One friend has sought my suggestions regarding Police Reforms in Bihar stating that it will be raised before the Appropriate Authority by an NGO working in tie up with the Govt.However,i am not experienced and knowledgeable to suggest,anyway my suggestions in Hindi are reproduced below:-
पुलिस सुधार:बिहार के परिप्रेक्ष्य में
State of Gujarat vs Kishanbhai Etc,(2014) 5 SCC 108 में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों का बिहार सरकार पालन करे-माननीय उच्चतम न्यायालय ने संदर्भित वाद में निर्देश दिया है कि हरेक राज्य सरकार वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों का एक स्टैंडिंग कमेटी बनाये जिसे न्यायालय द्वारा अभियुक्तों को बरी करने के आदेश का परीक्षण करने की दायित्व हो और जिससे निर्दोषों की हित की भी रक्षा की जा सके।स्टैंडिंग कमेटी के द्वारा एक मंतव्य दर्ज किया जाय कि अभियुक्तों की बरी जाँच व अभियोजन अधिकारियों की घोर उपेक्षा के कारण हुई या नहीं और निर्दोषो को पुलिस के द्वारा Charge-sheeted करने में हुई त्रुटि Innocent था या Blameworthy।घोर उपेक्षा और Blameworthy की स्थिति में सम्बंधित जाँच व अभियोजन अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की जाय।माननीय न्यायालय ने सभी राज्य के गृह विभाग को ये भी आदेश दिया कि पुलिस और अभियोजन अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम के विषय-वस्तु में स्टैंडिंग कमेटी द्वारा उपरोक्त परीक्षण के उपरांत सुझाये गए उपायों को भी शामिल किया जाय।स्टैंडिंग कमेटी प्रशिक्षण कार्यक्रम के विषय-वस्तु का सालाना समीक्षा करे और फ्रेश इनपुट्स जैसे वैज्ञानिक अनुसंधान,न्यायालय के निर्णय और उपरोक्त परीक्षण के उपरांत प्राप्त निष्कर्ष आदि को प्रशिक्षण कार्यक्रम के विषय-वस्तु में शामिल किया जाय।
माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश में वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों का उपरोक्त प्रयोजनों हेतु एक स्टैंडिंग कमेटी बनाने के बारे में कहा गया है लेकिन मैं मानता हूँ कि स्टैंडिंग कमेटी के जगह चुनाव आयोग की तरह एक स्वतंत्र और स्वायत्त आयोग हो।स्टैंडिंग कमेटी में वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों को रखने के बारे में कहा गया है लेकिन इतना काम करना स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य होने के अलावे दूसरे पद पर भी आसीन वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों के लिए संभव नहीं होगा।आयोग के जो भी सदस्य होंगे वे दूसरे पद पर आसीन ना हो।आयोग में वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों के अतिरिक्त रिटायर्ड पुलिस अधिकारी और जज तथा कानूनविद हो सकते हैं।
इस वाद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने पुलिस सुधार के लिए दो सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान दिया है:-
1.पुलिस और अभियोजन अधिकारी जांच और अभियोजन में घोर उपेक्षा और त्रुटि करते हैं जिसके कारण अपराध करने वाले बच जाते हैं और निर्दोष परेशान हो जाते हैं।इसलिए इन पर नियंत्रण करने के लिए एक स्टैंडिंग कमेटी होना चाहिए।जिसके लिए मैं मानता हूँ कि एक आयोग हो।
2.पुलिस और अभियोजन अधिकारी को दी जाने वाली प्रशिक्षण के विषय-वस्तु में बदलाव होना चाहिए। विषय-वस्तु में आधुनिक तकनीकों,न्यायालय के निर्णयों और पुराने अनुभवों को शामिल किया जाना चाहिए।
माननीय न्यायालय के इस आदेश का बिहार सरकार ने अनुपालन नहीं किया है।संभवतः किसी भी राज्य सरकार ने नहीं किया है।
मैंने सूचना का अधिकार आवेदन से माननीय न्यायालय के इस आदेश के अनुपालन हेतु की गयी कार्रवाई के बारे में बिहार सरकार के गृह विभाग से पूछा था।मेरे आवेदन को गृह(विशेष) विभाग द्वारा अभियोजन निदेशालय को हस्तांतरित कर दिया गया जबकि न्यायालय द्वारा गृह विभाग को आदेश दिया गया और गृह विभाग ही कार्रवाई करने के लिए सक्षम प्राधिकारी है।उसके बाद अभियोजन निदेशालय ने जवाब ही नहीं दिया।इससे स्पष्ट होता है कि बिहार सरकार द्वारा माननीय न्यायालय के आदेश की अवहेलना की गयी है।मेरे एक फेसबुक मित्र राहुल गुप्ता,बदायूँ ने सूचना का अधिकार आवेदन से माननीय न्यायालय के इस आदेश के अनुपालन हेतु की गयी कार्रवाई के बारे में उत्तरप्रदेश सरकार के गृह विभाग से पूछा था।उन्हें प्राप्त जवाब से भी स्पष्ट होता है कि उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा माननीय न्यायालय के आदेश की अवहेलना की गयी है।