Monday, 6 March 2017

पुलिस सुधार:बिहार के परिप्रेक्ष्य में

One friend has sought my suggestions regarding Police Reforms in Bihar stating that it will be raised before the Appropriate Authority by an NGO working in tie up with the Govt.However,i am not experienced and knowledgeable to suggest,anyway my suggestions in Hindi are reproduced below:-
पुलिस सुधार:बिहार के परिप्रेक्ष्य में
State of Gujarat vs Kishanbhai Etc,(2014) 5 SCC 108 में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों का बिहार सरकार पालन करे-माननीय उच्चतम न्यायालय ने संदर्भित वाद में निर्देश दिया है कि हरेक राज्य सरकार वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों का एक स्टैंडिंग कमेटी बनाये जिसे न्यायालय द्वारा अभियुक्तों को बरी करने के आदेश का परीक्षण करने की दायित्व हो और जिससे निर्दोषों की हित की भी रक्षा की जा सके।स्टैंडिंग कमेटी के द्वारा एक मंतव्य दर्ज किया जाय कि अभियुक्तों की बरी जाँच व अभियोजन अधिकारियों की घोर उपेक्षा के कारण हुई या नहीं और निर्दोषो को पुलिस के द्वारा Charge-sheeted करने में हुई त्रुटि Innocent था या Blameworthy।घोर उपेक्षा और Blameworthy की स्थिति में सम्बंधित जाँच व अभियोजन अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की जाय।माननीय न्यायालय ने सभी राज्य के गृह विभाग को ये भी आदेश दिया कि पुलिस और अभियोजन अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम के विषय-वस्तु में स्टैंडिंग कमेटी द्वारा उपरोक्त परीक्षण के उपरांत सुझाये गए उपायों को भी शामिल किया जाय।स्टैंडिंग कमेटी प्रशिक्षण कार्यक्रम के विषय-वस्तु का सालाना समीक्षा करे और फ्रेश इनपुट्स जैसे वैज्ञानिक अनुसंधान,न्यायालय के निर्णय और उपरोक्त परीक्षण के उपरांत प्राप्त निष्कर्ष आदि को प्रशिक्षण कार्यक्रम के विषय-वस्तु में शामिल किया जाय।
माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश में वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों का उपरोक्त प्रयोजनों हेतु एक स्टैंडिंग कमेटी बनाने के बारे में कहा गया है लेकिन मैं मानता हूँ कि स्टैंडिंग कमेटी के जगह चुनाव आयोग की तरह एक स्वतंत्र और स्वायत्त आयोग हो।स्टैंडिंग कमेटी में वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों को रखने के बारे में कहा गया है लेकिन इतना काम करना स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य होने के अलावे दूसरे पद पर भी आसीन वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों के लिए संभव नहीं होगा।आयोग के जो भी सदस्य होंगे वे दूसरे पद पर आसीन ना हो।आयोग में वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों के अतिरिक्त रिटायर्ड पुलिस अधिकारी और जज तथा कानूनविद हो सकते हैं।
इस वाद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने पुलिस सुधार के लिए दो सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान दिया है:-
1.पुलिस और अभियोजन अधिकारी जांच और अभियोजन में घोर उपेक्षा और त्रुटि करते हैं जिसके कारण अपराध करने वाले बच जाते हैं और निर्दोष परेशान हो जाते हैं।इसलिए इन पर नियंत्रण करने के लिए एक स्टैंडिंग कमेटी होना चाहिए।जिसके लिए मैं मानता हूँ कि एक आयोग हो।
2.पुलिस और अभियोजन अधिकारी को दी जाने वाली प्रशिक्षण के विषय-वस्तु में बदलाव होना चाहिए। विषय-वस्तु में आधुनिक तकनीकों,न्यायालय के निर्णयों और पुराने अनुभवों को शामिल किया जाना चाहिए।
माननीय न्यायालय के इस आदेश का बिहार सरकार ने अनुपालन नहीं किया है।संभवतः किसी भी राज्य सरकार ने नहीं किया है।
मैंने सूचना का अधिकार आवेदन से माननीय न्यायालय के इस आदेश के अनुपालन हेतु की गयी कार्रवाई के बारे में बिहार सरकार के गृह विभाग से पूछा था।मेरे आवेदन को गृह(विशेष) विभाग द्वारा अभियोजन निदेशालय को हस्तांतरित कर दिया गया जबकि न्यायालय द्वारा गृह विभाग को आदेश दिया गया और गृह विभाग ही कार्रवाई करने के लिए सक्षम प्राधिकारी है।उसके बाद अभियोजन निदेशालय ने जवाब ही नहीं दिया।इससे स्पष्ट होता है कि बिहार सरकार द्वारा माननीय न्यायालय के आदेश की अवहेलना की गयी है।मेरे एक फेसबुक मित्र राहुल गुप्ता,बदायूँ ने सूचना का अधिकार आवेदन से माननीय न्यायालय के इस आदेश के अनुपालन हेतु की गयी कार्रवाई के बारे में उत्तरप्रदेश सरकार के गृह विभाग से पूछा था।उन्हें प्राप्त जवाब से भी स्पष्ट होता है कि उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा माननीय न्यायालय के आदेश की अवहेलना की गयी है।
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3 comments
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Raushan Singh Iske liye kaun jimmedar h..aur kyu nhi amal m laya ja rha h
UnlikeReply14 March at 19:51
Rahul Kumar इसके लिए जिम्मेवार राज्य सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों है।राज्य सरकार तब तक अमल नहीं करेगी जब तक सुप्रीम कोर्ट उसे बाध्य नहीं करे।सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देने के बाद राज्यों से एक्शन टेकिंग रिपोर्ट नहीं माँगा।निर्देश देने के बाद निर्देश का अनुपालन करवाने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई करना चाहिए था।
Suraj Choudhary aayog bna bhi to kya granti he usme rog nahi hoga..
UnlikeReply14 March at 20:45
Rahul Kumar आयोग में भी रोग होगा।लेकिन स्टैंडिंग कमेटी से बेहतर होगा।मनुष्य का उदय ही रोग से भरा हुआ है।
LikeReply1Yesterday at 05:51
Anand Kumar जबरदस्त तर्क दिया राहुल जी।
Suraj Choudhary bhaiya ji.. hirdy me utna rog bhi nahi jitna jamane me byapt he
UnlikeReply121 hrs
Rahul Kumar हृदय और दिमाग दोनों शरीर का हिस्सा है।मनुष्य दिमाग की ही सुनते आया है।
LikeReply113 hrs
Rahul Kumar #RaushanJi-इसके लिए जिम्मेवार राज्य सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों है।राज्य सरकार तब तक अमल नहीं करेगी जब तक सुप्रीम कोर्ट उसे बाध्य नहीं करे।सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देने के बाद राज्यों से एक्शन टेकिंग रिपोर्ट नहीं माँगा।निर्देश देने के बाद निर्देश का अनुपालन करवाने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई करना चाहिए था।

#SurajJi-आयोग में भी रोग होगा।लेकिन स्टैंडिंग कमेटी से बेहतर होगा।मनुष्य का उदय ही रोग से भरा हुआ है।
LikeReply1Yesterday at 05:53




Wednesday, 1 March 2017

PINK MOVIE:LEGAL FAULTS WITHIN

PINK MOVIE:LEGAL FAULTS WITHIN
Pink फिल्म में मामूली कानूनी पहलूओं पर भी चार चूक पाया हूँ।फिल्मों में मामूली कानूनी मामले पर भी चूक करना आम बात है।जब फिल्म से सम्बंधित कोई विवाद कोर्ट पहुँच जाये तो बड़े वकील को पैरवी के लिए रखते हैं लेकिन फिल्म के जरिये जनता को गलत जानकारी ना मिले,इससे बचने के लिए कानूनी पहलूओं पर मामूली वकील से भी संपर्क नहीं करते।
चूक देखिये-
i.Section 320 IPC to be read with Section 324 for causing grievous hurt-धारा 324 खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा साधारण उपहति (क्षति) कारित करने के विरुद्ध दंड से सम्बंधित है और धारा 320 घोर उपहति (क्षति) i.e.Grievous hurt को परिभाषित करती है।धारा 319 साधारण उपहति को परिभाषित करती है।वैसे,साधारण उपहति को केवल उपहति i.e. hurt ही कहा गया है।धारा 326 खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा घोर उपहति (क्षति) कारित करने के विरुद्ध दंड से सम्बंधित है।
इसलिए,कानून के मुताबिक Section 319 to be read with section 324 for causing hurt अथवा Section 320 to be read with section 326 for causing grievous hurt होना चाहिए,ना कि Section 320 IPC to be read with Section 324 for causing grievous hurt.
ii.Section 340 IPC for wrongful confinement-धारा 340 में सिर्फ wrongful confinement का परिभाषा दिया गया है जबकि धारा 342 में wrongful confinement के विरुद्ध दंड का प्रावधान किया गया है।इसलिए,section 340 to be read with section 342 for wrongful confinement,ना कि section 340 for wrongful confinement.
iii.Convicts u/s 340 for wrongfully confining in the car,thereby molesting-फिल्म में अंकित मल्होत्रा,रौशन आनंद और उसके दो अन्य साथियों को धारा 340 के तहत wrongful confinement और molestation दोनों के लिए आरोपित और दोषी करार किया गया है।molestation के लिए अलग धारा है और धारा 340 (वस्तुतः धारा 342 के तहत सजा देना है) के तहत सिर्फ wrongful confinement के लिए सजा दिया जा सकता है।यदि molestation से अभिप्रेत छेड़खानी है तो धारा 354 या फिल्म में दिखाये गये एक से ज्यादा लड़के की संलिप्तता के अनुसार बलात्संग अथवा बलात्संग का प्रयास है तो धारा 376D.
इन लड़कों के द्वारा लड़की को उठाकर जबरदस्ती कार में बैठाया जाता है।इसलिए अपहरण का भी मामला बनेगा।अतः धारा 362/365/368 के तहत भी आरोपित और दोषी करार किया जाना चाहिए।
iv.धारा 307 यानि Attempt to murder का गवाह भी है,evidence भी है-फिल्म की मुख्य नायिका के विरुद्ध जज ने कहा है कि उसके विरुद्ध धारा 307 का गवाह भी है,evidence भी है,लेकिन grave provocation के कारण की गयी कृत्य होने के फलस्वरूप बरी किया जाता है।बोतल से आँख में मारना धारा 307 के तहत आता ही नहीं है।जख्म की प्रकृति के अनुसार धारा 324 या धारा 326 के तहत आयेगा।लेकिन जज ने कहा है कि धारा 324 का solid evidence नहीं है।वस्तुतः धारा 307 का solid evidence नहीं है और धारा 324 या धारा 326,जख्म की प्रकृति के अनुसार जो भी लगे,उसमें बरी करना चाहिए और लड़के द्वारा grave peovocation देने के आधार पर नहीं,बल्कि लड़की के आत्म-रक्षा का अधिकार (Right to self-defence) के आधार पर।
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Om Saini अति उपयोगी जानकारी