Wednesday 1 March 2017

कानून का राज या कानून का आतंक?

कानून का राज या कानून का आतंक?
बिहार सरकार ने आज से नया शराबबंदी कानून 'बिहार मद्यनिषेद उत्पाद अधिनियम,2016' लागू कर दिया है।
30 सितम्बर 2016 को पटना उच्च न्यायालय द्वारा 1 व 5 अप्रैल 2016 से प्रभावी पुराने शराबबंदी कानून 'बिहार उत्पाद (संशोधन) अधिनियम,2016' को Draconian कानून बताकर खारिज किये जाने के बावजूद उससे भी ज्यादा Draconian कानून को 2 अक्टूबर 2016 से लागू कर दिया गया है।
वस्तुतः सरकार का इरादा शराबबंदी करने का नहीं है,सिर्फ दिखवा भर है,इसलिए सरकार Draconian कानून बनाती है,ताकि न्यायालय में चुनौती मिलने पर उसे खारिज कर दिया जाए।सरकार ने पुराना कानून खारिज होने के लिए ही बनाया था और नया कानून भी खारिज होने के लिए ही बनाया है ।
पुराना शराबबंदी कानून कितनी Draconian थी,इसे पुरानी कानून की धारा 47 के विरुद्ध उच्च न्यायालय द्वारा की गयी एक टिप्पणी से समझ सकते हैं-
"A humble Rickshaw-puller found with only a bottle or a pouch of Country liqour would,now,be exposed to minimum of ten years imprisonment with a fine of Rs one lakh (minimum),an amount,which he had ever never possessed or seen."
जो कानून आज से लागू हुई है,उसमें ये भी प्रावधान है कि यदि किसी के घर से शराब बरामद हुई या उस घर में कोई शराब पीते पकड़ा गया तो घर के सारे वयस्क लोगों को अभियुक्त बनाया जायेगा,महिला और बुजुर्ग सहित।मान लीजिये,आपका पाँच-छह कमरे वाला दो मंजिला थोडा बड़ा-सा घर है और ऊपरी मंजिल में आपका बेटा बैग में छुपाकर शराब का एक बोतल लेकर चला गया जिसमें वो रहता है और निचली मंजिल में आप रहते हैं और पुलिस ने उसे पीते पकड़ लिया या बोतल बरामद कर लिया।आपको मालूम भी नहीं कि आपका बेटा शराब भी लाया था या पी रहा था,लेकिन आप सहित घर के सारे वयस्क लोग हो गए अभियुक्त।मान लीजिये,किसी ने फंसाने की नियत से आपके घर में कहीं पर शराब का बोतल छुपा दिया और पुलिस से मिलीभगत करके बोतल बरामद करवा दिया।आपको मालूम भी नहीं,लेकिन घर के सारे वयस्क लोग हो गए अभियुक्त।
यदि घर के अन्य सदस्य को मालूम भी हो जाये कि उसके घर के किसी सदस्य ने शराब लाया या पिया है,तब भी शराब लाने/पीने वाले और अन्य सदस्य को समानरूपेण दोषी नहीं माना जा सकता।
आपराधिक विधि-शास्त्र में समानरुपेण दोषी चार अवस्था में ही माना जा सकता है।
(i) समान आशय से किया गया अपराध (धारा-34 IPC)
(ii) समान उद्देश्य से किया गया अपराध (धारा-149 IPC)
(iii) अपराध करने के लिए दुष्प्रेरण (धारा 107 से धारा 117 IPC)
(iv) अपराध करने के लिए आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होना ( धारा 120A व धारा 120B IPC)
घर के अन्य सदस्य द्वारा मालूम होने पर भी पुलिस को सूचना नहीं देना उपरोक्त चार वर्ग में नहीं आता है,इसलिए उन्हें समानरूपेण दोषी मानना आपराधिक विधि-शास्त्र के विरुद्ध है।
यदि शराब बोतल रखना या पीना अपराध है और अपराध की जानकारी होने पर भी इरादतन अपराध की सूचना नहीं देना भी IPC की धारा 176 और धारा 202 के तहत अपराध है,जिसमें 6 माह तक की कारावास का प्रावधान है।IPC में जिस तरह से अपराध के बारे में इरादतन जानकारी नहीं देने के लिए इरादतन जानकारी नहीं देने वाले को समानरूपेण दोषी मानने के बजाय मात्र 6 माह के कारवास का पात्र माना गया है,ऐसा ही कुछ प्रावधान नया उत्पाद अधिनियम में भी होना चाहिए था।लेकिन पीने या रखने वाले के लिए 6 माह और इरादतन जानकारी नहीं देने वाले के लिए एक माह का कारावास पर्याप्त है।
उच्च न्यायलय ने अपने फैसला में Bihar Prohibition Act,1938 का जिक्र किया है जिसके धारा 9 में शराब पीने या रखने पर 6 माह की कारावास का प्रावधान है।लेकिन बिहार सरकार ने Bihar Prohibition Act,1938 को लागू करने के बजाय नया कानून ही बना दिया।यदि नया कानून बनाया भी गया तो दंड लचीला होना चाहिए।
कानून में दंड के प्रावधान में लचीलापन होना चाहिए लेकिन कानून के प्रावधानों का क्रियान्वयन सख्ती से होना चाहिए।लेकिन हमारे यहाँ होता है इसके विपरीत।कानून में दंड के प्रावधान सख्त कर दिये जाते हैं लेकिन क्रियान्वयन लचीला होता है।क्रियान्वयन इतना सख्त होना चाहिए कि पुलिस व उत्पाद अधिकारी कानून का दुरुपयोग करके फसाने ना लगे,पुलिस व उत्पाद अधिकारी इतना लापरवाह भी ना हो जाये कि लोगों में शराब पीने या बेचने पर भय ना रहे या पुलिस या उत्पाद अधिकारी लोगों को गिरफ्तार करके मनमानी रूपये वसूल कर छोड़ने ना लगे।अतः शराबबंदी होना चाहिए,लेकिन दंड कम,क्रियान्वयन ज्यादा होना चाहिए।
दंड-केंद्रित कानून बनाना मतलब कानून का आतंक फैलाने की दिशा में काम करना और क्रियान्वयन-केंद्रित कानून बनाना मतलब कानून का राज स्थापित करने की दिशा में काम करना।
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8 comments
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Indra Chaudhary Ye puri tarah se gunda gardi hai . Rahul ji how can someone oppose this law ? If someone takes these law to supreme court then is there any chance that court will take action?
Rahul Kumar #IndraJi-

जिस तरह से पटना हाई कोर्ट ने पुराने शराबबंदी कानून को खारिज किया है,वैसे ही नए शराबबंदी कानून को भी खारिज करेगी।फिर बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट जायेगी और सुप्रीम कोर्ट भी पटना हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखेगी।


बिहार सरकार शराबबंदी के आधार पर जनता का वोट लेने के चक्कर में अंधी हो गयी है।इस कानून को लागू करने से पहले ऐसे प्रावधानों पर जरुरी संशोधन कर लेना चाहिए था जहाँ पर हाई कोर्ट ने उन प्रावधानों को Draconian माना है।चूँकि हाई कोर्ट के मंतव्य के अनुरूप जरुरी संशोधन करने के बजाय उससे भी Draconian कानून लागू कर दिया गया है,इसलिए हाई कोर्ट ही इसे खारिज कर देगी,बशर्ते कि कोई व्यक्ति हाई कोर्ट में याचिका दायर करे और सरकार-कोर्ट के बीच में सेटिंग ना हो जाये।
Subham Kumar Sahu Sarkar par dikhawa kyun kar rahi hai jabki sabhi ko ye baat pata hai ki sarab k byapar se sarkar ko bahut tax milta hai aur band karne par sarkar ka kshyati ho raha hai...
Rahul Kumar #ShubhamJi-सरकार को शराब से टैक्स मिलती है,इसलिए भी दिखावा कर रही है।और भी कारण हो सकते हैं।
Aniruddh Ray Nice line
Rahul Kumar thanks a lot.
Mithilesh Kumar राहुल जी Art. 47 के तहत राज्य सरकार को power दिया गया इस तरह का कानून बनाने का लेकिन इससे Art. 19 का उलंघन हो रहा है। तो सुप्रीम कोर्ट इसमे प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप क्यों नही करती है।
Rahul Kumar #MithileshJi-अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यापार और व्यवसाय की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है,लेकिन मौलिक अधिकार Absolute नहीं होता है।किसी भी व्यापर और व्यवसाय के विरुद्ध अनुछेद 19(6) के तहत आम जनता के हित में Reasonable Restriction (औचित्यपूर्ण पाबंदी) लगाया जा सकता है।इसलिए आम जनता के हित को ध्यान में रखते हुए शराब को बनाने और बेचने से मना किया जा सकता है।ऐसी कौन-सी व्यापार और व्यावसाय है,जिसके विरुद्ध सरकार द्वारा Reasonable Restriction लगाया जा सकता है?यदि ऐसे व्यापार और व्यवसाय के विरुद्ध Reasonable Restriction लगाने का प्रावधान संविधान में ही है,तो इस बात को लेकर दो राय नहीं होना चाहिए कि उस व्यापार और व्यवसाय के विरुद्ध Reasonable Restriction लगाया जा सकता है या नहीं।चूँकि अनुच्छेद 47 में शराबबंदी को लेकर विशेष प्रावधान है,इसलिए इसमे दो राय होने की जरुरत ही नहीं है कि शराब बनाने और बेचने के विरुद्ध Reasonable Restriction होना चाहिए या नहीं।बेशक होना चाहिए।

ऐसे व्यापार और व्यवसाय जहाँ अनुच्छेद 47 की तरह संविधान में विशेष प्रावधान नहीं है,वहाँ दो राय हो सकता है कि Reasonable Restriction लगाना संविधान के अनुकूल है या प्रतिकूल।

वैसे हाई कोर्ट के दोनों जज ने अपने फैसले में शराब बनाने और बेचने को मौलिक अधिकार माना है,लेकिन मैं उपरोक्त विवेचना के आधार पर विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि शराब बनाना और बेचना मौलिक अधिकार नहीं है।

हाई कोर्ट के दो जज मुख्य न्यायाधीश जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी और जस्टिस नवनीति प्रसाद सिंह की खंडपीठ ने फैसला दिया है।नवनीति प्रसाद सिंह ने शराब पीना भी मौलिक अधिकार माना है।उन्होंने कहा है कि बंद घर में अकेले शराब पीना अनुच्छेद 21 के तहत Right to Privacy (निजता का अधिकार) है,लेकिन जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी ने ऐसा नहीं माना है क्योकि अनुच्छेद 47 के तहत शराबबंदी का प्रावधान की गयी है।इनका कहना है कि यदि पीना मौलिक अधिकार रहता तो इसके विरुद्ध अनुच्छेद 47 में प्रावधान ही नहीं किया जाता ।उसी तरह से इन्हें ये भी मानना चाहिए था कि यदि शराब बनाना और बेचना मौलिक अधिकार रहता तो अनुच्छेद 47 में शराबबंदी का प्रावधान नहीं होता।

सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामले में स्वतः संज्ञान लेकर सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती।सुप्रीम कोर्ट वैसे मामले में ही सीधे हस्तक्षेप करती है जहाँ कोई General Direction देना हो।ये कोई General Direction देने वाला मामला नहीं है।ये विस्तृत कानूनी विश्लेषण करने वाला मामला है,इसलिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामला लाया जायेगा तभी हस्तक्षेप करेगी।वैसे हाई कोर्ट होते हुए ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचेगी ही।अब जब बिहार सरकार की नए शराबबंदी कानून को हाई कोर्ट खारिज करेगी,तब बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट जायेगी।पुराने शराबबंदी कानून,जिसे हाई कोर्ट ख़ारिज कर दिया है,उसके विरुद्ध बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट नहीं जायेगी,क्योंकि सुप्रीम कोर्ट यदि हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखे तो बिहार सरकार को नये शराबबंदी कानून को खुद वापस लेना ना पड़ जाये।
Rahul Kumar #IndraJi-

जिस तरह से पटना हाई कोर्ट ने पुराने शराबबंदी कानून को खारिज किया है,वैसे ही नए शराबबंदी कानून को भी खारिज करेगी।फिर बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट जायेगी और सुप्रीम कोर्ट भी पटना हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखेगी।


बिहार सरकार शराबबंदी के आधार पर जनता का वोट लेने के चक्कर में अंधी हो गयी है।इस कानून को लागू करने से पहले ऐसे प्रावधानों पर जरुरी संशोधन कर लेना चाहिए था जहाँ पर हाई कोर्ट ने उन प्रावधानों को Draconian माना है।चूँकि हाई कोर्ट के मंतव्य के अनुरूप जरुरी संशोधन करने के बजाय उससे भी Draconian कानून लागू कर दिया गया है,इसलिए हाई कोर्ट ही इसे खारिज कर देगी,बशर्ते कि कोई व्यक्ति हाई कोर्ट में याचिका दायर करे और सरकार-कोर्ट के बीच में सेटिंग ना हो जाये।

#ShubhamJi-सरकार को शराब से टैक्स मिलती है,इसलिए भी दिखावा कर रही है।और भी कारण हो सकते हैं।

AnirudhJi-Thanks a lot.
Rahul Kumar #MithileshJi-अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यापार और व्यवसाय की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है,लेकिन मौलिक अधिकार Absolute नहीं होता है।किसी भी व्यापर और व्यवसाय के विरुद्ध अनुछेद 19(6) के तहत आम जनता के हित में Reasonable Restriction (औचित्यपूर्ण पाबंदी) लगाया जा सकता है।इसलिए आम जनता के हित को ध्यान में रखते हुए शराब को बनाने और बेचने से मना किया जा सकता है।ऐसी कौन-सी व्यापार और व्यावसाय है,जिसके विरुद्ध सरकार द्वारा Reasonable Restriction लगाया जा सकता है?यदि ऐसे व्यापार और व्यवसाय के विरुद्ध Reasonable Restriction लगाने का प्रावधान संविधान में ही है,तो इस बात को लेकर दो राय नहीं होना चाहिए कि उस व्यापार और व्यवसाय के विरुद्ध Reasonable Restriction लगाया जा सकता है या नहीं।चूँकि अनुच्छेद 47 में शराबबंदी को लेकर विशेष प्रावधान है,इसलिए इसमे दो राय होने की जरुरत ही नहीं है कि शराब बनाने और बेचने के विरुद्ध Reasonable Restriction होना चाहिए या नहीं।बेशक होना चाहिए।

ऐसे व्यापार और व्यवसाय जहाँ अनुच्छेद 47 की तरह संविधान में विशेष प्रावधान नहीं है,वहाँ दो राय हो सकता है कि Reasonable Restriction लगाना संविधान के अनुकूल है या प्रतिकूल।

वैसे हाई कोर्ट के दोनों जज ने अपने फैसले में शराब बनाने और बेचने को मौलिक अधिकार माना है,लेकिन मैं उपरोक्त विवेचना के आधार पर विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि शराब बनाना और बेचना मौलिक अधिकार नहीं है।

हाई कोर्ट के दो जज मुख्य न्यायाधीश जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी और जस्टिस नवनीति प्रसाद सिंह की खंडपीठ ने फैसला दिया है।नवनीति प्रसाद सिंह ने शराब पीना भी मौलिक अधिकार माना है।उन्होंने कहा है कि बंद घर में अकेले शराब पीना अनुच्छेद 21 के तहत Right to Privacy (निजता का अधिकार) है,लेकिन जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी ने ऐसा नहीं माना है क्योकि अनुच्छेद 47 के तहत शराबबंदी का प्रावधान की गयी है।इनका कहना है कि यदि पीना मौलिक अधिकार रहता तो इसके विरुद्ध अनुच्छेद 47 में प्रावधान ही नहीं किया जाता ।उसी तरह से इन्हें ये भी मानना चाहिए था कि यदि शराब बनाना और बेचना मौलिक अधिकार रहता तो अनुच्छेद 47 में शराबबंदी का प्रावधान नहीं होता।

सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामले में स्वतः संज्ञान लेकर सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती।सुप्रीम कोर्ट वैसे मामले में ही सीधे हस्तक्षेप करती है जहाँ कोई General Direction देना हो।ये कोई General Direction देने वाला मामला नहीं है।ये विस्तृत कानूनी विश्लेषण करने वाला मामला है,इसलिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामला लाया जायेगा तभी हस्तक्षेप करेगी।वैसे हाई कोर्ट होते हुए ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचेगी ही।अब जब बिहार सरकार की नए शराबबंदी कानून को हाई कोर्ट खारिज करेगी,तब बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट जायेगी।पुराने शराबबंदी कानून,जिसे हाई कोर्ट ख़ारिज कर दिया है,उसके विरुद्ध बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट नहीं जायेगी,क्योंकि सुप्रीम कोर्ट यदि हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखे तो बिहार सरकार को नये शराबबंदी कानून को खुद वापस लेना ना पड़ जाये।
Sateyandra Gope ये कानून का आतंक ही है पुलिस की भी जेब गर्म होगा और दुश्मन भी अपनी दुश्मनी निकालेंगे. धन्यबाद.
Rahul Kumar सहमत हूँ।
Arbaz Alam policing aatank kaa raj
Rahul Kumar Yes,Agree...Main Bus me hoon aur Darbhanga se ghar ja raha hoon.

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