Sunday 4 May 2014

दलित महिला मुखिया ने छेड़खानी के झूठा आरोप मेँ फंसाया


दलित महिला मुखिया ने छेड़खानी के झूठा आरोप मेँ फंसाया
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विभूतिपुर थाना कांड संख्या 79/14,दिनांक 1/4/2014,IPC की धारा 341,323,354,506,379,504,427,34 और SC/ST ACT की धारा 3(x) के तहत दर्ज किए गए झूठा मुकदमा की समीक्षा
1.थानाध्यक्ष ने The Scheduled Castes And The Scheduled Tribes (Prevention Of Atrocities) Act,1989 का धारा 3(x) लगाया है।इस कानून मेँ ऐसी कोई धारा है ही नहीँ।प्राथमिकी मेँ दर्ज आरोप के अनुसार अपमानित करने और धमकाने के लिए इस कानून का धारा 3(1)(x) लगेगा और साड़ी खीँचना चाहने के लिए धारा 3(1)(xi) लगेगा।
2.थानाध्यक्ष ने IPC का धारा 323 भी लगाया है जबकि प्राथमिकी मेँ मारपीट करने का कहीँ पर भी आरोप नहीँ है।
3.प्राथमिकी का सूचक मनरेगा का एक मजदूर रंजीत पासवान है।उसके फर्दब्यान मेँ लिखा है कि वृक्षारोपन करने के स्थल पर पहुँचने पर चार पाँच मजदूरोँ के साथ हम काम करने लगे।जबकि उसके मिलाकर मुखिया के साथ दुर्व्यव्यवहार और कमीशन मांगने वाली कथित घटना का कुल आठ मजदूर चश्मदीद गवाह हैँ।जब चार पाँच मजदूर ही उस स्थल पर थे जहाँ कथित घटना घटी,फिर आठ मजदूर चश्मदीद गवाह कैसे हो गए?इससे जाहिर होता है कि ये सारे फर्जी चश्मदीद गवाह हैँ।
4.प्राथमिकी मेँ मुखिया सुनीता देवी,पति-शिव कुमार पासवान से कमीशन मांगने,पेड़ उखाड़ने,मुखिया को जान से मारने की धमकी देने,जातिसूचक गाली गलौज करने,मुखिया का करीब 60,000 रुपये का दो भड़ी सोने का चेन छीन लेने और मुखिया की साड़ी खीँचने चाहने का आरोप लगाया गया है।कथित घटना दिनांक 26/03/2014 की बताई गई है,जबकि प्राथमिकी पाँच दिन विलंब से दिनांक 1/4/2014 को दर्ज करायी गई है।प्राथमिकी मेँ विलंब का कारण ग्राम कचहरी का पंचायती बताया गया है।
सर्वप्रथम,नियम के मुताबिक मुखिया या किसी जनप्रतिनिधि का मामला ग्राम कचहरी मेँ नहीँ चल सकता है।SC/ST ACT का मामला भी ग्राम कचहरी मेँ नहीँ चल सकता क्योँकि SC/ST ACT का मामले की सुनवाई सेशन कोर्ट मेँ ही हो सकती है।IPC का धारा 354(छेड़खानी) और 506 का PART II (जान से मारने की धमकी) Non-compoundable offence है,जिसमेँ समझौता नहीँ किया जा सकता।इसलिए धारा 354 और 506 का मामले की सुनवाई ग्राम कचहरी मेँ नहीँ हो सकती।इसलिए ग्राम कचहरी के कारण पाँच दिन विलंब का कारण बताना साजिश को छिपाने का महज एक बहाना है।अभियुक्त मो रुस्तम,शिव नारायण महतो और सीता राम ठाकुर मुखिया के द्वारा मनरेगा मेँ किए जा रहे वित्तीय गड़बड़ियाँ के विरुध्द आवाज उठाते थे।इसलिए ये संभव है कि ये लोग दिनांक 26.03.2014 को मनरेगा मेँ हो रहे गड़बड़ियाँ के विरुध्द आवाज उठाया हो और इन्हेँ फंसाने का साजिश रचने मेँ पाँच दिन का समय लग गया हो और किसी मजदूर(रंजीत पासवान) को आगे करके इसलिए प्राथमिकी दर्ज करवाया गया हो क्योँकि मुखिया ये सिध्द करना चाहते हो कि अभियुक्तोँ ने कमीशन मांगा था,जिसे देने से मना करने के बाद ये सब घटना घटी।
5.आरोप मुखिया सुनीता देवी से कमीशन मांगने,उसके साथ गाली गलौज करने,उसे जान से मारने का धमकाने,उसका चेन खीँचने और उसका साड़ी खींचने चाहने पर केन्द्रित है।लेकिन मुखिया होने के बावजूद शिकायत सुनीता देवी के द्वारा दर्ज नहीँ करवायी गई और किसी मजदूर के द्वारा करवायी गई ताकि ये सिध्द किया जा सके कि अभियुक्तोँ ने कमीशन मांगा था और फिर कमीशन देने से मना करने पर इतने दुर्व्यवहार हुई।जब साड़ी खीँचने का प्रयास करने सहित कई अभद्र व्यवहार मुखिया के साथ हुई,तो फिर मुखिया ने खुद शिकायत दर्ज क्योँ नहीँ कराया?
6.प्राथमिकी के अनुसार आठ मजदूर चश्मदीद गवाह हैँ।जब मो रुस्तम ने आठ मजदूरोँ के समक्ष मुखिया का साड़ी खीँचना चाहा तो फिर किसी मजदूर ने प्रतिवाद क्योँ नहीँ किया?ये मजदूर प्राथमिकी दर्ज करवा सकते हैँ,ये मजदूर चश्मदीद गवाह बन सकते हैँ लेकिन ये मजदूर प्रतिवाद नहीँ कर सकते?मजदूरोँ का ये क्रियाकलाप विरोधाभासी और संदेहास्पद है।प्राथमिकी के अनुसार,शिव नारायण महतो मुखिया के गला से करीब दो भड़ी सोने का चेन जिसका कीमत करीब 60,000 रुपया है,छीन लिया और भाग गया।यदि गला का चेन इतने मजदूरोँ के सामने मेँ छीना गया तो इतने मजदूर क्या कर रहे थे?जब शिव नारायण महतोँ गला का चेन छीनकर भागने लगा तो फिर इन मजदूरोँ ने उसे पकड़ा क्योँ नहीँ?तीन अभियुक्त मो रुस्तम,सीताराम ठाकुर और शिव नारायण महतो एक साथ वारदात को अंजाम देने आया था,फिर अकेला शिव नारायण महतो ही चेन छीनने के बाद क्योँ भागा,दो अन्य अभियुक्त क्योँ नहीं भागा?धारा 379 यानि छीना-झपटी करने का ज्यादातर आरोप झूठा होता है और लगभग सभी प्राथमिकी मेँ छीनने के बाद अभियुक्त को भागते हुए दिखाया जाता है,इसलिए इस प्राथमिकी मेँ भी दिखा दिया गया है।जब गर्दन से चेन खीँचा गया तो जाहिर है कि गर्दन मेँ जख्म का निशान होना चाहिए,लेकिन ऐसा कोई निशान मुखिया के गर्दन पर नहीँ है।
7.जब मामला इतना गंभीर था तो फिर सीधे प्राथमिकी करने के बजाय पहले ग्राम कचहरी को क्योँ चुना गया?इससे जाहिर होता है कि मामला उतना गंभीर नहीँ था लेकिन जानबूझकर प्राथमिकी मेँ मामला को गंभीर बनाकर दिखाया गया है।प्राथमिकी के सूचक रंजीत पासवान ने थानाध्यक्ष से प्रार्थना किया है कि हम गरीब मजदूरोँ के जान माल एवं मजदूरी सुनिश्चित करने हेतु उचित कानूनी कार्रवाई करे।प्रार्थना मेँ मुखिया के साथ घटित घटना के विरुध्द कार्रवाई का मांग किया ही नहीँ गया है।इसका मतलब ये होता है कि मुखिया के साथ कोई घटना घटी ही नहीँ।इसका मतलब ये होता है कि ये मजदूर लोग मुखिया के अपने आदमी हैँ और मुखिया के कहने पर फर्जी आरोप लगा रहे हैँ।
8.इस साजिश को अंजाम देने मेँ मुखिया के साथ मुखिया का पति या अन्य थर्ड पर्सन भी शामिल होँगे जो विभिन्न सरकारी योजनाओँ मेँ वित्तीय गड़बड़ियाँ करने मेँ संलिप्त हैँ।
9.उपरोक्त समीक्षा से स्पष्ट है कि सभी आरोप फर्जी है।

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