कानून का राज या कानून का आतंक?
बिहार सरकार ने आज से नया शराबबंदी कानून 'बिहार मद्यनिषेद उत्पाद अधिनियम,2016' लागू कर दिया है।
30 सितम्बर 2016 को पटना उच्च न्यायालय द्वारा 1 व 5 अप्रैल 2016 से प्रभावी पुराने शराबबंदी कानून 'बिहार उत्पाद (संशोधन) अधिनियम,2016' को Draconian कानून बताकर खारिज किये जाने के बावजूद उससे भी ज्यादा Draconian कानून को 2 अक्टूबर 2016 से लागू कर दिया गया है।
वस्तुतः सरकार का इरादा शराबबंदी करने का नहीं है,सिर्फ दिखवा भर है,इसलिए सरकार Draconian कानून बनाती है,ताकि न्यायालय में चुनौती मिलने पर उसे खारिज कर दिया जाए।सरकार ने पुराना कानून खारिज होने के लिए ही बनाया था और नया कानून भी खारिज होने के लिए ही बनाया है ।
पुराना शराबबंदी कानून कितनी Draconian थी,इसे पुरानी कानून की धारा 47 के विरुद्ध उच्च न्यायालय द्वारा की गयी एक टिप्पणी से समझ सकते हैं-
"A humble Rickshaw-puller found with only a bottle or a pouch of Country liqour would,now,be exposed to minimum of ten years imprisonment with a fine of Rs one lakh (minimum),an amount,which he had ever never possessed or seen."
जो कानून आज से लागू हुई है,उसमें ये भी प्रावधान है कि यदि किसी के घर से शराब बरामद हुई या उस घर में कोई शराब पीते पकड़ा गया तो घर के सारे वयस्क लोगों को अभियुक्त बनाया जायेगा,महिला और बुजुर्ग सहित।मान लीजिये,आपका पाँच-छह कमरे वाला दो मंजिला थोडा बड़ा-सा घर है और ऊपरी मंजिल में आपका बेटा बैग में छुपाकर शराब का एक बोतल लेकर चला गया जिसमें वो रहता है और निचली मंजिल में आप रहते हैं और पुलिस ने उसे पीते पकड़ लिया या बोतल बरामद कर लिया।आपको मालूम भी नहीं कि आपका बेटा शराब भी लाया था या पी रहा था,लेकिन आप सहित घर के सारे वयस्क लोग हो गए अभियुक्त।मान लीजिये,किसी ने फंसाने की नियत से आपके घर में कहीं पर शराब का बोतल छुपा दिया और पुलिस से मिलीभगत करके बोतल बरामद करवा दिया।आपको मालूम भी नहीं,लेकिन घर के सारे वयस्क लोग हो गए अभियुक्त।
यदि घर के अन्य सदस्य को मालूम भी हो जाये कि उसके घर के किसी सदस्य ने शराब लाया या पिया है,तब भी शराब लाने/पीने वाले और अन्य सदस्य को समानरूपेण दोषी नहीं माना जा सकता।
आपराधिक विधि-शास्त्र में समानरुपेण दोषी चार अवस्था में ही माना जा सकता है।
(i) समान आशय से किया गया अपराध (धारा-34 IPC)
(ii) समान उद्देश्य से किया गया अपराध (धारा-149 IPC)
(iii) अपराध करने के लिए दुष्प्रेरण (धारा 107 से धारा 117 IPC)
(iv) अपराध करने के लिए आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होना ( धारा 120A व धारा 120B IPC)
(ii) समान उद्देश्य से किया गया अपराध (धारा-149 IPC)
(iii) अपराध करने के लिए दुष्प्रेरण (धारा 107 से धारा 117 IPC)
(iv) अपराध करने के लिए आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होना ( धारा 120A व धारा 120B IPC)
घर के अन्य सदस्य द्वारा मालूम होने पर भी पुलिस को सूचना नहीं देना उपरोक्त चार वर्ग में नहीं आता है,इसलिए उन्हें समानरूपेण दोषी मानना आपराधिक विधि-शास्त्र के विरुद्ध है।
यदि शराब बोतल रखना या पीना अपराध है और अपराध की जानकारी होने पर भी इरादतन अपराध की सूचना नहीं देना भी IPC की धारा 176 और धारा 202 के तहत अपराध है,जिसमें 6 माह तक की कारावास का प्रावधान है।IPC में जिस तरह से अपराध के बारे में इरादतन जानकारी नहीं देने के लिए इरादतन जानकारी नहीं देने वाले को समानरूपेण दोषी मानने के बजाय मात्र 6 माह के कारवास का पात्र माना गया है,ऐसा ही कुछ प्रावधान नया उत्पाद अधिनियम में भी होना चाहिए था।लेकिन पीने या रखने वाले के लिए 6 माह और इरादतन जानकारी नहीं देने वाले के लिए एक माह का कारावास पर्याप्त है।
उच्च न्यायलय ने अपने फैसला में Bihar Prohibition Act,1938 का जिक्र किया है जिसके धारा 9 में शराब पीने या रखने पर 6 माह की कारावास का प्रावधान है।लेकिन बिहार सरकार ने Bihar Prohibition Act,1938 को लागू करने के बजाय नया कानून ही बना दिया।यदि नया कानून बनाया भी गया तो दंड लचीला होना चाहिए।
कानून में दंड के प्रावधान में लचीलापन होना चाहिए लेकिन कानून के प्रावधानों का क्रियान्वयन सख्ती से होना चाहिए।लेकिन हमारे यहाँ होता है इसके विपरीत।कानून में दंड के प्रावधान सख्त कर दिये जाते हैं लेकिन क्रियान्वयन लचीला होता है।क्रियान्वयन इतना सख्त होना चाहिए कि पुलिस व उत्पाद अधिकारी कानून का दुरुपयोग करके फसाने ना लगे,पुलिस व उत्पाद अधिकारी इतना लापरवाह भी ना हो जाये कि लोगों में शराब पीने या बेचने पर भय ना रहे या पुलिस या उत्पाद अधिकारी लोगों को गिरफ्तार करके मनमानी रूपये वसूल कर छोड़ने ना लगे।अतः शराबबंदी होना चाहिए,लेकिन दंड कम,क्रियान्वयन ज्यादा होना चाहिए।
दंड-केंद्रित कानून बनाना मतलब कानून का आतंक फैलाने की दिशा में काम करना और क्रियान्वयन-केंद्रित कानून बनाना मतलब कानून का राज स्थापित करने की दिशा में काम करना।
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