Wednesday, 3 December 2014

कथित वीरांगना केस:मीडिया और सरकार ट्रायल का ज्वलंत उदाहरण

किसी भी केस में सरकार,सरकारी संस्था और मीडिया को अपना निर्णय नहीं सुनाना चाहिए।हरियाणा की दो लड़कियों ने छेड़खानी किए जाने के कारण ही पिटाई किया,ये अभी साबित भी नहीं हुआ है और मीडिया ने लड़कियों के बयान के आधार पर ही उसे बहादुर बना दिया और राज्य सरकार ने वीरता पुरस्कार देने की घोषणा कर दी।सेना में चयन होने के बावजूद दो अभियुक्त लड़के को नौकरी नहीं देने की घोषणा सेना द्वारा कर दी गई।जब तक कोर्ट द्वारा मामला में सजा नहीं सुना दिया जाता,तब तक ना ही लड़की बहादुर है और ना ही लड़का अपराधी है।इसलिए महज आरोप के आधार पर लड़की को वीरता पुरस्कार देना और लड़का का नौकरी खा जाना गैर-कानूनी और असंवैधानिक है।
इन लड़कियों की एक और वीडियो सामने आयी है जिसमें एक लड़के को पीटते दिखाया गया है जिसे उसके चचेरे भाई ने शूट किया है।दोनों केस में पिटाई का वीडियो शूट किया गया है इससे जाहिर होता है कि इन लड़कियों द्वारा कांड को छेड़खानी का रुप देकर पब्लिसिटी के लिए वीडियो शूट करवाया जाता है।क्योंकि थर्ड पर्सन द्वारा सिर्फ पीटने का ही वीडियो क्यों शूट किया जाता?यदि छेड़खानी होता है तो छेड़खानी का वीडियो क्यों नही शूट किया जाता ताकि ये मजबूत सबूत बने?
बस में सवार यात्रियों ने इन दो लड़कियों के विरुध्द बयान देना प्रारंभ कर दिया है।इन दो लड़कियों की गाँव की महिलाएँ जो बस में सवार थी ,उन्होंने भी लड़कियों के विरुध्द बयान दी है कि सीट विवाद के कारण लड़कियों द्वारा जबरन पीटा गया जिसका वीडियो लड़कियों द्वारा ही बनवाया गया।
जितने तथ्य सामने आ रहे हैं,उसके आधार पर कोर्ट में मामला झूठा साबित हो जाना चाहिए।लेकिन अब ऐसा होना संभव नहीं दिखता।क्योंकि सरकार द्वारा लड़की को वीरता पुरस्कार दिया जा रहा है।इसलिए जांच अधिकारी पर इन दो कथित वीरांगना के पक्ष में मामला को सत्य करार देकर आरोप-पत्र समर्पित करने का दवाब रहेगी और कोर्ट पर भी आरोप को सत्य करार देकर सजा देने का दवाब रहेगी।इस प्रकार सरकार ने जांच रिपोर्ट भी फिक्स कर दिया और कोर्ट का फैसला भी फिक्स कर दिया।सरकार को वीरांगना घोषित करके अपना निर्णय सुनाने के बजाय कांड का स्पीडी जांच और स्पीडी ट्रायल सुनिश्चित करवाना चाहिए था और कोर्ट द्वारा मामला को सही करार दिए जाने के बाद ही इन लड़कियों को वीरांगना घोषित करना चाहिए था।तब तक मीडिया को भी चुप रहना चाहिए था।


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Sometimes,Media becomes unable to understand the application of Judgement of courts.Yesterday,the Supreme Court in the matter of State of M.P & ORS vs Parvez Khan didn't rule that even acquittal or discharge of accused in all circumstances will make an accused ineligible for Police Jobs.The court has only held that if an accused is acquitted on want of evidence or benefit of doubt or discharged on compounding,then he will be ineligible for Police Jobs.It is well settled principle that a person acquitted on want of evidence or benefit of doubt or discharged on compounding is not assumed to be innocent. In such circumstances,the facts remain unproved.If a person proves himself innocent by disproving the allegations,then he will be eligible for Police Jobs.
However,many persons are implicated falsely and they are also acquitted on want of evidence or benefit of doubt or discharged on compounding,but now these innocent persons will also be ineligible for Police Jobs,so this judgement can't be welcomed.

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