बिहार पंचायती राज अधिनियम,2006 की धारा 106 में ये प्रावधान किया गया है कि IPC के किन किन धाराओं का मामला ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में होता है।ग्राम कचहरी छेड़खानी,बलात्कार,रंगदारी,10 हजार से ज्यादा की चोरी आदि मामले पर भी सुनवाई कर अभियुक्त को बचा देती है,जबकि ये धारा उसके क्षेत्राधिकार के बाहर का है।बिहार पंचायती राज अधिनियम,2006 की धारा 111 के तहत ये प्रावधान किया गया है कि पारिवारिक संपति विवाद,किसी भी तरह का जमीनी विवाद और अंचल संपति की स्वामित्व से जुड़ा विवाद ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है,लेकिन ग्राम कचहरी इन विवादों पर सुनवाई कर गलत फैसला सुना देती है।अधिनियम की धारा 110 के तहत प्रावधान किया गया है कि 10 हजार रुपये तक की अनुबंध और चल संपति के मामले पर ग्राम कचहरी सुनवाई कर सकती है।हालांकि दोनों पक्ष द्वारा लिखित करार सुनवाई के लिए प्रस्तुत किये जाने के बाद 10 हजार रुपये से ज्यादा के ऐसे मामले पर भी सुनवाई कर सकती है।लेकिन दोनों पक्ष द्वारा लिखित करार सुनवाई के लिए प्रस्तुत नहीं किये जाने के बावजूद ग्राम कचहरी द्वारा ऐसे मामले पर सुनवाई की जाती है। अधिनियम की धारा 107(1) के तहत फौजदारी मामले में ग्राम कचहरी को अधिकतम एक हजार रुपये जुर्माना लगाने का अधिकार है।लेकिन ग्राम कचहरी बीस हजार रुपये या इससे ज्यादा भी जुर्माना लगा देती है।अधिनियम की धारा 107(3) के तहत जुर्माना की राशि में से ही पीड़ित पक्ष को मुआवजा के रुप में मिलना चाहिए।
मारपीट,गालीगलौज,धमकी जैसा मामला ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में आता है और अधिनियम की धारा 113(2) में प्रावधान किया गया है कि ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में आने वाली धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिए यदि थाना में आवेदन दिया जाता है तो थाना 15 दिन के भीतर उस आवेदन को ग्राम कचहरी को अग्रसारित कर देगी।लेकिन मारपीट,गालीगलौज और धमकी जैसे अनेकों मामले थाना जाती है और इसपर पुलिसिया और अदालती कार्यवाही शुरु हो जाती है,जबकि ऐसे मामले का सुनवाई ग्राम कचहरी द्वारा किया जाना है।अधिनियम की धारा 113(3) के तहत ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार वाली मामला यदि ग्राम कचहरी में लंबित है,तो यदि ऐसे मामले में पुलिस आरोप-पत्र समर्पित करती है या न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दायर किया जाता है,तो ऐसे मामले को मजिस्ट्रेट द्वारा ग्राम कचहरी को सुनवाई हेतु भेज देना चाहिए लेकिन ऐसा एक भी मामला को आजतक मजिस्ट्रेट द्वारा ग्राम कचहरी को नहीं भेजा गया।धारा 113(1) में प्रावधान किया गया है कि ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में आने वाले कोई भी दीवानी या फौजदारी मामले में कोई कोर्ट संज्ञान नहीं लेगी।धारा 114 में प्रावधान किया गया है कि यदि किसी भी दीवानी और फौजदारी मामले पर सुनवाई कर रहे संबंधित न्यायालय को लगता है कि ये मामला ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार का है,तो संबंधित न्यायालय उस मामला को ग्राम कचहरी को अग्रसारित कर देगी।धारा 115 के मुताबिक यदि किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट और मुंसिफ को ये सूचना दी जाती है कि कोई दीवानी या फौजदारी मामला ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार का नहीं है तो संबंधित न्यायालय उस मामला को ग्राम कचहरी से निकालकर सक्षम न्यायालय को भेज देगी।
मारपीट,गालीगलौज और धमकी जैसे छोटे मामले की सुनवाई ग्राम कचहरी में ही हो,इसके लिए बिहार सरकार को ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में आने वाली धाराओं में संशोधन करके प्रावधान कर देना चाहिए कि ये धारा ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में है,इसलिए इस धारा के तहत कोई मुकदमा पुलिस या कोर्ट के समक्ष दायर नहीं होगा,परन्तु ऐसे धारा जो ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार में नहीं है,यदि उन धाराओं में मुकदमा दायर होती है तो साथ में ग्राम कचहरी के क्षेत्राधिकार वाली धाराओं में भी मुकदमा दायर की जा सकेगी। अधिनियम की धारा 112(1) के तहत ग्राम कचहरी के पीठ के फैसले के विरुध्द ग्राम कचहरी के पूर्ण पीठ में 30 दिन के भीतर अपील दायर की जा सकती है और यदि कोई व्यक्ति ग्राम कचहरी के पीठ द्वारा लगाये गए जुर्माना से संतुष्ट नहीं है तो यदि वह अपील दायर करता है तो धारा 107(4) और 112(4 ) के तहत उसे तबतक जुर्माना नहीं लगेगी,जबतक अपील पर फैसला नहीं हो जाता।धारा 101(2) के अनुसार एक सरपंच,उसके द्वारा मनोनीत दो वार्ड पंच और सभी पक्षकारों द्वारा मनोनीत दो वार्ड पंच को मिलाकर एक पीठ बनता बनता है और धारा 112(2) के अनुसार सरपंच और सात वार्ड पंच मिलाकर पूर्ण पीठ का कोरम पूरा होता है।धारा 103 और 107(1) के अनुसार बहुमत सदस्य जिस पक्ष में फैसला देते हैं,उसे पीठ और पूर्ण पीठ का निर्णय माना जाता है।लेकिन आजतक ग्राम कचहरी में पीठ का गठन नहीं किया गया और सरपंच कुछ पंच के साथ मिलकर मनमानी करके फैसला देते हैं।
एक फेसबुक मित्र अफसर राजाजी ने बताया है कि जमीन ब्रिकी का एक अनुबंध 85,000 रुपये में तय हुआ था।कुछ महीने बाद खरीददार ने जमीन लेने से मना कर दिया। अब सरपंच द्वारा ब्याज सहित 85,000 रुपये लौटाने का आदेश दिया गया है।ये मामला जमीनी विवाद के बजाय अनुबंध का है,इसलिए बिहार पंचायती राज अधिनियम,2006 की धारा 110 के तहत दोनों पक्ष द्वारा लिखित करार सुनवाई के लिए प्रस्तुत किये जाने की अवस्था में 10 हजार रुपये से ज्यादा का मामला होने पर ग्राम कचहरी द्वारा सुनवाई किया जा सकता है।ग्राम कचहरी के पास ब्याज सहित रुपये लौटाने का आदेश देने का अधिकार नहीं है क्योंकि ऐसा प्रावधान किसी भी धारा में नहीं किया गया है।सरपंच ने अधिनियम का धारा 101 का पालन किए बगैर (पीठ का गठन किए बगैर) फैसला दिया है।इन तथ्यों के मद्देनजर कि दोनों पक्ष द्वारा लिखित करार सुनवाई के लिए प्रस्तुत किये बगैर ग्राम कचहरी के पास 85,000 रुपये के अनुबंध पर फैसला देने का अधिकार नहीं है,ब्याज लगाने का अधिकार ग्राम कचहरी के पास नहीं है और पीठ का गठन किए बगैर फैसला दिया गया है,सरपंच IPC का धारा 219 के तहत कानून के विपरीत फैसला देने के लिए दोषी है।IPC का धारा 219 के तहत न्यायिक अधिकारी द्वारा कानून के विपरीत फैसला देने पर उसे 7 साल की सजा हो सकती है।सरपंच एक न्यायिक अधिकारी है क्योंकि बिहार पंचायती राज अधिनियम,2006 की धारा 96 के तहत सरपंच को सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्रदान की गई है।ग्राम कचहरी की इस फैसला के विरुध्द अधिनियम की धारा 112(1) के तहत ग्राम कचहरी के पूर्ण पीठ में अपील दायर किया जाए और जब तक अपील पर फैसला ना हो जाती,तब तक अधिनियम की धारा 112(4) के तहत सरपंच द्वारा दिया गया ब्याज सहित रुपये लौटाने का आदेश लागू नहीं होगी।पूर्ण पीठ को बताया जाए कि ब्याज लगाने का अधिकार ग्राम कचहरी के पास नहीं है।यदि उसके बावजूद पूर्ण पीठ ब्याज लगाने का आदेश देती है तो सरपंच के विरुध्द IPC का धारा 219 के तहत थाना या मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के कोर्ट में मुकदमा दायर किया जाए।मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के कोर्ट में मुकदमा दायर करना बेहतर रहेगा।साथ ही पूर्ण पीठ के फैसला के विरुध्द तीस दिन के भीतर अधिनियम की धारा 12(3) के तहत सब जज के कोर्ट में अपील दायर किया जाए और अपील पर फैसला होने तक धारा 12(4) के तहत पूर्ण पीठ का आदेश लागू नहीं होगी।
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