किशोर न्याय संशोधन विधेयक,2014 को केबिनेट की मंजूरी मिल गई है जिसमें प्रावधान किया गया है कि 16 से 18 वर्ष के हत्या,रेप जैसे गंभीर अपराध के आरोपी किशोर के बारे में किशोर न्याय बोर्ड तय करेगी कि उस किशोर के विरुध्द मुकदमा व्यस्क की तरह सामान्य अदालत में चले या फिर नाबालिग की तरह किशोर न्याय बोर्ड में।सरकार ने किशोर का उम्र-सीमा घटाकर 16 वर्ष करने के बजाय बीच का रास्ता निकालने का सराहनीय प्रयास किया है,लेकिन ये तय करने का अधिकार किशोर न्याय बोर्ड के पास नहीं होना चाहिए था क्योंकि किशोर न्याय बोर्ड में काफी भ्रष्टाचार है।गंभीर अपराध के आरोपी किशोर पर लगे आरोप की जांच SIT(विशेष जांच दल) का गठन करके किये जाने का प्रावधान होना चाहिए और फिर SIT द्वारा मामला को सत्य पाए जाने के बाद किशोर मनोवैज्ञानिक और कानूनविद के एक टीम के पास ये तय करने का अधिकार होना चाहिए कि मुकदमा किशोर न्याय बोर्ड में चलेगी या सामान्य अदालत में।हो सकता है कि गंभीर अपराध का आरोपी कोई किशोर निर्दोष हो जो SIT जांच में निर्दोष साबित हो भी जाता,लेकिन किशोर न्याय बोर्ड ने सिर्फ आरोप को देखकर मामला को सामान्य अदालत में भेज दिया।
लड़की के द्वारा नाबालिग लड़के के विरुध्द पुलिस या फिर मजिस्ट्रेट के समक्ष CrPC का धारा 164 के तहत दिया गया बयान नाबालिग लड़के का नाबालिकी तय करने का आधार नहीं बनना चाहिए कि उसके विरुध्द मामला व्यस्क कोर्ट में चलेगी या नाबालिग कोर्ट में।नाबालिग लड़के के विरुध्द यौन-शोषण और अपहरण के केस में लड़की भी अक्सर नाबालिग ही होती है और कई बार प्रेम-संबंध के कारण भाग जाने या यौन-संबंध बना लेने को भी अपहरण,बलात्कार आदि के तौर पर प्रस्तुत कर दिया जाता है और लड़की भी लड़के के द्वारा धोखा दिए जाने के कारण बलात्कार का झूठा केस कर देती है और लड़की के माँ-बाप द्वारा लड़की का सहमति से भागने के बावजूद अपहरण का झूठा केस करना स्वाभाविक हो गया है और कई बार लड़की माँ-बाप के दवाब में अपहरण और बलात्कार का झूठा बयान देती है।हालांकि नाबालिग लड़की को नाबालिग लड़के द्वारा उसकी सहमति से साथ ले भागना भी IPC का धारा 366A के तहत अपहरण है,जो कि निराधार और तर्कहीन प्रावधान है।नाबालिग लड़की की सहमति के बावजूद नाबालिग लड़के द्वारा उसके साथ यौन-संबंध बनाना IPC का धारा 375 की Sixth condition के तहत बलात्कार है,जो भी निराधार और तर्कहीन प्रावधान है।SIT का जांच में मामला को सही पाए जाने के बाद किशोर मनोवैज्ञानिक और कानूनविद की एक टीम की समीक्षा के बाद ही किसी संस्था के पास नाबालिकी तय करने का अधिकार हो।
लड़की के द्वारा नाबालिग लड़के के विरुध्द पुलिस या फिर मजिस्ट्रेट के समक्ष CrPC का धारा 164 के तहत दिया गया बयान नाबालिग लड़के का नाबालिकी तय करने का आधार नहीं बनना चाहिए कि उसके विरुध्द मामला व्यस्क कोर्ट में चलेगी या नाबालिग कोर्ट में।नाबालिग लड़के के विरुध्द यौन-शोषण और अपहरण के केस में लड़की भी अक्सर नाबालिग ही होती है और कई बार प्रेम-संबंध के कारण भाग जाने या यौन-संबंध बना लेने को भी अपहरण,बलात्कार आदि के तौर पर प्रस्तुत कर दिया जाता है और लड़की भी लड़के के द्वारा धोखा दिए जाने के कारण बलात्कार का झूठा केस कर देती है और लड़की के माँ-बाप द्वारा लड़की का सहमति से भागने के बावजूद अपहरण का झूठा केस करना स्वाभाविक हो गया है और कई बार लड़की माँ-बाप के दवाब में अपहरण और बलात्कार का झूठा बयान देती है।हालांकि नाबालिग लड़की को नाबालिग लड़के द्वारा उसकी सहमति से साथ ले भागना भी IPC का धारा 366A के तहत अपहरण है,जो कि निराधार और तर्कहीन प्रावधान है।नाबालिग लड़की की सहमति के बावजूद नाबालिग लड़के द्वारा उसके साथ यौन-संबंध बनाना IPC का धारा 375 की Sixth condition के तहत बलात्कार है,जो भी निराधार और तर्कहीन प्रावधान है।SIT का जांच में मामला को सही पाए जाने के बाद किशोर मनोवैज्ञानिक और कानूनविद की एक टीम की समीक्षा के बाद ही किसी संस्था के पास नाबालिकी तय करने का अधिकार हो।
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