Friday 28 November 2014

RTI to the PMO against delay in the establishment of Lokpal


लोकपाल के गठन में विलंब को लेकर सूचना आवेदन प्रेषित करने के लिए सभी मित्रों से सादर आग्रह


दिनांक 28/11/2014 को लोकपाल के गठन में विलंब को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय को दो RTI आवेदन भेजा गया है।एक सूचना आवेदन मैंने भेजा है और एक ग्यारहवीं का छात्र अवनीश कुमार ने भेजा है।आवेदन में सवाल पूछा गया है कि लोकपाल व लोकायुक्त कानून,2013 को राष्ट्रपति का 1 जनवरी 2014 को मंजूरी मिलने के बावजूद अभी तक संघ में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों का गठन नहीं होने का क्या कारण है,चयन कमिटि को लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन करने में क्या परेशानियाँ हो रही है,खोज कमिटि द्वारा योग्य व्यक्तियों के नाम का सिफारिश करने में विलंब का क्या कारण है,लोकपाल का गठन कब की जाएगी और गठन में विलंब को सरकारी विफलता और लापरवाही कैसे नहीं माना जाना चाहिए।

यदि ये सवाल देश का दो सौ नागरिक प्रधानमंत्री कार्यालय से सूचना आवेदन द्वारा पूछे तो जरुर अगले दो महीना में लोकपाल का गठन हो जाएगा।

अतः सभी मित्रों से आग्रह है कि वे भी प्रधानमंत्री कार्यालय को सूचना आवेदन भेजे।

जिन मित्रों को आवेदन भेजने के लिए सहयोग चाहिए,वे मुझसे संपर्क करे।मेरा संपर्क नं है-07759071885 और 07654528780.


The RTI Application is hereunder for those who want to file RTI Application:-


To
The  Central  Public Information Officer
Prime Minister’s Office
At-152, South Block, Raisina Hill, New Delhi-110011


Date:-28/11/2014 (Please insert the date when you will send the application)


Sub:-  Request for furnishing information under section 6(1) of the
RTI Act,2005-Reg


Sir


With due respect, it is requested to furnish below information
regarding establishment of a body of Lokpal for the Union and
Lokayukta for States under  the Lokpal and Lokayuktas Act,2013:-


1.The aforementioned act has received the assent of  the President of
India on 1 Jan 2014 but the establishment of a body of Lokpal for the
Union and Lokayukta for States under  this act has  not been
implemented yet. What  are the reasons of non- establishment of a body
of Lokpal for the Union and Lokayukta for States till now?


2.What problems are being  faced by the Selection Committee for the
purposes of selecting the Chairperson and Members of the Lokpal?


3.What are the reasons of delay in making recommendation  by the
Search Committee of the persons eligible for the Chairperson and
Members of the Lokpal?


4.What is the expected time for the establishment of a body of Lokpal
for the Union?


5.When  a body of Lokpal will be established for the Union?


6.How  delay in the establishment should  not be treated  as  Govt
Failure and negligence?


The requisite application fee of Rs 10 is annexed herewith  through
postal order vide its No.(Please insert Postal Order No.  from the Postal Order)


Therefore, it is requested to furnish information within stipulated
time under section 7(1) of the RTI Act,2005.



Thanking You

Yours
Rahul Kumar
S/O-Jagannath Ray
Vill & Post-Sughrain
Via-Bithan
Distt-Samastipur
State-Bihar
PIN-848207
(Please insert your own name and address)

Enclosed:-As Stated Above


You may send this application without making any changes except the changes specified in the Brackets.

Wednesday 26 November 2014

THE LAW OF FREE-SURVIVAL

THE LAW OF FREE-SURVIVAL

Nature has provided sex organs but it was due to the wrong way of evolutionary process adopted by nature.Every creation of nature can't be justified.It should also be observed whether it is independent as per natural order or not.Feeding,movement,breathing, thinking etc is independent which occurs by interacting with whole nature including living and non-living but for the reproduction we have to interact with our species.I am of the belief of free survival what natural order wants (Natural order wants free survival because we are independent in all things as we are interacting with whole nature,except sex) and sex has worked as barrier against free survival.There must have been free way of reproduction without sex in all creatures which is beyond our hypothesis but not impossible.Going through sex is a natural slavery because wrongly it has been imposed on many creatures against the natural order of free survival.A man living in celibacy whole life is a person of free survival if he has no any other evil.
Even attaching with a particular person is an emotional slavery because we can survive independently with a lot of things-living and non-living existing in the universe. Instead of going independently through these things,merely concentrating upon a particular person or thing is an emotional slavery.No matter you have left that person because you have left a portion of emotional slavery.
The best intellectual development you can achieve not by any particular person or thing,but by making whole universe as your friend.

 As it is evident by scientific discovery that climatic changes and environmental pressures have played role behind evolution and nature itself has not evolved anything.Then it can be imagined that there could be also such climatic changes and environmental pressures which could create something distinct feature for reproduction other than sex.Such appropriate climate changes and environmental pressures could not existed,so nature could not be able to evolve in something distinct way,which would be different from present sexual evolution.

 There is the sexual assault,there is the false implication of sexual assault and the people are becoming wrong due to sex.What time they may contribute for welfare of others,they are wasting in sex or impressing a girl,boy etc.So it is expedient to challenge the nature if there is the reasonable logics in support of making a challenge.

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ब्रह्माण्ड का दोहरा सिध्दांत नहीं हो सकता
ये कहना तार्किक है कि जो लोग ज्योतिष विज्ञान को नहीं मानते हैं,उन्हें कर्मकांड को भी नहीं मानना चाहिए क्योंकि दोनों अवैज्ञानिक ही है।ज्योतिष विज्ञान नहीं है ये प्रमाणित है क्योंकि राहु,केतु आदि नहीं है।यदि मान लेते हैं कि इन ग्रहों और 27 नक्षत्रों आदि का अस्तित्व है,फिर इनके अस्तित्व और गतिविधियों से मानवीय गतिविधियाँ प्रभावित कैसे होती है।सिर्फ मानव की गतिविधियाँ ही क्यों प्रभावित होती?जंतुओं,वृक्षों की गतिविधियाँ क्यों नहीं प्रभावित होती?जिस ब्रह्माण्ड में प्राणियों का स्वतंत्र अस्तित्व हो,वही ब्रह्माण्ड अपने ग्रह,नक्षत्रों द्वारा प्राणियों के स्वतंत्र अस्तित्व का हनन करे यानि मानवीय गतिविधियाँ को प्रभावित करे,ऐसा कैसे हो सकता है।क्या ब्रह्माण्ड का दोहरा सिध्दांत है?जाहिर है कि ज्योतिष विज्ञान महज एक मानवीय श्रध्दा के अतिरिक्त कुछ नहीं है और इसका ब्रह्माण्डीय सिध्दांत से कोई संबंध नहीं है।

जिस ब्रह्माण्ड और प्रकृति में संपूर्ण प्राणियों का स्वतंत्र अस्तित्व हैं,उनके अस्तित्व का हनन धार्मिक कर्मकांड नहीं करने पर बिल्कुल नहीं होगा क्योंकि यहाँ भी ब्रह्माण्ड और प्रकृति का दोहरा सिध्दांत नहीं हो सकता।

 Every humanitarian act violating free survival and independent existence is wrong.


शादी का झासा देकर रेप:कानून के विरुध्द फर्जी मुकदमा



शादी का झासा देकर रेप करने का आरोप लगाना भारतीय कानून के दुरुपयोग का बर्बरतम उदाहरण है क्योंकि IPC का धारा 375 के तहत रेप की परिभाषा में इसे रेप की श्रेणी में रखा ही नहीं गया है।IPC का धारा 375 में रेप का जो परिभाषा बताया गया है उसमें किसी महिला के इच्छा और सहमति के बिना यौन-संबंध बनाने के अतिरिक्त किसी महिला को भय दिखाकर सहमति लेकर यौन-संबंध बनाने,मानसिक रुप से विकलांग महिला या नशा की अवस्था में रही महिला से सहमति लेकर यौन-संबंध बनाने,18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से उसके सहमति या बिना सहमति के यौन संबंध बनाने और किसी महिला द्वारा ये यकीन करके यौन-संबंध बनाने के लिए सहमति दे देने कि वह उसका विधि द्वारा मान्य पति है लेकिन पुरुष को मालूम है कि वह उसकी पत्नी नहीं है,इन अवस्थाओं में महिला द्वारा यौन-संबंध बनाने के लिए सहमति देने के बावजूद कृत्य को रेप माना गया है।झासा,प्रलोभन,लालच देकर सहमति लेकर यौन-संबंध बनाने को रेप नहीं माना गया है।लेकिन इस कृत्य को रेप की श्रेणी में नहीं रखे जाने के बावजूद ऐसा शिकायत दर्ज कराने पर पुलिस द्वारा रेप का प्राथमिकी दर्ज कर अभियुक्त को गिरफ्तार किया जा रहा है।


सबसे बड़ी बात ये है कि शादी की कोई झासा नहीं दी जाती है क्योंकि आपसी सहमति से यौन-इच्छा की पूर्ति के लिए यौन-संबंध बनाया जाता है और यदि महिला शादी के लालच में आ भी जाती है तो वहाँ भी लालच से बड़ा कारक यौन-इच्छा की पूर्ति करना रहता है।यदि किसी व्यक्ति में यौन-इच्छा की पूर्ति करने की चाहत नहीं रहेगी तो वह शादी के लालच में यौन-संबंध नहीं बनाएगा।यदि शादी नहीं करे तो उस लड़की के नजर में रेप और शादी कर ले तो उस लड़की के नजर में कोई रेप नहीं।ऐसा कैसे हो सकता है?अपराध हरेक अवस्था में अपराध होता है चाहे शादी करे या ना करे लेकिन इस देश में स्वार्थी लड़की की नजरिया के अनुसार अपराध की मापदंड और परिभाषा तय की जा रही है।


इस दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ सुझाव

i.पुलिस और कोर्ट शादी का झासा देकर रेप करने का शिकायत दर्ज कराने पर रेप का मुकदमा दायर नहीं करेगी।
ii.पुलिस या कोर्ट के समक्ष ऐसा शिकायत दर्ज कराए जाने पर पुलिस या कोर्ट दोनों पक्षों के बीच समझौता कराकर लड़का को शादी करने के लिए तैयार करने की कोशिश करेगी।लेकिन लड़का का तैयार नहीं होने पर लड़का के विरुध्द रेप का मुकदमा दायर नहीं किया जाएगा।
iii.शादी का झासा देकर रेप करने का मुकदमा पुलिस और कोर्ट द्वारा दायर नही किए जाने के कारण लड़की द्वारा ऐसे केस में सहमति के बिना रेप करने या रेप की श्रेणी में रखे गए सहमति में से किसी आधार पर रेप करने का आरोप लगाया जाने लगेगा।लेकिन यदि पुलिस या कोर्ट को शिकायत-पत्र का अवलोकन करने के बाद लगेगा कि लड़की प्रेम-प्रसंग के कारण रेप के आरोप में फंसा रही है तो पुलिस या कोर्ट रेप का मुकदमा दायर करने के बजाय प्रारंभिक जांच करेगी और प्रारंभिक जांच में प्रेम-प्रसंग का मामला सामने आने पर आरोप को खारिज कर देगी।


केन्द्र सरकार या सुप्रीम कोर्ट को इस दुरुपयोग को रोकने के लिए नियम बनाना चाहिए।

Friday 21 November 2014

कार्रवाई के बाद गबन की जाने वाली राशि देने के लिए तैयार हुआ BDO




राशि गबन करने के चक्कर में प्रखंड विकास पदाधिकारी(BDO),कुशेश्वरस्थान पूर्वी द्वारा सूचना आवेदन का गलत जवाब दिया गया कि ग्राम कचहरी के कार्यालय भवन का किराया भुगतान हेतु प्रखण्ड को राशि प्राप्त नहीं हुआ है।पुनः जिला पंचायती राज पदाधिकारी(DPRO),दरभंगा को सूचना आवेदन भेजने पर DPRO द्वारा BDO को आदेश दिया गया कि वित्तीय वर्ष 2010-11,2011-12,2012-13 और 2013-14 के लिए कुशेश्वरस्थान पूर्वी प्रखंड को ग्राम कचहरी के कार्यालय भवन का किराया भुगतान हेतु कब कब कितनी राशि का आवंटन किया गया है,रोकड़ पंजी देखकर आवेदक को सूचना उपलब्ध कराए।DPRO के आदेश से स्पष्ट था कि राशि का आवंटन हो चुका है।लेकिन DPRO के आदेश के बावजूद BDO द्वारा अभी तक सूचना उपलब्ध नहीं करायी गई।


कल मैंने इस मामले की शिकायत प्रभारी जिला पदाधिकारी और DPRO से किया।प्रभारी जिला पदाधिकारी ने DPRO को शिकायत भेज दिया है।फिर DPRO से मिला।DPRO ने रिकार्ड देखने के लिए मुझे हेड क्लर्क के साथ कार्यालय भेज दिया।रिकार्ड देखने के बाद पता चला कि वित्तीय वर्ष 2012-13 तक राशि का आवंटन हो चुका है और अंतिम बार वित्तीय वर्ष 2012-13 के लिए दिनांक 23 मार्च 2013 को पत्र संख्या 269 द्वारा 1,25,224 रुपये का आवंटन ग्राम कचहरी का कार्यालय भवन का किराया भुगतान हेतु उक्त प्रखंड को किया गया है लेकिन पिछले 63 महीने का किराया बकाया होने के बावजूद मेरा पंचायत के ग्राम कचहरी के कार्यालय भवन के किराया का भुगतान सिर्फ 8 महीने का हुआ है।DPRO ने BDO को फोन कर पूछा कि किराया का भुगतान क्यों नहीं कर रहे हैं।BDO ने जवाब दिया कि एक सप्ताह के भीतर भुगतान कर देंगे।


BD0 द्वारा भुगतान नहीं करने पर पुनः DPRO और DM को शिकायत किया जाएगा और BDO द्वारा गलत सूचना देने के विरुध्द राज्य सूचना आयोग में शिकायत की जाएगी।DPRO यदि भुगतान नहीं करवा पाते हैं तो उनके विरुध्द भी सूचना देने से मना करने के कारण राज्य सूचना आयोग में शिकायत की जाएगी क्योंकि राशि का आवंटन इनके द्वारा BDO को किया गया लेकिन इसके बावजूद,सूचना इनके पास होने के बावजूद,इन्होंने BDO को आवेदन हस्तांतरित कर दिया।

Wednesday 19 November 2014

Suggestions to reduce false allegations

परसो  दिल्ली हाईकोर्ट ने गैंगरेप के झूठे आरोप में फंसाने वाली लड़की के विरुध्द फैसला दिया है कि झूठे आरोप में फंसाने वाले को सजा मिलना ही चाहिए,लेकिन लड़की पुलिस के समक्ष प्राथमिकी दर्ज करने के बाद खुद बयान से बदल गई कि उसके साथ गैंगरेप नहीं हुआ।रेप के आरोप में झूठा फंसाए गए दो ऐसे अभियुक्त को मैं सहयोग कर रहा हूँ जिसमें एक केस में लड़की समझौता करने के लिए तैयार होने के बावजूद समझौता करने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उसे किसी ने कह दिया कि समझौता करने के बाद उसपर झूठा फंसाने का मुकदमा चलेगा।एक अन्य केस में लड़की समझौता के लिए तैयार है,लेकिन ये हो सकता है कि झूठा आरोप में फंसाने का उसपर मुकदमा किए जाने के डर से मुकर जाए।जब लड़की सुलह कर ले(सुलहनामा में भी अपने बयान से मुकरना पड़ेगा) या बयान से मुकर जाए तो उस अवस्था में झूठा आरोप में फंसाने का मुकदमा नहीं चलना चाहिए।झूठा आरोप में फंसाने का मुकदमा तब चलना चाहिए जब बचाव पक्ष उसे झूठा साबित कर दे।अन्यथा झूठा फंसाने का मुकदमा चलाए जाने के डर से लड़की चाहते हुए भी ये बयान नहीं देती कि उसके साथ वैसा कांड नहीं हुआ है।परिणामस्वरुप निर्दोष अभियुक्त को सजा मिल जाती है।

सिर्फ रेप के झूठे आरोपों में ही नहीं,अन्य सभी झूठे आरोपों में भी बयान से मुकरने या सुलह करने के बाद झूठा फंसाने का मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए,बल्कि बचाव पक्ष द्वारा झूठा साबित किए जाने के बाद ये मुकदमा चलना चाहिए।ऐसा प्रावधान करने पर ज्यादातर झूठा फंसाने वाले अपने बयान से मुकर जाएंगे और निर्दोष व्यक्ति की मानवाधिकार की रक्षा हो सकेगी।केन्द्र सरकार या सुप्रीम कोर्ट को ऐसा नियम/दिशानिर्देश बनाना चाहिए।

ऐसा होने पर सही फरियादी को भी लालच देकर बदलवा दिया जाएगा,ये जरुर कुछ केस में होगा जो अपवाद ही कहलाएगा।लालच मुकदमा करने वाले को मिलती ही है,चाहे मुकदमा सही हो या गलत।जिसने सही मुकदमा दायर किया है,यदि वह समझौता कर लेता है या बयान से बदल जाता है तो इसका मतलब ये हुआ कि उसे न्याय चाहिए ही नहीं।जिसे न्याय नहीं चाहिए,उसे न्याय देने की कोई जरुरत नहीं है।जिसे न्याय चाहिए वह समझौता नहीं करेगा।सही फरियादी की संख्या काफी कम है।गलत फरियादी की संख्या काफी ज्यादा है।जो सही फरियादी झूठा आरोप में फंसाने का मुकदमा नहीं चलने का फायदा उठाकर अपना बयान बदल कर समझौता कर लेते हैं,वे न्याय चाहने वाले व्यक्ति नहीं हैं।लेकिन यदि गलत फरियादी को झूठा आरोप में फंसाने का मुकदमा उनके विरुध्द चलाए जाने का डर नहीं रहेगा तो वे बयान से बदल जाएंगे तो निर्दोष व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं होगा।जो सही फरियादी न्याय चाहते ही नहीं,उनके साथ अन्याय नहीं होता है लेकिन निर्दोष व्यक्ति के साथ अन्याय होता है।दोनों में यही फर्क है।कोर्ट झूठा फंसाए गए के साथ न्याय नहीं करती,इसलिए मेरा सुझाव सही है।

Monday 17 November 2014

A new model of Gram Sabha

बिहार पंचायती राज अधिनियम,2006 व अन्य सभी राज्य व संघ सरकार के पंचायती राज अधिनियमों में कुछ संशोधन लाने की जरुरत है।पंचायत के नागरिकों के एक समूह को ग्राम सभा आयोजित करके प्रस्ताव पारित करने का कानूनी अधिकार प्रदान करना चाहिए।ग्राम सभा मुखिया और पंचायत प्रतिनिधि द्वारा आयोजित किए जाने का मोहताज नहीं हो,बल्कि स्थानीय नागरिक अपने स्तर पर ग्राम सभा आयोजित कर प्रस्ताव पारित कर सके।उक्त ग्राम सभा द्वारा पारित प्रस्ताव पंचायत प्रतिनिधि के माध्यम से वरीय अधिकारी को भेजा जाए या पंचायत प्रतिनिधि के क्षेत्राधिकार में होने पर उनको प्रस्ताव समर्पित किया जाए और प्रस्ताव में वर्णित मांग संवैधानिक होने पर मांग को क्रियान्वित करने की कानूनी बाध्यता हो।उदाहरतः स्थानीय ग्राम सभा यदि मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार का प्रस्ताव पारित करती है तो सरकार द्वारा विजिलेंस जांच कराने की कानूनी बाध्यता होगी।यदि ग्राम सभा सड़क निर्माण का प्रस्ताव पारित करती है तो सरकार प्रस्ताव को क्रियान्वित करने के लिए कानूनी रुप से बाध्य होगी और क्रियान्वयन में असफल रहने पर ग्राम सभा के पास कोर्ट में केस करने का अधिकार होगा।

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चार-पाँच छात्रों की सक्रियता के कारण कॉलेज की सड़ी-गली नियम के विरुध्द पुस्तकालय से पुस्तक निर्गत कराने के लिए पुस्तकालय कार्ड निर्गत करना पड़ा।स्नातक प्रथम खंड की परीक्षा समाप्त होने के बाद अभी तक स्नातक प्रथम खंड का रिजल्ट विश्वविद्यालय ने घोषित नहीं किया है जिसके कारण स्नातक द्वितीय खंड में नामांकन नहीं हो पाई है लेकिन द्वितीय खंड की कक्षा मेरा कॉलेज में प्रारंभ हो चुकी है।नियमानुसार द्वितीय खंड में नामांकन होने के बाद ही पुस्तकालय कार्ड निर्गत किया जा सकता है।जिन छात्रों के पास स्नातक प्रथम खंड के परीक्षा फॉर्म भरते समय पुस्तकालय का पुस्तक बाकी था,उन्हें पुस्तकालय से No dues करवाना पड़ा और प्रथम खंड के पुस्तकालय कार्ड को फाड़ दिया गया।कक्षा प्रारंभ होने के बावजूद द्वितीय खंड में नामांकन नहीं होने के कारण पुस्तकालय कार्ड निर्गत नहीं किया जा रहा था।मैं,बमशंकर झा,अफजल व एक-दो अन्य ने इस संबंध में प्राचार्य,पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज,पुस्तकालयाध्यक्ष और हेड क्लर्क से शिकायत किया और बार बार हेड क्लर्क(जिनके प्रभार में पुस्तकालय कार्ड है) से मिलते रहा।अंततः नियम के विरुध्द पुस्तकालय कार्ड निर्गत करना पड़ा।

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Anti-Male Laws In India

  प्रेम-संबंध में यौन-इच्छा की पूर्ति के लिए लड़के-लड़कियों का भाग जाना और फिर लड़की के अभिभावक द्वारा अपहरण का केस दर्ज करवाना आम बात हो गया है।सरकार या सुप्रीम कोर्ट को ये दिशानिर्देश जारी करना चाहिए कि जब लड़की के अभिभावक(नाबालिग लड़की को छोड़कर जिसमें अपहरण का मुकदमा दायर करने के लिए आयु प्रमाण पत्र अनिवार्य होगी) द्वारा लड़का के विरुध्द अपहरण का मुकदमा दायर किया जाता है तो पुलिस और कोर्ट अपहरण का मुकदमा दायर नहीं करेगी,बल्कि लड़की के बरामदगी हेतु रिपोर्ट दायर करेगी और लड़की के बरामदगी के पश्चात लड़की का मनोवैज्ञानिक का एक टीम द्वारा परीक्षण किया जाएगा और लड़की के यौन-इच्छा की DNA जांच की जाएगी और फिर निष्कर्ष निकालने के बाद यदि प्रतीत होता है कि लड़की का अपहरण,बलात्कार आदि हुआ है तभी आपराधिक मुकदमा दायर की जाएगी।लड़की का मनोवैज्ञानिक और DNA परीक्षण में यौन-इच्छा की पूर्ति के लिए भागने वाला तथ्य उजागर होने पर आपराधिक मुकदमा दायर नहीं किया जाएगा।लड़की के बरामदगी के पश्चात लड़की के अभिभावक और समाज के गंदे लोग द्वारा लड़की पर दवाब डालकर अपहरण और बलात्कार का बयान उससे दिलवा कर कानून का दुरुपयोग किया जाता है जिसे रोकने के लिए उपरोक्त उपाय अपनाना ही पड़ेगा।

बरामदगी के बाद जब लड़की पुलिस और CrPC का धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष अपहरण,बलात्कार आदि का आरोप लगाती है तो उस अवस्था में ही लड़की का
मनोवैज्ञानिक और DNA परीक्षण किया जाएगा जिसमें यदि पता चलता है कि लड़की यौन-इच्छा की पूर्ति के लिए भागी थी तो उसके द्वारा लगाए गए आरोप को खारिज कर दिया जाएगा।लड़की बरामदगी के बाद पुलिस के समक्ष ऐसा कोई बयान नहीं देती है तो मजिस्ट्रेट के समक्ष लड़की का धारा 164 के तहत बयान होने तक लड़की पुलिस हिरासत में रहेगी और मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसा कोई आरोप नहीं लगाए जाने के बाद मजिस्ट्रेट के पास आरोप को संज्ञान लेकर आरोप को खारिज करने का शक्ति होगा।कई केस में देखा जाता है कि लड़की द्वारा लड़का पर आरोप नहीं लगाए जाने के बावजूद लड़का को हिरासत में भेज दिया जाता है या/और मुकदमा चलते रहता है।इसलिए लड़की का धारा 164 का बयान के साथ ही आरोप खारिज कर देना चाहिए और यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि लड़की किसी दवाब में लड़का का बचाव कर रही है तो उस अवस्था में लड़की का मनोवैज्ञानिक और DNA परीक्षण मजिस्ट्रेट द्वारा कराया जाना चाहिए और परीक्षण में यौन-इच्छा की पूर्ति के लिए भागने की पुष्टि होने पर आरोप को लड़की के बयान और परीक्षण के आलोक में खारिज कर देना चाहिए।

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कानून का एकपक्षीय होना महिला और महिला का इस्तेमाल करने वाले थर्ड पर्सन को कानून का दुरुपयोग करने के लिए खुली छूट देती है।वर्ष 2013 में जोड़े गए IPC का नया धारा 354D(STALKING) के तहत महिला द्वारा मना करने के बावजूद बार बार उसे कॉल करना या मैसेज करना अपराध है,जिसके तहत पहली बार 3 साल और दूसरी व अगली बार 5 साल तक की सजा हो सकती है।लेकिन पुरुष द्वारा मना करने के बावजूद महिला बार बार कॉल करे,मैसेज करे तो कोई सजा नहीं है।मुझे एक लड़की कुछ दिन पहले तक अनावश्यक रुप से कॉल और मैसेज कभी कभी कर देती थी।हालांकि मैंने मना किया तो उसने बंद कर दिया।लेकिन यदि बंद नहीं किया होता तो शिकायत दर्ज करने के लिए मेरे पक्ष में कोई कानून नहीं है।नाबालिग लड़के को मजबूर कर महिला द्वारा शारीरिक संबंध बनाया जाना बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम,2012 की धारा 4 और 6 के तहत यौन अपराध माना गया है जिसके लिए उम्रकैद तक की सजा है और महिला द्वारा निजी अंग को छूने के लिए मजबूर करना भी इस अधिनियम की धारा 8 और 10 के तहत अपराध है।लेकिन यदि महिला किसी बालिग पुरुष को ऐसा कोई भी कृत्य करने के लिए मजबूर करे तो महिला के विरुध्द कोई सजा का प्रावधान नहीं है।

Monday 10 November 2014

My Experiments on the RTI Act,2005

फरवरी 2014 में डाक जीवन बीमा का परिपक्वता अवधि पूर्ण होने के बाद 7 महीने गुजर जाने के बावजूद परिपक्वता राशि का भुगतान कर्मचारी के लापरवाही के कारण एक बीमाधारी का नहीं हुआ लेकिन मैंने 22 सितंबर 2014 को RTI आवेदन डाक अधीक्षक को प्रेषित कर सवाल जवाब किया कि परिपक्वता राशि का भुगतान कितने दिन के अभ्यंतर होना चाहिए,तय समयसीमा के अभ्यंतर परिपक्वता राशि के भुगतान नहीं होने का क्या कारण है,जिन कर्मचारियों के कारण विलंब हुई उनके विरुध्द क्या कार्रवाई होगी,तो 13 अक्टूबर को डाक अधीक्षक ने भुगतान हेतु स्वीकृति पत्र जारी कर दिया और 20 अक्टूबर को RTI का जवाब भेजा कि 13 अक्टूबर को स्वीकृति पत्र जारी हो चुका है।22 अक्टूबर को बीमाराशि 20,000 रुपये के एवज में बोनस सहित 30,221 रुपये का भुगतान बीमाधारी को हो गया।बीमाधारी ने दो बार लिखित आवेदन परिपक्वता राशि का भुगतान हेतु डाक अधीक्षक को प्रेषित किया लेकिन भुगतान नहीं हुआ।RTI भेजने के उपरांत एक महीना के अभ्यंतर राशि का भुगतान हो गया।जहाँ पर लोकसेवक नियम के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य हैं,लेकिन कर नही रहे तो ऐसी अवस्था में RTI से सवाल जवाब करने के बाद कार्य कराया जा सकता है।

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अंचलाधिकारी,कुशेश्वरस्थान पूर्वी को 13 अप्रैल 2014 को एक RTI आवेदन भेजा गया जिसपर पाँच महीने गुजर जाने के बावजूद मुझे सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई।फिर मैंने 23 सितंबर 2014 को एक पत्र भेजकर अंचलाधिकारी को अल्टीमेटम दिया कि सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 की धारा 7(1) के तहत एक महीना के भीतर सूचना देना है,इसलिए आप यथाशीघ्र सूचना उपलब्ध कराए,अन्यथा आपके विरुध्द अधिनियम की धारा 18(1) के तहत राज्य सूचना आयोग में शिकायत की जाएगी।इसके बाद सूचना दे दी गई।जमाबंदी संख्या 2294 और 1452 से बने नए जमाबंदी और नए जमाबंदी धारक का ब्यौरा सूचना आवेदन भेजकर मांगा गया था क्योंकि इसका ब्यौरा कार्यालय में दिखाने के लिए राजस्व कर्मचारी ने 500 रुपये घूस मांगा था,जिसे देने से मैंने मना कर दिया था।जमाबंदी संख्या 2294 से जो नए जमाबंदी बनी है,उसमें कुछ नए जमाबंदी धारक का जमीन 2294 का नहीं होने के बावजूद इस जमाबंदी से दाखिल-खारिज कर नया जमाबंदी कायम कर दिया गया है,इसलिए अंचलाधिकारी द्वारा सूचना नहीं दी जा रही थी क्योंकि उन्हें लग रहा था कि फर्जी तरीके से नया जमाबंदी कायम करने के कारण उनके व राजस्व कर्मचारी के विरुध्द मुकदमा दायर कर दी जाएगी।

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पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड का पूर्णिया उपकेन्द्र में अभी तक सहायक लोक सूचना अधिकारी नामित नहीं किया गया है।पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड भारत सरकार द्वारा संचालित संस्था है जिसमें सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 लागू होने के 100 दिन के भीतर अधिनियम की धारा 5(1) के तहत हरेक प्रशासनिक इकाई या कार्यालय में लोक सूचना अधिकारी और धारा 5(2) के तहत हरेक उप-स्तरीय इकाई में सहायक लोक सूचना अधिकारी नामित किया जाना चाहिए।पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड का पूर्णिया उपकेन्द्र के लोक सूचना पदाधिकारी के नाम से प्रेषित की गई पत्र को डाक कर्मचारी द्वारा ये लिखकर लौटा दिया गया कि इस नाम का पदाधिकारी कार्यालय में नहीं है,इसलिए तामिल नहीं हो सका।जाहिर है कि सहायक लोक सूचना पदाधिकारी भी कार्यालय में नहीं है क्योंकि इनका काम धारा 5(2) के तहत आवेदन को प्राप्त कर अग्रसारित करने भर सीमित है,इसलिए पत्र वापस नहीं किया जाता।मैं अधिनियम की धारा 25(5) के तहत केन्द्रीय सूचना आयोग को ये सिफारिश करने के लिए शिकायत प्रेषित कर रहा हूँ कि उक्त उपकेन्द्र का सहायक लोक सूचना अधिकारी नामित किया जाए।

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DIG कार्यालय के DSP ने रेप,अपहरण और वैश्यावृति कराने के लिए बेचने के एक फर्जी आरोप में मेरे द्वारा की गई ड्राफ्टिंग को शानदार बताया है और इस मामले को लेकर मिलने गए अभियुक्त को कहा कि DIG को आवेदन को एक बार सिर्फ पढ़ लेने के लिए कह देना,उन्हें खुद समझ में आ जाएगी कि मामला फर्जी है।अभियुक्त DIG से भी मिलने गया लेकिन ये लोग तो आवेदन को पढ़ते भी नहीं।इनके पास इतना समय नहीं है,जो कामचोरी करने का बहाना है।
लड़की ने बेगूसराय CJM के समक्ष दिए बयान में कहा कि वह अपने प्रेमी के साथ अपने मन से समस्तीपुर जंक्शन आई और वहाँ से अकेले कटिहार ट्रेन से जा रही थी और प्यास लगने के कारण बेगूसराय जंक्शन पर उतरी जहाँ कुछ लोगों द्वारा अगवा कर रेप किया गया और वैश्यावृति करने कहा गया।फिर जब लड़की का SDJM,दरभंगा के समक्ष बयान हुआ तो उसने अपने प्रेमी के साथ एक अन्य व्यक्ति(जिसका मैंने ड्राफ्टिंग किया) पर बलात्कार,अपहरण और वैश्यावृति कराने के लिए बेचने का आरोप लगा दिया।जब लड़की अपने मन से बेगूसराय जंक्शन पर उतरी जहाँ उसे अचानक वैश्यावृति कराने वाले ने पकड़ लिया तो फिर उसका प्रेमी और एक अन्य अभियुक्त ने उसे वैश्यावृति कराने वाले को कैसे बेचा?प्रेमी के अतिरिक्त एक अन्य व्यक्ति के नाम का जिक्र भी बेगूसराय कोर्ट में उस लड़की द्वारा नहीं किया गया।जब प्रेमी के साथ एक अन्य व्यक्ति ने उसका रेप किया तो लड़की ने प्रेमी के साथ समस्तीपुर जंक्शन आने के बजाय ये बयान क्यों नहीं दिया कि उसका प्रेमी और एक अन्य व्यक्ति ने रेप करके उसे समस्तीपुर जंक्शन पर छोड़ दिया?जब एक बालिग लड़की प्रेमी के साथ खुद जा-आ रही है तो अपहरण कैसे हुआ?

इस कांड का पर्यवेक्षण लड़की का प्रेमी के साथ भाग जाने के बाद और लड़की के बारामदगी के पूर्व SDPO और SSP द्वारा किया गया जिन्होंने अभियुक्त के विरुध्द गिरफ्तारी आदेश जारी कर दिया और फिर कोर्ट से भगोड़ा घोषित करवा कर 6 नवंबर तक आत्मसमर्पण का आदेश दिया गया और अब आत्मसमर्पण नहीं करने पर कोर्ट से आदेश लेकर संपति की कुर्की-जब्ती की जाएगी।लेकिन लड़की की बारामदगी के बाद जो नए तथ्य सामने आए हैं,उसके आधार पर कांड का पुनः पर्यवेक्षण SSP द्वारा किया जाना चाहिए था,जो नहीं किया गया।लड़की की बरामदगी के पूर्व,मतलब बगैर साक्ष्य का गिरफ्तारी आदेश जारी हुआ जिसके आधार पर भगोड़ा घोषित कर कुर्की-जब्ती की कार्रवाई होने वाली है,लेकिन बरामदगी के बाद जो साक्ष्य प्राप्त हुए,उसके आधार पर तो पर्यवेक्षण हुआ ही नहीं।
इस मामला को लेकर मैं इस  सप्ताह IG से मिलूँगा।

Sunday 2 November 2014

Corrupt Excuse of the National Human Rights Commission

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जवाहर नवोदय विद्यालय,बिरौली समस्तीपुर के छात्र/छात्राओं से प्रिंसिपल द्वारा जबरन वसूली किए जाने के मामले को लेकर दोबारा दायर कराई गई परिवाद को ये कहकर निष्तारित कर दिया है कि आरोप मानवाधिकार हनन से जुड़ा नहीं है।मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम,1993 की धारा 2(1)(d) में मानवाधिकार की जो परिभाषा दी गई है उसमें जीवन,स्वतंत्रता,समानता और गरिमा से जुड़े सभी अधिकारों को मानवाधिकार माना गया है।जबरन वसूली करना मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना है जो अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन करती है।जबरन वसूली करना छात्र/छात्राओं के  गरिमा को ठेस पहुँचाती है और वसूली करने वाला छात्र/छात्राओं को  समान दर्जे का नहीं समझ रहा है।मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी अनुच्छेद 21 में शामिल है जो मानवाधिकार की परिभाषा में भी शामिल है।इसलिए मानवाधिकार से जुड़ा मामला होने के बावजूद आयोग द्वारा जबरन कहा गया है कि मानवाधिकार का मामला नहीं है।इस केस पर आयोग द्वारा पारित आदेश आयोग की वेबसाइट www.nhrc.nic.in पर फाइल नं 3862/4/30/2014 डालकर देखा जा सकता है।

इससे पूर्व इसी मामले   को लेकर पहली बार दायर कराई गई शिकायत (फाइल नं 3683/4/30/2014) को आयोग ने ये कहकर निष्तारित कर दिया था कि  शिकायत का सिर्फ  प्रतिलिपि(COPY) आयोग को प्रेषित की गई है।जब मानवाधिकार से जुड़ा मामला नहीं था तो ये बात पहली बार वाली शिकायत का निष्तारित करते हुए आयोग द्वारा  क्यों नहीं बोला गया?जब मैंने नया शिकायत(जिसे फाइल नं 3862/4/30/2014 देकर दर्ज किया गया) भेजकर इसका विरोध किया कि शिकायत की सिर्फ प्रतिलिपि नहीं भेजी गई तो आयोग द्वारा मानवाधिकार हनन का मामला नहीं होने का बहाना बनाकर दोबारा शिकायत को निष्तारित कर दिया गया।आयोग का अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस केजी बालाकृष्णन हैं।लगता है इन लोगों में मानवाधिकार की समझ नहीं हैं या ये लोग अपना मनमानी कर कुछ भी बोल देते हैं।अब आयोग के विरुध्द अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की जाएगी,लेकिन उससे पहले मैंने आयोग को फिर से शिकायत प्रेषित किया है जिसमें इसका विश्लेषण किया है कि ये मामला मानवाधिकार हनन का है,जिसपर सुनवाई का इंतजार है।

आयोग को प्रेषित किया गया शिकायत निम्न है-

Gmail Rahul Kumar <648rahul@gmail.com>
Request to entertain my complaint,as the allegations make out the specific violation of human rights-Regarding
1 message
Rahul Kumar <648rahul@gmail.com> 2 November 2014 16:30
To: nhrc.india@nic.in, covdnhrc <covdnhrc@nic.in>, jrlawnhrc <jrlawnhrc@nic.in>, "ar2.nhrc" <ar2.nhrc@nic.in>
To

The Chairperson
National Human Rights Commission
New Delhi


Date:-2/11/2014


Ref:- File No 3862/4/30/2014 as assigned by the Commission


Sub:-Request to entertain my complaint,as the allegations  make out
the specific violation  of human rights-Regarding


Sir


The learned commission has dismissed in limine my complaint (File No
3862/4/30/2014  ) on dt 27/10/2014 after making an observation that


"On perusal of the complaint, it is seen that the allegations do not
make out any specific violation of human rights, hence the complaint
is not entertainable by the Commission, as per Regulation 9(x) of the
N.H.R.C. (Procedure) Regulations, 1997. The complaint is filed and the
case is closed."


Section 2(1)(d) of the Protection Of Human Rights Act,1993 defines the
human rights as "human rights" means the rights relating to
life,Iiberty, equality and dignity  of the individual guaranteed by
the Constitution or embodied in the International Covenants and
enforceable by courts in lndia.


It was  stated in my complaint  that forcing students of Jawahar
Navodaya Vidyalaya,Birauli,Samastipur by the principal of the said
school to submit money or imposing illegal levy on the students is the
mental and economic harassment that is the violation of Article 21 and
same act is violating human rights.


Now,it is pertinent to examine  the defintion of human rights
enshrined under Section 2(1)(d) of the Protection Of Human Rights
Act,1993 and the scope of Article 21 of the Constitution of India and
its relationship with the definition of human rights.


Article 21 confers to guarantee the right to life and personal liberty
of an individual as per the procedure established by the law as
Article 21 states that  no  person shall be deprived of his life or
personal liberty except according to procedure established by
law.Further,the scope of Article 21 has been expanded by the Hon'ble
Supreme Court and right to live with human dignity and right to
freedom from torturing is under the ambit of Article 21.

There are three similarities in between the definition of human rights
and the scope of Article 21 and these  similarities are life,liberty
and dignity.These three words have been used in both-in the definition
of human rights and in the rights provided under Article 21.So,it is
quite natural that violation of Article 21 is also the violation of
human rights.

Now ,question arises, whether there is the violation of  life ,liberty
and dignity when students have been forced to submit money or
illegally levy has been imposed on  them.

As it is well evident that these students are children -students of
Jawahar Navodaya  Vidyalaya ,Birauli,Samastipur who are minor.It is
also well evident that these students are maintained free of cost by
the Union Of India after establishing an autonomous organization
namely Navodaya Vidyalaya Samiti.It is also well evident that children
are not earning money yet.Further,it is also well evident  that funds
are provided  to this school by the Govt for the repairing works and
providing facilities,so taking money in the name of instituting new
fans or otherwise is wrong,illegal and unconstitutional.

In such circumstances,not a single child will willingly   submit money
and it has been levied forcibly.Subjecting an  individual to do a
certain act under force is just like an act done under slavery,because
in such circumstance,a person is bound to do a certain act against his
desire,so there is no liberty.Boundation makes to feel slave and that
is the violation of dignity and feeling slave or bondaged is also the
violation of equality  because a person is not equal to that person by
whom he is forced.So,the scope of equality as defined under  the
definition of human rights is also violated.There is the mental and
economic harassment in the course of submitting money under force.This
mental and economic harassment is also the violation of dignity
because a person is not provided the life of that level where he can
live with human dignity without harassment.Dignity is a stage where a
person spends life  without any harassment and deprivation.Mental and
economic harassment effects the life adversely.So,the rights relating
to life,Iiberty, equality and dignity  of the individual guaranteed by
 the Constitution  or embodied in the International Covenants and
enforceable by courts in lndia  have been violated by the act of
imposing  levy  on students.So,all aspects of the human rights as
provided under the defintion of human rights have been violated.


So,there is no merit in the dismissal of my complaint by the learned
commission under Regulation 9(x) of the N.H.R.C. (Procedure)
Regulations, 1997  solely on the ground that the allegations do not
make out any specific violation of human rights.


Earlier,on dismissing in limine my  complaint of the same matter vide
its File No.3683/4/30/2014,the commission  observed that only copy of
the complaint addressed to some other authority was sent to the
commission and thus the complaint was dismissed in limine under
Regulation 9(xiii) of the N.H.R.C. (Procedure) Regulations, 1997.If
the allegations do not make out any specific violation of human
rights,then why it was not observed by the learned commission on
dismissing in limine  my complaint  File No.3683/4/30/2014 that the
allegations do not make out any specific violation of human rights.The
complaint File No.3683/4/30/2014 ought to have been dismissed in
limine on both grounds:-On the ground of only sending a copy of the
complaint to the commission addressed to some other authority as well
as on the ground of allegation don't making any specific violation of
human rights.After dismissal in limine my complaint File
No.3683/4/30/2014 when i again made complaint before the commission
which was registered as File No 3862/4/30/2014,the logic of the
commission was strongly opposed by me that only copy of the complaint
addressed to some other authority was sent to commission,as only copy
of the complaint was not sent,but all ten authorities were  addressed
altogether Serial Wise,the commission further made an excuse to
dismiss in limine my complaint by stating that allegations do not make
out any specific violation of human rights.


Decision has not been pronounced yet,complaint has been only dismissed
in limine.So,if i again request to entertain my complaint,then it
can't be dismmissed in limine under Regulation 9(xii) of the N.H.R.C.
(Procedure) Regulations, 1997.In view of above,a fresh application is
being submitted before the commission with the summary cited below:-



"Approx 1 Lakhs rupees have been collected from the girls students of
the JNV Samastipur by the principal and 44 new fans of brand namey
Havells have been purchased.But it is easy to visualise that 44 fans
may not carry cost of approx 1 lakhs.

Now,principal is going to levy money in the name of instituting new
television for the male students.The television available for the boys
will be sent to girls hostel and the television available in the girls
 hostel will be sent to the Guest House.What amount will be levied
from each student  has not  been fixed yet.Money has  been levied
from  few  male students in the name of instituting new fans and
repairing other articles  during National  Sports Event of Kabbadi
organized in the vidyalaya  in DP Vacation and it has yet to be
collected from  remaining students now after DP Vacation.Rs 1000 is
being collected  from each male students of the class 6 and Rs 500
from  each male students of class 7  and 8 and house masters of the
hostels  are directed to collect the money.

Further,it is to inform you that taking money for any kind of  work is
illegal because Jawahar Navodaya Vidyalaya is established by the Govt
of India and it is a school providing education free of cost and fund
is provided by Govt of India (by the Navodaya Vidyalaya Samiti) for
such works like instituting  fans and repairing articles.

It appears that the fund provided for the these  works has been chewed
up or is going to be chewed up by the  said principal and by the way
of levying  money from the students,he is now going to do those works
which were/are to be done by the fund provided.
levying money from students is criminal breach of trust by the public
servant which is an offence under section 409 of the IPC and it is
also an offence under section  417 and 420 of the IPC.


Therefore,it is requested to entertain  my complaint ,as the
allegations  make out  the specific violation  of human rights,and
ensure all appropriate necessary actions.


Thanking You

Yours

Rahul Kumar
S/O-Jagannath Ray
Vill+Post-Sughrain
Via-Bithan
Distt-Samastipur
State-Bihar
PIN-848207
Mob-07759071885 and  07654528780