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इन दो सरकारी मनमानी के विरुध्द सजा का प्रावधान हो।
1.अधिकारी हमारी संवैधानिक और मानवाधिकार से जुड़ी मांगो को मानने के लिए कानूनी रुप
से बाध्य हो,ऐसा कानून बनना चाहिए।उचित मांग का क्रियान्यवन ना होने पर सजा
का भी प्रावधान होना चाहिए।स्वास्थ्य,शिक्षा,बिजली,प ानी,सड़क,रोजगार
आदि से जुड़ी मांग और इन सुविधाओं को दुरुस्त करने से जुड़ी मांगों के लिए
कानूनी बाध्यता और सजा का प्रावधान होना चाहिए।
APL वाले का BPL में और BPL वाले का APL में नाम डालने वाले पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?जिलाधिकारी के पास शिकायत करने के बावजूद BPL में नाम क्यों नहीं डलवाया जाता?अंधा तो अधिकारी है जिसे दिखता नहीं कि सुविधा पाने का हकदार कौन है।इन सब चीजों का क्रिन्यावयन के लिए कोई सख्त कानून नहीं है जिसमें कानूनी बाध्यता और सजा हो।
2.किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा ड्यूटी से गायब रहना (विशेषकर डॉक्टर द्वारा निजी क्लिनिक खोलकर सरकारी अस्पताल से गायब रहना,प्रोफेसर का वर्ग से गायब रहना आदि) सरकार के साथ ठगी और धोखाधड़ी है क्योंकि इन्हें मासिक वेतन मिलती है,लेकिन ये काम नहीं करते जिससे सरकारी पैसे को ठगा जा रहा है और धोखा करके ये लोग वेतन पा रहे हैं।इसलिए इनपर ठगी के लिए IPC का धारा 409,धोखाधड़ी के लिए धारा 420 के साथ फर्जी उपस्थिति दिखाने के लिए फर्जीवाड़ा(धारा 465,466,468 और 471) का भी मामला बनता है।लेकिन आज तक कभी ऐसे कर्मचारी पर कार्रवाई नहीं हुई।इस दिशा में एक दिशानिर्देश सरकार या हाईकोर्ट/सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किया जाना चाहिए।
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पुलिस अधीक्षक तक के पुलिस अधिकारी को Indian Evidence Act,1872 और Evidences से जुड़ी उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णयों की जानकारी दिया जाए।इन पुलिस अधिकारी को शायद ही ये मालूम होती कि किस गवाह को सबूत माना जाए और किसे नहीं।पुलिस अधिकारी शायद ही गवाहों के बारे में ये जानते हो कि HEARSAY EVIDENCE को मान्य सबूत भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की किस धारा के तहत नहीं माना गया है।विरोधाभासी बयानों को इस अधिनियम के किस धारा के तहत खारिज कर दिया जाना चाहिए?यदि कोई पिछले बयान को बदलकर नया बयान देता है तो इसे किस स्थिति में स्वीकार करना चाहिए?क्या पिछले बयान से बदलकर नया बयान देने वाले को ये प्रमाणित करने के लिए कहना चाहिए कि वह प्रमाणित करे कि उसने पहले जो बयान दिया था,वह दवाब में दिया था?साक्ष्यों को Corroborate करने का तरीका मालूम नहीं है।पुलिस साक्ष्य का गलत व्याख्या करके रिपोर्ट बना देती है जो काफी दुखद है।फोन रिकार्डिँग,कॉल डिटेल रिकॉर्ड आदि इस अधिनियम के किन धाराओं के तहत सबूत है और सुप्रीम कोर्ट के किस निर्णय में सबूत माना गया है?इन बातों की जानकारी पुलिस अधीक्षक तक को शायद ही होती है।
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Presently,i am a student of economics honours.I am planned to be a lawyer.I want to fight for legal reforms,so that fear of law settled in the mind of people can be removed.I have filed two PILs for the legal reforms.One against the false allegations-especially against false allegations imposed on whistle blowers-by demanding that if a whistle blower is implicated,then solely on the ground that he is the whistle blower,and that motive behind the false allegation is clear,the allegation should be quashed.
Another PIL has been filed against section 497 of the IPC,as there is no right to a wife to prosecute her hushand and that another lady,who undergo sexual relationship.
Every week,i will file a PIL and the matter of the same PIL will be sent to the Indian Parliament to make or amend the law in question.
But,i want to fight more against the false allegation,which is brutaly destroying the life of many people,but we are not realizing it.Presently,there is no mechanism to control it.
............................
After going through the judgement passed by the Lucknow Bench of Allahabad High Court in the matter of PILs filed by Dr Nutan Thakur,i believe the same judgement to be unconstitutional as the court has directed to deposit Rs 25,000 along with the filing of each PIL in order to prevent the alleged Tsunamis of PILs filed by her and her husband which are as many as 160 in numbers.
1.A PIL was filed to seek stay of appointment of judges of the High Courts and the Supreme Court as the National Judicial Appointment Commission Act,2014 has been passed by the parliament.It creates a constitutional question whether collegium system should exercise its power or not,if the NJAC Act has been passed,but the court didn't consider.
2.A PIL was filed to stop the rampant transfer of IPS,IAS officers and even the Supreme Court has recommended a tenure of 2 years for the transfer of civil service officers.
3.A PIL was filed to remove Additional Advocate General from his office pursuant to an order of the State Govt.
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इन दो सरकारी मनमानी के विरुध्द सजा का प्रावधान हो।
1.अधिकारी हमारी संवैधानिक और मानवाधिकार से जुड़ी मांगो को मानने के लिए कानूनी रुप
से बाध्य हो,ऐसा कानून बनना चाहिए।उचित मांग का क्रियान्यवन ना होने पर सजा
का भी प्रावधान होना चाहिए।स्वास्थ्य,शिक्षा,बिजली,प
APL वाले का BPL में और BPL वाले का APL में नाम डालने वाले पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?जिलाधिकारी के पास शिकायत करने के बावजूद BPL में नाम क्यों नहीं डलवाया जाता?अंधा तो अधिकारी है जिसे दिखता नहीं कि सुविधा पाने का हकदार कौन है।इन सब चीजों का क्रिन्यावयन के लिए कोई सख्त कानून नहीं है जिसमें कानूनी बाध्यता और सजा हो।
2.किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा ड्यूटी से गायब रहना (विशेषकर डॉक्टर द्वारा निजी क्लिनिक खोलकर सरकारी अस्पताल से गायब रहना,प्रोफेसर का वर्ग से गायब रहना आदि) सरकार के साथ ठगी और धोखाधड़ी है क्योंकि इन्हें मासिक वेतन मिलती है,लेकिन ये काम नहीं करते जिससे सरकारी पैसे को ठगा जा रहा है और धोखा करके ये लोग वेतन पा रहे हैं।इसलिए इनपर ठगी के लिए IPC का धारा 409,धोखाधड़ी के लिए धारा 420 के साथ फर्जी उपस्थिति दिखाने के लिए फर्जीवाड़ा(धारा 465,466,468 और 471) का भी मामला बनता है।लेकिन आज तक कभी ऐसे कर्मचारी पर कार्रवाई नहीं हुई।इस दिशा में एक दिशानिर्देश सरकार या हाईकोर्ट/सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किया जाना चाहिए।
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पुलिस अधीक्षक तक के पुलिस अधिकारी को Indian Evidence Act,1872 और Evidences से जुड़ी उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णयों की जानकारी दिया जाए।इन पुलिस अधिकारी को शायद ही ये मालूम होती कि किस गवाह को सबूत माना जाए और किसे नहीं।पुलिस अधिकारी शायद ही गवाहों के बारे में ये जानते हो कि HEARSAY EVIDENCE को मान्य सबूत भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की किस धारा के तहत नहीं माना गया है।विरोधाभासी बयानों को इस अधिनियम के किस धारा के तहत खारिज कर दिया जाना चाहिए?यदि कोई पिछले बयान को बदलकर नया बयान देता है तो इसे किस स्थिति में स्वीकार करना चाहिए?क्या पिछले बयान से बदलकर नया बयान देने वाले को ये प्रमाणित करने के लिए कहना चाहिए कि वह प्रमाणित करे कि उसने पहले जो बयान दिया था,वह दवाब में दिया था?साक्ष्यों को Corroborate करने का तरीका मालूम नहीं है।पुलिस साक्ष्य का गलत व्याख्या करके रिपोर्ट बना देती है जो काफी दुखद है।फोन रिकार्डिँग,कॉल डिटेल रिकॉर्ड आदि इस अधिनियम के किन धाराओं के तहत सबूत है और सुप्रीम कोर्ट के किस निर्णय में सबूत माना गया है?इन बातों की जानकारी पुलिस अधीक्षक तक को शायद ही होती है।
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Presently,i am a student of economics honours.I am planned to be a lawyer.I want to fight for legal reforms,so that fear of law settled in the mind of people can be removed.I have filed two PILs for the legal reforms.One against the false allegations-especially against false allegations imposed on whistle blowers-by demanding that if a whistle blower is implicated,then solely on the ground that he is the whistle blower,and that motive behind the false allegation is clear,the allegation should be quashed.
Another PIL has been filed against section 497 of the IPC,as there is no right to a wife to prosecute her hushand and that another lady,who undergo sexual relationship.
Every week,i will file a PIL and the matter of the same PIL will be sent to the Indian Parliament to make or amend the law in question.
But,i want to fight more against the false allegation,which is brutaly destroying the life of many people,but we are not realizing it.Presently,there is no mechanism to control it.
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After going through the judgement passed by the Lucknow Bench of Allahabad High Court in the matter of PILs filed by Dr Nutan Thakur,i believe the same judgement to be unconstitutional as the court has directed to deposit Rs 25,000 along with the filing of each PIL in order to prevent the alleged Tsunamis of PILs filed by her and her husband which are as many as 160 in numbers.
1.A PIL was filed to seek stay of appointment of judges of the High Courts and the Supreme Court as the National Judicial Appointment Commission Act,2014 has been passed by the parliament.It creates a constitutional question whether collegium system should exercise its power or not,if the NJAC Act has been passed,but the court didn't consider.
2.A PIL was filed to stop the rampant transfer of IPS,IAS officers and even the Supreme Court has recommended a tenure of 2 years for the transfer of civil service officers.
3.A PIL was filed to remove Additional Advocate General from his office pursuant to an order of the State Govt.
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