Monday 30 June 2014

सत्य की जीत हुई।


सत्य की जीत हुई।

समस्तीपुर जिला के विभूतिपुर थाना अन्तर्गत पतैलिया पंचायत के मुखिया सुनीता देवी द्वारा मध्य विद्यालय के पूर्व हेडमास्टर और गाँव के सामाजिक कार्यकर्ता सीताराम ठाकुर समेत तीन को मुखिया के विरुध्द जिलाधिकारी को शिकायत करने के बाद कि मुखिया मनरेगा के मजदूरों का पैसा गबन कर दी है,मुखिया के द्वारा फर्जी मुकदमा में फंसा दिया गया।इस मामले की सूचना मुझे रमेश कुमार चौबे जी,लोक स्वराज मंच के राष्ट्रीय महासचिव द्वारा दी गई थी।मैंने पतैलिया गाँव का भ्रमण भी किया और लगातार पीड़ित अभियुक्तों का मदद कर रहा हूँ।परसो गाँव जाकर DSP ने कांड का पर्यवेक्षण किया।कई ग्रामीणों और गवाहों के द्वारा आरोप को असत्य बताया गया जिसके आधार पर DSP ने आरोप को झूठा करार दिया है।अब मुखिया और झूठा फंसाने वाले के विरुध्द IPC का धारा 182 के तहत झूठा फंसाने के लिए मुकदमा दर्ज करने का आग्रह पुलिस अधिकारी से किया जाएगा।यदि पुलिस अधिकारी झूठा फंसाने वाले के विरुध्द धारा 182 के तहत मुकदमा दर्ज नहीं करते हैं तो IPC का धारा 500 का प्रयोग करके झूठा फंसाने वाले के विरुध्द मानहानि का केस किया जाएगा।शिकायतकर्ता को फंसाने वाले को सजा हो।

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एल्फ्रेड मार्शल के अनुसार,मजदूरी श्रम की सीमांत उत्पादकता के बराबर होने की प्रवृति रखती है।मतलब,एक मजदूर के कारण जितनी उत्पादन होती है,उसे उतना मजदूरी मिलना चाहिए।मार्शल की मजदूरी का सीमांत उत्पादकता सिध्दांत का एक Demerit ये है कि किसी मजदूर की सीमांत उत्पादकता कितनी है,इसका निर्धारण करना मुश्किल है।मार्शल ने मांग और पूर्ति के आधार पर वस्तु के मूल्य निर्धारण का सिध्दांत दिया।मतलब जब मांग ज्यादाऔर पूर्ति कम हो तो वस्तु की कीमत बढ़ेगी और जब मांग कम और पूर्ति ज्यादा हो तो वस्तु की कीमत घटेगी।जब वस्तु के मांग और पूर्ति के आधार पर उसका मूल्य निर्धारण हो सकता है,फिर उस वक्त भी मजदूरी का निर्धारण मजदूरों की मांग और पूर्ति के आधार पर क्यों नहीं हो सकता था,जैसा कि आज कई जगह हो रहा है।अभी मजदूरों की पूर्ति कम और मांग ज्यादा होने के कारण मजदूरी ज्यादा और मजदूरों की पूर्ति ज्यादा और मांग कम होने के कारण मजदूरी कम मिलती है।जब पूँजीपतियों को फायदा पहुँचाना हो तो मांग व पूर्ति का सिध्दांत,जब मजदूरों का शोषण करना हो तो मांग व पूर्ति का कोई सिध्दांत नहीं।अतः मार्शल भी पूँजीपतियों का संरक्षक अर्थशास्त्री थे।

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मेरा कॉलेज(सीएम कॉलेज,दरभंगा) में स्नातक प्रथम खंड का परीक्षा फॉर्म भरने का फीस से 32 रुपये ज्यादा क्लर्क द्वारा वसूली जा रही है।रसीद 598 रुपये की काटी जा रही है,लेकिन क्लर्क जबरन 630 रुपये ले रहे हैं।फॉर्म का मूल्य 50 रुपया है लेकिन एक कर्मचारी बिपिन द्वारा फॉर्म 60 रुपये में बेचा जा रहा है।जब मैंने 50 रुपया दिया तो मुझसे बिपिन ने 10 रुपया ज्यादा नहीं मांगा लेकिन मेरा एक क्लासमेट बमशंकर झा को मेरे द्वारा हस्तक्षेप करने के बाद 50 रुपये में फॉर्म दिया।क्लर्क लीलाकांत झा ने मुझसे 630 रुपये मांगा।मैंने 600 रुपये दिया और 598 रुपये का ही रसीद काटे जाने की बात कही।पहली बार जब इसकी सूचना मेरे द्वारा प्रभारी प्राचार्य नथूनी यादव को दी गई तो प्रभारी प्राचार्य ने कहा कि उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं हैं।दूसरी बार जब प्रभारी प्राचार्य और हेडक्लर्क को सूचना दी गई तो ये लोग कहने लगे कि जबरन पैसा कैसे वसूला जा सकता है जबकि पैसा देने का दवाब बनाया जाता है।जो सूचना प्रकाशित की गई है उसमें ये नहीं लिखा है कि कितनी राशि फॉर्म भरने और फॉर्म खरीदने का लगेगा ताकि मनमुताबिक पैसा वसूला जा सके।I recorded all conversation.

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