Sunday 11 May 2014

A MODEL OF PARTY LESS DEMOCRACY



 
सभी पार्टियाँ लगभग एक समान ही है या आगे चलकर वैसा ही हो जाती है।हम पार्टियोँ के बीच तुलनात्मक अध्ययन क्योँ करे और किसी को अपेक्षाकृत अच्छा क्योँ माने?इस लोकतंत्र मेँ वोट देने के सिवाय सरकार मेँ भागीदारी का जनता के पास कोई दूसरा अधिकार नहीँ है।मुझे लगता है कि राजनीतिक दल को बैन कर देना चाहिए।जनता को राइट टू रिकॉल और राइट टू रिजेक्ट का अधिकार देना चाहिए ताकि जनता अच्छे विधायक,सांसद को चुन सके।फिर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का सीधा चुनाव होना चाहिए और ये भी बगैर पार्टी का होँगे।बिना पार्टी का चुने गए कुछ विधायक को जनता के सीधे वोट से चुने गए मुख्यमंत्री हाईकोर्ट की स्वीकृति से अपना मंत्री बना लेँगे और बिना पार्टी का चुने गए कुछ सांसद को जनता के सीधे वोट से चुने गए प्रधानमंत्री सुप्रीमकोर्ट की स्वीकृति से अपना मंत्री बना लेँगे।इस तरह से जिन विधायक,सांसद को मंत्री नहीँ बनाया गया है वह विपक्षी हो जाएँगे।यानि सत्ता पक्ष से ज्यादा प्रतिनिधि विपक्ष मेँ रहेँगे जिससे विपक्ष भी काफी मजबूत रहेगी और सरकार स्वच्छ रहेगी।
 इस मॉडल से बनी सरकार सबसे ज्यादा स्थिर होगी क्योँकि इसमेँ 272 (बहुमत) का आंकड़ा पूरा करने के लिए गठबंधन करने की जरुरत नहीँ है।ये सीधे निर्वाचित मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पर निर्भर करेगा कि वे कोर्ट की स्वीकृति से किस विधायक,सांसद को अपना मंत्री चुनते हैँ।फिर पाँच साल के लिए स्थिर सरकार और मजबूत विपक्ष और राइट टू रिकॉल,राइट टू रिजेक्ट के साथ जनता की सीधे भागीदारी वाली सरकार।यदि किसी मंत्री को हटाना हो तो पुनः कोर्ट की स्वीकृति लेनी पड़ेगी।कोर्ट की सिफारिश के बाद ही राज्य सरकार राज्यपाल के पास और केन्द्र सरकार राष्ट्रपति के पास सिफारिश कर सकेगी।मंत्री बनाने और हटाने के लिए कोर्ट की सिफारिश के बाद राज्य सरकार को राज्यपाल के पास और केन्द्र सरकार को राष्ट्रपति के पास सिफारिश करना पड़ेगा।मंत्रियोँ की संख्या सीमित होना चाहिए और पद खाली या किसी के प्रभार मेँ नहीँ रहना चाहिए।इसकी निगरानी भी कोर्ट करे और ऐसी स्थिति मेँ राष्ट्रपति,राज्यपाल के पास अपना सिफारिश भेजकर त्वरित कार्रवाई के लिए आग्रह करे।कोर्ट किसी को मंत्री बनाने या हटाने के लिए सिफारिश करने से पहले इस बात पर विचार करेगी कि संबंधित व्यक्ति का कंडक्ट मंत्री बनाने या मंत्री से हटाने लायक है या नहीँ।कम से कम पाँच जजोँ का खंडपीठ इस फैसला को देने के लिए अधिकृत होँगे।
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स्वतंत्र और निष्पक्ष पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी बनाने का कुछ उपाय-
 

1.UPSC,BPSC की परीक्षा या Interview मेँ किसी विषय पर Critically explain करना पड़ता है।प्रश्न ऐसा दिया जाए जिसपर सोचकर अपना नया विचार प्रकट करना पड़े।प्रश्न कम हो,समय ज्यादा मिले लेकिन सिर्फ नया विचार को ही तरजीह दिया जाए।
2.जिस तरह चुनाव के समय अधिकारी का तबादला और कार्रवाई का आदेश चुनाव आयोग देती है,वैसे ही शेष समय के लिए एक आयोग प्रत्येक राज्य मेँ हो।अधिकारी पर निगरानी,तबादला और कार्रवाई का अधिकार इस आयोग का होगा।राज्य सरकार आयोग के पास सिर्फ सिफारिश कर सकती है।ये आयोग संवैधानिक हो और चुनाव आयोग की तरह स्वायत हो।

3.अधिकारी को ट्रेनिंग के दौरान कोई प्रोजेक्ट देकर किसी क्षेत्र मेँ FIELD WORK पर भेजा जाए।वहाँ ये लोगोँ का सहयोग करेँगे और सिविल अधिकारियोँ या पुलिस अधिकारियोँ(पुलिस सेवा वाले के लिए) और जनप्रतिनिधियोँ के समक्ष लोगोँ के साथ लोगोँ की समस्याएं लेकर जाएंगे।ये उनकी समस्याओँ पर शोध-पत्र तैयार करेँगे।

इन सारे चीजोँ का यदि पालन किया जाता है तो एक अधिकारी स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर कार्य कर
पाएगा I

FIELD WORK के बाद उसपर शोध-पत्र तैयार करने के लिए मैँने कहा है।FIELD WORK और उसपर शोध-पत्र दोनोँ के आधार पर पहला पोस्टिँग होना चाहिए लेकिन FIELD WORK की प्रगति का 75% WEIGHTAGE होना चाहिए और शोध-पत्र का 25%।फील्ड वर्क की प्रगति के बारे मेँ पता कैसे चलेगा?ये ट्रेनी अधिकारी जिन जिन लोगोँ या लोगोँ के समूह को मदद करेँगे,वे इन ट्रेनी अधिकारी को लिखित दे देँगे कि वे इनके काम से कितना संतुष्ट हैँ और इन्होँने किस तरह से उनका मदद किया।लोगोँ के इस लिखित जवाब को ट्रेनी अधिकारी अपने प्रगति प्रतिवेदन के रुप मेँ पहली पोस्टिँग के लिए संबंधित Authority को सुपुर्द कर देँगे।इनकी पोस्टिँग से पहले लिखित जवाब देने वाले लोगोँ से आकर पूछा जाए कि संबंधित ट्रेनी अधिकारी ने उन लोगोँ को मदद भी किया या उन्होँने वैसे ही या दवाब मेँ लिखकर दे दिया है।
 
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नेताओँ को दो जगह से चुनाव लड़ने नहीँ दिया जाए क्योँकि दोनोँ जगह से जीत जाने पर एक जगह से सीट रिक्त करने के बाद वहाँ उपचुनाव होता है,जिसे कराने मेँ काफी खर्च सरकार को करना पड़ता है।नेता जहाँ का सीट छोड़ते हैँ,वहाँ की जनता भी ठगी जाती है क्योँकि जनता किसी को काफी उम्मीद के साथ प्रतिनिधि चुनती है,लेकिन ये नेता उनके उम्मीद पर पानी फेर देते हैँ।कोई पार्टी चुनाव प्रचार जनता के चंदे और कालाधन से करती है।पुनः चुनाव होने पर जनता के चंदे का अनावश्यक रुप से दोहन इन नेताओँ के द्वारा चुनाव प्रचार के लिए किया जाता है और चुनाव प्रचार के लिए कालाधन का प्रवाह बढ़ जाता है।एक मतदाता दो जगह से वोट नहीँ कर सकता,फिर नेता दो जगह से चुनाव क्योँ लड़ सकता है?दोबारा चुनाव होती है,दोबारा आचार संहिता लागू होता है,दोबारा सरकारी कामकाज ठप हो जाता है,जिसका खामियाजा जनता को दोबारा भुगतना पड़ता हैI

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