Wednesday, 24 December 2014

Corruption In the AIIMS,Patna

AIIMS,Patna के निर्माणाधीन भवनों के निर्माण-कार्य पूरा होने में पटना हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद भारी विलंब और सहायक प्राध्यापकों का कोटा के अनुरुप बहाली नहीं होने के विरुध्द मेरे द्वारा दायर की गई सूचना आवेदन को केन्द्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 की धारा 6(3) के तहत AIIMS,PATNA के निदेशक को जवाब देने के लिए हस्तांतरित कर दिया है।ये सूचना का अधिकार कानून का दुरुपयोग है क्योंकि AIIMS,PATNA के निदेशक से ज्यादा जवाबदेही इन मामलों को लेकरमंत्रालय की है।इससे पूर्व मंत्रालय ने मेरा सूचना आवेदन को यह कहकर वापस कर दिया था कि पोस्टल आर्डर को Accounts 0fficer के नाम भेजने के बजाय सचिव के नाम भेजा गया,जिसके कारण मंत्रालय के विरुध्द मैंने केन्द्रीय सूचना आयोग में शिकायत किया है जिसमें अधिनियम की धारा 25(5) के तहत आयोग से ये सिफारिश करने का आग्रह किया गया है कि पोस्टल आर्डर/ड्राफ्ट किसी खास अधिकारी के नाम नहीं भेजने के कारण आवेदन को वापस नहीं किया जाए।

दिनांक  17/12/2014 को  AIIMS,PATNA के तीन मेडिकल छात्रों द्वारा भी इस मामले को लेकर केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सूचना आवेदन भेजा गया है।




ये है प्रधानमंत्री कार्यालय से प्राप्त पत्र।


प्रधानमंत्री कार्यालय ने लोकपाल के गठन में विलंब के विरुध्द दायर किए गए सूचना आवेदन को कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग के सचिव को जवाब देने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 की धारा 6(3)(ii) के तहत हस्तांतरित कर दिया है।धारा 6(3)(ii) के तहत हस्तांतरण का मतलब हुआ कि मेरा सवाल प्रधानमंत्री कार्यालय से ज्यादा कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग से संबंधित है।लोकपाल का गठन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन कमिटि द्वारा किया जाना है।इसलिए मेरा सवाल प्रधानमंत्री कार्यालय से ज्यादा जुड़ा है,ना कि कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग से।1 जनवरी 2014 को लोकपाल व लोकायुक्त अधिनियम,2013 को राष्ट्रपति का मंजूरी मिल जाने के बावजूद अभी तक लोकपाल का गठन नहीं हुआ है,इसलिए प्रधानमंत्री कार्यालय के पास मेरा सवाल का जवाब नहीं है,जिसके कारण सूचना का अधिकार कानून का दुरुपयोग कर आवेदन को कथित तौर पर ज्यादा संबंधित विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया।

एक मैं और एक अवनीश कुमार,सिर्फ दो लोग ने RTI आवेदन भेजा इसलिए ऐसा किया गया।यदि दो सौ लोग प्रधानमंत्री कार्यालय को आवेदन भेजे तो दो महीना में लोकपाल  का गठन हो जाए।



घूस नहीं देने का परिणाम


जिला अभिलेखागार, दरभंगा से चिरकुट दाखिल कर कोई न्यायिक या जमीन संबंधित दस्तावेज की छायाप्रति निकालने के लिए 500-1000 रुपये घूस देनी पड़ती है।एक व्यक्ति को खेसरा पंजी की जरुरत थी जिसके लिए मैंने RTI आवेदन भेजवाया।जवाब में बताया गया कि बिहार अभिलेख हस्तक,1960 का अध्याय 8 का नियम 273 से 279 के आलोक में सिर्फ चिरकुट दाखिल करने पर ही दस्तावेज प्रदान किया जा सकता है।लेकिन बिहार अभिलेख हस्तक,1960 और सूचना का अधिकार कानून में कहीं भी ये नहीं लिखा है कि अभिलेखागार का दस्तावेज सूचना का अधिकार कानून के दायरे में नहीं आता।हालांकि एक अन्य आवेदन के जवाब में अभिलेखागार के वरीय उप समाहर्ता ने खुद को लोक सूचना अधिकारी बताया है।इस अधिकारी को एक पत्र भेजकर सूचना देने कहा गया है जिसमें बताया गया है कि अभिलेखागार सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आता है।इस अधिकारी द्वारा फिर भी दस्तावेज प्रदान नहीं करने पर इनके विरुध्द प्रथम अपील दायर करना पड़ेगा।
जिला अभिलेखागार से रोजाना सैकड़ों लोग सैकड़ों रुपये घूस देकर दस्तावेज निकालते हैं।इन्हें लगता है कि RTI से दस्तावेज देने पर लोग चिरकुट दाखिल करना बंद कर देंगे।
एक बार वर्ष 2013 में अनुमंडलाधिकारी,दलसिंहसराय द्वारा सूचना का अधिकार के तहत दस्तावेज देने से मना करते हुए चिरकुट दाखिल कर दस्तावेज प्राप्त करने कहा गया।मैंने एक पत्र भेजकर कहा कि उन्हें सूचना का अधिकार के तहत दस्तावेज देना पड़ेगा जिसके बाद सूचना का अधिकार के तहत दस्तावेज दिया गया।
एक वकील ने एक व्यक्ति को कहा कि सूचना का अधिकार के तहत न्यायिक दस्तावेज प्रदान नहीं की जाती।मैंने उस व्यक्ति को सूचना का अधिकार का जानकारी दिया।लेकिन एक वकील द्वारा ये बोलना दिखाता है कि अभिलेखागार,सिविल कोर्ट का प्रतिलिपि विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों का कोर्ट ने अफवाह फैला दिया है कि उनके पास मौजूद दस्तावेज सूचना का अधिकार के दायरे में नहीं आता।

Tuesday, 16 December 2014

IPC का धारा 94 में बदलाव हो


आर्म्स एक्ट का दुरुपयोग

प्रायः देखा जाता है कि निचली अदालत द्वारा जिलाधिकारी के पूर्वानुमति के बगैर the Arms Act,1959 के किसी भी धारा के तहत दायर किए गए मुकदमा को खारिज कर दिया जाता है।लेकिन आर्म्स एक्ट का धारा 39 के तहत सिर्फ धारा 3 का उल्लंघन के विरुध्द किए गए अपराध(गैर- लाइसेंसी हथियार रखना) के लिए मुकदमा चलाने के लिए जिलाधिकारी की पूर्वानुमति की जरुरत है।आर्म्स एक्ट का धारा 27(1) धारा 5 का उल्लंघन करके किया गया अपराध है(मतलब गैर- लाइसेंसी हथियार से गोली चलाना) जिसके लिए जिलाधिकारी की पूर्वानुमति की जरुरत नहीं है।धारा 27(1) का एक केस को लेकर दरभंगा जिला के एक सबसे वरिष्ठ वकील से मेरी लंबी बातचीत हुई और पहले वे बोल रहे थे कि जिलाधिकारी की पूर्वानुमति की जरुरत इस धारा के लिए भी है लेकिन
Ajaya Mohanty and Ors vs State of Orissa में उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को दिखाने के बाद उन्हें यकीन हुआ कि जिलाधिकारी से पूर्वानुमति लेने की जरुरत नहीं है।परसो इनके द्वारा अंतिम बहस करते हुए जज को ये बोला गया कि जिलाधिकारी की पूर्वानुमति की जरुरत नहीं है,जिसपर जज ने सहमति जतायी।अब अभियुक्त आर्म्स एक्ट से बरी नहीं होगा।

.................
IPC का धारा 94 में बदलाव हो


एक सामाजिक कार्यकर्ता सीताराम ठाकुर को मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार का विरोध करने के कारण मुखिया सुनीता देवी द्वारा एक व्यक्ति रंजीत पासवान को केस का सूचक बनाकर मुखिया से रंगदारी व छेड़खानी करने के आरोप में फंसा दिया गया जिसे पुलिस अधिकारी ने ग्रामीणों के बयान के आधार पर झूठा करार दे दिया।अब रंजीत पासवान मुखिया पर झूठा फंसवाने का मुकदमा इस आधार पर करना चाहता है कि मुखिया ने प्रलोभन देकर उससे मुकदमा करवाया और सीताराम ठाकुर की भी इच्छा थी कि मुखिया पर ये मुकदमा हो जाए जिसके बारे में उन्होंने मुझसे राय मांगा।

IPC का धारा 94 के अनुसार जब मृत्यु का भय दिखाकर कोई कार्य(हत्या और मौत की सजा वाले राज्य के विरुध्द की जाने वाली अपराध को छोड़कर) किसी से करवाया जाता है वह व्यक्ति अपराध नहीं करता है।प्रलोभन लेकर कार्य करने वाले व्यक्ति अपराधी होते हैं और होना भी चाहिए, इसलिए मैंने कह दिया कि ये मुकदमा नहीं हो सकता और अब किया भी नहीं जाएगा।लेकिन कई बार किसी थर्ड पर्सन का गलत काम करने वाले व्यक्ति पर असहनीय दवाब व डर होता है और असहनीय दवाब व डर के कारण किया गया कोई कार्य अपराध नहीं होना चाहिए।
मरे हुए मजदूर और बाहर में रहने वाले मजदूर के नाम से मनरेगा के मजदूरी का फर्जी निष्कासन मुखिया ने किया है।100 दिन के जगह पर 111 दिन(यानि 11 दिन का फर्जी निष्कासन हुआ है) के मजदूरी का भुगतान हुआ है।मास्टर रोल पर मजदूर का अंगूठा का निशान/हस्ताक्षर सहित भुगतान व हाजिरी संबंधित कोई ब्यौरा नहीं है,इससे जाहिर होता है कि मजदूरी का फर्जी भुगतान होता है।मुखिया का भ्रष्टाचार के विरुध्द उन्हें मुकदमा करना चाहिए जो सलाह मैं उन्हें देते रहा हूँ।
एक मजदूर का मास्टर रोल  प्रस्तुत है-

Causing Band,Jam etc is Unconstitutional and Punishable


Causing Bihar Band,Bharat Band etc and thereby forcing to close the shops,institutes etc and causing traffic congestion,train congestion etc by mobbing is totally unconstituional,illegal and Punishable.
It appears pertinent to examine the right to protest provided by the Constitution Of India and the limitation of right to protest barred by the Definition Of Public Nuisanace provided under the Indian Penal Code,1860.
Article 19(1)(b) of the Constitution Of India provides right to protest and the same text of the Constitution is cited below:-
"19. Protection of certain rights regarding freedom of speech, etc.
(1) All citizens shall have the right-
(b) To assemble peaceably and without arms; "
Further,Article 19(3) of the Constitution of India confers special power to the state to impose reasonable restriction against the right to protest in order to secure the public order etc and the same text of the Constitution is cited below:-
"19 (3). Nothing in sub-clause (b) of the said clause shall affect the operation of any existing law in so far as it imposes, or prevent the State from making any law imposing, in the interests of the sovereignty and integrity of India or public order, reasonable restrictions on the exercise of the right conferred by the said sub-clause."
Section 268 of the Indian Penal Code,1860 defines Public Nuisance and the same text of the IPC is cited below:-
"Section 268. Public nuisance
A person is guilty of a public nuisance who does not act or is guilty of an illegal omission which causes any common injury, danger or annoyance to the public or to the people in general who dwell or occupy property in the vicinity, or which must necessarily cause injury, obstruction, danger or annoyance to persons who may have occasion to use any public right.
A common nuisance is not excused on the ground that it causes some convenience or advantage. "
It is evident from the text above that the right to protest is only confined to assemble peaceably and without arms.Firstly,there is need to criticize this Article with an observation that if a single person protests without being assembled,then it won't be the fundamental right of that single person under this article.The fundamental right will only apply when people assemble,meant when there is more than one people.Mobbing for closing shops etc and causing traffic congestion etc by mobbing is also obviously a type of assembling,as people gather to do so.But,that is against the public order and the state is empowered to make law against such protests and impose reasonable restriction under Article 19(3) of the Constitution. Unfortunately,state has not made any such law till now.The word peacefully itself reflects that causing closing,congestion etc is against public order and not a peaceful act but the State is sleeping still.
However,section 268 of the IPC is competent to prove such closing,congestion etc as an illegal act.It is evident that forceful closing,congestion etc cause injury, obstruction,danger or annoyance to persons who may have occasion to use any public right.Therefore,Causing Band,Jam etc is punishable under section 268 of the IPC.
I am of the Opinion that FIR must be lodged against the doer of such wrongful acts
.......................................................

Tuesday, 9 December 2014

Corrupt Railways Ministry Not Replying RTI

रेल मंत्रालय द्वारा रेल भाड़ा से संबंधित गड़बड़ी के विरुध्द RTI आवेदन का जवाब नहीं देने पर पुनः RTI आवेदन मैंने भेजा है।जुलाई में जो RTI आवेदन 
भेजी गई थी उसका ब्यौरा रेल मंत्रालय के वेबसाइट पर उपलब्ध है जिसका केस नं 44461 और केस खुलने की तारीख 28/7/2014 है और अभी भी रेल मंत्रालय में लंबित है।
रेल मंत्रालय ने जो नियम बनाया था उसके अनुसार 5 और 10 के गुणज में जो संख्या सन्निकट होगी वही रेल भाड़ा होगा।उदाहरणतः यदि बेस फेयर,सुपरफास्ट चार्ज और रिजर्वेशन चार्ज आदि मिलाकार 431 रुपये होता है तो भाड़ा 430 रुपये होना चाहिए,लेकिन 435 रुपये भाड़ा लिया जा रहा है।यदि बेस फेयर,सुपरफास्ट चार्ज और रिजर्वेशन चार्ज आदि मिलाकार 437 रुपये होता है तो भाड़ा 435 रुपये होना चाहिए,लेकिन 440 रुपये भाड़ा लिया जा रहा है।ये स्पष्ट है कि रेल मंत्रालय नियम के विरुध्द ज्यादा भाड़ा वसूल रही है,इसलिए मेरा सूचना आवेदन का जवाब नहीं दिया जा रहा है।
पुनः आवेदन भेजकर पूछा गया है कि 5 और 10 के गुणज के रुप में रेल भाड़ा निर्धारित करने का क्या नियम है और कैसे निर्धारित होता है।लागू किए गए नियम का अभिप्रमाणित छायाप्रति मांगा गया है।


................................

देश की एक शीर्ष कानून की वेबसाइट www.indiankanoon.org
पर केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा मेरा 5 विभिन्न शिकायतों को लेकर पारित 
किया गया 5 आदेश उपलब्ध है जिसे गूगल पर Rahul Kumar vs Ministry Of Human 
Resource &Development डालकर सर्च किया जा सकता है।इन 5 आदेश में सूचना
आयुक्त राजीव माथुर ने शिकायत पर खुद सुनवाई करने के बजाय सूचना देने के 
लिए शिकायत को संबंधित विभाग को भेज दिया था।बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने JK
MITTAL vs Central Information Commission में सुनवाई करते हुए दिनांक
28/10/2013 को आदेश दिया कि जब केन्द्रीय सूचना आयोग में सूचना का अधिकार
अधिनियम,2005 की धारा 18 के तहत सीधे शिकायत की जाती है तो आयोग के पास
शिकायत को संबंधित विभाग के पास भेजने का कोई शक्ति नहीं है बल्कि ऐसे
मामले में आयोग द्वारा अपने मेरिट के आधार पर फैसला देना चाहिए।इसके बाद
RTI केस लड़ने वाले अधिवक्ता व EXCISE AND CUSTOM BAR ASSOCIATION के
अध्यक्ष RK JAIN द्वारा मुझे एक पत्र भेजकर बताया गया कि आयोग मनमानी कर
रही है।Indian Kanoon इस देश की कानून की एक शीर्ष वेबसाइट है।मेरा 5 केस
में आयोग द्वारा मनमानी किया गया है,इसलिए Indian Kanoon ने इसे वेबसाइट
पर डालने का फैसला किया।

खानापूर्ति के बजाय कार्रवाई किया डीएम ने

खानापूर्ति के बजाय कार्रवाई किया डीएम ने
वृध्दावस्था,विकलांगता और विधवा पेंशन पंचायत मुख्यालय में वितरित करने का नियम होने के बावजूद मेरे पंचायत का प्रखंड मुख्यालय में वितरित किया जा रहा है।पंचायत से प्रखंड की दूरी लगभग 12 किमी हैं,इसलिए कई वृध्द और विकलांग इतना दूरी तय करने में अक्षम हैं।जो लाभार्थी पेंशन लेने नहीं जाते हैं,उनकी राशि गबन कर ली जाती है।पंचायत सचिव,बीडीओ आदि बोलते हैं कि पंचायत जाने में उन्हें असुरक्षा महसूस होता है।
दिनांक  4/12/2014  को  डीएम से मिलकर पूरे मामले की जानकारी मैंने उन्हें दिया।डीएम ने बीडीओ को पंचायत मुख्यालय में वितरण करवाने का आदेश दिया है।डीएम ने मुझे बोला है कि वे इस मामले को अपने स्तर से देखेंगे,इसलिए आवेदन अपने पास रख लिया।ज्यादातर मामले में ये लोग खानापूर्ति करते हैं और आवेदन को दूसरे पदाधिकारी को अग्रसारित कर देते हैं।हालांकि डीएम ने ये कहकर मामले को हल्का करने की कोशिश की थी कि मेरा पंचायत में बाढ़ के कारण कर्मचारी को नाव से जाना पड़ेगा।मैंने जवाब दिया कि बाढ़ मात्र चार महीना रहता है,अभी तो वाहन भी जा सकता है।
अगली बार इन पेंशनों का वितरण पंचायत मुख्यालय में नहीं होने पर डीएम को शिकायत करने पर उम्मीदतः ये संभव हो जाए।
जब मैंने कहा कि वृध्दों और विकलांगो को इतना दूरी तय करने में परेशानी होती है तो डीएम के साथ एडीएम ने भी कहा कि बिल्कुल सही बात है।जब मैंने कहा कि जो लाभार्थी पेंशन लेने नहीं जाते हैं उनका राशि गबन कर ली जाती है तो डीएम के साथ एडीएम ने भी कहा कि बिल्कुल सही बात है।डीएम ने कहा कि उन्होंने खुद सभी बीडीओ को पंचायत मुख्यालय में पेंशन वितरण करवाने का आदेश दिया था।इसलिए इस मामले में अपेक्षित कार्रवाई होने की ज्यादा संभावना है।


.......................
योजना आयोग को हटाने के पीछे की साजिश

सरकार योजना आयोग को इसलिए हटाना चाह रही है क्योंकि इसे हटाने से पूँजीपतियों और पूँजीवादी राष्ट्रों को फायदा होगा।जब योजना आयोग नहीं रहेगी तो योजना बनाने के बाद सरकार द्वारा की जाने वाली निवेश में काफी कमी आएगी।जब सरकार द्वारा की जाने वाली निवेश में कमी आएगी तो पूँजीपतियों द्वारा की जाने वाली निवेश बढ़ेगी।किसी भी समाजवादी या मिश्रित अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी,गरीबी व आधारभूत संरचनाओं के अभाव के कारण सरकार द्वारा एक योजना बनाकर निवेश करने की जरुरत होती है लेकिन पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में लोगों की आर्थिक हालात मजबूत होने के कारण सरकार द्वारा ऐसी योजना बनाने के बजाय पूँजीपतियों को निवेश करने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है।भारत सरकार भी भारत को मिश्रित अर्थव्यवस्था से पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में बदलने की साजिश रच रही है।यदि योजना आयोग में खामियाँ है तो उस खामियाँ को दूर करना चाहिए ना कि उसे हटा देना चाहिए।प्रधानमंत्री योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष होने के बावजूद खामियाँ को दूर नहीं करना चाहते हैं,इससे जाहिर होता है कि पूँजीपतियों को फायदा पहुँचाने की चाल चल रहे हैं।
योजना आयोग की तरह ही उस प्रवृति का दूसरा आयोग आदर्श रुप में योजना आयोग के जगह पर गठित करने के बारे में कहने भर से ही वैसा आयोग नहीं हो सकता।जो नए प्रस्तावित आयोग का गठन होगी,उसकी कार्यप्रणाली निश्चित रुप से ऐसी होगी जो पूँजीपतियों को फायदा पहुँचाएगी।अन्यथा आदर्श रुप में योजना आयोग के जगह नए आयोग को गठित करने के बजाय योजना आयोग में ही सुधार लाकर इसे आदर्श बना दिया जाता।

ये कोई पूर्वाग्रह नहीं है बल्कि तार्किक परिकल्पना है।आप जिस आदर्श प्रारुप में एक नए आयोग के गठन का समर्थन कर रहे हैं,उसके जगह पर योजना आयोग को भी आदर्श बनाया जा सकता है।लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है क्यों?नए आयोग का गठन करने में ज्यादा खर्च भी आएगी और विलंब के कारण कार्य भी बाधित है,फिर योजना आयोग को ही आदर्श क्यों नहीं बनाया जाता?

...................................
NO DAMAGE,NO CHEATING
It has been raised question that the Social Activists an IPS Amitabh Thakur and his wife an advocate Nutan Thakur talked to a health department toll free number by changing their name in order to enquire into the malfunctioning of the service.It has been alleged that the same act is cheating by personation u/s 419 of the IPC.
Section 415 of the IPC defines cheating wherein deceiving fraudulently or dishonestly causing damage or harm in body,mind,reputation and property has been called cheating.
Further,the Supreme Court observed in
Dr Vimla VS Delhi Administration[AIR 1963 SC 1572] and Dr. S.Dutt VS State of Uttar Pradesh [1966 AIR 523, 1966 SCR(1) 493] that fraud is committed only when there is wrong advantage to the cheater or wrong disadvantage to the person who is cheated.
In this present case,there is neither legal damage or harm to any person of health department ,nor illegal advantage to Amitabh Thakur and Nutan Thakur.So,this present case is not of cheating by personation.

..............................
My opinions on the IPL Spot fixing:

1.IPL must be banned.Auction amounts to forced labour violating human dignity of a player.Auction process is unconstitutional as it conflicts Article 21 and 23 of the constitution.Supreme Court must declare Auction Process unconstitutional.
2.Offence is only offence.Supreme Court is not disclosing the name of players who have been suspected in Mudgal Committee's report.This act of court is unfair.
3.Srinivasan would also be involved in the Spot Fixing because it is easy to visualise that if Meiyappan was involved,he would be well aware of the fact but not taking any action by Srinivasan proves that he was involved.Mudgal Committee became fail to prove this fact.
4.Dhoni would also be involved in the Spot Fixing.Statement of an IPS Sampath Kumar and Vindu Dara Singh states such.Sakshi Dhoni was seen with Vindu Dara Singh and Sakshi Jhala(A girl friend of Sreesanth) in the stadium and it makes doubt reasonable.Sakshi Dhoni had gone to home of Sreeshant after his arrest.

Wednesday, 3 December 2014

कथित वीरांगना केस:मीडिया और सरकार ट्रायल का ज्वलंत उदाहरण

किसी भी केस में सरकार,सरकारी संस्था और मीडिया को अपना निर्णय नहीं सुनाना चाहिए।हरियाणा की दो लड़कियों ने छेड़खानी किए जाने के कारण ही पिटाई किया,ये अभी साबित भी नहीं हुआ है और मीडिया ने लड़कियों के बयान के आधार पर ही उसे बहादुर बना दिया और राज्य सरकार ने वीरता पुरस्कार देने की घोषणा कर दी।सेना में चयन होने के बावजूद दो अभियुक्त लड़के को नौकरी नहीं देने की घोषणा सेना द्वारा कर दी गई।जब तक कोर्ट द्वारा मामला में सजा नहीं सुना दिया जाता,तब तक ना ही लड़की बहादुर है और ना ही लड़का अपराधी है।इसलिए महज आरोप के आधार पर लड़की को वीरता पुरस्कार देना और लड़का का नौकरी खा जाना गैर-कानूनी और असंवैधानिक है।
इन लड़कियों की एक और वीडियो सामने आयी है जिसमें एक लड़के को पीटते दिखाया गया है जिसे उसके चचेरे भाई ने शूट किया है।दोनों केस में पिटाई का वीडियो शूट किया गया है इससे जाहिर होता है कि इन लड़कियों द्वारा कांड को छेड़खानी का रुप देकर पब्लिसिटी के लिए वीडियो शूट करवाया जाता है।क्योंकि थर्ड पर्सन द्वारा सिर्फ पीटने का ही वीडियो क्यों शूट किया जाता?यदि छेड़खानी होता है तो छेड़खानी का वीडियो क्यों नही शूट किया जाता ताकि ये मजबूत सबूत बने?
बस में सवार यात्रियों ने इन दो लड़कियों के विरुध्द बयान देना प्रारंभ कर दिया है।इन दो लड़कियों की गाँव की महिलाएँ जो बस में सवार थी ,उन्होंने भी लड़कियों के विरुध्द बयान दी है कि सीट विवाद के कारण लड़कियों द्वारा जबरन पीटा गया जिसका वीडियो लड़कियों द्वारा ही बनवाया गया।
जितने तथ्य सामने आ रहे हैं,उसके आधार पर कोर्ट में मामला झूठा साबित हो जाना चाहिए।लेकिन अब ऐसा होना संभव नहीं दिखता।क्योंकि सरकार द्वारा लड़की को वीरता पुरस्कार दिया जा रहा है।इसलिए जांच अधिकारी पर इन दो कथित वीरांगना के पक्ष में मामला को सत्य करार देकर आरोप-पत्र समर्पित करने का दवाब रहेगी और कोर्ट पर भी आरोप को सत्य करार देकर सजा देने का दवाब रहेगी।इस प्रकार सरकार ने जांच रिपोर्ट भी फिक्स कर दिया और कोर्ट का फैसला भी फिक्स कर दिया।सरकार को वीरांगना घोषित करके अपना निर्णय सुनाने के बजाय कांड का स्पीडी जांच और स्पीडी ट्रायल सुनिश्चित करवाना चाहिए था और कोर्ट द्वारा मामला को सही करार दिए जाने के बाद ही इन लड़कियों को वीरांगना घोषित करना चाहिए था।तब तक मीडिया को भी चुप रहना चाहिए था।


.......................

Sometimes,Media becomes unable to understand the application of Judgement of courts.Yesterday,the Supreme Court in the matter of State of M.P & ORS vs Parvez Khan didn't rule that even acquittal or discharge of accused in all circumstances will make an accused ineligible for Police Jobs.The court has only held that if an accused is acquitted on want of evidence or benefit of doubt or discharged on compounding,then he will be ineligible for Police Jobs.It is well settled principle that a person acquitted on want of evidence or benefit of doubt or discharged on compounding is not assumed to be innocent. In such circumstances,the facts remain unproved.If a person proves himself innocent by disproving the allegations,then he will be eligible for Police Jobs.
However,many persons are implicated falsely and they are also acquitted on want of evidence or benefit of doubt or discharged on compounding,but now these innocent persons will also be ineligible for Police Jobs,so this judgement can't be welcomed.

IDEAS TO REFORM POLICING


               IDEAS  TO REFORM POLICING

Making some amendments in the Indian Penal Code, 1860,the Indian Evidence Act,1872 and the Code Of Criminal Procedure ,1973 shall be a great revolutionary path in the Police Reforms.

1. Amendments In the Indian Penal Code,1860

As we know that there is separate section  in the IPC for the Dowery Death (Section 304B ),Causing grievous hurt by acid Attack (Section 326A) ,throwing or attempting to throw acids with intent to cause grievous hurt (Section 326B) etc,but there is no separate section in the IPC for punishing Corrupt Police Officers.

Fake Encounter committed by police shall be punishable with death under a newly inserted  section namely section 302A of the IPC. Similarly, death in police custody due to use of third degree (torturing ) or otherwise torturing by police even without being in custody against a person shall be punishable with death under section 302B of the IPC.


Under section 163 of the CrPC  (the Code Of Criminal Procedure,1973) ,it is directed by the law to police to not offer to any person  inducement, threat or promise in the course of any investigation. Section 24 of the Indian Evidence Act,1872  provides that a confessional statement given by the Accused under  inducement, threat or promise shall not be admissible as evidence. Article 20 (3) of the Indian Constitution provides that  No person accused of any offence shall be compelled to be a witness against himself. So,it is evident that compelling or threatening even an accused person  to make a statement is illegal and unconstitutional. Therefore, separate section  in the IPC shall be inserted against the torture done by police.

Section 323A of the IPC shall be inserted against Voluntarily causing hurt by police which shall be punishable for three years, section 324A of the IPC shall be  inserted against Voluntarily causing hurt by dangerous weapons or means by police which shall be punishable for seven  years, section 325A of the  IPC shall be inserted against Voluntarily causing grievous  hurt by police which shall be punishable for ten  years and section 326C of the IPC shall be inserted against Voluntarily causing grievous  hurt by dangerous weapons or means  by police which shall be punishable for life time imprisonment. Voluntarily causing hurt by police  under  a newly inserted section 321A of the IPC and Voluntarily causing grievous  hurt by police under  a newly inserted section 322A of the IPC  shall consist within its definition  that acts of hurt and grievous hurt caused  in police custody or otherwise like hurt or grievous hurt caused in the course of arresting a person, taking that person to the police station or court, causing hurt or grievous  hurt by police against any person  after reaching at the spot  or in the course of investigation etc.

There is no provision of punishment against illegal arrest done by the police. Such illegal arrest shall deemed to be wrongful confinement and accordingly the police officers   shall be punished after inserting a new section namely 344A of the IPC  and the day of punishment shall be equal to the day of illegal arrest of a person. For the example, If a person remains in police/judicial custody for 20 days due to illegal arrest, then the police officers  shall also be jailed for 20 days. Arrest without evidence shall also deemed to be illegal arrest because section 41A of the CrPC provides that a person having no sufficient evidence against him should not be arrested but should be released  after executing notice to him.


A person detained without warrant should  be produced before the court within 24 hours  under section 57 of the CrPC  or a person arrested after warrant should be produced before the court within 24 hours under section 76 of the CrPC,but there is no provision of punishment in failure of the compliance of these provisions. So, in failure to comply these provisions, there shall be punishment after inserting a new section namely 166C of the IPC and concerned police officer  shall be punished for 1 year.


Sometimes police officers  don't  register complain in the required sections with an intent to reduce the quantum of punishment  and sometimes police officers register complain in such sections which are not required as per  alleged offences  but these sections are charged   deliberately to increase  the quantum of punishment. So, section 166D  of the IPC shall be  inserted to punish in such cases and they  shall be punished for  1 year. 


If a person is implicated falsely by the police officers or any public servant, or he is implicated with the help of police officers or any public servant, then there is no special section for punishing such corrupt police officers or public servants. So, section  182A of the IPC  shall be inserted to punish such officers  and they  shall be punished for seven years .

2.Some Amendments in the Code Of Criminal Procedure,1973 along with Amendments in the Indian Penal Code,1860

Section 129 of the CrPC provides  power to Executive Magistrate or officer in charge of a police station to disperse such unlawful assembly   by use of civil force  which can cause a disturbance of the public peace. But the meaning of the Civil Force is not defined in the CrPC. However,   in view of section 130(3) of the CrPC, it can be analysed that a  little force  causing a little injury is civil force. In section 129 of the CrPC, sub-section 3 shall be inserted and civil force shall be defined. Then whoever being  an executive magistrate or police officer  shall use force beyond  the definition of civil force shall be punished  either under section 323A,324A,325A ,326C,304  and 302 of the IPC as per the quantum of force applied by the officers and intention reflected.

Death  due to police firing shall also be deemed to fake encounter if it is proved that  the right of private defence of the body extends to causing death  as specified in section 100 of the IPC is not applied to cause death  of a person due to clash occurred  between police and public. In such circumstances, when there is the death of a person  due to police firing and  the right of private defence of the body extends to causing death  as specified in section 100 of the IPC is not applied to cause death  of a person, then  officers  shall be punished  with death under section 302A of the IPC for causing death in fake encounter.


3.Amendment in the Indian Evidence Act,1872

In all above offences that shall be inserted after insertion of new sections of the IPC,the burden of proof shall lie on the  victim person to prove  that he has been victim of above offences or any of above offences or shall lie on the eyewitness to prove or shall lie on the informant   to  prove. Accordingly, a new section  103A of the Indian Evidence Act,1872 shall be inserted  to make this law functional. However, the burden of prove shall already lie on the person who is alleging something as per the present provisions  in  the Indian Evidence Act,1872  but if there is the  above allegations against police ,then the allegation is dismissed merely on the proof presented by  police  that he has  not committed  that offence. So, there is need to insert this section.


4.Enacting a special act  for instituting   CCTV Camera

A new act shall be passed to institute CCTV Camera in all public place and govt and private office. Each place of the police station and chamber of police officers shall also be covered under CCTV Camera having availability of voice recording in the Camera. Whoever will contravene the provision of instituting CCTV Camera after allotment of fund by the Govt in this regard, then he shall be punished under this act for six months if  Camera has not been instituted due to negligence and he shall be punished under section 13 of the prevention of Corruption Act,1988 if the fund provided for the CCTV Camera has been chewed up.


5.All above offences  shall   be cognizable, non-bailable , non-compoundable and triable by the court of session.


6.No previous sanction of the State or Central Govt, as the case may be, shall be required under section 197 of the CrPC  for taking cognizable by the court  in case of a public servant accused of any offence alleged to have been committed under above newly inserted  sections and act. 

All  Such  amendments need to be brought if we want to remove the fear of police from the mind of the people and if we want to make every person competent to access to the legal proceedings.
All  Such  amendments are a proposed draft prepared by me but it is not possible in the present circumstances of the country to pass this draft and make an act. It  will require a revolution. Let’s start a revolution since now.

(Views expressed are the personal views  of the Author)

Rahul Kumar
Class-Deg-II (Economics)
Roll No-23
CM College, Darbhanga
Mob-07759071885 and 07654528780



A CONCEPT OF FIXED-PROFIT ECONOMY



Providing many private facilities in Indian Market (almost in all countries ) is out of the principle of Economics and law of market. If we take Private school for the example, they are neither following the law of  market,  nor following the principle of any kind of economy, even not following the principle of a capitalist economy. What kind of  market it is? It is not Monopoly, Monopolistic, Oligopoly or Perfect Competition. It is merely  a traditional concept but not a universal law of demand and supply as it is presented by the economists  that   there is higher demand for schools  and lower supply of schools, so the price (fee of private schools) should be higher because there is one more view of determining price in the market and the price is determined also on the type of market. Along with large number of demand (large number of students),now a large number of suppliers (Private Schools) are also available in the market. Private Schools are available in each lane of the town and that is the large number of suppliers, so there must have been condition like perfect competition in the market and amongst the suppliers- amongst the private schools and thus price (fee)should have been less due to condition existing like  perfect competition. Even possessing the nature like a  perfect competition market, the market is not like perfect competition and  market (schools) is determining fee arbitrarily on its own desire, as if there is monopoly. Each Private school is determining its own fee arbitrarily and establishing its own monopoly. In Monopoly market, there is single supplier ,so price is determined arbitrarily but even being large number of suppliers, large number of private schools, price (fee) is determined arbitrarily by the these schools, as if even being in large number- possessing the nature like perfect competition, they have established its own monopoly due to lack of law and order. Same condition is applicable for private coaching centre, private nursing home, private bus, room rent etc.

An act must be passed for the removal of all arbitrary within private services.
Now question arises, how we can get rid of  from the Arbitrary of the Private Sectors.
I have drawn a  Concept of fixed-profit economy for this purpose and the concept is hereunder:-


Features Of the Concept of fixed-profit economy

The percentage of profit that will be taken against the cost incurred in providing private  facilities  (cost of production/cost of service provided ) shall be fixed. The price of any product/facility shall only  be  20% (or the appropriate percentage as fixed after proper calculation)  more than the ultimate cost of production and expenditure incurred in travelling and indirect  tax imposed  etc. Provided that the indirect  tax shall not be  in total more than 20 %  (or the appropriate percentage as fixed after proper calculation)  of the initial  cost of production of a product in any circumstances.

For the example, if after expenditure of all cost  including  payment to teachers, investment on infrastructure, a private school will get benefit of  20 % against the expenditure incurred  if the school fee is Rs 300 per month ,then the present school fee of Rs 700 of that school shall be reduced to Rs 300 per month.
For the example, if initial Cost of Production of a  medicine is Rs 15 and the MRP is written Rs 70.Then if  the company will get benefit of 20 %,then it's cost will be Rs 18,then further distributor will gain the profit of 20 %,then it's cost will be Rs 21.6 ,then further whole seller will gain the profit of 20% and it's cost will be  around Rs 26 and then retailer will further  gain the benefit of 20 % and it's cost will be around Rs 31.In due course,the cost of travelling may  be Rs 5 for each product and indirect tax imposed will be Rs 3 (20 % of the initial cost of production i.e.Rs 15).Meant, the  medicine that is being sold at Rs 70 will be sold at Rs 39.Meant,the ultimate cost will be around Rs 39   and the price of product will be equal to the ultimate cost of the product.
For  the example, if a nursing home will get benefit of 20%  at Rs 200 as admission fee after making payment to  staffs and  furnishing cost  incurred in instruments, infrastructure etc ,then  the present admission fee of Rs 500 will be reduced to Rs 200.                                                

The ultimate cost incurred in providing room is the cost of water,electricity,any staff if employed etc.The rent of room shall not be more than 20% of the total and ultimate cost incurred in providing room facility.
The ultimate cost incurred in providing bus is the cost of fuel, driver, conductor etc and the fare of bus shall  not be more than 20% of the total and ultimate cost incurred in providing bus facility.


The 20%   of benefit is not a particular theorem, but it can be changed as per the appropriate calculation and as per the circumstances. But the matter is that the benefit of each product, each economic activity and at each level should be fixed. I  would like to say that fixation of profit should not be more than above percentage in any circumstances and if it will be less, then it is better.


Lastly, i  propose   a new theory  that in a govt controlled as well as an honest economy, the Ultimate cost of a product including 20% (or the appropriate percentage as fixed after proper calculation) of the profit ,  indirect tax etc  will be equal to the price of a product or price of a service provided.

(Views expressed are the personal views  of the Author)

Rahul Kumar
Class-Deg-II (Economics)
Roll No-23
CM College, Darbhanga
Mob-07759071885 and 07654528780