Thursday 31 July 2014

अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी,समस्तीपुर सदर और पूसा थानाध्यक्ष के विरुध्द FIR दर्ज कर जेल भेजा जाए।





तत्कालिन पुलिस महानिरीक्षक, दरभंगा प्रक्षेत्र, श्री अरविंद पांडे  ने मेरे द्वारा चिरंजीवी राय (प्राचार्य,जवाहर नवोदय विद्यालय,बिरौली,समस्तीपुर) व अन्य के विरुध्द दायर की गई आवेदन को पुलिस अधीक्षक,समस्तीपुर को जांच के लिए भेजा  था।जांच अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ,समस्तीपुर सदर और थानाध्यक्ष पूसा के द्वारा की गई।अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी द्वारा समर्पित की गई जांच प्रतिवेदन की एक छायाप्रति सूचना का अधिकार आवेदन के द्वारा पुलिस महानिरीक्षक के आदेश के बाद अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी,समस्तीपुर सदर के कार्यालय द्वारा  भेजी गई है,जिसकी समीक्षा प्रस्तुत है-

1.दिनांक 7/4/2014 को तत्कालिन पुलिस महानिरीक्षक श्री अरविंद पांडे ने पुलिस अधीक्षक,समस्तीपुर को आदेश जारी किया कि जिन पदाधिकारियों/कर्मचारियों के कारण मेरे द्वारा दिनांक 17/1/2014 को  समर्पित किए गए आवेदन के आलोक में जांच करने में विलंब हुई,उनके विरुध्द विभागीय कार्यवाही के विरुध्द स्पष्टीकरण समर्पित किया जाए।दिनांक 7/4/2014 का ही अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी का जांच प्रतिवेदन है।जबकि दिनांक 7/4/2014 को जब पुलिस महानिरीक्षक कायार्लय द्वारा पड़ताल की गई तो पता चला कि अभी भी मेरा आवेदन अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के कार्यालय में लंबित है। अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी जांच करने में विलंब करने के कारण विभागीय कार्रवाई के विरुध्द स्पष्टीकरण देने से बचने के लिए तत्कालिन पुलिस महानिरीक्षक श्री अरविंद पांडे  के आदेश  के  बाद  बैक डैट (पूर्व की तारीख ) में जांच प्रतिवेदन तैयार किया है।अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने जांच प्रतिवेदन में लिखा है कि थानाध्यक्ष पूसा और पुलिस निरीक्षक,मुफ्फसिल की उपस्थिति में विद्यालय में उपलब्ध अभिलेख का अध्ययन किया गया।मतलब अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी विद्यालय गए।दिनांक 7/4/2014 का पूसा थाना का स्टेशन डायरी की जांच किया जाए कि ये विद्यालय गए या नहीं।

2.पुलिस महानिरीक्षक को मेरे द्वारा दिनांक 17/1/2014 को जो आवेदन दिया गया था,उसमें सिर्फ मैंने अपना व्यक्तिगत मामला को लेकर ही आरोप नहीं लगाया था कि प्राचार्य के विरुध्द नवोदय विद्यालय समिति,मुख्यालय में शिकायत करने के बाद मुझे जबरन बिना साक्ष्य का आरोपित कर बाहर कर दिया गया और फिर मानवाधिकार आयोग में इसकी शिकायत करने के बाद प्राचार्य ने खुद को बचाने   और मेरे विरुध्द मामला दिखाने के लिए पूर्व की तारीख  (बैक डैट) में शिकायत पत्रों को तैयार करवाया,बल्कि मैंने प्राचार्य द्वारा कई लड़के,लड़कियों और कर्मचारियों को प्रताड़ित किए जाने,मैट्रॉन के बेटा और बेटी का नामांकन कराने में फर्जीवाड़ा करने,अपने दो बेटा का गलत तरीके से नामांकन कराने,अवैध तरीके से सरकारी पेड़ काटकर बेचने आदि का भी आरोप संबंधित पीड़ितों के बयान और संबंधित दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर  लगाया।लेकिन अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी द्वारा जांच सिर्फ मेरा निजी मामले को लेकर की गई।अतः जाहिर है कि प्राचार्य को अन्य आरोप से बगैर जांच बरी कर दिया गया क्योंकि मैंने इन आरोपों के समर्थन में पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत किया है जिसकी जांच करने पर प्राचार्य बच नहीं सकते। 

3.मेरे पक्ष और प्राचार्य के विरोध में गवाहों का बयान,प्राचार्य का मेरे द्वारा की गई फोन  रिकार्डिंग में अपराध की स्वीकृति,मेरे विरुध्द बनाई गई शिकायत पत्रों में अंकित की गई तिथि और इन शिकायत पत्रों में हस्ताक्षर के साथ अंकित की गई तिथि में अंतर,शिकायत पत्रों में दर्ज विरोधाभासी बयानों, प्राचार्य के विरुध्द मेरे द्वारा  NVS में शिकायत करने के बाद मेरे विरुध्द कथित  शिकायत पत्र बनाए जाने,वर्तमान की घटना और वर्तमान में कार्रवाई का मांग   किए जाने के बावजूद शिकायत पत्रों का कुछ वाक्य/शब्दों को  भूत काल में  लिखे जाने,RTI से मेरे द्वारा पूछे गए कई सवालों का जवाब प्राचार्य व अन्य  अधिकारियों द्वारा नहीं दिए जाने,तत्कालिन जिलाधिकारी कुंदन कुमार द्वारा  जिलाधिकारी के पास की गई कथित शिकायत से फोन रिकार्डिंग में अनभिज्ञता  जताने  आदि के मद्देनजर मेरे द्वारा आरोप लगायी गई कि प्राचार्य ने खुद को  बचाने और मेरे विरुध्द मामला दिखाने के नियत से मेरे विरुध्द सभी शिकायत  पत्रों को पूर्व की तारीख में बनवाया है जो फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी है।लेकिन  अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने मेरे विरुध्द बनाए गए शिकायत पत्रों के आधार पर  ही आरोप को सत्य करार दे दिया है।मैंने मेरे विरुध्द बनाए गए शिकायत  पत्रों के विरोध में ही उपरोक्त साक्ष्यों को दस्तावेज व गवाहों के बयान  सहित विस्तृत विश्लेषण द्वारा प्रस्तुत किया है।जब तक मेरे द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों को गलत साबित नहीं किया जा सकता,तब तक यहीं सिध्द होता है कि प्राचार्य ने सभी दस्तावेजों को पूर्व की तारीख में बना लिया है।
अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने मेरे द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों की चर्चा किए बगैर (उसे गलत साबित किए बगैर) मेरे विरुध्द दायर किए गए शिकायत पत्रों में लगे आरोपों को सत्य करार दे दिया जबकि इन शिकायत पत्रों को सत्य करार देने से पहले इन शिकायत पत्रों के विरोध में मेरे द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों को गलत साबित  करना पड़ेगा।इन साक्ष्यों को गलत साबित करना असंभव है,इसलिए इन साक्ष्यों की चर्चा भी नहीं की गई।

4.प्राचार्य,शिक्षकों और  उस छात्र की माँ के बयान के आधार पर मेरे विरुध्द उस छात्र के साथ अप्राकृतिक कृत्य करने के  लगाए गए आरोप को सत्य बताया गया है।मेरे विरुध्द उस छात्र के साथ अप्राकृतिक कृत्य करने को लेकर ना ही उस छात्र का वैसा बयान है और ना ही कोई अन्य चश्मदीद गवाह और परिस्तिथिजन्य साक्ष्य  है।प्राचार्य,शिक्षक और उस छात्र की माँ चश्मदीद गवाह नहीं हैं और ना ही किसी भी रुप में परिस्तिथिजन्य साक्ष्य हैं।उस छात्र की माँ ने चार विरोधाभासी बयान चार विभिन्न शिकायत पत्रों में दिया है और उनका एक भी बयान उनके पुत्र के बयान से नहीं मिलता।उसकी माँ ने इन चार विरोधाभासी बयानों में भी कहीं पर ये नहीं लिखा है कि उनके बेटा ने उन्हें अप्राकृतिक कृत्य के बारे में बताया।उनके बेटा के बयान में भी वैसा कुछ भी नहीं लिखा है और ना ही ये लिखा है कि उसने अपनी माँ को ऐसी किसी भी घटना की सूचना दी।उसकी माँ ने चार विरोधाभासी बयान दिया है जिसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 155(3) के तहत असत्य करार दिया जाना चाहिए। उस छात्र की माँ द्वारा लगायी गई विरोधाभासी आरोप में से किसी के बारे में भी उनका पुत्र ने  उन्हें  बताया होता तो भी ये सबूत तभी मानी जाती जब उसका पुष्टि उनका पुत्र के द्वारा की जाती।उसकी माँ Second hand informant  या Hearsay evidence है जिसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 60 के तहत सबूत तभी मानी जाएगी जब इसकी पुष्टि Original informant मतलब उस छात्र के द्वारा की जाती है।अतः ये स्पष्ट है कि बगैर साक्ष्य का मेरे विरुध्द लगाए गए आरोप को सत्य करार दिया गया है।

5.अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने अपने जांच प्रतिवेदन में लिखा है कि एके तिवारी,तत्कालिन सहायक आयुक्त,नवोदय विद्यालय समिति,पटना संभाग ने भी मेरे विरुध्द लगाए गए आरोप को सत्य करार दिया।पुलिस महानिरीक्षक को दिए गए आवेदन में मैंने एके तिवारी को भी अभियुक्त बनाकर FIR दर्ज करने के लिए आग्रह किया है क्योंकि एके तिवारी ने मेरा पक्ष लिए बगैर जांच प्रतिवेदन तैयार किया और एके तिवारी ने उस छात्र की माँ के बारे में लिखा है कि उन्होंने अपने बेटा के द्वारा सूचना दिए जाने के आधार पर शिकायत दर्ज कराया है कि मैं उनके बेटा के साथ अप्राकृतिक कृत्य करता था।लेकिन उनके बेटा के बयान में वैसा कुछ भी नहीं लिखा है और ना ही ये लिखा है कि उसने अपनी माँ को ऐसी किसी भी घटना की सूचना दी।एके तिवारी द्वारा दिनांक 12/2/2012 को जांच प्रतिवेदन तैयार की गई लेकिन उसके माँ द्वारा किसी सूचना के  आधार पर  अप्राकृतिक कृत्य किए जाने का उल्लेख दिनांक 13/9/2012 को अनुमंडलाधिकारी के समक्ष दायर की गई कथित शिकायत पत्र में  किया गया है। किसी भी शिकायत पत्र में अपने बेटा के सूचना के आधार पर कथित अप्राकृतिक कृत्य का उन्होंने उल्लेख नहीं किया है,फिर एके तिवारी ने ऐसा किस आधार पर लिखा है कि उन्होंने अपने बेटा के  सूचना के आधार पर कथित अप्राकृतिक कृत्य का उल्लेख किया है?अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी  ने भी अपने जांच  प्रतिवेदन में उल्लेख किया है कि उस छात्र के द्वारा दी गई सूचना के आधार  पर उसकी माँ ने प्राचार्य को शिकायत किया कि मैं उनके बेटा के साथ अनैतिक  रुप से गलत व्यवहार करता था।प्राचार्य के पास उसके माँ द्वारा  दो  कथित शिकायत पत्र दायर की गई लेकिन किसी भी शिकायत पत्र में उनके बेटा  द्वारा अनैतिक रुप से गलत व्यवहार की जाने संबंधित सूचना उन्हें दी जाने का  उल्लेख नहीं किया गया है।फिर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी किस आधार पर कह रहे  हैं कि उनके बेटा द्वारा उन्हें ऐसी सूचना दी गई  जिसके बारे में उन्होंने  प्राचार्य को शिकायत किया? एके तिवारी के द्वारा की गई जांच विभागीय  था,लेकिन अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के द्वारा किया गया जांच कानूनी होता  है,फिर किस आधार पर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी द्वारा अपने जांच के समर्थन  में एके तिवारी के जांच प्रतिवेदन को आधार बनाया गया? 

6.अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के जांच प्रतिवेदन में उल्लेख किया गया है कि  मेरे द्वारा उस छात्र की माँ को धमकी भरा पत्र भेजा गया।लेकिन मैंने  अवमानना नोटिस भेजा था,जिसे जिलाधिकारी,अनुमंडलाधिकारी और प्राचार्य को भी  भेजी गई थी।इस   नोटिस में उल्लेख किया गया है कि उनके द्वारा बिना साक्ष्य का 6 महीना बाद  मेरे विरुध्द शिकायत दायर की गई और ऐसा करके मेरा अनुच्छेद 21 का हनन हुआ  है,जिसके आलोक में अपना जवाब भेजना सुनिश्चित करे अन्यथा उनपर कानूनी  कार्रवाई की जा सकती है।एक अन्य पत्र में मैंने उन्हें प्राचार्य द्वारा  उनका और उनके पुत्र का इस्तेमाल करके बनाए गए शिकायत पत्रों की छायाप्रति  को संलग्न करके भेजा है और सारी गड़बड़ियों को मानवीय आधार पर बताते हुए ये  आग्रह किया गया है कि वह स्वीकार करे कि प्राचार्य ने उनपर दवाब देकर इन   शिकायत पत्रों को बनवाया है।मैंने लिखा है कि मानवीय आधार पर मैं ऐसा कह  रहा हूँ और सच्चाई स्वीकार करने में ही उनकी भलाई है।इसमें धमकी भरा शब्द  का इस्तेमाल कहाँ हुई है?भलाई का गलत अर्थ निकाला जा सकता है।लेकिन स्पष्ट  है कि मैंने मानवीय आधार पर ऐसा कहा है।मतलब मैं ये कहना चाह रहा हूँ कि  यदि  आप ये स्वीकार कर लेंगे कि प्राचार्य ने आपका इस्तेमाल दवाब देकर किया है  तो प्राचार्य के साथ आपराधिक साजिश में शामिल होने का मुकदमा आप पर नहीं  चलेगा,बल्कि सिर्फ एक गवाह के तौर पर आपको देखा जाएगा।अतः सच्चाई स्वीकार करने में ही उनकी भलाई निहित है।यदि उन्हें भेजी गई पत्रों का अवलोकन अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने किया तो फिर उन्हें धमकी भरा शब्द कैसे दिख गया?

7.अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने मुझे गलत साबित करने के लिए जानबूझकर मामला को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया है।जांच प्रतिवेदन में लिखा गया है कि स्कूल के शिक्षकों ने बताया कि मैं बिना अनुमति के विद्यालय से अनुपस्थित हो जाता था।ऐसा लिखा गया है कि मानो कि मैं बार बार बिना अनुमति का अनुपस्थित हो जाता था।लेकिन प्राचार्य के द्वारा एके तिवारी और बिहार मानवाधिकार आयोग को समर्पित किए गए प्रतिवेदन से स्पष्ट होता है कि मैं सिर्फ एक बार दिनांक 24/8/2011 को बिना अनुमति दिल्ली चला गया था।एके तिवारी के जांच प्रतिवेदन से ये स्पष्ट होता है कि मैं दिनांक 24/8/2011 को  अनुमति लिए बगैर नवोदय विद्यालय समिति मुख्यालय गया था।मतलब मैंने प्राचार्य के विरुध्द मुख्यालय जाकर शिकायत किया था।अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने अपने जांच प्रतिवेदन में लिखा है कि मुझे उस छात्र के  बिस्तर पर जाकर सोने से हाउस मास्टर द्वारा कई बार मना किया गया,लेकिन मैं अपनी हरकतों से बाज नहीं आता था।उस छात्र के हाउस मास्टर के संदर्भ में चार विरोधाभासी बयान दी गई है और यदि किसी भी विरोधाभासी बयान को सत्य ना मानने का कानून होने के बावजूद यदि सत्य मान लिया जाए,फिर भी सिर्फ एक बार ही किसी कारण से उस छात्र के हाउस मास्टर द्वारा मना करने का तथ्य उजागर होता है।उस छात्र ने बयान में कहा है कि जब उसके हाउस मास्टर ने उसे रात्रि में भोजन के बाद रुम से बाहर जाने से मना किया तो मैं हाउस मास्टर के साथ उलझ गया।एके तिवारी ने जांच प्रतिवेदन में कहा है  कि जब उस छात्र के हाउस मास्टर द्वारा मुझे जूनियर हॉस्टल में जाने से मना किया गया तो मैंने हाउस मास्टर के साथ दुर्व्यव्हार किया।प्राचार्य द्वारा एके तिवारी और बिहार मानवाधिकार आयोग को समर्पित प्रतिवेदन में कहा गया है  कि  जब हाउस मास्टर ने मुझे उसके बिस्तर पर सोने से मना किया तो मैंने हाउस मास्टर के साथ दुर्व्यव्हार किया।उपायुक्त,NVS,पटना संभाग को मेरा अनुपस्थित हो जाने के बाद  प्राचार्य द्वारा  भेजे गए प्रतिवेदन में कहा गया है कि उस छात्र के हाउस मास्टर को मेरा व्यवहार के कारण परेशानी होती थी।उक्त हाउस मास्टर के संदर्भ में चार विरोधाभासी बयान दिया गया है,इसलिए ये स्पष्ट है कि हाउस मास्टर के साथ दुर्व्यव्हार नहीं हुआ।इन विरोधाभासी बयानों से कई बार मना करने की बात तो दूर,ये भी स्पष्ट नहीं है कि आखिर किस बात को लेकर एक बार भी मना किया गया था।
मेरा हाउस मास्टर के कथित शिकायत में लिखा है कि उन्होंने मुझे एक बार सोने से मना किया,इसलिए मेरा हाउस मास्टर के बयान के आधार पर यदि कई बार मना करने के बारे में लिखा गया है तो ये स्वतः असत्य है।मेरा हाउस मास्टर से उक्त शिकायत को प्राचार्य ने पूर्व की तारीख में बनवाया है और उसमें लिखा गया सारा कथन असत्य है।ये कथित शिकायत कथित घटना के पाँच महीने बाद दिनांक 24/8/2011 को दायर की गई जिस दिन मैं विद्यालय से गायब था।प्राचार्य उस दिन NVS पटना गए हुए थे और 10 बजे रात में विद्यालय लौटे। इसलिए मेरा गायब होने की जानकारी प्रभारी प्राचार्या द्वारा पुलिस को दी गई और  प्राचार्य ने अगले दिन  मेरा गायब होने की जानकारी NVS पटना उपायुक्त को दी जिसमें लिखा है कि कल वह NVS पटना में थे।आखिर पाँच महीने पूर्व की कथित घटना को लेकर शिकायत मेरा गायब होने के दिन क्यों की गई?ऐसी क्या जरुरत पड़ी कि रात्रि में 10 बजे के बाद पाँच महीने पूर्व की शिकायत दर्ज करायी  गई?दिनांक 24/8/2011 का ही शिकायत होने के बावजूद ये लिखा गया है कि "दिनांक 24/8/2011 को राहुल कुमार विद्यालय से गायब हो गया।मेरा पिताजी ने दिनांक 24/8/2011 को शाम में कहा कि मेरा अपहरण कर लिया गया है।शिक्षकों और प्राचार्य पर मुकदमा की जाएगी।" दिनांक 24/8/2011 की कथित शिकायत होने के बावजूद ये कहा गया है कि दिनांक 24/8/2011 को गायब हो गया।'आज' शब्द का प्रयोग कहीं भी नहीं किया गया है और दिनांक 24/8/2011 को मेरा कोई पता नहीं चलने के बावजूद ये नहीं लिखा गया है कि उसकी अभी तक कोई पता नहीं चला है या वो अभी भी गायब है।मेरा हाउस मास्टर ने उस तिथि को मेरे बारे में पता नहीं चलने के बावजूद उस तिथि को ही इस सन्दर्भ में लिखा है कि मेरा अपहरण नहीं हुआ है।मतलब ये शिकायत दिनांक 24/8/2011 के बाद बनायी गई है जब मेरा पता चल चुका था लेकिन बैक डैटिंग करके 24/8/2011 का दिनांक डाल दिया गया है।मेरा हाउस मास्टर के शिकायत में और उस छात्र के शिकायत में मेरे विरुध्द कोई कार्रवाई की मांग नहीं की गई है।मतलब जब शिकायत बनाई गई,उस समय मेरा विद्यालय परित्याग प्रमाण पत्र निर्गत हो चुका था,इसलिए कोई कार्रवाई की मांग नहीं की गई लेकिन शिकायत पर मेरा विद्यालय परित्याग प्रमाण पत्र का निर्गत होने से पहले का तारीख डाल दिया गया है।अतः ये स्पष्ट है कि बैक डैट में शिकायत बनाया गया है।

8.अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के जांच प्रतिवेदन में पूसा  थानाध्यक्ष द्वारा भी जांच प्रतिवेदन समर्पित की जाने के बारे में बताया गया है,जिसमें भी अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी द्वारा किए गए जांच में आये तथ्यों की पुष्टि की गई है,लेकिन मुझे सूचना का अधिकार आवेदन भेजने के बावजूद थानाध्यक्ष द्वारा की गई जांच प्रतिवेदन को उपलब्ध नहीं कराया गया।

9.थानाध्यक्ष और अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी एक पक्षीय जांच करने,  निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बगैर जांच करने,सभी बिन्दुओं पर जांच नहीं करने और बिना साक्ष्य का मुझे गलत आचरण का करार देने और ऐसा करके प्राचार्य को बचाने और मुझे मानसिक क्षति पहुँचाने के लिए IPC का कई धाराओं के तहत दोषी हैं।इनके विरुध्द IPC का धारा 166 मतलब  लोकसेवक द्वारा क्षति पहुँचाने के नियत से कानूनी दिशानिर्देश/प्रावधान का पालन नहीं किया  जाना,धारा 166A(b) मतलब लोकसेवक द्वारा सही तरीके से जांच नहीं करना,धारा 182 मतलब परेशान करने के नियत से झूठा सूचना देना,धारा 217 मतलब लोकसेवक द्वारा  किसी को बचाने के नियत से  कानूनी दिशानिर्देश/प्रावधान का पालन नहीं किया जाना,धारा 218 यानि लोकसेवक द्वारा किसी को बचाने या क्षति पहुँचाने के नियत से गलत प्रतिवेदन तैयार किया जाना और धारा 500 मतलब मानहानि करना  आदि धाराओं के तहत मामला बनता है।
पूसा थानाध्यक्ष ने विद्यालय की महिला कर्मचारी अनुपमा झा द्वारा प्राचार्य के विरुध्द मानसिक प्रताड़ना और धमकाने का लगाए गए आरोप पर FIR दर्ज करने से दिनांक 5/4/2014 को मना कर दिया था।FIR को IPC का धारा 323,504,506 और 509 के तहत दर्ज किया जाना था।IPC का धारा 509 के तहत मामला बनने के बावजूद FIR दर्ज नहीं किया गया जिसके लिए थानाध्यक्ष के विरुध्द IPC का धारा 166A(c) के तहत मुकदमा चलना चाहिए।  
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Friday 25 July 2014

PUCL-Delhi to help falsely implicated RTI Activist


PUCL-Delhi एक RTI कार्यकर्ता को बलात्कार,बलात्कार का प्रयास और ठगी जैसे फर्जी मुकदमा में फंसाए जाने के विरुध्द मदद करने आगे आई है।मेरा एक फेसबुक स्टेटस पर दिल्ली के एक सामाजिक कार्यकर्ता देवेन्द्र भारती जी ने मदद का आश्वासन दिया और इन्होंने मामले से PUCL-Delhi के अध्यक्ष  व मानवाधिकार वकील  एनडी पंचौली जी को अवगत कराया।PUCL-Delhi  मामले को लेकर पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जाएगी और एक Fact Finding Team गठन करने का आग्रह करेगी।PUCL(People's Union For Civil Liberties)  मानवाधिकार और नागरिक अधिकार के क्षेत्र में काम करने वाली एक अग्रणी भारतीय संस्था है जिनके जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने EVM में NOTA बटन शामिल करने का आदेश दिया।बिहार बोर्ड के परीक्षा में होने वाली फर्जीवाड़ा का खुलासा  करने के कारण माधवेन्द्र झा (यूभीके कॉलेज,मधेपुरा का प्राचार्य जिसके विरुध्द बिहार बोर्ड के साथ मिलीभगत करके गड़बड़ी करने का खुलासा हुआ ) द्वारा  नागेश्वर झा को बलात्कार,बलात्कार का प्रयास,ठगी जैसे कई फर्जी आरोप में फंसा दिया गया है जिसका समीक्षा करके मैंने उसे झूठा सिध्द किया है।

उनके द्वारा  भेजी गई कुछ और दस्तावेज ईमेल से प्राप्त हुई है,जिसकी संक्षिप्त समीक्षा प्रस्तुत है:

1.गम्हरिया थाना कांड संख्या 68/10 में नागेश्वर झा ने अभियुक्त  अरुण यादव व अन्य पर रंगदारी मांगने,जान से मारने की धमकी देने आदि का आरोप लगाया।SDPO मधेपुरा अपने पर्यवेक्षण टिप्पणी में आरोप को असत्य करार देते हुए नागेश्वर झा के विरुध्द IPC का धारा 182 और 211 के तहत झूठे मुकदमा में फंसाने के जुर्म में मुकदमा चलाने का अभियोजन प्रस्ताव न्यायालय में समर्पित करने का आदेश दिया,जिसकी स्वीकृति SP मधेपुरा ने भी दे दी।DIG सहरसा रेंज और IG दरभंगा प्रक्षेत्र अपने अपने समीक्षा टिप्पणी में नागेश्वर झा के द्वारा लगाए गए आरोप को सत्य बताते हुए उनके विरुध्द धारा 182 और 211 के तहत दायर किए अभियोजन प्रस्ताव को खारिज कर दिया और थानाध्यक्ष के विरुध्द निलंबन का आदेश जारी किया और SDPO से विभागीय कार्यवाही हेतु स्पष्टीकरण मांगा गया।DIG और IG ने SDPO से विभागीय कार्यवाही हेतु मांगे गए स्पष्टीकरण में इस बिन्दु की ओर ध्यान नहीं दिया कि SDPO ने धारा 211 के तहत भी अभियोजन प्रस्ताव समर्पित करने का आदेश दिया है   लेकिन  CrPC का धारा 195 के तहत पुलिस अधिकारी सिर्फ धारा 182 के तहत मुकदमा चलाने का प्रस्ताव दे सकते हैं।CrPC का धारा 195 में स्पष्ट लिखा है कि IPC का धारा 211 के तहत मुकदमा उस अवस्था में चलेगी जब कोर्ट में झूठा बयान दिया जाता है।

2.मधेपुरा CJM के कोर्ट में दायर की गई Complaint Case No.1046/2013 में माधवेन्द्र झा की पत्नी सुनीता झा ने नागेश्वर झा के विरुध्द अकहनीय शब्द बोलने का आरोप लगाया है।लेकिन जो भी अकहनीय शब्द हो,उसे कोर्ट में बताना पड़ता है जो कि नहीं बताया गया है।चार गवाह का नाम दिया गया है,लेकिन ये किस तथ्य का गवाह हैं,इसका उल्लेख नहीं किया गया है।इनमें दो गवाह अरविंद कुमार और रविशंकर नागेश्वर झा पर लगाए गए बलात्कार के आरोप का भी गवाह हैँ जिससे ये गवाह खरीदा हुआ प्रतीत होते हैं।मुकदमा सुनीता झा के विरुध्द कथित अकहनीय शब्द बोलने के लिए दायर की गई है लेकिन पूरा आवेदन माधवेन्द्र झा के विरुध्द नागेश्वर झा द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप को झूठा बताने पर केन्द्रित है।प्रार्थना में भी ये लिखा गया है कि माधवेन्द्र झा के विरुध्द लगाए गए आरोप की पुर्नजांच CrPC का धारा 173(8) के तहत पुलिस अधीक्षक से करवायी जाए और आरोप को गलत साबित कर नागेश्वर झा के विरुध्द झूठा फंसाने के लिए IPC का धारा 211 के तहत कार्रवाई किया जाए।लेकिन सुनीता  झा के साथ की गई कथित अकहनीय शब्द का प्रयोग करने के लिए कौन -सा कार्रवाई किया जाए,इसका उल्लेख नहीं किया गया है।जब  सुनीता झा के साथ वास्तव में दुर्व्यव्हार किया गया होता तो  कार्रवाई की भी मांग की गई होती।अतः स्पष्ट है कि कथित अकहनीय शब्द के प्रयोग का आरोप असत्य है।

Monday 21 July 2014

Indian Railways Ticket Fare Scam

दिनांक 18/7/2014 को रेलवे मुख्यालय को मैंने एक RTI भेजा है जिसमें रेल भाड़ा को केवल 5 और 10 के गुणज में निर्धारित करने के नियम और नियम को लागू करने के लिए पारित संबंधित आदेश का ब्यौरा मांगा है।दिनांक 17/7/2014 को स्टेटस अपडेट करके अमित सम्राट भाईजी ने मुझसे RTI लगाने कहा था,जिसमें बताया गया था कि Base fare,reservation charges etc को जोड़कर 163 रुपये होने के बावजूद 165 रुपये Total amount के रुप में लिया जाता है।मैंने पाया कि वैशाली एक्सप्रेस का स्लीपर क्लास का समस्तीपुर से दिल्ली का Base fare,reservation charges,superfast charges मिलाकर 528 होता है जबकि 530 रुपये का टिकट काटा जाता है।चूँकि 528,525 के बजाय 530 के ज्यादा सन्निकट है,इसलिए ये उचित है।लेकिन गोरखपुर से दिल्ली का इसी ट्रेन का कुल भाड़ा 427 होता है लेकिन 430 रुपये का टिकट काटा जा रहा है जबकि 425 ज्यादा सन्निकट है।इसी ट्रेन का लखनऊ से दिल्ली का कुल भाड़ा 331 रुपये है,लेकिन 335 रुपये का टिकट काटा जा रहा है,जबकि 330 ज्यादा सन्निकट है।5 या 10 के गुणज में जो ज्यादा सन्निकट होती है,उसे total amount होने का नियम बनाया गया था जिसका अनुपालन नहीं हो रहा है।


IRCTC के वेबसाइट पर समस्तीपुर से दिल्ली का वैशाली एक्सप्रेस के स्लीपर क्लास का बेस फेयर 480 है,जबकि भारतीय रेल के वेबसाइट पर बेस फेयर 478 है,गोरखपुर से दिल्ली का बेस फेयर IRCTC के वेबसाइट पर 380 है जबकि भारतीय रेल के वेबसाइट पर 377 है,लखनऊ से दिल्ली का IRCTC के वेबसाइट पर बेस फेयर 285 है जबकि भारतीय रेल के वेबसाइट पर 281 है।अब सवाल ये हैं कि IRCTC और भारतीय रेल के वेबसाइट पर दिखाए गए बेस फेयर में अंतर क्यों है?5 या 10 के गुणज में जो संख्या Base fare+reservation charges+superfast charges etc के सन्निकट होगी,उसे ही total amount माना जाएगा,लेकिन रेलवे सन्निकट संख्या को total amount ना मानकर 5 और 10 के गुणज में जो अगली संख्या है,उसे total amount मानती है।उदाहरणतः लखनऊ से दिल्ली का base fare,reservation charges,superfast charges etc मिलाकर कुल 331 होती है,इसलिए 330 रुपये का टिकट काटा जाना चाहिए था,लेकिन 335 रुपये का टिकट काटा जाता है।IRCTC ने चालाकी करके बेस फेयर 285 दिखाया है ताकि reservation charges(20 रुपये) और Superfast charges(30 रुपये) को जोड़कर 335 रुपये total amount दिखाया जा सके।यदि IRCTC 281 रुपये बेस फेयर दिखाएगी तो कुल योग 331 होने के कारण 330 रुपये TOTAL AMOUNT लिया जाना चाहिए,जिसे छिपाने के लिए IRCTC ने बेस फेयर 285 दिखाया है।इसी गड़बड़ी का खुलासा RTI से करने के लिए मैंने रेलवे मुख्यालय को RTI भेजा है जिसमें 5 और 10 के गुणज में रेल किराया निर्धारित करने के नियम और संबंधित नियम को लागू करवाने के लिए पारित सभी आदेश का ब्यौरा मांगा गया है।

 वर्णित गड़बड़ियों का खुलासा RTI से हो जाना चाहिए।फिर रेलवे के विरुध्द आपराधिक मुकदमा दायर की जाएगी।

Friday 18 July 2014

ठगी के फर्जी आरोप की समीक्षा

फर्जी मुकदमा के विरुध्द सहयोग करने के लिए शायद ही कोई आगे आता है,लेकिन दिल्ली में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता,पत्रकार और फेसबुक मित्र देवेन्द्र भारती जी मेरा एक फेसबुक स्टेटस पढ़ने के बाद आगे आए।ये एक संस्था से जुड़े हैं,जिससे जुड़े दिल्ली उच्च न्यायालय का एक वरिष्ठ अधिवक्ता नागेश्वर झा (एक RTI कार्यकर्ता जिसे झूठा फंसाया गया है ) द्वारा भेजे गए फाइल का अध्ययन कर रहे हैं और फिर इस संस्था द्वारा नागेश्वर झा को सहयोग की जाएगी।

बिहार बोर्ड के परीक्षा में होने वाली फर्जीवाड़ा का खुलासा करने के कारण माधवेन्द्र झा (यूभीके कॉलेज,मधेपुरा का प्राचार्य जिसके विरुध्द बिहार बोर्ड के साथ मिलीभगत करके गड़बड़ी करने का खुलासा हुआ ) द्वारा नागेश्वर झा को बलात्कार,बलात्कार का प्रयास,ठगी जैसे कई आरोप में फंसा दिया गया।बलात्कार और बलात्कार के प्रयास के मामले का समीक्षा करके मैं दोनों को गलत सिध्द कर चुका हूँ,प्रस्तुत है ठगी के फर्जी आरोप की समीक्षा-


Complaint Case No.1024/2013,दिनांक 23/8/2013

1.नागेश्वर झा के विरुध्द आरोप लगायी गई है कि कॉलेज द्वारा UGC प्रदत रिमेडियल कोचिंग मद से जरुरी काम के लिए उन्हें 70000 रुपये उधार दिया गया,लेकिन नागेश्वर झा ने अभी तक रुपये नहीं लौटाया।रुपये देने वाले लेखापाल का बीमार होने के कारण लेन-देन को रजिस्टर पर दर्ज करके नागेश्वर झा का हस्ताक्षर नहीं लिया जा सका।लेखापाल को ये भी लगा कि एक महीने के भीतर रुपये वापस करने का करार हुआ है,इसलिए रजिस्टर में दर्ज करने की क्या जरुरत है।

2.ये मुकदमा Non-maintainable है क्योंकि UGC द्वारा प्रदत Remedial Coaching मद एक सरकारी मद है,जिसके लेन-देन का लिखित ब्यौरा होना अनिवार्य है।किसी भी सरकारी मद की राशि के बारे में बगैर लिखित ब्यौरा का ठग लेने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि इसकी भी संभावना है कि जिसने आरोप लगाया है,उसने रुपये का खुद अवैध निकासी कर लिया हो और खुद को बचाने के लिए रुपये उधार देने का कहानी गढ़ दिया हो।किसी ने अपने घर से उधार नहीं दिया,जिसका ब्यौरा नहीं भी रहेगा तो काम चल जाएगा।लेकिन मुकदमा का Non-maintainable होने के बावजूद मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने वाद को स्वीकार करके विचारण शुरु कर दिया,जो गैर-कानूनी और असंवैधानिक है।


3.रिमेडियल कोचिंग मद रिमेडियल कोचिंग को संचालित करने के लिए दिया जाता है,फिर इस रुपया को किसी के जरुरी काम के लिए उधार कैसे दिया गया?इस मद का उपयोग किसी दूसरे कार्य के लिए करना अवैध निकासी की दायरे में आता है और जब उधार देने का कोई सबूत भी नहीं है तो इसे अवैध निकासी ही माना जाएगा।मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी,मधेपुरा को वाद स्वीकार करने के बजाय वाद दायर करने वाले के विरुध्द अवैध निकासी का मुकदमा कर देना चाहिए था।

4.जब बीमार होने के बावजूद 70000 रुपये लेखापाल उधार दे सकता है तो फिर उसका रजिस्टर में ब्यौरा दर्ज क्यों नहीं कर सकता? रजिस्टर में ब्यौरा दर्ज करना रुपये देने से ज्यादा आसान काम है।फिर लेखापाल के बारे में कहा गया है कि एक महीने में वापस कर देने का करार होने के कारण उसने ब्यौरा दर्ज करना उचित नहीं समझा।यहाँ पर ये विरोधाभास है कि आखिर बीमार होने के कारण लेखापाल ब्यौरा दर्ज नहीं कर सका या एक महीने का करार होने के कारण और विरोधाभास का मतलब होता है झूठा आरोप।

5.पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता राजीव रंजन ने लेखापाल को नागेश्वर झा द्वारा भेजे गए मानहानि नोटिस के जवाब के पारा 3 में लिखा है कि नागेश्वर झा को केश या चेक के रुप में 70000 रुपये उधार दिया गया है।अधिवक्ता अपने Client द्वारा दी गई सूचना के आधार पर जवाब भेजते हैं।मतलब उनके Client के मुताबिक उन्होंने केश या चेक के रुप में उधार दिया।मतलब Client को खुद ये मालूम नहीं है कि उन्होंने उधार केश के रुप में दिया था या चेक के रुप में।इस विरोधाभास के आधार पर आरोप को खारिज कर देना चाहिए।

Thursday 17 July 2014

मधुबनी SP,DSP और संबंधित थानाध्यक्ष के विरुध्द कार्रवाई हो।

1.मधुबनी SP,DSP और संबंधित थानाध्यक्ष के विरुध्द कार्रवाई हो।

बिहार मानवाधिकार आयोग ने मुन्ना कुमार,एक नाबालिग के विरुध्द बालिग की तरह मुकदमा चलाए जाने पर मेरे द्वारा दायर करवायी गई याचिका पर मधुबनी SP से जवाब मांगा था,जिसे SP ने आयोग को भेज दिया है और आयोग ने SP के जवाब के आलोक में आवेदक को 15 अगस्त 2014 तक अपना जवाब भेजने कहा है।आयोग के आदेश के बाद मधुबनी DSP ने मामले का जांच किया,जिस रिपोर्ट को अनुमोदित करके SP ने आयोग को भेजा है।इस रिपोर्ट में ये स्वीकार की गई है कि मुन्ना कुमार नाबालिग है लेकिन थानाध्यक्ष को बचाने के लिए ये कहा गया है कि अभियुक्त को अपने बचाव में प्रतिरक्षण बयान देने के लिए बुलाया गया लेकिन अभियुक्त उपस्थित नहीं हुए।मतलब,मुन्ना कुमार को सबूत रखने बुलाया गया था जिसमें वह खुद को नाबालिग सिध्द कर सकता था।लेकिन खुद पुलिस के केस डायरी में ये नहीं लिखा है कि अभियुक्त को प्रतिरक्षण बयान देने के लिए बुलाया गया या पुलिस अभियुक्त के घर पर उसका प्रतिरक्षण बयान लेने गई थी,लेकिन वह नहीं मिला।मतलब पुलिस अपने बचाव में अब ये झूठा तर्क दे रही है कि उसने प्रतिरक्षण बयान देने के लिए अभियुक्त को बुलाया था।



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2.केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के Vigilance Section से एक पत्र प्राप्त हुई है जिसमें बताया गया है कि मेरा शिकायत को मंत्रालय के मुख्य सतर्कता अधिकारी अमित खरे द्वारा पीके मितल,निदेशक(UT-III) और उप सचिव,माध्यामिक शिक्षा को भेजा गया है।आश्चर्य की बात ये है कि केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने मंत्रालय के मुख्य सतर्कता अधिकारी को जांच करके आयोग को जांच प्रतिवेदन समर्पित करने का आदेश दिया है,लेकिन मुख्य सतर्कता अधिकारी ने खुद जांच ना करके अपने अधीनस्थ अधिकारी (पीके मितल) को जांच करने का जिम्मा दे दिया।पीके मितल Vigilance section का अधिकारी भी नहीं हैं,इसलिए उन्हें जांच करने देना चिरंजीवी राय को बचाने का साजिश मात्र है।मैंने अमित खरे को ईमेल करके सूचित किया है कि वह खुद जांच करे और सतर्कता आयोग को भी सूचित किया है कि पीके मितल को जांच का जिम्मा दे दिया गया है,जो Vigilance section का अधिकारी भी नहीं है।इसलिए CBI से जांच करायी जाए।इधर एक जुलाई को चिरंजीवी राय दिल्ली संभवतः इस मामले को मैनेज करने गया था और वह मैनेज कर भी लिया होगा।अब अगली पत्र जो आएगी उसमें बगैर साक्ष्य ये लिखा होगा कि उसके दोनों बेटा का कोई Fraudulent Admission नहीं हुई है।

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3.किशोर न्याय के क्षेत्र में श्री अरविंद पांडे,पुलिस महानिरीक्षक,कमजोर वर्ग,CID Bihar का प्रयास काफी उल्लेखनीय है।आप Juvenile Justice Act,2000 का पालन करवाने वाले मेरी जानकारी के मुताबिक एक मात्र पुलिस अधिकारी हैं।इस कानून की धारा 63 में विशेष किशोर पुलिस इकाई का गठन करने के बारे में कहा है और आप इस दिशा में यूनीसेफ के सहयोग से प्रयासरत हैं।मेरी जानकारी के मुताबिक आधा से भी ज्यादा नाबालिग पर बालिग की तरह मुकदमा चल रहा है,जिसमें मैंने दो मामला को बिहार मानवाधिकार आयोग के संज्ञान में लाया है और दोनों में संबंधित SP से जवाब मांगा गया है।एक मामले में मधुबनी SP ने जवाब भेज दिया है और हमें इनके जवाब के आलोक में 15 अगस्त तक जवाब भेजना है।इस रिपोर्ट में ये स्वीकार की गई है कि अभियुक्त नाबालिग है लेकिन थानाध्यक्ष को बचाने के लिए ये कहा गया है कि अभियुक्त को अपने बचाव में प्रतिरक्षण बयान देने के लिए बुलाया गया लेकिन अभियुक्त उपस्थित नहीं हुए।लेकिन खुद पुलिस के केस डायरी में ये नहीं लिखा है कि अभियुक्त को प्रतिरक्षण बयान देने के लिए बुलाया गया या पुलिस अभियुक्त के घर पर उसका प्रतिरक्षण बयान लेने गई थी,लेकिन वह नहीं मिला।
दूसरे मामले में मुजफ्फरपुर SSP के जवाब का इंतजार है।

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4.108वीं संवैधानिक संशोधन विधेयक (महिला आरक्षण विधेयक) में राज्यसभा और विधान परिषद में भी महिला के लिए एक-तिहाई आरक्षण का प्रावधान किया गया है।इस विधेयक की धारा 2 के तहत संविधान के अनुच्छेद 80(2) में संशोधन करके राज्यसभा के नियुक्त सदस्य और अनुच्छेद 80(3) में संशोधन करके राष्ट्रपति द्वारा मनोनित सदस्य के लिए एक-तिहाई महिला आरक्षण का प्रावधान किया गया है।विधेयक के धारा 3 के तहत संविधान के अनुच्छेद 171(3) में संशोधन करके विभिन्न माध्यमों(कुल विधान परिषद सीट का 1/3 स्थानीय निकाय सदस्य ,1/3 विधायक,1/12 ग्रेजुएट और 1/12 तीन साल से ज्यादा नौकरी करने वाले माध्यामिक या इससे उच्च शिक्षक) से नियुक्त विधान परिषद सदस्य और अनुच्छेद 171(5) में संशोधन करके राज्यपाल द्वारा मनोनित शेष विधान परिषद सदस्य के लिए एक-तिहाई महिला आरक्षण का प्रावधान किया गया है।हालांकि अनुच्छेद 80(2) के संशोधन में ये त्रुटि है कि संशोधन करके इस शब्द को जोड़ा गया है कि अनुसूची 4 के तहत हरेक राज्य/UT के लिए आवंटित सीट में महिला आरक्षित सीट भी सम्मिलित होगी लेकिन इसका प्रावधान नहीं किया गया है कि कितना प्रतिशत महिला आरक्षित सीट सम्मिलित होगी।

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Wednesday 2 July 2014

आधा सही,आधा गलत फैसला




Central Administrative Tribunal ने NVS आयुक्त को आदेश जारी किया है कि वह अनुपमा झा,जवाहर नवोदय विद्यालय,समस्तीपुर के Store Keeper (LDC) के  तबादला आदेश के फैसला पर पुर्नविचार करे।चिरंजीवी राय,समस्तीपुर नवोदय का आदतन  अपराधी प्राचार्य ने NVS पटना के महाभ्रष्ट उपायुक्त मानस रंजन चक्रवती के साथ सांठगाठ करके अनुपमा झा का तबादला आदेश 27 दिसंबर 2013 को जारी करवा दिया था जिसे NVS मुख्यालय ने जून  2014 तक के लिए रोक दिया था।अनुपमा झा से मेरी बात हुई और मैंने बार बार हाईकोर्ट जाने का सुझाव दिया।मैंने हाईकोर्ट के एक अधिवक्ता से उनकी बात भी करवायी।फिर अंत में अनुपमा झा हाईकोर्ट के जगह Central Administrative Tribunal गई।

Central Administrative Tribunal एक संवैधानिक संस्था है जिसका गठन अनुच्छेद 323A के तहत केन्द्रीय कर्मियों का नौकरी संबंधित शिकायतों का सुनवाई करने के लिए किया गया है।लेकिन एक संवैधानिक संस्था होने के बावजूद खुद अपने विवेकाधिकार द्वारा फैसला देने के बजाय मामला को NVS आयुक्त के विवेकाधिकार पर छोड़ दिया।चिरंजीवी राय पर तबादला करवाने के साथ साथ अनुपमा झा को मानसिक रुप से प्रताड़ित करने और 3 महीना का जबरन वेतन रोक देने का आरोप भी है।उसके बावजूद tribunal ने अपने विवेकाधिकार पर फैसला देने के बजाय NVS आयुक्त के विवेकाधिकार पर फैसला छोड़ दिया।

R.K.Jain ,एक वरिष्ठ अधिवक्ता और EXCISE AND CUSTOMS BAR ASSOCIATION का अध्यक्ष हैं जिन्होंने मुझे पत्र भेजकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कुल 19 ऐसे फैसले के बारे में बताए हैं जिसमें कोर्ट ने ये आदेश दिया है कि यदि Tribunal कोई error order पास करती है तो उस Order में संशोधन करने के लिए फिर से आवेदन दायर किया जा सकता है।इस Tribunal ने NVS आयुक्त के विवेकाधिकार पर फैसला छोड़कर Error order पास किया है,और यदि NVS आयुक्त तबादला आदेश खारिज नहीं करते हैं तो फिर से Tribunal में ये आवेदन दायर किया जा सकता है कि Tribunal अपने आदेश  में संशोधन करते हुए खुद अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करके फैसला दे।R.K.Jain के इस पत्र को मैंने अनुपमा झा को भेजा है और उन्हें सारी प्रावधानों की जानकारी दी है।

यदि tribunal के जगह पर NVS आयुक्त  के फैसला के विरुध्द हाईकोर्ट में अपील की जाती है तो पूसा थाना के दारोगा   के विरुध्द  IPC का धारा 166A के तहत मुकदमा दर्ज करने का आग्रह हाईकोर्ट से किया जाएगा।अनुपमा झा का आरोप के अनुसार IPC का धारा 509 के तहत चिरंजीवी राय के विरुध्द मामला दर्ज होना चाहिए लेकिन दारोगा ने चिरंजीवी राय से सांठगाठ  करके मामला दर्ज नहीं किया जो धारा 166A के तहत दो साल तक की सजा का दंडनीय अपराध है।दारोगा प्राचार्य कक्ष जाकर चिरंजीवी राय के सामने कुछ लड़के,लड़कियों और शिक्षकों का बयान लिया जिसने ये बताया कि अनुपमा झा समय पर कार्यालय नहीं आती और सामान देने से मना करती है।लेकिन ये लोग चिरंजीवी राय  के सामने दवाब में ऐसा बोल रहे थे जिन्हें प्राचार्य कक्ष के बाहर कुछ चमचे शिक्षकों द्वारा सिखाया जा रहा था।जब अनुपमा झा का चिरंजीवी राय से विवाद है,फिर वह चिरंजीवी राय के अधीन रहते हुए भी उसके मिलीभगत के बगैर ऐसा कैसे कर सकती है?वैसे भी चिरंजीवी राय पर अनुपमा झा ने जो आरोप लगाया वो एक अलग मामला है जिसका डरपोक छात्रों,शिक्षकों के आरोप से कोई संबंध नहीं है,इसलिए दारोगा द्वारा चिरंजीवी राय के विरुध्द मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए था।
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