Wednesday, 1 March 2017

शराब बनाना,बेचना और पीना मौलिक अधिकार है या नहीं?

शराब बनाना,बेचना और पीना मौलिक अधिकार है या नहीं?
संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यापार और व्यवसाय की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है,लेकिन मौलिक अधिकार Absolute नहीं होता है।किसी भी व्यापर और व्यवसाय के विरुद्ध अनुच्छेद 19(6) के तहत आम जनता के हित में Reasonable Restrictions (औचित्यपूर्ण पाबंदी) लगाया जा सकता है।इसलिए आम जनता के हित को ध्यान में रखते हुए शराब को बनाने और बेचने से मना किया जा सकता है।
ऐसी कौन-सी व्यापार और व्यावसाय है,जिसके विरुद्ध सरकार द्वारा Reasonable Restrictions लगाया जा सकता है?यदि ऐसे व्यापार और व्यवसाय के विरुद्ध Reasonable Restrictions लगाने का प्रावधान संविधान में ही है,तो इस बात को लेकर दो राय नहीं होना चाहिए कि उस व्यापार और व्यवसाय के विरुद्ध Reasonable Restrictions लगाया जा सकता है या नहीं।चूँकि अनुच्छेद 47 में शराबबंदी को लेकर विशेष प्रावधान है,इसलिए इसमे दो राय होने की जरुरत ही नहीं है कि शराब बनाने और बेचने के विरुद्ध Reasonable Restrictions होना चाहिए या नहीं।बेशक होना चाहिए।
ऐसे व्यापार और व्यवसाय जहाँ अनुच्छेद 47 की तरह संविधान में विशेष प्रावधान नहीं है,वहाँ दो राय हो सकता है कि Reasonable Restrictions लगाना संविधान के अनुकूल है या प्रतिकूल।
वैसे,पुराने शराबबंदी कानून को ख़ारिज करने वाले हाई कोर्ट के दोनों जज ने अपने फैसले में शराब बनाने और बेचने को मौलिक अधिकार माना है,लेकिन मैं उपरोक्त विवेचना के आधार पर विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि शराब बनाना और बेचना मौलिक अधिकार नहीं है।
हाई कोर्ट के दो जज मुख्य न्यायाधीश जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी और जस्टिस नवनीति प्रसाद सिंह की खंडपीठ ने फैसला दिया है।नवनीति प्रसाद सिंह ने शराब पीना भी मौलिक अधिकार माना है।उन्होंने कहा है कि बंद कमरे में अकेले शराब पीना अनुच्छेद 21 के तहत Right to Privacy (निजता का अधिकार) है,लेकिन जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी ने ऐसा नहीं माना है क्योकि अनुच्छेद 47 के तहत शराबबंदी का प्रावधान की गयी है।इनका कहना है कि यदि पीना मौलिक अधिकार रहता तो इसके विरुद्ध अनुच्छेद 47 में प्रावधान ही नहीं किया जाता ।उसी तरह से इन्हें ये भी मानना चाहिए था कि यदि शराब बनाना और बेचना मौलिक अधिकार रहता तो अनुच्छेद 47 में शराबबंदी का प्रावधान नहीं होता।
वैसे,बिहार सरकार शराबबंदी के आधार पर जनता का वोट लेने के चक्कर में अंधी हो गयी है।नए शराबबंदी कानून को लागू करने से पहले दंड के ऐसे प्रावधानों पर जरुरी संशोधन कर लेना चाहिए था जहाँ पर हाई कोर्ट ने पुराने शराबबंदी कानून में दंड के उन प्रावधानों को Draconian माना है और खारिज कर दिया है।चूँकि हाई कोर्ट के मंतव्य के अनुरूप जरुरी संशोधन करने के बजाय उससे भी Draconian कानून लागू कर दिया गया है,इसलिए हाई कोर्ट इसे खारिज कर देगी और इसके लिए आज से हाई कोर्ट में याचिका दायर किया जाने लगा है।
जिस तरह से पटना हाई कोर्ट ने पुराने शराबबंदी कानून को खारिज किया है,वैसे ही नए शराबबंदी कानून को भी खारिज करेगी।आज बिहार सरकार हाई कोर्ट द्वारा पुराने शराबबंदी कानून को ख़ारिज करने के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट गयी है।सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के फैसले को ही बरकरार रखेगी।
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Sushant Suman अंधी बिहार सरकार !! Waste of Court's time and public money !!

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