Wednesday 11 June 2014

झूठा मुकदमा:कानूनी खामियाँ का दुष्परिणाम

आम लोगों से बातचीत और कई केस का अध्ययन करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि 90 प्रतिशत आरोप झूठे होते हैं और इतने ही सच्चे कांड को समाज द्वारा दबा दिया जाता है।लेकिन कानून में कुछ संशोधन किए जा सकते हैं,जिससे झूठे मुकदमे को काफी हद तक रोका जा सकता है।

प्रस्तुत है मेरा  10 सुझाव:-

1.CrPC का धारा 163  और Indian Evidence Act,1872 का धारा 24 में संशोधन-CrPC का धारा 163 में लिखा है कि पुलिस किसी भी व्यक्ति का  बयान डरा-धमकाकर,प्रभोलन देकर या गुमराह करके नहीं लेगी।Indian Evidence Act ,1872  का धारा 24 में लिखा है कि कोर्ट में किसी अभियुक्त के द्वारा डर,प्रभोलन या गुमराह किए जाने के कारण दिया गया इकबालिया बयान उस अभियुक्त के विरुध्द सबूत नहीं होगी।लेकिन डर,गुमराह और प्रभोलन सिर्फ पुलिस द्वारा बयान लेने  या अभियुक्त द्वारा कोर्ट में इकबालिया जुर्म करने तक ही सीमित नहीं होती।अक्सर पर्दा के पीछे से किसी थर्ड पर्सन द्वारा किसी व्यक्ति को आरोप लगाने के लिए आगे करवाया जाता है और ऐसे आगे किए गए लोग या तो डर के कारण आरोप लगाते हैं या प्रभोलन या गुमराह किए जाने के कारण।डर,प्रभोलन या गुमराह के आधार पर फर्जी गवाह भी तैयार किए जाते हैं।इसलिए CrPC का धारा 163 में ये संशोधन किया जाना चाहिए कि पुलिस इस बिन्दु पर भी जांच करेगी कि क्या आरोप लगाने वाले और गवाह के पीछे कोई थर्ड पर्सन भी है जो डरा-धमकाकर,प्रभोलन देकर या गुमराह करके साजिश रच रहा है।CrPC का धारा 157 के Proviso  में भी एक संशोधन होना चाहिए कि यदि थर्ड पर्सन की भूमिका सामने आती है तो पुलिस आगे की जांच ना करके केस बंद कर देगी और CrPC का धारा 159 में संशोधन किया जाना चाहिए कि यदि थर्ड पर्सन की ऐसी भूमिका सामने आती है तो मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट पर  आगे की जांच का आदेश ना देकर केस को खारिज कर देंगे।Indian Evidence Act,1872 की धारा 24 में ये संशोधन होना चाहिए कि सिर्फ अभियुक्त ही नहीं,बल्कि आरोपकर्ता और गवाह द्वारा डर,प्रलोभन या गुमराह के कारण दिया गया बयान सबूत नहीं होगी।

2. Indian Evidence Act में एक नया धारा 102A जोड़ा जाए-Indian Evidence Act का धारा 102 इसकी व्याख्या करती है कि Burden Of Proof किस पक्ष के ऊपर होगा,अर्थांत किस पक्ष को किसी खास तथ्य या आरोप को साबित करना पड़ेगा।धारा 102A जोड़कर ये प्रावधान किया जाना चाहिए कि   यदि थर्ड पर्सन की भूमिका के बारे में अभियुक्त पक्ष के द्वारा आरोप लगाया जाता है और थर्ड पर्सन की भूमिका का पर्याप्त कारण और आधार अभियुक्त पक्ष के द्वारा बताया जाता है तो वादी पक्ष यानि आरोपकर्ता और गवाह को ये सिध्द करना पड़ेगा कि थर्ड पर्सन की कोई भूमिका नहीं है।यदि वादी पक्ष थर्ड पर्सन की भूमिका नहीं होने वाली तथ्य को सिध्द करने में नाकाम रहते हैं तो आरोप को खारिज कर दिया जाएगा।अभी सिर्फ इतना प्रावधान है कि यदि अभियुक्त को लगता है कि गवाह  को गुमराह किया गया है या प्रलोभन दिया गया है तो Indian Evidence Act की धारा 155 के तहत ऐसे गवाह के विरुध्द स्वतंत्र गवाह पेश करके ऐसे गवाह को झूठलाया जा सकता है।लेकिन इतना प्रावधान ही काफी नहीं है,इसलिए मेरा सुझाव लागू होना चाहिए।

3.CrPC में धारा 157A और Indian Evidence Act में धारा 24A  को जोड़ा जाए-CrPC के धारा 157 में लिखा है कि पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने के बाद घटनास्थल पर जाकर जांच करेगी।लेकिन पुलिस के लिए इसकी बाध्यता नहीं है कि घटनास्थल पर जाने के बाद स्थानीय लोगों का बयान लेना ही पड़ेगा।CrPC का धारा 157A बनाकर इसका प्रावधान किया जाए कि हरेक कांड में पुलिस के लिए ये अनिवार्य होगा कि पुलिस को स्थानीय लोगों का बयान लेना पड़ेगा कि आरोप कर्ता और गवाह के पीछे क्या कोई थर्ड पर्सन भी है या आरोपकर्ता और गवाह कोई पूर्वाग्रह या निजी स्वार्थ से भी ग्रसित है या आरोपकर्ता और गवाह डर,प्रलोभन या गुमराह किए जाने के कारण आरोप तो नहीं लगा रहा है।यदि स्थानीय लोग इन बातों की पुष्टि करते हैं तो फिर तुरंत आरोपकर्ता और गवाह को ये सिध्द करने के लिए कहा जाना चाहिए कि उसके पीछे थर्ड पर्सन नहीं है या वो पूर्वाग्रह या निजी स्वार्थ से ग्रसित नहीं है या वो डर,प्रलोभन या गुमराह का शिकार नहीं है।यदि इन तथ्यों को आरोपकर्ता और गवाह साबित नहीं कर पाते हैं तो स्थानीय लोगों के बयान के आधार पर पुलिस द्वारा  आगे की जांच बंद कर देने का प्रावधान इस धारा को जोड़कर किया जाना चाहिए और धारा 159 में भी एक और संशोधन कर देना  चाहिए कि स्थानीय लोगों के बयान और उस बयान का काट देने में असफल हुए आरोपकर्ता और गवाह  के मद्देनजर मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट के आधार पर केस को खारिज कर देंगे।Indian Evidence Act में धारा 24A जोड़कर इसका प्रावधान किया जाना चाहिए कि स्थानीय लोगों का बयान CrPC का धारा 157A के परिप्रेक्ष्य में सबूत होगी।

4.CrPC की धारा 154,155,161,162,164 ,190 और 200 में संशोधन हो-जब संज्ञेय मामले में धारा 154 और असंज्ञेय मामले में धारा 155 के तहत मामला दर्ज करने के लिए पुलिस को सूचना दी जाती है या जब धारा 190 के तहत मजिस्ट्रेट के पास शिकायत की जाती है तो सूचक गवाह का नाम आवेदन पर लिख देता है।गवाह का हस्ताक्षर वाला लिखित बयान शिकायत के साथ संलग्न नहीं होता।जो व्यक्ति अनपढ़  है या जो लिखित बयान  देने की अवस्था में नहीं है,ऐसे ही सूचक और गवाह से  पुलिस द्वारा  पूछकर बयान लिया जाना चाहिए या किसी विशेष जानकारी या खुलासा करवाने के लिए ही पुलिस द्वारा पूछकर बयान लिया जाना चाहिए।वादी का गवाह के रुप में दिया जाने वाला बयान लिखित होना चाहिए।इसलिए CrPC का धारा 161 सिर्फ ऐसे गवाह के लिए ही लागू होगी जो अनपढ़ हो या लिखित बयान देने में असमर्थन हो या जिनसे कोई विशेष जानकारी चाहिए जिसे वह गवाह लिखित बयान के रुप में नहीं प्रकट कर सकता।लेकिन धारा 162 के तहत पुलिस द्वारा पूछकर लिए गए बयान पर बयान देने वाला व्यक्ति का हस्ताक्षर और बयान की सत्यता की पुष्टि करने के लिए दो शिक्षित लोगों का हस्ताक्षर अनिवार्य कर देना चाहिए जिनके सामने में गवाही ली जाएगी।हरेक गवाह और सूचक का मजिस्ट्रेट के समक्ष CrPC का धारा 164 के तहत Confession देना अनिवार्य कर देना चाहिए।CrPC का धारा 200 में लिखा है कि यदि किसी लोक सेवक द्वारा सरकारी पद का निवर्हन करते हुए मजिस्ट्रेट के पास शिकायत की जाती है तो उसके शिकायत पर पुर्नबयान लेकर परीक्षण करने की जरुरत नहीं होगी।इस प्रावधान को हटा देना चाहिए।

5.CrPC में धारा 157B,164A और 200A जोड़ा जाए-यदि गवाह फर्जी होता है तो गवाह के द्वारा विरोधाभासी बयान दिया जाता है।CrPC का धारा 157B के तहत पुलिस के लिए अनिवार्य कर देना चाहिए कि वह गवाहों के बीच का विरोधाभासी बयानों का अवलोकन करे और विरोधाभासी बयानों के आधार पर जांच को रोक दे।CrPC का धारा 159 में संशोधन करके प्रावधान किया जाना चाहिए कि पुलिस रिपोर्ट के आधार पर विरोधाभासी बयानों के मद्देनजर मजिस्ट्रेट आरोप को खारिज कर दे।CrPC में धारा 164A  जोड़कर ये प्रावधान किया जाना चाहिए कि धारा 154 और 161 के तहत पुलिस के समक्ष सूचक और गवाह के द्वारा दिया गया बयान और धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गए बयान में गवाहों के बीच का दिया गया बयान यदि विरोधाभासी  होता है या एक गवाह खुद अपने पूर्व के बयान से अलग बयान देता हैं तो  आरोप को खारिज कर दिया जाएगा।जब मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 190 के तहत की गई शिकायत में गवाह और सूचक  का बयान और उन्हीं के द्वारा धारा 200 के तहत परीक्षण के दौरान दिए गए पुर्नबयान में भिन्नता आती है तो धारा 200A के तहत इन विरोधाभासी बयानों के आधार पर आरोप को खारिज करने का अधिकार मजिस्ट्रेट के पास होना चाहिए।धारा 159,164A और 200A में भी इसका प्रावधान किया जाए कि गवाहों के बीच का विरोधाभासी बयान और उसी गवाह के द्वारा पूर्व में दिए गए बयान में भिन्नता का अवलोकन करना मजिस्ट्रेट के लिए अनिवार्य होगी।

Indian Evidence Act का धारा 155(3) में संशोधन करके इसका प्रावधान किया जाए कि गवाहों के बीच के विरोधाभासी बयानों के आधार पर भी गवाहों को झूठलाया जा सकता है।अभी इस धारा के तहत एक गवाह के द्वारा दिया गया पूर्व की गवाही से भिन्नता के आधार पर उस गवाह को झूठलाने का प्रावधान है।एक गवाह का बयान दूसरे गवाह से फर्जी मुकदमा में निश्चित तौर पर भिन्न होता है,जिसके लिए प्रावधान नहीं है।

6.CrPC का धारा 155 के तहत दर्ज किए गए असंज्ञेय अपराध में जांच के लिए मजिस्ट्रेट का आदेश लेने के बाद ठीक यही सब नई प्रावधान लागू होगी जो  धारा 154 के तहत दर्ज किए गए संज्ञेय अपराध के लिए लागू होगी।

 7.झूठा मुकदमा को Motive और Criminal record  के आधार पर खारिज किए जाने का प्रावधान किया जाए।विशेषकर Whistle blower के विरुध्द दर्ज किए गए फर्जी मुकदमा में।यदि झूठे फंसाए जाने का कारण स्पष्ट होता है तो उस आरोप को खारिज कर देना  चाहिए-
(i)यदि जिसे झूठा फंसाया गया है,वह Whistle blower है और झूठा फंसाने का Motive स्पष्ट है।
(ii) झूठा फंसाने वाला या उसका गवाह या उसके पीछे के थर्ड पर्सन का आपराधिक पृष्ठभूमि है और झूठा फंसाने का Motive स्पष्ट है।

Motive,whistle blower और Criminal  Record को ध्यान में रखकर जांच करने के लिए CrPC में धारा 157C जोड़ा जाना चाहिए और जिसमें उपरोक्त बिन्दु के आधार पर पुलिस को जांच रोक देने का शक्ति होगा और CrPC का धारा 159 में संशोधन करके इन पहलुओं के आधार पर सुपुर्द किए गए पुलिस रिपोर्ट के आधार पर केस खारिज कर देने का शक्ति मजिस्ट्रेट के पास होगा।अभियुक्त का Whistle blower होना,झूठे फंसाने का Motive और सूचक,गवाह और उसके पीछे के थर्ड पर्सन का Criminal Record  अभियुक्त के पक्ष में एक सबूत होगी,जिसका प्रावधान  Indian Evidence Act में धारा 14A को जोड़कर किया जाना चाहिए।

8.कोर्ट द्वारा ये परखने के लिए कि वास्तव में कोई व्यक्ति पीड़ित है या नहीं,उस व्यक्ति के विरुध्द घटे घटना से उस पर पड़े मनोवैज्ञानिक असर को भी देखना पड़ेगा।साथ ही अभियुक्त पर पड़े मनोवैज्ञानिक असर के आधार पर भी इसका निष्कर्ष निकालना पड़ेगा कि अभियुक्त निर्दोष है या  दोषी।Indian Evidence Act का धारा 45 में संशोधन करके सभी कथित पीड़ित और अभियुक्त का प्रत्येक 6 महीना पर मनोवैज्ञानिक जांच कराकर मनोवैज्ञानिक का राय लेना अनिवार्य कर देना चाहिए।Indian Evidence Act का धारा 47 में संशोधन करके कथित पीड़ित और अभियुक्त के करीबी व्यक्ति का कथित पीड़ित और अभियुक्त के मनोवैज्ञानिक व्यवहार से संबंधित राय लेना अनिवार्य कर देना चाहिए।

9.CrPC का धारा 154(2) में FIR का कॉपी सूचक को मुफ्त में दिए जाने का प्रावधान है लेकिन अभियुक्त को दिए जाने का प्रावधान नहीं है,जो कि होना चाहिए।CrPC का धारा 172(3) के तहत अभियुक्त को केस डायरी देखने भी नहीं दिया जाना चाहिए,लेकिन इस धारा में संशोधन होना चाहिए कि प्रत्येक दिन का केस डायरी जांच के तुरंत बाद वादी और प्रतिवादी दोनों को उपलब्ध करा दिया जाए ताकि अभियुक्त अपना बचाव के लिए पहले से ही तैयार रहे और वादी भी अपना पक्ष पहले से तैयार रखे।CrPC का धारा 173(7) में लिखा है कि  धारा 170 के तहत अभियुक्त के विरुध्द पर्याप्त सबूत होने के आधार पर हिरासत में लेने पर उसे जांच रिपोर्ट और गवाहों का बयान आदि पुलिस द्वारा उपलब्ध करा दिया जाएगा।इसका मतलब ये हुआ कि पुलिस द्वारा हिरासत में नहीं लेने पर इन दस्तावेजों को उपलब्ध नहीं कराया जाएगा,जो कि इस धारा में संशोधन करके उपलब्ध कराया जाना चाहिए। 
वादी और प्रतिवादी दोनों को किसी कार्यवाही के अगले दिन ही संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए CrPC में एक धारा जोड़ा जाना चाहिए और मेरे ख्याल से धारा 172A इसके लिए उपयुक्त धारा रहेगा क्योंकि धारा 172 में केस डायरी लिखने का वर्णन है। 

10.CrPC का धारा 157 और नए जोड़े जाने वाले धारा 157A,157B और 157C में इसका प्रावधान किया जाना चाहिए कि पुलिस रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के पास धारा 159 के तहत संज्ञान लेने के लिए तभी भेजी जाएगी जब धारा 157,157A,157B और 157C में वर्णित जांच की प्रक्रिया को प्रथम दृष्टया पूर्ण कर लिया जाता है।FIR को 24 घंटे के भीतर सिर्फ सूचना के लिए मजिस्ट्रेट को भेजी जाएगी।इन धाराओं के तहत प्रथम  दृष्टया जांच करने का अधिकतम समय 7 दिन होगा।इन बिंदुओं पर प्रथम दृष्टया जांच करने के बाद ही अभियुक्तों की गिरफ्तारी की जाएगी। 
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2 comments:

  1. Good idea . government should give place to it.

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    1. Yes,there must be place for these ideas to stop false cases....

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