Sunday 28 September 2014

महात्मा गाँधी का विरोधाभास




स्नातक प्रथम खंड के अर्थशास्त्र की मेरी परीक्षा में एक प्रश्न  महात्मा गाँधी के आर्थिक विचारों का आलोचनात्मक समीक्षा करने से जुड़ा  था।गाँधी मुझे पूँजीवाद का घोर संरक्षक दिखते हैं,इसलिए मैंने अपने उत्तर  में गाँधी की काफी आलोचना की।

गाँधी की न्यासवादिता का सिध्दांत(Theory of trusteeship) पूँजीपतियों के  काला धन को सफेद धन में परिवर्तित करवाने का एक सोचा समझा युक्ति प्रतीत  होता है।गाँधी ने पूँजीपतियों को सलाह दिया कि पूँजीपति अपने  आवश्यकतानुसार धन का उपयोग कर शेष धन का उपयोग ट्रस्ट बनाकर गरीबों के मदद के लिए करे।काला धन को सफेद धन बनाने के लिए पूँजीपतियों द्वारा  ट्रस्ट को दान देना आम बात है।फिर ये क्यों नहीं कहा जाए कि गाँधी  पूँजीपतियों द्वारा अर्जित किए गए काले धन को भी ट्रस्ट में दान करने कह  रहे थे जिससे काला धन सफेद धन में बदल जाएगी?यदि गाँधी पूँजीपतियों का  संरक्षक नहीं थे तो ऐसा भी तो कह सकते थे कि  पूँजीपतियों का यह दायित्व  है कि अपने आवश्यकता के अतिरिक्त शेष धन को सरकार को जमा कर दे,अन्यथा  उनकी शेष धन को सरकार द्वारा जब्त कर लेना चाहिए।

गाँधी ने कहा कि बड़े उद्योग में मजदूर को मजदूर ही बने रहना चाहिए।यदि  मजदूर मालिक बनेंगे तो मजदूर मिल मालिक का शोषण करने लगेंगे।अभी मजदूर  मालिक बना ही नहीं,मिल मालिकों का शोषण गाँधी को पहले ही दिखने लगा,लेकिन मजदूरों का शोषण नहीं दिखा।वहीं लघु उद्योग के बारे में गाँधी ने कहा कि  इसमें कोई मजदूर होता ही नहीं,सभी मालिक ही होता है।लघु उद्योग जो  पूँजीपतियों द्वारा संचालित नहीं है,वहाँ सभी मालिक है लेकिन बड़े उद्योग  जो पूँजीपतियों द्वारा संचालित है वहाँ मजदूर को मजदूर ही बने रहना  चाहिए।अब हम समझ सकते हैं कि गाँधी किस तरह से पूँजीपतियों का संरक्षण  करते थे।

वस्तुतः गाँधी का ये सोच कार्ल मार्क्स के साम्यवादी सोच के विरोध में  उत्पन्न हुई है।चूँकि मार्क्स ने लघु उद्योग पर ध्यान नहीं दिया,इसलिए  गाँधी ने लघु उघोग में मजदूर को मालिक कह दिया जैसा कि मार्क्स बड़े उघोग  में मजदूर को मालिक बनाना चाहते थे।मार्क्स बड़े उद्योग में पूँजीपतियो को  नष्ट करना चाह रहे थे इसलिए गाँधी ने सलाह दे डाली कि मजदूर मालिक बनकर  पूँजीपतियों का शोषण ना करे,मजदूर मजदूर ही बने रहे। लोग पूँजीपतियों का विरोध ना करे या उस समय समाजवाद का जो प्रभाव दुनिया  के कई देशों पर पड़ चुकी थी,उस प्रभाव का असर भारत में ना हो,इसलिए गाँधी  ने पूँजीपतियों को ये सलाह दे डाली कि पूँजीपति ट्रस्ट बनाकर गरीबों का  कल्याण करे।

गाँधी आम लोगों को कई मायने में मूर्ख बना रहे थे । हालाँकि भारतीय राष्ट्रीय  आंदोलन में सर्वाधिक उनकी भूमिका से मैं इंकार नहीं करता।महात्मा गाँधी  का आर्थिक विचार ने देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण  भूमिका अदा की है।द्वितीय विश्व युध्द के बाद ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति  चरमरा गई।इधर भारत में लघु उद्योग और स्वदेशी का प्रभाव बढ़ गया था जिससे  ब्रिटेन द्वारा उत्पादित वस्तु का भारत उतना बड़ा बाजार नहीं रह गया।भारत  को आजाद करने का एक बड़ा कारण यह भी था।

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