Sunday, 31 August 2014

इन दो सरकारी मनमानी के विरुध्द सजा का प्रावधान हो।

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इन दो सरकारी मनमानी के विरुध्द सजा का प्रावधान हो।

1.अधिकारी  हमारी संवैधानिक और मानवाधिकार से जुड़ी मांगो को मानने के लिए कानूनी रुप
से बाध्य हो,ऐसा कानून बनना चाहिए।उचित मांग का क्रियान्यवन ना होने पर सजा
का भी प्रावधान होना चाहिए।स्वास्थ्य,शिक्षा,बिजली,पानी,सड़क,रोजगार आदि से जुड़ी मांग और इन सुविधाओं को दुरुस्त करने से जुड़ी मांगों के लिए कानूनी बाध्यता और सजा का प्रावधान होना चाहिए।

APL वाले का BPL में और BPL वाले का APL में नाम डालने वाले पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?जिलाधिकारी के पास शिकायत करने के बावजूद BPL में नाम क्यों नहीं डलवाया जाता?अंधा तो अधिकारी है जिसे दिखता नहीं कि सुविधा पाने का हकदार कौन है।इन सब चीजों का क्रिन्यावयन के लिए कोई सख्त कानून नहीं है जिसमें कानूनी बाध्यता और सजा हो।

2.किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा ड्यूटी से गायब रहना (विशेषकर डॉक्टर द्वारा निजी क्लिनिक खोलकर सरकारी अस्पताल से गायब रहना,प्रोफेसर का वर्ग से गायब रहना आदि) सरकार के साथ ठगी और धोखाधड़ी है क्योंकि इन्हें मासिक वेतन मिलती है,लेकिन ये काम नहीं करते जिससे सरकारी पैसे को ठगा जा रहा है और धोखा करके ये लोग वेतन पा रहे हैं।इसलिए इनपर ठगी के लिए IPC का धारा 409,धोखाधड़ी के लिए धारा 420 के साथ फर्जी उपस्थिति दिखाने के लिए फर्जीवाड़ा(धारा 465,466,468 और 471) का भी मामला बनता है।लेकिन आज तक कभी ऐसे कर्मचारी पर कार्रवाई नहीं हुई।इस दिशा में एक दिशानिर्देश सरकार या हाईकोर्ट/सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किया जाना चाहिए।


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पुलिस अधीक्षक तक के पुलिस अधिकारी को Indian Evidence Act,1872 और Evidences से जुड़ी उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णयों की जानकारी दिया जाए।इन पुलिस अधिकारी को शायद ही ये मालूम होती कि किस गवाह को सबूत माना जाए और किसे नहीं।पुलिस अधिकारी शायद ही गवाहों के बारे में ये जानते हो कि HEARSAY EVIDENCE को मान्य सबूत भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की किस धारा के तहत नहीं माना गया है।विरोधाभासी बयानों को इस अधिनियम के किस धारा के तहत खारिज कर दिया जाना चाहिए?यदि कोई पिछले बयान को बदलकर नया बयान देता है तो इसे किस स्थिति में स्वीकार करना चाहिए?क्या पिछले बयान से बदलकर नया बयान देने वाले को ये प्रमाणित करने के लिए कहना चाहिए कि वह प्रमाणित करे कि उसने पहले जो बयान दिया था,वह दवाब में दिया था?साक्ष्यों को Corroborate करने का तरीका मालूम नहीं है।पुलिस साक्ष्य का गलत व्याख्या करके रिपोर्ट बना देती है जो काफी दुखद है।फोन रिकार्डिँग,कॉल डिटेल रिकॉर्ड आदि इस अधिनियम के किन धाराओं के तहत सबूत है और सुप्रीम कोर्ट के किस निर्णय में सबूत माना गया है?इन बातों की जानकारी पुलिस अधीक्षक तक को शायद ही होती है।
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Presently,i am a student of economics honours.I am planned to be a lawyer.I want to fight for legal reforms,so that fear of law settled in the mind of people can be removed.I have filed two PILs for the legal reforms.One against the false allegations-especially against false allegations imposed on whistle blowers-by demanding that if a whistle blower is implicated,then solely on the ground that he is the whistle blower,and that motive behind the false allegation is clear,the allegation should be quashed.
Another PIL has been filed against section 497 of the IPC,as there is no right to a wife to prosecute her hushand and that another lady,who undergo sexual relationship.
Every week,i will file a PIL and the matter of the same PIL will be sent to the Indian Parliament to make or amend the law in question.
But,i want to fight more against the false allegation,which is brutaly destroying the life of many people,but we are not realizing it.Presently,there is no mechanism to control it.

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After going through the judgement passed by the Lucknow Bench of Allahabad High Court in the matter of PILs filed by Dr Nutan Thakur,i believe the same judgement to be unconstitutional as the court has directed to deposit Rs 25,000 along with the filing of each PIL in order to prevent the alleged Tsunamis of PILs filed by her and her husband which are as many as 160 in numbers.

1.A PIL was filed to seek stay of appointment of judges of the High Courts and the Supreme Court as the National Judicial Appointment Commission Act,2014 has been passed by the parliament.It creates a constitutional question whether collegium system should exercise its power or not,if the NJAC Act has been passed,but the court didn't consider.

2.A PIL was filed to stop the rampant transfer of IPS,IAS officers and even the Supreme Court has recommended a tenure of 2 years for the transfer of civil service officers.

3.A PIL was filed to remove Additional Advocate General from his office pursuant to an order of the State Govt.


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एक वैकल्पिक साम्यवाद

एक   वैकल्पिक साम्यवाद

कार्ल मार्क्स का साम्यवाद अपने मूल सिध्दांत से भटका दिया गया या साम्यवाद
के नाम पर तानाशाही चालू हो गई या ये सिध्दांत किसी भी देश में स्थायी रुप
से टीक नहीं सकी,इसका सबसे बड़ा कारण मार्क्स द्वारा प्रबंधन पर ध्यान नहीं
देना है।उत्पादन के साधन और वितरण पर सभी मजदूरों का निश्चित रुप से बराबर
अधिकार होना चाहिए लेकिन जब सभी मजदूर लाभ को बराबर हिस्से में बांट ले
तो फिर आगे की उत्पादन,तकनीकि विकास और उत्पादन बढ़ाने के लिए पूँजी कैसे
आएगी?पूँजीपति की अनुपस्थिति में फैक्ट्री का प्रबंधन कौन करेगा?इन दो
सवालों का जवाब मार्क्स ने नहीं दिया।
सारे मजदूर मिलकर प्रबंधन नहीं कर सकते ,इसलिए मजदूरों का एक प्रबंधन बोर्ड
होना चाहिए जिसका सदस्य कुछ मजदूरों को ही बनाना चाहिए और सदस्य का
निर्वाचन तय अवधि के लिए मजदूरों द्वारा होना चाहिए।ये Labour Board
फैक्ट्री को देखेगी और सभी मजदूरों के बीच समान रुप से वितरीत होने वाली
लाभ का कुछ हिस्सा Labour board द्वारा रख लिया जाएगा जिस पूँजी का उपयोग
आगे की उत्पादन,तकनीकि विकास और उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाएगा।

ये मेरे द्वारा सोचा गया एक वैकल्पिक साम्यवाद है।
वस्तुतः मैं साम्यवाद का समर्थक नहीं हूँ,लेकिन मैंने उस सिध्दांत के खामियाँ के आधार पर उसमें संशोधन करने का कोशिश किया है।


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गीता के मूल 108 श्लोकों में संपूर्ण मानवीय दर्शन निहित है लेकिन इसे परवर्ती काल में 700 श्लोंको का ग्रन्थ बनाकर गरीब- विरोधी बना दिया गया है जो वास्तव में श्रीकृष्ण का अपमान है।

गीता 17वाँ अध्याय 13वाँ श्लोक-

विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम्।
श्रध्दाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते।।

अर्थांत,शास्त्रविधि से हीन,अन्नदान से रहित,बिना मन्त्र के,बिना दक्षिणा के और बिना श्रध्दा के किये जानेवाले यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं।

एक गरीब अन्नदान और दक्षिणा देने का सामर्थ्य नहीं रखता।मतलब ऐसे यज्ञ को तामस यज्ञ कहकर एक गरीब को अन्नदान और दक्षिणा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है।श्रीकृष्ण के मूल संदेश में अपना संदेश को जोड़कर घोर पुराणपंथी ने गरीबों को भी धर्म का डर दिखाकर लूटने का युक्ति खोज लिया।


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गाँधीजी के ब्रह्मचार्य के प्रयोग को मैं गलत मानता हूँ।आप यदि ब्रह्मचार्य का पालन कर रहे हैं,तो इसे सिध्द करने की क्या जरुरत है?और सबसे बड़ी बात ये कि किसी महिला के साथ नग्न अवस्था में सोने के बाद आप या उस महिला के बयान के आधार पर ही कैसे मान लिया जाए कि आपने ब्रह्मचार्य का पालन किया क्योंकि कोई तीसरा व्यक्ति तो वहाँ पर गवाह के रुप में मौजूद नहीं था।चार यम अर्थांत सत्य,अहिंसा,अस्तेय और अपरिग्रह का जो प्रयोग गाँधी ने किया,वह प्रयोग सारे समाज के बीच हुआ।लेकिन पाँचवा यम ब्रह्मचार्य का प्रयोग एक बंद कमरा में सीमित थी,जिसकी मान्यता नहीं दी जा सकती।
किसी गैर-महिला के साथ नग्न अवस्था में सोना,एक चरम पुरुषवादी मानसिकता है।महिला क्या आपको सिर्फ एक सोने या संभोग की वस्तु दिखती है,जिसके साथ नग्न सोकर आप ये सिध्द करने चले हैं कि आप ब्रह्मचारी है।मान लेते हैं कि आपने सोने के बाद ब्रह्मचार्य का पालन किया,लेकिन ब्रह्मचार्य का प्रयोग करने का तरीका ही गलत है क्योंकि समाज में यदि लोग ऐसा करने लगे तो ना जाने एक पुरुष या एक स्त्री कितने स्त्री या पुरुष के साथ सो जाए और सामाजिक-तंत्र बर्बाद हो जाए।

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अरबी भाषा में जिहाद का अर्थ होता है अल्लाह की राह में संघर्ष करना।कुराण में
दो तरह का जिहाद अरबी भाषा में बताया गया है,जिसे हिन्दी में आंतरिक और
बाह्य जिहाद कह सकते हैं।आंतरिक जिहाद आंतरिक विकारों से युध्द करना है और बाह्य जिहाद बाह्य विकारों से।इसका एक मतलब कुछ विद्वान ये भी निकालते हैं कि आंतरिक जिहाद उस युध्द
को कहा गया है जो धर्म को कमजोर करने वाली आंतरिक संकट से लड़ा जाता
है।अर्थांत जब इस्लाम धर्म को ही अंदर से ही तोड़ने का कार्य किया
जाए।बाह्य जिहाद उस युध्द को कहा गया है जो इस्लाम धर्म पर खतरा उत्पन्न
करने वाले बाह्य कारक के विरुध्द लड़ा जाता।लेकिन आज कोई बाह्य खतरा
नहीं।उसके बावजूद जिहाद कहाँ से आ गया?अरब में जब इस्लाम का उदय हुआ था तो
उस समय लोग कबीलों में रहते थे और उन्हें बाहरी आक्रमण का खतरा रहता था और
संभवतः इसी स्थिति से बचने के लिए बाह्य जिहाद का निर्माण हुआ।पैगंबर को डर
लगता था कि इस्लाम विघटित ना हो जाए,जैसा कि शिया और सुन्नी में हो भी गया
और इस स्थिति से बचने के लिए आंतरिक जिहाद का निर्माण हुआ हो। लव जिहाद
एक आधारहीन शब्द है जिसका आंतरिक और बाह्य जिहाद से कोई संबंध नहीं है।


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साँप भी ना मरे,लाठी भी ना टूटे।

As posted on 24 Aug 2014...
मारवाड़ी
कॉलेज,दरभंगा का मनोविज्ञान विभाग का एक सरकारी प्रोफेसर द्वारा अपने मकान
के किरायेदारों के साथ की जा रही गुंडागर्दी को जानकर मुझे काफी आश्चर्य
हुआ।उस मकान में रहने वाला एक किरायेदार कल मुझसे FIR करने के लिए राय और
सहयोग लेने आया जिसने बताया कि मकान मालिक, उसका पत्नी और बेटा छात्रों से
सब्जी, दूध, आटा आदि बाजार से मंगवाता है। मना करने पर गाली देता है और थप्पड़
से मारता है।अभिभावक को मकान के अंदर आने नहीं देता है।जो छात्र मिलने
आए,उन्हें कल मकान मालिक ने 3-4 थप्पड़ मारा था और उसका बेटा ने भी 1-2
थप्पड़ मारा था।एक सप्ताह पहले एक छात्र के पिता के सामने मकान मालिक के
बेटा ने उस छात्र को पीटा,जिससे वह छात्र उस मकान को छोड़कर चला गया।जिसे कल
मार लगी वह FIR करना चाहता था।पहले तो ये बोला कि 3-4 थप्पड़ के जगह 10
थप्पड़ का आरोप लगा देंगे,जिससे मैंने मना किया।फिर मकान के कुछ लड़के से
विचार करने के बाद ये योजना बनाया कि सारे पीड़ित लड़का मकान खाली कर मकान
मालिक को कॉलेज के रास्ते में घेरकर पिटेंगे,जिससे भी मैंने मना किया।ना ही
आपको बढ़ाकर 10 थप्पड़ का आरोप लगाने से न्याय मिल सकती,ना ही घेरकर पिटने
से न्याय मिल सकती।

मैंने एक सुझाव दिया था कि यदि मुकदमा लड़ने में सक्षम
नहीं हो तो सभी मिलकर उस मकान को खाली करो।यदि सभी मिलकर मकान को खाली
करोगे तो मकान मालिक को कम से कम ये एहसास जरुर हो जाएगा कि किरायेदार उसका
गुलाम नहीं है।लगभग आठ पीड़ित छात्र उस मकान को खाली करने के लिए नए जगह
कमरा खोज रहे हैं।

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इसे
अन्यथा ना ले।

मुझे लगता है कि श्रीकृष्ण के विरुध्द IPC के निम्न धाराओं के तहत मामला
बनता लेकिन IPC के तहत ही कोई सजा नहीं होती।

मक्खन चोरी करना-380

मक्खन छीन लेना-379

वर्तन फोड़ देना-427

गोपियों का वस्त्र हरण करना-354B

कई शादी करना-494

जहाँ तक कंस जैसे पापियों का वध का सवाल है तो आज भी सेना और पुलिस के पास
आतंकवादी और क्रिमिनल को मारने का अधिकार है,इसलिए धारा 302 का मामला नहीं
बनता।

कृष्ण के द्वारा मक्खन चुराने,मक्खन छीनने,वर्तन फोड़ने की घटना शायद उस
वक्त तक ही की गई जब वह 12 वर्ष से नीचे थे और IPC का धारा 83 के मुताबिक
जो अपराध 12 वर्ष तक के बच्चे द्वारा किया गया जाता है,वह अपराध नहीं माना
जाता है।

गोपी वस्त्र हरण और कई शादी को देखा जाए तो किसी गोपी और किसी पत्नी को कोई
HARM नहीं हुई।सारी गोपियाँ वस्त्र हरण के बावजूद आनंद की अनुभूति कर रही
थी।कई पत्नियाँ होने के बावजूद सभी पत्नियाँ आनंद की अनुभूति कर रही थी।IPC
का धारा 95 के मुताबिक ऐसे किसी भी कृत्य को अपराध नहीं माना जाता जिससे
कोई HARM नहीं हुआ हो या SLIGHT HARM हुआ हो।

यदि कृष्ण 12 वर्ष से ज्यादा का भी रहा हो,फिर भी मक्खन चुराने,छीनने और बर्तन फोड़ने की घटना को SLIGHT HARM ही माना जाएगा,जो अपराध नहीं होता।

अतः ये स्पष्ट है कि IPC के धाराओं के तहत ही श्रीकृष्ण अपराधमुक्त हैं।


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साँप
भी ना मरे,लाठी भी ना टूटे।कुछ ऐसा ही कारनामा किया है अनुमंडल पुलिस
पदाधिकारी,रोसड़ा ने।

एक
दलित महिला मुखिया का भ्रष्टाचार के विरुध्द जिलाधिकारी व अन्य को शिकायत
किए जाने के बाद दलित महिला होने का फायदा उठाकर मुखिया ने शिकायत करने
वाले मध्य विद्यालय के एक सेवानिवृत प्रधानाध्यापक व एक अन्य के विरुध्द
असत्य मुकदमा दायर करवा दिया था।अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी,रोसड़ा ने कांड का
पर्यवेक्षण करके मुकदमा को असत्य करार दे दिया।लेकिन अनुमंडल पुलिस
पदाधिकारी का शातिर दिमाग देखिए कि मामला को इस रुप में असत्य करार दिया
ताकि मुखिया के विरुध्द फर्जी फंसाने का मुकदमा ना चले।प्राथमिकी का
सूचक,प्राथमिकी में नामित कुछ गवाहों और घटनास्थल पर उपस्थित अन्य लोगों ने
आरोप को अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के समक्ष असत्य बताया लेकिन अनुमंडल
पुलिस पदाधिकारी ने आरोप को असत्य करार देने के लिए घटनास्थल पर उन गवाहों
को दिखा कर उनका फर्जी बयान दर्ज कर लिया जो घटनास्थल पर थे भी नहीं।जब
मैंने पर्यवेक्षण टिप्प्णी को पढ़ा तो समझ में आ गया कि मुखिया के विरुध्द
झूठा फंसाने का मुकदमा ना चले,इसलिए जांच अधिकारी ने ऐसा किया है।जो
निर्दोष अभियुक्त मुखिया के विरुध्द झूठा फंसाने के लिए मुकदमा करने का
उम्मीद किए बैठे थे,उनकी उम्मीद पर पानी फिर गई।

चूँकि अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने मामला को असत्य करार दे दिया है,इसलिए
मुखिया के विरुध्द फर्जी फंसाने का मुकदमा चलाया जा सकता है,हालांकि इसकी संभावना है कि जांच अधिकारी द्वारा तैयार किए गए फर्जी गवाह जिन्होंने उनके समक्ष वैसा बोला भी नहीं था बदल जाए, लेकिन मैं
असत्य की बुनियाद पर कुछ भी नहीं कर या करवा सकता,इसलिए निर्दोष अभियुक्त
को मना कर दिया।सर्वप्रथम अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के विरुध्द मुकदमा होना
चाहिए,लेकिन ऐसा करने पर निर्दोष अभियुक्त को ना जाने कितने फर्जी मुकदमा
में फंसा दिया जाता।इसलिए मामला को यथावत छोड़ देना ही बेहतर था।

M.R.Chakraborty The Super Corrupt Deputy Commissioner

मानस रंजन चक्रवती:एक महाभ्रष्ट उपायुक्त

नवोदय विद्यालय समिति,पटना संभाग का उपायुक्त मानस रंजन चक्रवती इतना महाभ्रष्ट हैं कि चिरंजीवी राय,प्राचार्य,जवाहर नवोदय विद्यालय,बिरौली,समस्तीपुर को बचाने के लिए अपने अनुसार कानूनी प्रावधान का गलत व्याख्या कर देते हैं।इधर मुझे पत्र भेजकर उन्होंने कहा है कि मैंने जो भी दस्तावेज प्रस्तुत किया है,वह सिर्फ शिकायत है,साक्ष्य नही हैं।जब आप किसी दस्तावेज या किसी के बयान में त्रुटि नहीं दिखा सकते हैं,तो वह साक्ष्य है और  ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने कृष्णा मोची बनाम बिहार राज्य में अपने फैसला के पारा 93 में कहा है और मैंने जिन पीड़ित लड़के-लड़कियों का बयान प्रस्तुत किया और प्राचार्य के धांधली के विरुध्द जिन दस्तावेजों को प्रस्तुत किया है,उसमें त्रुटि दिखाने में उपायुक्त अक्षम रहे हैं।मैंने दिनांक 29/8/2014 को उपायुक्त को CPC का धारा 80(1) के तहत कानून का गलत व्याख्या करने के लिए कानूनी नोटिस भेजा हैं और उन्हें सूचना का अधिकार आवेदन भेजकर पूछा है कि शिकायत और सबूत में क्या फर्क है,किस परिस्थिति में शिकायत को सबूत माना जाना चाहिए या नहीं माना जाना चाहिए।

फोटो में उपायुक्त का उक्त पत्र है।नोटिस और RTI आवेदन नीचे प्रस्तुत है-


To

Shri M.R.Chakraborty

The Deputy Commissioner

Navodaya Vidyalaya Samiti

Regional Office

Patna



Date-29.08.2014



Sub-An RTI Application and  A legal notice under section 80(1) of the CPC in response of your letter  vide   F.No.2-2(01) S.A./NVS(PTR)/2013-14/2529 dated 11.08.2014 -Regarding



Sir



Please refer to your letter vide F.No.2-2(01) S.A./NVS(PTR)/2013-14/2529 dated 11.08.2014 and a copy of same is enclosed.



You have made an observation that the letter as well as documents, instead of presenting evidence point more and more complaints and charges against Shri C.Roy,Principal, JNV Samastipur,action against many of these complaints have been taken.



Your observation creates some questions of law which need to be  clarified by you and for this clarification,an RTI  application is enclosed and also this legal  notice is served to you for the response within a month on the following noted points-



1.C.Roy has been holding the post of principal in a same school for more than 8 years  but almost all principals of Patna Region have been transferred during these periods .Being a deputy commissioner, you are also responsible for posting him in a same school for a long time against the NVS Rule.



2.Action against many of these complaints have not been taken but you said that action against many of these complaints have been taken.Apart from complaint of denial of admission of 8 students of class sixth,complaint related to some staffs etc,action against not a single complaint has been taken.



3.Illeegally helping matron's children for getting them admitted,cutting of trees,fraudulent admission of two sons of principal etc allegations have been made along with the documentary evidences and you are not able to prove as to how these documents suffer from any infirmity but you state that there is no evidence.



4.Torturing of many students by C.Roy have been presented along with the statement of students and in most of the cases,victimized students themself have presented statements. You are not able to prove as to how the statement of  these students suffer from any infirmity. In Krishna  Mochi Vs State Of Bihar,2002 CRI. L.J.2645,the Supreme Court observed in para 93 of the judgement that evidence is to be weighed and not counted.Section 134 of the Indian Evidence Act,1872 is a pointer in that regard.For proving witness wrong,it has to be shown by opposite party  as to how evidence or statement of a witness suffers from any infirmity.If infirmity is not shown,then evidence or witness is reliable.



5.So,it is evident that  what documents and statements i have presented, they are not merely complaints and charges,but also evidences.So,you deserve to be served by a notice under section 80(1) of the CPC and an RTI Application is also enclosed.



Therefore, it is requested to response in regard to legal notice within a month.



Thanking You

Yours

Rahul Kumar

S/O-Jagannath  Ray

VPO-Sughrain

Via-Bithan

Distt-Samastipur

PIN-848207

  Encl:As Above



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To

Shri M.R.Chakraborty

The Deputy Commissioner

Navodaya Vidyalaya Samiti

Regional Office

Patna



Date-29.08.2014



Sub-Request for providing information under section 6(1) of the RTI Act,2005-Regarding



Ref-Your letter  vide F.No.2-2(01) S.A./NVS(PTR)/2013-14/2529 dated 11.08.2014 -Regarding



Sir



Please refer to your letter vide F.No.2-2(01) S.A./NVS(PTR)/2013-14/2529 dated 11.08.2014 and a copy of same is enclosed.



In this regard, please furnish the below information-



1.In your opinion,What is the difference between a complaint and an evidence?



2.In your opinion,In what circumstances, a complaint may be treated or may not be treated as an evidence?



3.How you decided that there is no evidence in my complaint?



4.What is the maximum tenure fixed for a principal for holding post in a same school as per NVS Rule?



5.You said that action against many of these complaint have been taken.

Please list the complaints against which action has been  taken and also list the detail of action taken in regard to these complaints.





Application fee of Rs 10 is enclosed through postal order vide No.15 F 616746.





Therefore, it is requested to furnish information within stipulated time.



Thanking You



Yours



Rahul Kumar

S/O-Jagannath  Ray

VPO-Sughrain

Via-Bithan

Distt-Samastipur

PIN-848207



Encl:As Above

Sunday, 17 August 2014

Meerut Gangrape Case:True Or False

अमर उजाला में मेरठ केस की कथित पीड़िता की बिल्कुल भिन्न बयान छपी है जो भी असत्य है क्योंकि
i.जिस सहेली निशात के साथ 29 जून को कॉलेज जाने पर उठा ले जाकर छेड़छाड़, सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया गया है,उसी निशात के साथ 23 जुलाई को वह डॉक्टर से मिलने निकली।फिर उसी निशात के साथ क्यों गई जो एक अभियुक्त की बहन भी है?
ii.29 जून,23 जुलाई से 27 जुलाई और 29 जुलाई से 3 अगस्त,इन अवधियों के दौरान लड़की गायब रही,फिर लड़की के माता-पिता ने MISSING या अपहरण का केस दर्ज क्यों नहीं कराया?
iii.लड़की के बयान के अनुसार छेड़छाड़ का विरोध करने पर परिवार वाले को जान से मारने का धमकी दी गई।धमकी दिए जाने के कारण ही उसने परिवार वाले को कुछ नहीं बताया।सामने चंगुल में लड़की है जो अपने जान की परवाह किए बगैर परिवार वाले की जान की परवाह करके चुप रहती है,ऐसा क्यों?धमकी का असर तभी माना जाएगा जब किसी आपराधिक प्रवृति के व्यक्ति ने धमकी दिया हो या अपने अधीन रखने वाले व्यक्ति ने धमकी दिया हो।
iv.निशात के साथ लड़की खुद डॉक्टर से मिलने निकली,अतः जबरन गर्भपात कराए जाने के बजाए आपसी सहमति से सेक्स करने की अवस्था में गर्भपात कराए जाने का यह स्थिति है।
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हमारे लिए आजादी का मतलब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में निहित स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तक ही सीमित हो गया है।मतलब,बोलने-लिखने,विरोध करने,संगठन बनाने,घूमने,रोजगार करने आदि की कागजी स्वतंत्रता मिल गई तो हम खुद को आजाद समझने लगे।यदि विरोध करना अनुच्छेद 19(1)(b) के तहत हमारा मौलिक अधिकार है तो फिर हम भ्रष्टाचारियों के विरुध्द विरोध करने से क्यों डरते हैं?हम जिस स्कूल,कॉलेज में पढ़ते हैं,वहाँ का कर्मचारी काम करने में घूस मांगता है,वहाँ का प्राचार्य एक नंबर का भ्रष्टाचारी होता है।फिर हम उनका विरोध क्यों नहीं करते?हमें डर लगता कि हमें किसी झूठे आरोप में फंसा दिया जाएगा या शारीरिक,मानसिक और आर्थिक रुप से प्रताड़ित किया जाएगा,इसलिए हम विरोध नहीं करते।विरोध करने वाले को इन प्रताड़नाओं को भुगतना ही पड़ता है और मुझे खुद भुगतना पड़ा है।जब पुलिस गुंडागर्दी करे तो हम डर के मारे चुप हो जाते हैं।जब ये हमारी स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार होने के बावजूद हम विरोध करने में डर जाते हैं,फिर हम आजाद कैसे?विरोध से मेरा तात्पर्य शांतिपूर्ण विरोध से है जिसकी स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(1)(b) के तहत प्रदान की गई है।
…………………

Thursday, 14 August 2014

IISER ,Bhopal को RTI

IISER,Bhopal (Indian Institute Of Science Education and Research) को दिनांक 8/8/2014 को एक RTI application भेजा है जिसमें IISER में चयन के तीनों विधियों (किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना में चयन के आधार पर,JEE ADVANCED के रैंक लिस्ट में जगह के आधार पर और State/Central Boards students का IISER Science Aptitude Test में चयन के आधार पर ) से BS-MS Programmes के तहत वर्ष 2013 में भौतिकी संकाय के लिए चयनित छात्रों का Category wise कट ऑफ और चयन के लिए बने छात्रों के Merit list की मांग की गई है और साथ ही IISER Science Aptitude Test के रिजल्ट की सूची मांगी गई है क्योंकि मुझे जानकारी दी गई है कि IISER Bhopal कट ऑफ,Merit list और Aptitude test का रिजल्ट जारी नहीं करती।जाहिर है कि चोरी-छिपे भ्रष्ट माध्यम से ऐसे छात्रों का भी नामांकन हो जाता है जिसका मेरिट लिस्ट में नाम नहीं होती या जो Amptitude Test में उतीर्ण नहीं होते।कट ऑफ,मेरिट लिस्ट और रिजल्ट सार्वजनिक नहीं करने के पीछे का दूसरा कारण दिखता ही नहीं।इसकी पूर्ण संभावना है कि IISER सूचना प्रदान नहीं करेगी ,फिर मैं केन्द्रीय सूचना आयोग में शिकायत दायर करुँगा।

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Equality  before law is not established even under the provisions of our 
constitution.Only it has been mentioned under Article 14 of the 
Constitution...Even in the Article 15 and 16, there is descrimination to
the poors because the both articles bar descrimination on the ground of
caste,sex,religion,place of birth etc,but not on the ground of 
poverty..

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हमलोग शायद जानते नहीं हैं लेकिन ये सत्य है कि ज्यादातर असत्य आरोप लगाया जाता है और लोग तार्किक और बोध्दिक परीक्षण किए बगैर उस आरोप पर यकीन कर लेते हैं।अब कोई हरिश्चंद नहीं है जो सत्य बोलेगा।अपने निजी स्वार्थ या किसी थर्ड पर्सन के दवाब,डर या प्रलोभन के कारण ज्यादातर असत्य आरोप ही लगाया जाता है।

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मेरठ गैंगरेप,अपहरण और जबरन धर्म-परिवर्तन का मामला कथित पीड़िता का मजिस्ट्रेट के समक्ष दी गई बयान के आधार पर असत्य प्रतीत होता है,लेकिन धार्मिक मतांधता से ग्रसित लोगों और मीडिया ने इस असत्य मामला को लेकर काफी हल्ला मचाया।

1.कथित पीड़िता ने बयान दिया कि उसका अपहरण करके गैंगरेप किया गया और जबरन धर्म-परिवर्तन करवाया गया।जब पीड़िता को गर्भधारण होने के बारे में पता चला तो उसने मुख्य अभियुक्त को खबर दी और उसने गर्भपात करवा दिया।
जब पीड़िता का गैंगरेप हुआ तो उसने घटना की त्वरित सूचना पुलिस को देने के बजाय गर्भधारण होने का इंतजार क्यों करती रही और फिर इसकी खबर मुख्य अभियुक्त को क्यों दी?

2.जब अपहरण किया गया था तो पीड़िता के माँ-बाप लगातार चुप क्यों रहे?पहली बार ले जाकर गैंगरेप और धर्म-परिवर्तन करवाया गया और फिर ले जाकर गर्भपात करवाया गया लेकिन अपहरण की जानकारी होने के बावजूद उसके माँ-बाप ने पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी?

3.पीड़िता ने खुद बयान दिया कि उसे तीन साल पहले से ही इस्लामिक विचार में रुचि हो गया था,धर्म-परिवर्तन करने के लिए उस समय जन्नत का झासा देकर उसे बहका दिया गया।इसलिए जबरन धर्म-परिवर्तन नहीं करवाया गया।


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प्रत्याशित आवश्यकता से ज्यादा की सारी संपति सरकार की होगी।

महात्मा गाँधी अपने अर्थशास्त्र को नैतिकता और आध्यात्मिकता से जोड़कर देखते थे,लेकिन उनकी ये अर्थशास्त्र पूँजीपतियों के हित में यहाँ तक कह डाला कि बड़े उद्योग में मजदूरों को मजदूर ही बने रहना चाहिए।अर्थशास्त्र को प्रकृति से जोड़कर देखना आध्यात्मिकता से जोड़कर देखने से बेहतर है।हम देखते हैं कि प्राकृतिक रुप से सभी मनुष्य समान है,फिर कोई पूँजीपति या मजदूर क्यों?जन्म से ही हरेक व्यक्ति को भोजन व आवास चाहिए,फिर आर्थिक सुरक्षा के लिए राशि जन्म से ही क्यों नहीं मिलती?यदि मनुष्य मानवीय समाज में बंधा नहीं होता तो अन्य प्राणियों की तरह प्रकृति में स्वतंत्र रुप से उसे भी भोजन व आवास सुलभ हो जाता फिर अभी मनुष्य को सुलभ क्यों नहीं हो पाता?अर्थशास्त्र के तथाकथित जनक एडम स्मिथ ने भी प्रकृतिवाद का सिध्दांत दिया है लेकिन ये इस सिध्दांत की आड़ में प्राकृतिक संसाधन के दोहन करने का खुली छूट देते हैं ताकि पूँजीपतियों द्वारा बेरोकटोक संसाधनों का दोहन किया जा सके।प्रकृतिवाद के बारे में मैं भी सोचता हूँ जिसमें संपति पर किसी खास का अधिकार होना ही नहीं चाहिए,मजदूर का भी नहीं।प्रत्याशित आवश्यकता से ज्यादा की सारी संपति सरकार की होगी।

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अब  मैं यकीन करने लगा हूँ कि स्मृति ईरानी के पास शैक्षणिक योग्यता के साथ
साथ दिमागी योग्यता का भी अभाव है।इन्हें 6 दिन और 3 साल के कोर्स में
फर्क मालूम नहीं है।कोर्स सर्वप्रथम अध्ययन करने के लिए होता है,डिग्री के
लिए नहीं।6 दिन में डिग्री मिल सकती है,लेकिन हम 6 दिन में किसी कोर्स का
अध्ययन पूरा नहीं कर सकते।ये शिक्षा-विरोधी और लोगों को अध्ययन से दूर कर
फर्जी डिग्रीयों पर केन्द्रित करने वाली बात बोल रही है।लोकसभा चुनाव में
दो बार पराजित हो जाने,शैक्षणिक योग्यता को लेकर शपथ-पत्र में अलग अलग
जानकारी देने और कम शैक्षणिक योग्यता होने के बावजूद स्मृति ईरानी को
केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री क्यों बनाया गया?मंत्री बनाने के पीछे
कुछ गलत रहस्य या गलत उद्देश्य तो जरुर है।जिस स्मृति ईरानी ने मोदी को
मुख्यमंत्री से हटाने के लिए गुजरात दंगा के बाद आमरण अनशन पर जाने का धमकी दिया था,उसे ही आज
मोदी ने अपना मंत्री बना दिया।ऐसा क्यों?


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Raksha Bandhan has mainly been confined between a blooded sister-brother but
not a single significant mythological or historical story is available where a blooded sister tied a thread to her brother-

1.Indra's wife Sachi tied a sacred thread to Indra to save her husband's kingdom,as per Bhavishya Purana.

2.Lakshmi tied a Rakhi to King Bali,as per Bhagavata and Vishnu Purana.

3.Yasoda tied a Rakshi to Krishna and prayed for his safeguard,as per chapter V of Vishnu Purana.

4.Kunti tied a Rakhi to Abhimanyu before the war of Mahabharta.

5.When Alexander invaded India in 326 BC,Roxana,wife of Alexander sent a Rakshi to King Porus and Porus personally prevented himself to attack Alexander.

6.In 1535 AD,Widowed queen of Chittor Karnavati sent a Rakhi to King Humayun to save her modesty from Bahadur Shah,Sultan Of Gujarat.

So,under a conspiracy,Raksha Bandhan has mainly been confined between a blooded sister-brother,so that a boy can't be morally bound to look other girls with a view of his sister...


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कोर्स के बाहर का पूछा गया प्रश्न,फिर होगी 6 सितंबर को परीक्षा

कोर्स के बाहर का पूछा गया प्रश्न,फिर होगी 6 सितंबर को परीक्षा

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ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय,दरभंगा  के दर्शनशास्त्र स्नातक प्रथम खंड के प्रथम पत्र का दिनांक 12/8/2014 को परीक्षा हुई,जिसमें Hons Paper-I के जगह  Subsidiary Paper से प्रश्न पूछा गया।Hons Paper-I के कोर्स के मुताबिक भारतीय दर्शन के बारे में पढ़ना है जबकि Subsidiary Paper में Symbolic Logic के बारे में पढ़ना होता है ,जिससे प्रश्न पूछा गया,इसलिए Hons Paper के छात्र पास करने लायक सवाल का जवाब भी नहीं दे पाए।दिनांक 12/8/2014 को ही दर्शनशास्त्र के दो छात्र (कुणाल वैभव जी और अरबाज आलम जी) के साथ मैं विश्वविद्यालय के कुलपति से मिला ।कुलपति ने विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष को बुलाया।कुलपति ने फिर से परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया है।आज के समाचार पत्र के अनुसार कल परीक्षा बोर्ड की बैठक में 6 सितंबर को पुनः परीक्षा लेने का फैसला हुआ।दर्शनशास्त्र विभाग ने प्रश्नपत्र का चेकिंग किए बगैर सारे कॉलेज को प्रश्नपत्र भेजवा दिया।जब  प्रश्नपत्र की चेकिंग भी नहीं की जाती,फिर उत्तर-पुस्तिका की सही तरीके से चेकिंग के बारे में सोचना भी मूर्खता है।


दिनांक 13 अगस्त  2014 को समाचार पत्र में 
छपी खबर के मुताबिक '' परीक्षार्थियों ने विश्वविद्यालय के परीक्षा 
नियंत्रक के पास इसके संबंध में शिकायत की है।परीक्षा नियंत्रक ने छात्रों 
से शिकायत मिलने की पुष्टि करते हुए कहा है कि समस्या पर गंभारता से विचार 
किया जा रहा है।''

जबकि खबर के विपरीत सच्चाई ये है कि हम सीधे कुलपति के पास चले गए जिसका 
प्रमाण कुलपति कार्यालय द्वारा आवेदन के छायाप्रति पर दिया गया हस्ताक्षर 
है और कुलपति ने पुनः परीक्षा लेने का मौखिक आदेश मेरे सामने में 
दर्शनशास्त्र  के विभागाध्यक्ष को दिया था।इसलिए परीक्षा बोर्ड की बैठक में
 सिर्फ औपचारिक निर्णय लेना बाकी था।
परीक्षा नियंत्रक के द्वारा गलत खबर मीडिया में छपवायी गई और कुलपति के पास
 शिकायत किए जाने और कुलपति द्वारा पुनः परीक्षा लेने का आदेश देने के बारे
 में परीक्षा नियंत्रक ने मीडिया को नहीं बताया ताकि परीक्षा नियंत्रण 
विभाग और दर्शनशास्त्र विभाग इस बदनामी से बच सके कि उनके विरुध्द कुलपति 
के पास शिकायत कर दी गई।


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Saturday, 9 August 2014

Indefinite Fast From 13 Aug 2014

An application for ensuring independent enquiry in the matter of my all cases pending before you all authorities against the Principal Of Jawahar Navodaya Vidyalaya,Birauli, Samastipur and intimation of my Indefinite fast from 13 Aug 2014 until independent enquiry team is not constituted.
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To
1.Sh.Amit Khare
The Chief Vigilance Officer
Ministry Of Human Resource and Development
Govt Of India
2.The Secretary
Department of School Education and Literacy
Ministry Of Human Resource and Development
Govt Of India
3.The Commissioner
Navodaya Vidyalaya Samiti
4.The Joint Commissioner (Admn)
Navodaya Vidyalaya Samiti
5.The Deputy Commissioner
Navodaya Vidyalaya Samiti
Regional Office,Patna
Date:-9/8/2014
Sub:- Request for ensuring independent enquiry in the matter of my all cases pending before you all authorities against the Principal Of Jawahar Navodaya Vidyalaya,Birauli, Samastipur and intimation of my Indefinite fast from 13 Aug 2014 until independent enquiry team is not constituted-Regarding.
Sir
It is to inform you all that my some cases are pending before you all authorities wherein no expected action has been taken till now.
A brief summary of these all cases is presented before you all:-
1.The Central Vigilance Commission has directed Sh.Amit Khare, The Chief Vigilance Officer of the Ministry Of Human Resource and Development vide its OM No.014/EDN/038/246381 of dated 8/5/2014 (Complaint No.231/2014/Vigilance7) to enquire into the allegation against Chiranjiwi Roy, the Principal Of Jawahar Navodaya Vidyalaya,Birauli, Samastipur for getting his two sons admitted fraudulently and submit factual report before the commission in exercise of the power vested under section 17(1) of the CVC Act,2003.I have been informed by a letter of Vigilance Section of the Ministry vide FTS -29794/14 of dated 20 June 2014 that my complaint has been forwarded to Sh.PK.Mittal ,Director of UT-III section of Department Of Higher Education of the Ministry vide FTS 53132/14 of dated 2 June 2014 to look into it and submit an action taken report before the vigilance section.
Under section 8(1)(h) of the CVC Act,2003 , the Commission has only the power to exercise superintendence over the vigilance administration of the various Ministries of the Central Government or corporations established by or under any Central Act, Government companies, societies and local authorities owned or controlled by that Government. Sh.P.K Mittal is not an officer of the vigilance section of the ministry and the Commission has no power to exercise superintendence over him, therefore my complaint should not have been forwarded to Sh.P.K. Mittal and the Chief Vigilance Officer or the subordinate officer of the Vigilance section should have taken keen interest to enquire into my allegation in accordance with the provision of the CVC Act,2003.
2. The National Human Rights Commission vide its Case No.3332/4/30/2013/OC of dated 27 Nov 2013 directed the The Secretary,Department of School Education and Literacy,Ministry Of Human Resource and Development ,Govt Of India to take appropriate necessary action in respect of my complaint against the said principal wherein he has been accused of violating human rights of the many students. Unfortunately, the Ministry forwarded the complaint to the Commissioner, Navodaya Vidyalaya Samiti and a letter was sent to me by Sh.G.Arumugam, the Deputy Commissioner(Acad) of NVS vide F.No.27-7/2012-NVS (Acad) of dated 6/1/2014 wherein he has quashed my all allegations without enquiring into the allegations either through taking evidences from me or taking statements of the presented victimized students. However, I approached to the Ministry and the ministry again sent the letter to the NVS Commissioner vide No.F.27-1/2014-UT-III of dated 15/4/2014 wherein my demand has been pointed out to the NVS Commissioner to enquire into the allegation through an independent enquiry team. But no enquiry has happened till now. In the meanwhile on dated 21/4/2014,I sent all evidences to Sh.MS. Khanna, Joint Commissioner(Personal) by pointing out the malpractice done by Sh.G.Arumugam but no reply came till now either from MS. Khanna or NVS Commissioner. The Deputy Commissioner Of NVS Patna sent me a letter vide F.No.2-2/S.A(01)/NVS(PTR)/2013-14/7697 of dated 3 Feb 2014 and sought evidences from me against the said principal. I sent him all evidences on 21.4.2014 but no reply came till now.
3.It is pertinent to mention here that there no leaves any way to save the said principal besides the way of not replying or not considering upon my evidences or not enquiring or enquiring through junior officials. So, these all malpractices are being done by you all respondent authorities. If there will be independent enquiry or if my evidences will be considered ,then the said principal will got caught. So you all have made an idea to not do what can be expected from the applicant.
4.Further, it is to inform you all that I will be on indefinite fast from 13 Aug 2014 until Independent Enquiry Team is not constituted in all these cases.
Therefore, it is requested to constitute independent enquiry team in all these cases at the earliest and consider my all evidences.
Thanking You
Yours
Rahul Kumar
S/o-Jagannath Ray
VPO-Sughrain
Via-Bithan
Distt-Darbhanga
PIN-848207
………….
Copy To-
1.The Chairperson,the National Human Rights Commission in connection with its Case No.3332/4/30/2013/OC of dated 27 Nov 2013.
2.The Central Vigilance Commissioner, Central Vigilance Commission in connection with its Complaint No.231/2014/Vigilance7

Friday, 8 August 2014

Indefinite fast until FIR is not lodged.

Gmail Rahul Kumar <648rahul@gmail.com>
Request to lodge FIR against the Sub-Divisional Police Officer, Samastipur Sadar and the Officer Incharge Of the Pusa Police Station under sections 166,166A(b),182,217,218 and 500 of the IPC and the intimation of my indefinite fast from 13 Aug 2014 until FIR is not lodged -Regarding .
1 message
Rahul Kumar <648rahul@gmail.com> 7 August 2014 20:16
To: igweaker-bih@nic.in, igwscid <igwscid@gmail.com>, igdarbhanga <igdarbhanga@gmail.com>
An application to lodge FIR against the Sub-Divisional Police
Officer, Samastipur Sadar and the Officer Incharge Of the Pusa
Police Station under sections 166,166A(b),182,217,218 and 500 of the
IPC and the intimation of my indefinite fast from 13 Aug 2014 until
FIR is not lodged.

In the matter Of :-

Rahul Kumar
S/o-Jagannath Ray
VPO-Sughrain
Via-Bithan
Distt-Darbhanga
PIN-848207
----------------------------------------Applicant

Versus

1.The Sub-Divisional Police Officer
Samastipur Sadar
At-Mohanpur Road,Samastipur,848101

2.The Officer Incharge Of the Pusa Police Station
At-Pusa,Samastipur,848125
-------------------Respondents Enquiry Officer

-------------------------------

To

1.Hon’ble Sh.Arvind Pandey
Inspector General Of Police
Weaker Section ,CID

2.Hon’ble Sh. Amredra Kumar Ambedkar
Inspector General Of Police
Darbhaga Zone

Date-7/8/2014

Sub:- Request to lodge FIR against the Sub-Divisional Police Officer,
Samastipur Sadar and the Officer Incharge Of the Pusa Police
Station under sections 166,166A(b),182,217,218 and 500 of the IPC and
the intimation of my indefinite fast from 13 Aug 2014 until FIR is
not lodged -Regarding
.

Sir

With due respect, a para wise comments are cited below which are
competent to prove the Sub-Divisional Police Officer , Samastipur
Sadar and the Officer Incharge Of the Pusa Police Station guilty
under sections 166,166A(b),182,217,218 and 500 of the IPC .

1.The then Inspector General Of Police of the Darbhanga Zone directed
the Superintendent of Police of Samastipur to enquire into the
allegations contained in my application which was sent to the
Superintendent of Police of Samastipur on dated-18/1/2014 vide letter
No.108/CR .Again, the Superintendent of Police of Samastipur was
directed by the then Inspector General Of Police of the Darbhanga Zone
on dated-7/4/2014 vide letter No.1187/CR.A copy of the letter 1187/CR
dated 7/4/2014 is annexed herewith under reference and marked as
Annexure 1.

2.The Respondent Enquiry officer No.1 made enquiry into the
allegations and the same enquiry report was submitted before the
Superintendent of Police of Samastipur on dated 7/4/2014 vide letter
No.844/Sadar. On perusal of the enquiry report, it appeared that the
enquiry in regard to my application was conducted also by the
Respondent Enquiry Officer No.2 and the same was submitted before
Respondent Enquiry Officer No.1.A copy of the said enquiry report is
annexed herewith under reference and marked as Annexure 2.

3.After going through  the enquiry report, it is evident that the enquiry was
conducted solely on the ground of the documents kept against me in
the school record of Jawahar Navodaya Vidyalaya ,Biruali,Samastipur
without observing the points and evidences produced by me against
those documents kept against me ,which were competent to prove that
those documents were manufactured by one accused Chiranjiwi Roy,the
Principal of Jawahar Navodaya Vidyalaya ,Birauli,Samastipur in the
back date after making complaint against him to the Human Rights
Commissions.The Respondent Enquiry officer No.1 and Respondent
Enquiry officer No.2 have tried to save the accused Chiranjiwi Roy
by presenting me a person of wrong conduct without any such
evidence which is admissible under provisions of the Indian Evidence
Act,1872.

4.The both enquiry officers are liable to be prosecuted under
sections 166,166A(b),182,217,218 and 500 of the IPC and a detail
description of grounds as to how the both enquiry officers are
liable to be prosecuted is annexed herewith under reference and
marked as Annexure 3.

5.This plea is being sent to Sh.Arvind Pandey also ,not because he was
the then IG of Police of the Darbhanga Zone but considering the fact
that he is now the IG of Weaker Section Of CID and I was also from
the weaker section of the society as I was juvenile when i was
implicated by Chiranjiwi Roy and when he had manufactured papers
against me in back date.

6.Further,it is to intimate you that I will be on indefinite fast from
13 Aug 2014 until the FIR is not lodged against the Respondent
Enquiry officer No.1 and Respondent Enquiry officer No.2.

Therefore, it is requested to enquire into my plea at the earliest and
order to lodge FIR at the earliest.

Thanking You

Yours

Rahul Kumar
S/o-Jagannath Ray
VPO-Sughrain
Via-Bithan
Distt-Darbhanga
PIN-848207

Enclosed:-As Stated Above

4 attachments
Annexure 1 Order Of the IG,Darbhanga Zone directing SP Samastipur to submit clarification for departmental action against staffs and officers who caused delay in Proceedings.jpg
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Annexure 2 SDPO enquiry report.jpg
158K
Annexure 3 Grounds for prosecuting the SDPO and the Thana Incharge.rtf
83K
An application to lodge FIR and intimation of indefinite fast.docx
16K

लड़की का बयान नाबालिग लड़के का नाबालिकी तय करने का आधार नहीं बनना चाहिए

 किशोर न्याय संशोधन विधेयक,2014 को केबिनेट की मंजूरी मिल गई है जिसमें प्रावधान किया गया है कि 16 से 18 वर्ष के हत्या,रेप जैसे गंभीर अपराध के आरोपी किशोर के बारे में किशोर न्याय बोर्ड तय करेगी कि उस किशोर के विरुध्द मुकदमा व्यस्क की तरह सामान्य अदालत में चले या फिर नाबालिग की तरह किशोर न्याय बोर्ड में।सरकार ने किशोर का उम्र-सीमा घटाकर 16 वर्ष करने के बजाय बीच का रास्ता निकालने का सराहनीय प्रयास किया है,लेकिन ये तय करने का अधिकार किशोर न्याय बोर्ड के पास नहीं होना चाहिए था क्योंकि किशोर न्याय बोर्ड में काफी भ्रष्टाचार है।गंभीर अपराध के आरोपी किशोर पर लगे आरोप की जांच SIT(विशेष जांच दल) का गठन करके किये जाने का प्रावधान होना चाहिए और फिर SIT द्वारा मामला को सत्य पाए जाने के बाद किशोर मनोवैज्ञानिक और कानूनविद के एक टीम के पास ये तय करने का अधिकार होना चाहिए कि मुकदमा किशोर न्याय बोर्ड में चलेगी या सामान्य अदालत में।हो सकता है कि गंभीर अपराध का आरोपी कोई किशोर निर्दोष हो जो SIT जांच में निर्दोष साबित हो भी जाता,लेकिन किशोर न्याय बोर्ड ने सिर्फ आरोप को देखकर मामला को सामान्य अदालत में भेज दिया।


लड़की के द्वारा नाबालिग लड़के के विरुध्द पुलिस या फिर मजिस्ट्रेट के समक्ष CrPC का धारा 164 के तहत दिया गया बयान नाबालिग लड़के का नाबालिकी तय करने का आधार नहीं बनना चाहिए कि उसके विरुध्द मामला व्यस्क कोर्ट में चलेगी या नाबालिग कोर्ट में।नाबालिग लड़के के विरुध्द यौन-शोषण और अपहरण के केस में लड़की भी अक्सर नाबालिग ही होती है और कई बार प्रेम-संबंध के कारण भाग जाने या यौन-संबंध बना लेने को भी अपहरण,बलात्कार आदि के तौर पर प्रस्तुत कर दिया जाता है और लड़की भी लड़के के द्वारा धोखा दिए जाने के कारण बलात्कार का झूठा केस कर देती है और लड़की के माँ-बाप द्वारा लड़की का सहमति से भागने के बावजूद अपहरण का झूठा केस करना स्वाभाविक हो गया है और कई बार लड़की माँ-बाप के दवाब में अपहरण और बलात्कार का झूठा बयान देती है।हालांकि नाबालिग लड़की को नाबालिग लड़के द्वारा उसकी सहमति से साथ ले भागना भी IPC का धारा 366A के तहत अपहरण है,जो कि निराधार और तर्कहीन प्रावधान है।नाबालिग लड़की की सहमति के बावजूद नाबालिग लड़के द्वारा उसके साथ यौन-संबंध बनाना IPC का धारा 375 की Sixth condition के तहत बलात्कार है,जो भी निराधार और तर्कहीन प्रावधान है।SIT का जांच में मामला को सही पाए जाने के बाद किशोर मनोवैज्ञानिक और कानूनविद की एक टीम की समीक्षा के बाद ही किसी संस्था के पास नाबालिकी तय करने का अधिकार हो।


Tuesday, 5 August 2014

A CRUEL LAW TO PREVENT THE CRUELTY AGAINST ANIMALS



It has been asked by a learned facebook  friend  whether there is law against the slaughter of cows or not. It is to inform you  that no special law has been passed yet to prohibit  the slaughter of cows and other milch and draught cattles.
But there are some provisions which may help you to file cases against those who are involved  in slaughter and selling of cows and press Govt to pass a special act.
Article 48 of the Constitution of India directs the Govt that the state shall endeavour to prohibit the slaughter of cows,calves and other milch and draught cattles.So,Central Govt can easily be pressed to enact a legislation to prohibit the slaughter of cow,calves and other milch and draught cattles.
As per the constitution,if the law is made,then not only against the slaughter of cows  and calves but also against the slaughter of other milch and draught cattles should be taken into account. So,it is baseless to demand only for the  prohibition of slaughter of cows.It is rational to demand for the prohibition of slaughter of all milch and draught cattles,not only cows.
There is controversial provision in the  THE PREVENTION OF CRUELTY TO ANIMALS ACT, 1960 to prohibit the killing and selling of animals.Under section 11(1)(l) of the said act,"if any person mutilates any animal or kills any animal (including stray dogs) by using the method of strychnine injections, in the heart or in any other unnecessarily cruel
manner is said to commit cruelty against animals."
Further,it is provided under section 11(3)(e) of the said act that " nothing in this section shall apply to the commission or omission of any act in the course of the destruction or the
preparation for destruction of any animal as food for mankind unless such
destruction or preparation was accompanied by the infliction of unnecessary
pain or suffering."
So,it is clear that killing animals for the purpose of making food is not an offence unless if in course of killing,an animal has to suffer unnecessary pain or an animal is killed in  unnecessarily cruel  manner.

How it can be find out that an animal suffered  unnecessary pain in course of killing  or an animal is killed in  unnecessarily cruel  manner? However,slaughter of cows are done in such a cruel manner in the "Butcher Khana",so this section can be applied.But in most of the cases it is difficult to find out whether unnecessary cruelty was done in the course of killing or not.

Section 11(1)(k) of the said act provides that if any person offers for sale or without reasonable cause, has in his possession any animal  which is suffering pain by reason of mutilation, starvation, thirst,  overcrowding or other illtreatment,is said to commit cruelty against animals.

It means,if any person sells healthy animal,then it is not cruelty.What a great Joke!

Under section 11,the following para is written for Punishment:-

"He shall be punishable  in the case of a first offence, with fine which shall not be less
than ten rupees but which may extend to fifty rupees and in the case of a
second or subsequent offence committed within three years of the previous
offence, with fine which shall not be less than twenty-five rupees but which
may extend, to one hundred rupees or with imprisonment for a term which
may extend, to three months, or with both."

It is also a great  joke that the very less punishment is provided.

It is surprising to see that under section 13 of the said act,it is directed to destroy such animals against whom cruelty has been committed by its owner or any other  person.Chaining Up dogs,not providing food to animals,confining animals in bars or cages,beating and kicking aninals,using animals as carrier brutaly,administering animals with injurious drugs etc,etc are also under the definition of cruelty,for  which  punishment is provided under section 11.How such animals can be destroyed,only due to the such problems faced by animals?So,this provision is the greatest joke.

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ग्राम कचहरी,पुलिस और कोर्ट द्वारा बिहार पंचायती राज अधिनियम,2006 का कहीं पर भी पालन नहीं हो रहा है।

बिहार पंचायती राज अधिनियम,2006 की धारा 106 में ये प्रावधान किया गया है कि IPC  के किन किन धाराओं का मामला ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में होता है।ग्राम कचहरी छेड़खानी,बलात्कार,रंगदारी,10 हजार से ज्यादा की चोरी आदि मामले पर भी सुनवाई कर अभियुक्त को बचा देती है,जबकि ये धारा उसके क्षेत्राधिकार के बाहर का है।बिहार पंचायती राज अधिनियम,2006 की धारा 111 के तहत ये प्रावधान किया गया है कि पारिवारिक संपति विवाद,किसी भी तरह का जमीनी  विवाद और अंचल संपति की स्वामित्व से जुड़ा विवाद ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है,लेकिन ग्राम कचहरी इन विवादों पर सुनवाई कर गलत फैसला सुना देती है।अधिनियम की धारा 110 के तहत प्रावधान किया गया है कि 10 हजार रुपये तक की अनुबंध और चल संपति के मामले पर ग्राम कचहरी सुनवाई कर सकती है।हालांकि दोनों पक्ष  द्वारा लिखित करार सुनवाई के  लिए प्रस्तुत किये  जाने  के बाद 10 हजार   रुपये से ज्यादा के ऐसे मामले पर भी सुनवाई कर सकती है।लेकिन दोनों पक्ष  द्वारा लिखित करार सुनवाई के  लिए प्रस्तुत  नहीं   किये  जाने  के  बावजूद ग्राम कचहरी द्वारा ऐसे मामले पर सुनवाई की जाती है। अधिनियम की धारा 107(1) के तहत फौजदारी मामले में ग्राम कचहरी को अधिकतम एक हजार रुपये जुर्माना लगाने का अधिकार है।लेकिन ग्राम कचहरी बीस हजार रुपये या इससे ज्यादा भी जुर्माना लगा देती है।अधिनियम की धारा 107(3) के तहत जुर्माना की राशि में से ही पीड़ित पक्ष को मुआवजा के रुप में मिलना चाहिए।


मारपीट,गालीगलौज,धमकी जैसा मामला ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में आता है और अधिनियम की धारा 113(2) में प्रावधान किया गया है कि ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में आने वाली धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिए यदि थाना में आवेदन दिया जाता है तो थाना 15 दिन के भीतर उस आवेदन को ग्राम कचहरी को अग्रसारित कर देगी।लेकिन मारपीट,गालीगलौज और धमकी जैसे अनेकों मामले थाना जाती है और इसपर पुलिसिया  और अदालती कार्यवाही शुरु हो जाती है,जबकि ऐसे मामले का सुनवाई ग्राम कचहरी द्वारा किया जाना है।अधिनियम की धारा 113(3) के तहत ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार वाली मामला यदि ग्राम कचहरी में लंबित है,तो यदि ऐसे मामले में  पुलिस आरोप-पत्र समर्पित करती है या न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दायर किया जाता है,तो ऐसे मामले को मजिस्ट्रेट द्वारा  ग्राम कचहरी को  सुनवाई हेतु भेज देना चाहिए लेकिन ऐसा एक भी मामला को आजतक मजिस्ट्रेट द्वारा ग्राम कचहरी को नहीं भेजा गया।धारा 113(1) में प्रावधान किया गया है कि ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में आने वाले कोई भी दीवानी या फौजदारी मामले में कोई कोर्ट संज्ञान नहीं लेगी।धारा 114 में प्रावधान किया गया है कि यदि किसी भी दीवानी और फौजदारी मामले पर सुनवाई कर रहे संबंधित न्यायालय को लगता है कि ये मामला ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार का है,तो संबंधित न्यायालय उस मामला को ग्राम कचहरी को अग्रसारित कर देगी।धारा 115 के मुताबिक यदि किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट और मुंसिफ को ये सूचना दी जाती है कि कोई दीवानी या फौजदारी मामला ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार का नहीं है तो संबंधित न्यायालय उस मामला को ग्राम कचहरी से निकालकर सक्षम न्यायालय को भेज देगी।

मारपीट,गालीगलौज और धमकी जैसे छोटे मामले की सुनवाई ग्राम कचहरी में ही हो,इसके लिए बिहार सरकार को ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में आने वाली धाराओं में संशोधन करके प्रावधान कर देना चाहिए कि ये धारा ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में है,इसलिए इस धारा के तहत कोई मुकदमा पुलिस या कोर्ट के समक्ष दायर नहीं होगा,परन्तु ऐसे धारा जो ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में नहीं है,यदि उन धाराओं में मुकदमा दायर होती है तो साथ में ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार वाली धाराओं में भी मुकदमा दायर की जा सकेगी।  अधिनियम की धारा 112(1) के तहत ग्राम कचहरी के पीठ के फैसले के विरुध्द ग्राम कचहरी के पूर्ण पीठ में 30 दिन के भीतर अपील दायर की जा सकती है और यदि कोई व्यक्ति ग्राम कचहरी के पीठ द्वारा लगाये गए जुर्माना से संतुष्ट नहीं है तो यदि वह अपील दायर करता है तो धारा 107(4) और 112(4 ) के तहत उसे तबतक जुर्माना नहीं लगेगी,जबतक अपील पर फैसला नहीं हो जाता।धारा 101(2) के अनुसार एक सरपंच,उसके द्वारा मनोनीत दो वार्ड पंच और सभी पक्षकारों द्वारा मनोनीत दो वार्ड पंच को मिलाकर एक पीठ बनता बनता है और धारा 112(2)  के अनुसार सरपंच और सात वार्ड पंच मिलाकर पूर्ण पीठ का कोरम पूरा होता है।धारा 103 और 107(1) के अनुसार बहुमत सदस्य जिस पक्ष में फैसला देते हैं,उसे पीठ और पूर्ण पीठ का निर्णय माना जाता है।लेकिन आजतक ग्राम कचहरी में पीठ का गठन नहीं किया गया और सरपंच कुछ पंच के साथ मिलकर मनमानी करके फैसला देते हैं।

एक फेसबुक मित्र अफसर राजाजी ने बताया है कि जमीन ब्रिकी का एक अनुबंध 85,000 रुपये में तय हुआ था।कुछ महीने बाद खरीददार ने जमीन लेने से मना कर दिया। अब सरपंच द्वारा ब्याज सहित 85,000 रुपये लौटाने का आदेश दिया गया है।ये मामला जमीनी विवाद के बजाय अनुबंध का है,इसलिए बिहार पंचायती राज अधिनियम,2006 की धारा 110 के तहत दोनों पक्ष द्वारा  लिखित करार सुनवाई के  लिए प्रस्तुत किये  जाने  की अवस्था में 10 हजार रुपये से ज्यादा का मामला होने पर ग्राम कचहरी द्वारा सुनवाई किया जा सकता है।ग्राम कचहरी के पास ब्याज सहित रुपये लौटाने का आदेश देने का अधिकार नहीं है क्योंकि ऐसा प्रावधान किसी भी धारा में नहीं किया गया है।सरपंच ने अधिनियम का धारा 101 का पालन किए बगैर (पीठ का गठन किए बगैर) फैसला दिया है।इन तथ्यों के मद्देनजर  कि    दोनों पक्ष  द्वारा लिखित करार सुनवाई के  लिए प्रस्तुत किये बगैर   ग्राम कचहरी के पास 85,000 रुपये के अनुबंध पर फैसला देने का अधिकार नहीं है,ब्याज लगाने का अधिकार ग्राम कचहरी के पास नहीं है और पीठ का गठन किए बगैर फैसला दिया गया है,सरपंच IPC का धारा 219 के तहत कानून के विपरीत फैसला देने के लिए दोषी है।IPC का धारा 219 के तहत न्यायिक अधिकारी द्वारा कानून के विपरीत फैसला देने पर उसे 7 साल की सजा हो सकती है।सरपंच एक न्यायिक अधिकारी है क्योंकि बिहार पंचायती राज अधिनियम,2006 की धारा 96 के तहत सरपंच को सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्रदान की गई है।ग्राम कचहरी की इस फैसला के विरुध्द अधिनियम की धारा 112(1) के तहत ग्राम कचहरी के पूर्ण पीठ में अपील दायर किया जाए और जब तक अपील पर फैसला ना हो जाती,तब तक अधिनियम की धारा 112(4) के तहत सरपंच द्वारा दिया गया ब्याज सहित रुपये लौटाने का आदेश लागू नहीं होगी।पूर्ण पीठ को बताया जाए कि ब्याज लगाने का अधिकार ग्राम कचहरी के पास नहीं है।यदि उसके बावजूद पूर्ण पीठ ब्याज लगाने का आदेश देती है तो सरपंच के विरुध्द IPC  का धारा 219 के तहत  थाना या मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के कोर्ट में मुकदमा दायर किया जाए।मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के कोर्ट में मुकदमा दायर करना बेहतर रहेगा।साथ ही पूर्ण पीठ के फैसला के विरुध्द तीस दिन के भीतर अधिनियम की धारा 12(3) के तहत  सब जज के कोर्ट में अपील दायर किया जाए और अपील पर फैसला होने तक धारा 12(4) के तहत पूर्ण पीठ का आदेश लागू नहीं होगी।
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Sunday, 3 August 2014

Amend sections 366A and 375 of the IPC to save minor boys from the false allegations .......................................



As it is the provision that if a minor boy and a minor girl run away in the love affair and there is the consent of minor girl for such absconding,then also that minor boy will be subjected to punishment under section 366A of the IPC for the procreation of minor girl.
As it is also the provision that if a minor boy and a minor girl undergo sexual intercourse in the love affair and there is the consent of minor girl for such intercourse,   then also that minor boy will be subjected to punishment under section 376  of the IPC for raping a minor girl because as per the sixth condition of the section 375 of the IPC ,it is the rape if a minor girl undergoes sexual intercourse with or without her consent.

If a girl is minor,then the boy is minor also.Then why  boys are subjected to punishment? How a minor boy can seduce or induce a minor girl to run away or to have a sexual intercourse?
If the boy is not minor,only then this condition should be applied that a minor girl was seduced or induced even if she gives her consent to run away or to have a sexual intercourse.
If a girl is minor,then even after giving her consent for absconding or sexual intercourse,a boy is subjected to punishment for procreation,rape etc with a view that the same girl is seduced or induced because she is minor and she is not competent to take decision independently.It is the principle of law to punish in such cases because she is induced or seduced.But it is also the principle of law that a minor boy can't  offer inducement or seducement rather agreeing a minor girl on the same ground in which the boy agrees himself.

It is the common observation when a minor boy runs  away with  a minor girl under her consent,then also the boy is booked under section 366A of the IPC by the parents of the girl.It is also the common observation when a minor boy performs sexual intercourse with minor girl under her consent,then also the boy is booked under section 376 of the IPC by the parents of the girl or by the girl herself in case of feeling  being cheated by that boy.

It is nothing,only the abuse of law and it should be stopped by amending laws. 
Therefore,section 366A and 375 of the IPC be amended accordingly.
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