कर्मचारियों के कारण मेरे द्वारा दिनांक 17/1/2014 को  समर्पित किए गए आवेदन के आलोक में जांच करने में विलंब हुई,उनके विरुध्द विभागीय कार्यवाही के विरुध्द स्पष्टीकरण समर्पित किया जाए।दिनांक 7/4/2014 का ही अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी का जांच प्रतिवेदन है।जबकि दिनांक 7/4/2014 को जब पुलिस महानिरीक्षक कायार्लय द्वारा पड़ताल की गई तो पता चला कि अभी भी मेरा आवेदन अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के कार्यालय में लंबित है। अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी जांच करने में विलंब करने के कारण विभागीय कार्रवाई के विरुध्द स्पष्टीकरण देने से बचने के लिए तत्कालिन पुलिस महानिरीक्षक श्री अरविंद पांडे  के आदेश  के  बाद  बैक डैट (पूर्व की तारीख ) में जांच प्रतिवेदन तैयार किया है।अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने जांच प्रतिवेदन में लिखा है कि थानाध्यक्ष पूसा और पुलिस निरीक्षक,मुफ्फसिल की उपस्थिति में विद्यालय में उपलब्ध अभिलेख का अध्ययन किया गया।मतलब अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी विद्यालय गए।दिनांक 7/4/2014 का पूसा थाना का स्टेशन डायरी की जांच किया जाए कि ये विद्यालय गए या नहीं।

2.पुलिस महानिरीक्षक को मेरे द्वारा दिनांक 17/1/2014 को जो आवेदन दिया गया था,उसमें सिर्फ मैंने अपना व्यक्तिगत मामला को लेकर ही आरोप नहीं लगाया था कि प्राचार्य के विरुध्द नवोदय विद्यालय समिति,मुख्यालय में शिकायत करने के बाद मुझे जबरन बिना साक्ष्य का आरोपित कर बाहर कर दिया गया और फिर मानवाधिकार आयोग में इसकी शिकायत करने के बाद प्राचार्य ने खुद को बचाने   और मेरे विरुध्द मामला दिखाने के लिए पूर्व की तारीख  (बैक डैट) में शिकायत पत्रों को तैयार करवाया,बल्कि मैंने प्राचार्य द्वारा कई लड़के,लड़कियों और कर्मचारियों को प्रताड़ित किए जाने,मैट्रॉन के बेटा और बेटी का नामांकन कराने में फर्जीवाड़ा करने,अपने दो बेटा का गलत तरीके से नामांकन कराने,अवैध तरीके से सरकारी पेड़ काटकर बेचने आदि का भी आरोप संबंधित पीड़ितों के बयान और संबंधित दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर  लगाया।लेकिन अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी द्वारा जांच सिर्फ मेरा निजी मामले को लेकर की गई।अतः जाहिर है कि प्राचार्य को अन्य आरोप से बगैर जांच बरी कर दिया गया क्योंकि मैंने इन आरोपों के समर्थन में पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत किया है जिसकी जांच करने पर प्राचार्य बच नहीं सकते। 

3.मेरे पक्ष और प्राचार्य के विरोध में गवाहों का बयान,प्राचार्य का मेरे द्वारा की गई फोन  रिकार्डिंग में अपराध की स्वीकृति,मेरे विरुध्द बनाई गई शिकायत पत्रों में अंकित की गई तिथि और इन शिकायत पत्रों में हस्ताक्षर के साथ अंकित की गई तिथि में अंतर,शिकायत पत्रों में दर्ज विरोधाभासी बयानों, प्राचार्य के विरुध्द मेरे द्वारा  NVS में शिकायत करने के बाद मेरे विरुध्द कथित  शिकायत पत्र बनाए जाने,वर्तमान की घटना और वर्तमान में कार्रवाई का मांग   किए जाने के बावजूद शिकायत पत्रों का कुछ वाक्य/शब्दों को  भूत काल में  लिखे जाने,RTI से मेरे द्वारा पूछे गए कई सवालों का जवाब प्राचार्य व अन्य  अधिकारियों द्वारा नहीं दिए जाने,तत्कालिन जिलाधिकारी कुंदन कुमार द्वारा  जिलाधिकारी के पास की गई कथित शिकायत से फोन रिकार्डिंग में अनभिज्ञता  जताने  आदि के मद्देनजर मेरे द्वारा आरोप लगायी गई कि प्राचार्य ने खुद को  बचाने और मेरे विरुध्द मामला दिखाने के नियत से मेरे विरुध्द सभी शिकायत  पत्रों को पूर्व की तारीख में बनवाया है जो फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी है।लेकिन  अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने मेरे विरुध्द बनाए गए शिकायत पत्रों के आधार पर  ही आरोप को सत्य करार दे दिया है।मैंने मेरे विरुध्द बनाए गए शिकायत  पत्रों के विरोध में ही उपरोक्त साक्ष्यों को दस्तावेज व गवाहों के बयान  सहित विस्तृत विश्लेषण द्वारा प्रस्तुत किया है।जब तक मेरे द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों को गलत साबित नहीं किया जा सकता,तब तक यहीं सिध्द होता है कि प्राचार्य ने सभी दस्तावेजों को पूर्व की तारीख में बना लिया है।
अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने मेरे द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों की चर्चा किए बगैर (उसे गलत साबित किए बगैर) मेरे विरुध्द दायर किए गए शिकायत पत्रों में लगे आरोपों को सत्य करार दे दिया जबकि इन शिकायत पत्रों को सत्य करार देने से पहले इन शिकायत पत्रों के विरोध में मेरे द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों को गलत साबित  करना पड़ेगा।इन साक्ष्यों को गलत साबित करना असंभव है,इसलिए इन साक्ष्यों की चर्चा भी नहीं की गई।

4.प्राचार्य,शिक्षकों और  उस छात्र की माँ के बयान के आधार पर मेरे विरुध्द उस छात्र के साथ अप्राकृतिक कृत्य करने के  लगाए गए आरोप को सत्य बताया गया है।मेरे विरुध्द उस छात्र के साथ अप्राकृतिक कृत्य करने को लेकर ना ही उस छात्र का वैसा बयान है और ना ही कोई अन्य चश्मदीद गवाह और परिस्तिथिजन्य साक्ष्य  है।प्राचार्य,शिक्षक और उस छात्र की माँ चश्मदीद गवाह नहीं हैं और ना ही किसी भी रुप में परिस्तिथिजन्य साक्ष्य हैं।उस छात्र की माँ ने चार विरोधाभासी बयान चार विभिन्न शिकायत पत्रों में दिया है और उनका एक भी बयान उनके पुत्र के बयान से नहीं मिलता।उसकी माँ ने इन चार विरोधाभासी बयानों में भी कहीं पर ये नहीं लिखा है कि उनके बेटा ने उन्हें अप्राकृतिक कृत्य के बारे में बताया।उनके बेटा के बयान में भी वैसा कुछ भी नहीं लिखा है और ना ही ये लिखा है कि उसने अपनी माँ को ऐसी किसी भी घटना की सूचना दी।उसकी माँ ने चार विरोधाभासी बयान दिया है जिसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 155(3) के तहत असत्य करार दिया जाना चाहिए। उस छात्र की माँ द्वारा लगायी गई विरोधाभासी आरोप में से किसी के बारे में भी उनका पुत्र ने  उन्हें  बताया होता तो भी ये सबूत तभी मानी जाती जब उसका पुष्टि उनका पुत्र के द्वारा की जाती।उसकी माँ Second hand informant  या Hearsay evidence है जिसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 60 के तहत सबूत तभी मानी जाएगी जब इसकी पुष्टि Original informant मतलब उस छात्र के द्वारा की जाती है।अतः ये स्पष्ट है कि बगैर साक्ष्य का मेरे विरुध्द लगाए गए आरोप को सत्य करार दिया गया है।

5.अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने अपने जांच प्रतिवेदन में लिखा है कि एके तिवारी,तत्कालिन सहायक आयुक्त,नवोदय विद्यालय समिति,पटना संभाग ने भी मेरे विरुध्द लगाए गए आरोप को सत्य करार दिया।पुलिस महानिरीक्षक को दिए गए आवेदन में मैंने एके तिवारी को भी अभियुक्त बनाकर FIR दर्ज करने के लिए आग्रह किया है क्योंकि एके तिवारी ने मेरा पक्ष लिए बगैर जांच प्रतिवेदन तैयार किया और एके तिवारी ने उस छात्र की माँ के बारे में लिखा है कि उन्होंने अपने बेटा के द्वारा सूचना दिए जाने के आधार पर शिकायत दर्ज कराया है कि मैं उनके बेटा के साथ अप्राकृतिक कृत्य करता था।लेकिन उनके बेटा के बयान में वैसा कुछ भी नहीं लिखा है और ना ही ये लिखा है कि उसने अपनी माँ को ऐसी किसी भी घटना की सूचना दी।एके तिवारी द्वारा दिनांक 12/2/2012 को जांच प्रतिवेदन तैयार की गई लेकिन उसके माँ द्वारा किसी सूचना के  आधार पर  अप्राकृतिक कृत्य किए जाने का उल्लेख दिनांक 13/9/2012 को अनुमंडलाधिकारी के समक्ष दायर की गई कथित शिकायत पत्र में  किया गया है। किसी भी शिकायत पत्र में अपने बेटा के सूचना के आधार पर कथित अप्राकृतिक कृत्य का उन्होंने उल्लेख नहीं किया है,फिर एके तिवारी ने ऐसा किस आधार पर लिखा है कि उन्होंने अपने बेटा के  सूचना के आधार पर कथित अप्राकृतिक कृत्य का उल्लेख किया है?अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी  ने भी अपने जांच  प्रतिवेदन में उल्लेख किया है कि उस छात्र के द्वारा दी गई सूचना के आधार  पर उसकी माँ ने प्राचार्य को शिकायत किया कि मैं उनके बेटा के साथ अनैतिक  रुप से गलत व्यवहार करता था।प्राचार्य के पास उसके माँ द्वारा  दो  कथित शिकायत पत्र दायर की गई लेकिन किसी भी शिकायत पत्र में उनके बेटा  द्वारा अनैतिक रुप से गलत व्यवहार की जाने संबंधित सूचना उन्हें दी जाने का  उल्लेख नहीं किया गया है।फिर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी किस आधार पर कह रहे  हैं कि उनके बेटा द्वारा उन्हें ऐसी सूचना दी गई  जिसके बारे में उन्होंने  प्राचार्य को शिकायत किया? एके तिवारी के द्वारा की गई जांच विभागीय  था,लेकिन अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के द्वारा किया गया जांच कानूनी होता  है,फिर किस आधार पर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी द्वारा अपने जांच के समर्थन  में एके तिवारी के जांच प्रतिवेदन को आधार बनाया गया? 

6.अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के जांच प्रतिवेदन में उल्लेख किया गया है कि  मेरे द्वारा उस छात्र की माँ को धमकी भरा पत्र भेजा गया।लेकिन मैंने  अवमानना नोटिस भेजा था,जिसे जिलाधिकारी,अनुमंडलाधिकारी और प्राचार्य को भी  भेजी गई थी।इस   नोटिस में उल्लेख किया गया है कि उनके द्वारा बिना साक्ष्य का 6 महीना बाद  मेरे विरुध्द शिकायत दायर की गई और ऐसा करके मेरा अनुच्छेद 21 का हनन हुआ  है,जिसके आलोक में अपना जवाब भेजना सुनिश्चित करे अन्यथा उनपर कानूनी  कार्रवाई की जा सकती है।एक अन्य पत्र में मैंने उन्हें प्राचार्य द्वारा  उनका और उनके पुत्र का इस्तेमाल करके बनाए गए शिकायत पत्रों की छायाप्रति  को संलग्न करके भेजा है और सारी गड़बड़ियों को मानवीय आधार पर बताते हुए ये  आग्रह किया गया है कि वह स्वीकार करे कि प्राचार्य ने उनपर दवाब देकर इन   शिकायत पत्रों को बनवाया है।मैंने लिखा है कि मानवीय आधार पर मैं ऐसा कह  रहा हूँ और सच्चाई स्वीकार करने में ही उनकी भलाई है।इसमें धमकी भरा शब्द  का इस्तेमाल कहाँ हुई है?भलाई का गलत अर्थ निकाला जा सकता है।लेकिन स्पष्ट  है कि मैंने मानवीय आधार पर ऐसा कहा है।मतलब मैं ये कहना चाह रहा हूँ कि  यदि  आप ये स्वीकार कर लेंगे कि प्राचार्य ने आपका इस्तेमाल दवाब देकर किया है  तो प्राचार्य के साथ आपराधिक साजिश में शामिल होने का मुकदमा आप पर नहीं  चलेगा,बल्कि सिर्फ एक गवाह के तौर पर आपको देखा जाएगा।अतः सच्चाई स्वीकार करने में ही उनकी भलाई निहित है।यदि उन्हें भेजी गई पत्रों का अवलोकन अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने किया तो फिर उन्हें धमकी भरा शब्द कैसे दिख गया?

7.अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने मुझे गलत साबित करने के लिए जानबूझकर मामला को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया है।जांच प्रतिवेदन में लिखा गया है कि स्कूल के शिक्षकों ने बताया कि मैं बिना अनुमति के विद्यालय से अनुपस्थित हो जाता था।ऐसा लिखा गया है कि मानो कि मैं बार बार बिना अनुमति का अनुपस्थित हो जाता था।लेकिन प्राचार्य के द्वारा एके तिवारी और बिहार मानवाधिकार आयोग को समर्पित किए गए प्रतिवेदन से स्पष्ट होता है कि मैं सिर्फ एक बार दिनांक 24/8/2011 को बिना अनुमति दिल्ली चला गया था।एके तिवारी के जांच प्रतिवेदन से ये स्पष्ट होता है कि मैं दिनांक 24/8/2011 को  अनुमति लिए बगैर नवोदय विद्यालय समिति मुख्यालय गया था।मतलब मैंने प्राचार्य के विरुध्द मुख्यालय जाकर शिकायत किया था।अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने अपने जांच प्रतिवेदन में लिखा है कि मुझे उस छात्र के  बिस्तर पर जाकर सोने से हाउस मास्टर द्वारा कई बार मना किया गया,लेकिन मैं अपनी हरकतों से बाज नहीं आता था।उस छात्र के हाउस मास्टर के संदर्भ में चार विरोधाभासी बयान दी गई है और यदि किसी भी विरोधाभासी बयान को सत्य ना मानने का कानून होने के बावजूद यदि सत्य मान लिया जाए,फिर भी सिर्फ एक बार ही किसी कारण से उस छात्र के हाउस मास्टर द्वारा मना करने का तथ्य उजागर होता है।उस छात्र ने बयान में कहा है कि जब उसके हाउस मास्टर ने उसे रात्रि में भोजन के बाद रुम से बाहर जाने से मना किया तो मैं हाउस मास्टर के साथ उलझ गया।एके तिवारी ने जांच प्रतिवेदन में कहा है  कि जब उस छात्र के हाउस मास्टर द्वारा मुझे जूनियर हॉस्टल में जाने से मना किया गया तो मैंने हाउस मास्टर के साथ दुर्व्यव्हार किया।प्राचार्य द्वारा एके तिवारी और बिहार मानवाधिकार आयोग को समर्पित प्रतिवेदन में कहा गया है  कि  जब हाउस मास्टर ने मुझे उसके बिस्तर पर सोने से मना किया तो मैंने हाउस मास्टर के साथ दुर्व्यव्हार किया।उपायुक्त,NVS,पटना संभाग को मेरा अनुपस्थित हो जाने के बाद  प्राचार्य द्वारा  भेजे गए प्रतिवेदन में कहा गया है कि उस छात्र के हाउस मास्टर को मेरा व्यवहार के कारण परेशानी होती थी।उक्त हाउस मास्टर के संदर्भ में चार विरोधाभासी बयान दिया गया है,इसलिए ये स्पष्ट है कि हाउस मास्टर के साथ दुर्व्यव्हार नहीं हुआ।इन विरोधाभासी बयानों से कई बार मना करने की बात तो दूर,ये भी स्पष्ट नहीं है कि आखिर किस बात को लेकर एक बार भी मना किया गया था।
मेरा हाउस मास्टर के कथित शिकायत में लिखा है कि उन्होंने मुझे एक बार सोने से मना किया,इसलिए मेरा हाउस मास्टर के बयान के आधार पर यदि कई बार मना करने के बारे में लिखा गया है तो ये स्वतः असत्य है।मेरा हाउस मास्टर से उक्त शिकायत को प्राचार्य ने पूर्व की तारीख में बनवाया है और उसमें लिखा गया सारा कथन असत्य है।ये कथित शिकायत कथित घटना के पाँच महीने बाद दिनांक 24/8/2011 को दायर की गई जिस दिन मैं विद्यालय से गायब था।प्राचार्य उस दिन NVS पटना गए हुए थे और 10 बजे रात में विद्यालय लौटे। इसलिए मेरा गायब होने की जानकारी प्रभारी प्राचार्या द्वारा पुलिस को दी गई और  प्राचार्य ने अगले दिन  मेरा गायब होने की जानकारी NVS पटना उपायुक्त को दी जिसमें लिखा है कि कल वह NVS पटना में थे।आखिर पाँच महीने पूर्व की कथित घटना को लेकर शिकायत मेरा गायब होने के दिन क्यों की गई?ऐसी क्या जरुरत पड़ी कि रात्रि में 10 बजे के बाद पाँच महीने पूर्व की शिकायत दर्ज करायी  गई?दिनांक 24/8/2011 का ही शिकायत होने के बावजूद ये लिखा गया है कि "दिनांक 24/8/2011 को राहुल कुमार विद्यालय से गायब हो गया।मेरा पिताजी ने दिनांक 24/8/2011 को शाम में कहा कि मेरा अपहरण कर लिया गया है।शिक्षकों और प्राचार्य पर मुकदमा की जाएगी।" दिनांक 24/8/2011 की कथित शिकायत होने के बावजूद ये कहा गया है कि दिनांक 24/8/2011 को गायब हो गया।'आज' शब्द का प्रयोग कहीं भी नहीं किया गया है और दिनांक 24/8/2011 को मेरा कोई पता नहीं चलने के बावजूद ये नहीं लिखा गया है कि उसकी अभी तक कोई पता नहीं चला है या वो अभी भी गायब है।मेरा हाउस मास्टर ने उस तिथि को मेरे बारे में पता नहीं चलने के बावजूद उस तिथि को ही इस सन्दर्भ में लिखा है कि मेरा अपहरण नहीं हुआ है।मतलब ये शिकायत दिनांक 24/8/2011 के बाद बनायी गई है जब मेरा पता चल चुका था लेकिन बैक डैटिंग करके 24/8/2011 का दिनांक डाल दिया गया है।मेरा हाउस मास्टर के शिकायत में और उस छात्र के शिकायत में मेरे विरुध्द कोई कार्रवाई की मांग नहीं की गई है।मतलब जब शिकायत बनाई गई,उस समय मेरा विद्यालय परित्याग प्रमाण पत्र निर्गत हो चुका था,इसलिए कोई कार्रवाई की मांग नहीं की गई लेकिन शिकायत पर मेरा विद्यालय परित्याग प्रमाण पत्र का निर्गत होने से पहले का तारीख डाल दिया गया है।अतः ये स्पष्ट है कि बैक डैट में शिकायत बनाया गया है।

8.अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के जांच प्रतिवेदन में पूसा  थानाध्यक्ष द्वारा भी जांच प्रतिवेदन समर्पित की जाने के बारे में बताया गया है,जिसमें भी अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी द्वारा किए गए जांच में आये तथ्यों की पुष्टि की गई है,लेकिन मुझे सूचना का अधिकार आवेदन भेजने के बावजूद थानाध्यक्ष द्वारा की गई जांच प्रतिवेदन को उपलब्ध नहीं कराया गया।

9.थानाध्यक्ष और अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी एक पक्षीय जांच करने,  निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बगैर जांच करने,सभी बिन्दुओं पर जांच नहीं करने और बिना साक्ष्य का मुझे गलत आचरण का करार देने और ऐसा करके प्राचार्य को बचाने और मुझे मानसिक क्षति पहुँचाने के लिए IPC का कई धाराओं के तहत दोषी हैं।इनके विरुध्द IPC का धारा 166 मतलब  लोकसेवक द्वारा क्षति पहुँचाने के नियत से कानूनी दिशानिर्देश/प्रावधान का पालन नहीं किया  जाना,धारा 166A(b) मतलब लोकसेवक द्वारा सही तरीके से जांच नहीं करना,धारा 182 मतलब परेशान करने के नियत से झूठा सूचना देना,धारा 217 मतलब लोकसेवक द्वारा  किसी को बचाने के नियत से  कानूनी दिशानिर्देश/प्रावधान का पालन नहीं किया जाना,धारा 218 यानि लोकसेवक द्वारा किसी को बचाने या क्षति पहुँचाने के नियत से गलत प्रतिवेदन तैयार किया जाना और धारा 500 मतलब मानहानि करना  आदि धाराओं के तहत मामला बनता है।
पूसा थानाध्यक्ष ने विद्यालय की महिला कर्मचारी अनुपमा झा द्वारा प्राचार्य के विरुध्द मानसिक प्रताड़ना और धमकाने का लगाए गए आरोप पर FIR दर्ज करने से दिनांक 5/4/2014 को मना कर दिया था।FIR को IPC का धारा 323,504,506 और 509 के तहत दर्ज किया जाना था।IPC का धारा 509 के तहत मामला बनने के बावजूद FIR दर्ज नहीं किया गया जिसके लिए थानाध्यक्ष के विरुध्द IPC का धारा 166A(c) के तहत मुकदमा चलना चाहिए।  
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