Tuesday, 3 February 2015

काला धन धारियों का सूची प्रदान करना सूचना का अधिकार के दायरे में



श्री ब्रजभूषण दूबे जी,जिला पंचायत सदस्य,गाजीपुर को प्रधानमंत्री कार्यालय काला धन के आरोपियों का सूची सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 के तहत नहीं देना चाह रही है।
सूचना का अधिकार कानून की धारा 8(1)(क) के तहत ऐसी सूचना प्रदान नहीं किया जा सकता जो विदेशी राज्य से संबंध को प्रतिकूल रुप से प्रभावित करेगा।धारा 8(1)(च) के तहत ऐसी सूचना प्रदान नहीं किया जा सकता जो विदेशी सरकार से गोपनीय में प्राप्त हुई हो।
जाहिर है कि काला धन धारियों का सूची विदेशी सरकार से गोपनीय में प्राप्त हुई है और इसका सूची प्रदान करना विदेशी राज्य से संबंध को प्रतिकूल रुप से प्रभावित कर सकती है।
लेकिन धारा 8(2) में प्रावधान किया गया है कि धारा 8(1) के तहत जिस सूचना को प्रदान नहीं किया जा सकता है,उस सूचना को भी लोक सूचना अधिकारी द्वारा प्रदान किया जा सकेगा यदि जनहित सूचना प्रदान करने से होने वाली हानि से अधिक हो।
ज्ञात है कि काला धन धारियों का सूची प्रदान करने से जनहित हानि से ज्यादा है।अतः सूची प्रदान किया जाना चाहिए।इस मामले को केन्द्रीय सूचना आयोग और न्यायालय ले जाया जा सकता है।

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RTI ACT,2005 की गंभीर त्रुटियाँ
1.RTI ACT की धारा 8(1) में दस ऐसे कारण बताए गए हैं,जिसकी सूचना प्रदान नहीं की जाएगी।लेकिन धारा 8(2) में प्रावधान किया गया है कि यदि लोक सूचना अधिकारी संतुष्ट है कि सूचना प्रदान करने से होने वाली हानि से ज्यादा जनहित है तो सूचना प्रदान किया जा सकेगा।लोक सूचना अधिकारी को कभी भी जनहित नहीं दिखेगी,इसलिए ये निर्णय लेने के लिए कि जनहित ज्यादा है या हानि,लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदन को सूचना आयोग को संदर्भित करने का प्रावधान होना चाहिए।
2.प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के पास लोक सूचना अधिकारी के विरुध्द Penalty लगाने के लिए सिफारिश करने का शक्ति नहीं है।धारा 20 के तहत सिर्फ सूचना आयोग के पास ये शक्ति है।सिर्फ सरकार से सिफारिश करने का है,लगाने का नहीं।
3.धारा 6(3) के प्रावधान के अनुरुप आवेदन को पाँच दिन के भीतर हस्तांतरित नहीं करने,गैर-संबंधित/कम संबंधित विभाग को हस्तांतरित कर देने,हस्तांतरण के बजाय निष्तारित कर देने को धारा 7(2) के तहत सूचना देने से मना करना नहीं माना गया है,जिसके कारण ऐसी स्थिति में लोक सूचना अधिकारी के विरुध्द अपील/शिकायत करने पर उसपर कार्रवाई होना मुश्किल है।

आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है।

कुछ सरकारी विभाग ने सरकारी सेवा प्रदान करने के लिए आधार कार्ड का जबरन अनिवार्यता कर दिया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने UIDAI VS CBI,SLP(Crl) No.2524/2014 में 24 मार्च 2014 को आदेश दिया है कि आधार कार्ड की अनिवार्यता नहीं होगी।DBT योजना के तहत सीधे बैंक खाते में मिलने वाली LPG सब्सिडी के लिए भी आधार कार्ड की अनिवार्यता नहीं होगी जिसकी घोषणा सरकार ने 15 दिसंबर 2014 को लोकसभा में किया।जानकारी मिली है कि विवाह निबंधक के कार्यालय के कंम्प्यूटर में आधार नंबर डालना अनिवार्य कर दिया गया है जिसके बिना विवाह प्रमाण-पत्र जारी होती ही नहीं है।एक ऐसा ही मामला Indra Singh vs Gnctd,File No CIC/SS/A/2014/000518 पर सुनवाई 8 मार्च 2014 को केन्द्रीय सूचना आयोग में हुई जिसमें बिना आधार नं के जाति प्रमाण-पत्र के लिए जमा किए गए आवेदन को कंम्प्यूटर द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया।आयोग ने इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अवहेलना मानते हुए संबंधित विभाग के प्रधान को नोटिस जारी किया।
आयोग ने ये भी कहा कि सूचना का अधिकार कानून,2005 की धारा 4(1)(c) के तहत किसी विभाग द्वारा नया नियम बनाने से पहले उस नियम को सार्वजनिक रुप से प्रकाशित किया जाना चाहिए और धारा 4(1)(d) के तहत उस नियम को बनाने का कारण सार्वजनिक किया जाना चाहिए।इस केस में सार्वजनिक रुप से ये नहीं बताया गया कि जाति प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन पत्र पर आधार नं डालना अनिवार्य है और इस नियम को बनाने का कारण नहीं बताया गया।आयोग ने इसे सूचना का अधिकार कानून का अवहेलना मानकर लोक सूचना अधिकारी के विरुध्द कार्रवाई का सिफारिश किया है।
सभी मित्रों से आग्रह है कि किसी सरकारी सेवा में उनसे आधार नं अनिवार्य बताकर मांगा जाता है तो सूचना का अधिकार के तहत निम्न सवाल पूछे-
i.सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अवहेलना करते हुए आधार कार्ड को अनिवार्य किस आधार पर बनाया गया है?
ii.आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने से पहले इस नियम को सार्वजनिक रुप से प्रकाशित नहीं करने का क्या कारण है?
iii.इस नियम को बनाने का कारण सार्वजनिक क्यों नहीं किया?
कुछ विभाग आधार कार्ड को जबरन अनिवार्य बनाकर जनता को परेशान कर रही है।लोक सेवक आधार कार्ड की अनिवार्यता का बहाना बनाकर घूस लेकर काम करना चाहते हैं और इसे कम काम करने का युक्ति बना लिया है।

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भ्रष्टाचार के किसी खास मामले में आरटीआई आवेदन दायर करने के लिए  किसी व्यक्ति को उसकी मानसिकता का जांच किए बगैर मैं कानूनी सहयोग नहीं करुँगा।किसी व्यक्ति विशेष के मानवाधिकार हनन से जुड़े मामले में ही आरटीआई आवेदन दायर करने में बगैर मानसिकता जांचे सहयोग करुँगा।कुछ लोग अपने गलत स्वार्थ के लिए आरटीआई आवेदन का प्रयोग कर रहे हैं।उदाहरणतः एक प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को एक आरटीआई आवेदन एक व्यक्ति द्वारा मेरा सहयोग से भेजी गई।प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी द्वारा 5 महीना गुजर जाने के बावजूद सूचना नहीं देने पर जिला शिक्षा पदाधिकारी के समक्ष प्रथम अपील दायर की गई।जिला शिक्षा पदाधिकारी ने प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को सूचना देने का आदेश देने के साथ सूचना देने में विलंब करने के कारण प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी से स्पष्टीकरण भी मांगा है।लेकिन आवेदक सूचना लेने के बजाय मैनेज करने के फिराक में है।
इस तरह के लोग भी पैदा हो गए हैं जो भ्रष्टाचार की आड़ में अपने गलत स्वार्थ के खातिर आरटीआई एक्ट का प्रयोग करते हैं और भ्रष्टाचार का बहाना बनाकर सारा कानूनी सहयोग ले लेते हैं।इसलिए अब मैं मानसिकता जांचने के बाद ही सहयोग करुँगा।

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IG व सामाजिक कार्यकर्ता अमिताभ ठाकुर के विरुध्द रेप का फर्जी आरोप लगाया गया है।अमिताभ ठाकुर लगातार माफिया,भ्रष्ट नेता,बाबा और अधिकारियों के खिलाफ बोलते रहें हैं।
अमिताभ जी से मैंने एक जनहित याचिका दायर करने का आग्रह किया था जिसपर कुछ महीने पहले उन्होंने मुझसे फोन करके बात किया था।
एक साल पहले मैंने एक जनहित याचिका डाक से सुप्रीम कोर्ट भेजा था जिसमें Whistle Blowers के खिलाफ लगे आरोप को motive के आधार पर खारिज करने की मांग की गई थी कि यदि ये प्रमाणित हो जाता है कि उस व्यक्ति को Whistle Blower होने के कारण ही फंसाया जा रहा है तो आरोप को खारिज कर देना चाहिए।मैं उनकी पत्नी इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकील व सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर से आग्रह करुँगा कि ऐसा ही एक जनहित याचिका उनके द्वारा दायर किया जाए।
Whistle Blower होने के कारण नूतन ठाकुर को भी साजिशकर्ता के रुप में प्रस्तुत किया गया है,मानो कि नूतन ठाकुर ने ही उस महिला को अमिताभ के पास रेप करने भेजा हो,उनके रहते हुए रेप हुआ हो।एक पत्नी एक पति को ऐसा करने नहीं देगी या तभी देगी जब उस महिला से शत्रुता हो लेकिन नूतन ठाकुर का उस महिला से कोई शत्रुता नहीं हैI


Tuesday, 13 January 2015

भूमि अधिग्रहण संशोधन अध्यादेश,2014 असंवैधानिक है।

भूमि अधिग्रहण संशोधन अध्यादेश,2014 संविधान का अनुच्छेद 123 का विपरीत होने के कारण असंवैधानिक है।अनुच्छेद 123 के अनुसार अध्यादेश ऐसी परिस्थिति में ही लायी जा सकती है जब कोई शीघ्र कार्रवाई की जरुरत हो।अनुच्छेद 123 का विश्लेषण किया जाए तो अध्यादेश के प्रस्तावना में ये लिखा होना चाहिए कि ऐसी कौन-सी परिस्थिति आ गई जिसके विरुध्द शीघ्र कार्रवाई की जरुरत है।मतलब इस अध्यादेश में ये बताना पड़ेगा कि ऐसी कौन सी परिस्थिति आ गई जिसके कारण पाँच उद्देश्य से भूमि अधिग्रहण के लिए 70 प्रतिशत(सार्वजनिक प्रोजेक्ट में) या 80 प्रतिशत(सार्वजनिक-निजी प्रोजेक्ट में) भूस्वामी की सहमति के प्रावधान को शीघ्र हटाने की जरुरत पड़ गई,वगैरह,वगैरह।

बीमा संशोधन विधेयक और कोयला खनन संशोधन विधेयक इस शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में पारित नहीं हो सका इसलिए ये माना जा सकता है कि अध्यादेश के जरिये इन दो कानूनों में संशोधन की सरकार के लिए शीघ्र जरुरत थी लेकिन भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक को तो संसद के किसी सदन में पेश भी नहीं किया गया,लेकिन सत्र समाप्ति के तुरंत बाद अध्यादेश को लाया जा रहा है,इससे जाहिर होता है कि इसमें संशोधन की शीघ्र जरुरत नहीं थी।



आरटीआई लगाने के बाद रेलवे बोर्ड ने अपने वेबसाइट पर किया किराया-नियम को अपडेट


आरटीआई आवेदन भेजकर 5 और 10 के गुणज के रूप में रेल किराया निर्धारण का नियम मेरे द्वारा जुलाई 2014 में पूछा गया था ,जिसका जवाब नहीं दिया गयाIरेलवे बोर्ड को दोबारा आवेदन भेजा गया जिसके बाद रेलवे बोर्ड द्वारा मुझे सर्कुलर और किराया-तालिका भेजा गया जिसमे बताया गया है कि Second Class Ordinary Sub-Urban रेलगाड़ी को छोड़कर अन्य सभी किस्म के रेलगाड़ी के किराया का निर्धारण 5 के अगले गुणज के रूप में करने का नियम 22 जनवरी 2013 से देशभर में प्रभावी है जिसे 20 मई 2014 से Revised करने के बाद पुनः प्रभावी किया गयाI
वस्तुतः मुझे संदेह थी कि सभी किस्म के रेलगाड़ी के किराया का निर्धारण 5 और 10 के गुणज में जो संख्या सबसे सन्निकट है के रूप में होना है लेकिन रेलगाड़ी के किराया का निर्धारण 5 के अगले गुणज के रूप में करके रेलवे बोर्ड जबरन वसूली कर रही हैI
हालाँकि इस आरटीआई लगाने के बाद www.indianrail.gov.in पर रेल किराया चेक करने पर रेल किराया के साथ साथ आप नोट में लिखे इस लाइन को भी देख सकते है:-
"NOTE : * Total Amount will be rounded off to the next higher multiple of Rs. 5."
आरटीआई लगाने से पहले नोट में ये लाइन लिखी हुई नहीं थी ,जिसके कारण कुछ मित्रो की बात सुनने के आधार पर संदेह हुईI अब मेरा संदेह भी दूर हो गया और नोट में नियम बताने से अब अन्य लोगो को भी संदेह नहीं रहेगीI
नियम को हरेक जगह प्रकाशित किया जाना चाहिएI नियम को प्रकाशित नहीं करना विभागीय लापरवाही और लोगो को परेशान करने का जरिया हैंI
सर्कुलर का प्रथम पृष्ठ प्रस्तुत्त है-


Saturday, 10 January 2015

अंततः राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को झुकना पड़ा





यह संभवतः पहला केस है जिसमें मानवाधिकार आयोग ने तीन बार बहाना बनाकर शिकायत को निष्तारित कर दिया और चौथी बार संबंधित विभाग को कार्रवाई के लिए शिकायत को भेजना पड़ा।समस्तीपुर नवोदय के प्राचार्य द्वारा वहाँ के छात्र/छात्राओं से जबरन वसूली के विरुध्द दायर कराए गए शिकायत को पहली बार(फाइल नं 3683/4/30/2014) आयोग ने ये कहकर निष्तारित कर गया कि आवेदन का सिर्फ छायाप्रति भेजा गया।जिसके विरुध्द मैंने शिकायत दर्ज कराया कि आवेदन की मूल प्रति दस जगह एक साथ सभी को संबोधित करते हुए भेजी गई और कहीं भी छायाप्रति नहीं भेजी गई।जिसपर दूसरी बार(केस नं 3862/4/30/2014) सुनवाई करते हुए आयोग द्वारा ये कहकर केस बंद कर दिया गया कि मामला मानवाधिकार हनन का नहीं है।इसके विरुध्द शिकायत दर्ज कराया कि जबरन वसूली आर्थिक व मानसिक प्रताड़ना होने के कारण अनुच्छेद 21 का हनन है और गरिमा,स्वतंत्रता आदि का हनन करने के कारण मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(d) के तहत मानवाधिकार का भी हनन है जिसपर तीसरी बार(फाइल नं 4193/4/30/2014) सुनवाई करते हुए आयोग ने पुनः ये कहकर केस बंद कर दिया कि मामला मानवाधिकार हनन का नहीं है।
संभवतः इस आवेदन को ही आयोग द्वारा पुनः सुनवाई के लिए फाइल नं 4563/4/30/2014 के माध्यम से निबंधित किया गया।इस बार आयोग ने शिकायत को संबंधित विभाग को 8 सप्ताह के भीतर आवश्यक कार्रवाई कर कृत कार्रवाई से आवेदक को सूचित करने का आदेश देते हुए अग्रसारित कर दिया।मतलब आयोग ने मान लिया कि मामला मानवाधिकार हनन का है।
www.nhrc.nic.in पर फाइल नं 4563/4/30/2014 डालकर स्टेटस चेक करने पर सिर्फ इतना पता चल पाया है कि शिकायत को संबंधित विभाग को भेजा गया है।शिकायत को संभवतः केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय भेजा गया होगा।आयोग का पत्र प्राप्त होने के बाद ही पता चल पाएगा कि किसे भेजा गया है।जिसे भी भेजा गया हो लेकिन ये लोग जांच करते ही नहीं या जांच करते भी हैं तो जांच रिपोर्ट प्रीफिक्स होता है।हालांकि यदि विद्यालय के छात्र/छात्राओं से बाहर का कोई अधिकारी आकर पूछताछ करे तो जरुर बयान दे कि रुपये वसूला गया है। विद्यालय के कुछ विद्यार्थियों द्वारा सूचना देने के बाद ही शिकायत दायर कराया गया था।मेरे लिए ये एक अच्छा अनुभव रहा कि अंततः आयोग को मानना पड़ा कि मामला मानवाधिकार हनन का है।

Two new legal issues on misuse of RTI Act



Postal Department has refused to provide the waiting list of PA/SA result to Gaurav Gupta and non-disclosing of waiting list proves that ineligible candidates are enlisted in the waiting list through back door.
u/s 7(1) of the RTI Act,PIO has to explain such reason of rejecting request which has been provided u/s 8 and 9 of the act for rejecting request.But,no such reason has been explained in the present matter.
What information can't be disclosed is already mentioned in the RTI Act,2005.u/s 8(1) of the act,there are ten grounds of not-disclosing but in these grounds,waiting list of a result has not been kept to not disclose.u/s 9 of the act,information relating to the infringement of copyrights of an individual can't be disclosed.Information relating to the Official Secrets Act,1923 can't be disclosed u/s 22 and information excepting violation of human rights and corruption relating to intelligence and security organization specified in second schedule of the act can't be disclosed u/s 24 of the act.





ब्रजभूषण दूबेजी के सूचना आवेदन पर आयुक्त,वाराणसी का रवैया एक नया आरटीआई मामला है।यदि लोक सूचना अधिकारी इस तरह से घुमाकर आवेदक को परेशान करे तो इसके विरुध्द सूचना का अधिकार कानून,2005 में प्रावधान नहीं है।लेकिन यहाँ लोक सूचना अधिकारी यानि आयुक्त द्वारा की गई हस्तांतरण पर प्रश्न उठाया जा सकता है।आयुक्त को निर्विवाद रुप से ये मालूम था कि वरुणा व असि नदी गाजीपुर में नहीं बहने के कारण ये मामला गाजीपुर के जिलाधिकारी के क्षेत्राधिकार का नहीं है।इसलिए सूचना का अधिकार कानून की धारा 6(3) के तहत इस आवेदन को जिलाधिकारी को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता था।आवेदन को जबरन या गलत जगह हस्तांतरित कर अधिनियम की धारा 7(1) के तहत सूचना देने के लिए निर्धारित 30 दिन (या हस्तांतरण की दशा में 30 दिन में धारा 6(3) के अनुसार 5 दिन जोड़कर) में सूचना नहीं देकर विलंब किया गया जिसे अधिनियम की धारा 7(2) के तहत सूचना देने से मना करना माना जाएगा।तदनुसार अधिनियम की धारा 19(1) के तहत प्रथम अपील या धारा 18(1) के तहत सूचना आयोग में सीधे शिकायत दायर कराया जा सकता है।हालांकि इस मामले में कानूनी विश्लेषण की आवश्यकता है इसलिए सूचना आयोग जाना बेहतर है।



IISERs का एडमिशन घोटाला






Joint Admission Committee(JAC),IISERs ने RTI Act के तहत IISERs में नामांकन के लिए तोनों चैनल किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना,JEE(ADVANCED) 2014 और स्टेट व सेन्ट्रल बोर्ड के माध्यम से वर्ष 2014 में चयनित अभ्यर्थियों का मेरिट लिस्ट और Aptitude test का रिजल्ट लिस्ट बिना कारण बताए देने से मना कर दिया है।इससे पूर्व IISER,भोपाल ये कहकर सूचना देने से मना कर दिया था कि सूचना उसके पास नहीं,JAC के पास उपलब्ध है लेकिन RTI Act का धारा 6(3) के तहत मेरा आवेदन को JAC को हस्तांतरित नहीं किया,जिसके विरुध्द केन्द्रीय सूचना आयोग में शिकायत दर्ज की गई है।

IISERs मेरिट व रिजल्ट लिस्ट सार्वजनिक नहीं करती है इसलिए जाहिर है कि Back door से अयोग्य अभ्यर्थियों का भी नामांकन होता है।RTI Act के तहत बिना कारण बताए मेरिट व रिजल्ट लिस्ट देने से मना करने के बाद अब इस घोटाला का प्रथम दृष्टया पता चलता है।इसलिए अब मैं सूचना देने से मना करने के विरुध्द केन्द्रीय सूचना आयोग और इस गड़बड़ी के विरुध्द केन्द्रीय सतर्कता आयोग में शिकायत करुँगा।


Question of Law

It has been replied that merit list/result list can't be revealed.u/s 7(1) of the RTI Act,the public information officer has to explain the such reason of rejecting request which has been provided u/s 8 and 9 of the act for the purpose of rejecting request.But,no reason has been explained in the present matter in question.
What information can't be revealed is already mentioned in the RTI Act,2005.u/s 8(1) of the act,there are ten grounds of not-revealing but in these grounds,result list and merit list has not been kept to not reveal.u/s 9 of the act,information relating to the infringement of copyrights of an individual can't be revealed.Information relating to the Official Secrets Act,1923 can't be revealed u/s 22 and information excepting violation of human rights and corruption relating to intelligence and security organization specified in second schedule of the act can't be revealed u/s 24 of the act.