Tuesday, 16 December 2014

IPC का धारा 94 में बदलाव हो


आर्म्स एक्ट का दुरुपयोग

प्रायः देखा जाता है कि निचली अदालत द्वारा जिलाधिकारी के पूर्वानुमति के बगैर the Arms Act,1959 के किसी भी धारा के तहत दायर किए गए मुकदमा को खारिज कर दिया जाता है।लेकिन आर्म्स एक्ट का धारा 39 के तहत सिर्फ धारा 3 का उल्लंघन के विरुध्द किए गए अपराध(गैर- लाइसेंसी हथियार रखना) के लिए मुकदमा चलाने के लिए जिलाधिकारी की पूर्वानुमति की जरुरत है।आर्म्स एक्ट का धारा 27(1) धारा 5 का उल्लंघन करके किया गया अपराध है(मतलब गैर- लाइसेंसी हथियार से गोली चलाना) जिसके लिए जिलाधिकारी की पूर्वानुमति की जरुरत नहीं है।धारा 27(1) का एक केस को लेकर दरभंगा जिला के एक सबसे वरिष्ठ वकील से मेरी लंबी बातचीत हुई और पहले वे बोल रहे थे कि जिलाधिकारी की पूर्वानुमति की जरुरत इस धारा के लिए भी है लेकिन
Ajaya Mohanty and Ors vs State of Orissa में उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को दिखाने के बाद उन्हें यकीन हुआ कि जिलाधिकारी से पूर्वानुमति लेने की जरुरत नहीं है।परसो इनके द्वारा अंतिम बहस करते हुए जज को ये बोला गया कि जिलाधिकारी की पूर्वानुमति की जरुरत नहीं है,जिसपर जज ने सहमति जतायी।अब अभियुक्त आर्म्स एक्ट से बरी नहीं होगा।

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IPC का धारा 94 में बदलाव हो


एक सामाजिक कार्यकर्ता सीताराम ठाकुर को मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार का विरोध करने के कारण मुखिया सुनीता देवी द्वारा एक व्यक्ति रंजीत पासवान को केस का सूचक बनाकर मुखिया से रंगदारी व छेड़खानी करने के आरोप में फंसा दिया गया जिसे पुलिस अधिकारी ने ग्रामीणों के बयान के आधार पर झूठा करार दे दिया।अब रंजीत पासवान मुखिया पर झूठा फंसवाने का मुकदमा इस आधार पर करना चाहता है कि मुखिया ने प्रलोभन देकर उससे मुकदमा करवाया और सीताराम ठाकुर की भी इच्छा थी कि मुखिया पर ये मुकदमा हो जाए जिसके बारे में उन्होंने मुझसे राय मांगा।

IPC का धारा 94 के अनुसार जब मृत्यु का भय दिखाकर कोई कार्य(हत्या और मौत की सजा वाले राज्य के विरुध्द की जाने वाली अपराध को छोड़कर) किसी से करवाया जाता है वह व्यक्ति अपराध नहीं करता है।प्रलोभन लेकर कार्य करने वाले व्यक्ति अपराधी होते हैं और होना भी चाहिए, इसलिए मैंने कह दिया कि ये मुकदमा नहीं हो सकता और अब किया भी नहीं जाएगा।लेकिन कई बार किसी थर्ड पर्सन का गलत काम करने वाले व्यक्ति पर असहनीय दवाब व डर होता है और असहनीय दवाब व डर के कारण किया गया कोई कार्य अपराध नहीं होना चाहिए।
मरे हुए मजदूर और बाहर में रहने वाले मजदूर के नाम से मनरेगा के मजदूरी का फर्जी निष्कासन मुखिया ने किया है।100 दिन के जगह पर 111 दिन(यानि 11 दिन का फर्जी निष्कासन हुआ है) के मजदूरी का भुगतान हुआ है।मास्टर रोल पर मजदूर का अंगूठा का निशान/हस्ताक्षर सहित भुगतान व हाजिरी संबंधित कोई ब्यौरा नहीं है,इससे जाहिर होता है कि मजदूरी का फर्जी भुगतान होता है।मुखिया का भ्रष्टाचार के विरुध्द उन्हें मुकदमा करना चाहिए जो सलाह मैं उन्हें देते रहा हूँ।
एक मजदूर का मास्टर रोल  प्रस्तुत है-

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